बर्थड स्पेशल
लड़की की आवाज में मधुरता
के साथ – साथ एक अदब भी होनी जरूरी होती है लेकिन जब रानी मुखर्जी ने बॉलीवुड की
दुनिया में कदम रखा तो लोगों ने उनकी आवाज को ‘मर्द’ की आवाज करार दिया। लड़की के आवाज में भारीपान
होना आलोचकों को भा नहीं रहा था। यही वजह थी कि मध्यम कद और सांवले रंग की रानी
मुखर्जी ने बॉलीवुड में जब दस्तक दी, तो
उनकी कद-काठी को देखकर हर किसी ने उन्हें हल्के में लिया। लेकिन रानी ने इसी को अपना हथियार बनाया और 1998 की फिल्म 'कुछ कुछ होता है' में एक्टिंग के बल पर फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का
पुरस्कार जीतकर यह साबित कर दिया कि प्रतिभा का कोई कद या पैमाना नहीं होता।
दरअसल, रानी मुखर्जी का
फिल्मी कैरियर किसी सफल प्रयोगशाला से कम नहीं है। रानी ने फिल्मों और अपने
किरदारों के साथ जितने प्रयोग किए उससे कहीं ज्यादा उनसे इंसाफ भी किया। बात
चाहें फिल्म ब्लैक की दिव्यांग किरदार ‘मिशेल मैकनैली’ की हो या फिर बंटी और बबली की चुलबुली
‘बबली’ का किरदार हो। हर रोल में खुद को फिट किया और अपना लोहा मनवाया। यही
वजह थी कि कुछ सालों में ही वह बॉलीवुड की रानी बन गईं। फिल्म 'ब्लैक' में रानी ने अभिनय प्रतिभा का
शक्तिशाली सबूत दिया। जिसमें उन्होंने एक अंधी-बहरी लड़की का किरदार निभाया था।
2004 के बाद बढ़ा रानी का कद
अगर देखा जाए तो रानी के लिए साल 2004 से फिल्मी कैरियर की सफल यात्रा शुरू हुई। रानी ने फिल्म 'युवा', 'हम-तुम' 'वीर जारा' ब्लैक, 'बंटी और बबली' 'कभी अलविदा न कहना' जैसी हिट फिल्में दीं। 2005 में रानी ने 50वें फिल्मफेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री दोनों ही पुरस्कार अपने नाम किए। एक ही साल में दोनों पुरस्कार जीतने वाली रानी पहली अभिनेत्री बनीं। वहीं 2005 में रानी के लिए तब सम्मा नित पल था जब उन्हेंर पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ भोजन का न्योता दिया गया था। रानी ने वर्ष 2006 में अन्य बॉलीवुड अभिनेत्रियों के साथ ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय परंपरा का प्रदर्शन किया। 2015 में रानी ब्रिटिश एशियन ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक चैरिटी डिनर में प्रिंस चार्ल्स के साथ शामिल हुई थीं।
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