Saturday 30 July 2016

डायन से कम नहीं है डोपिंग

वैसे तो हाल में सबसे ज्यादा चर्चा ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रहे 387 रूसी खिलाड़यों के दल की रही है, जिनमें से 105 खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं के सेवन की जांच करने वाले डोप टेस्ट में पकड़े गए। पर इस विदेशी किस्से के साथ कदमताल करती पहलवान नरसिंह यादव और शॉटपुटर इंदरजीत राव के रूप में खबरें हमारे देश से भी सामने आई हैं। डोपिंग का इतिहास बहुत पुराना है और इसके किस्से भी कम रोचक नहीं हैं...

साल 1968 में मैक्सिको ओलंपिक के लिए भारतीय खिलाड़ियों का ट्रायल चल रहा था। ट्रायल के दौरान दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गए। उस दौरान कृपाल सिंह के मुंह से झाग निकलने लगा था और वे बेहोश हो गए थे। जांच में पता चला कि कृपाल ने नशीले पदार्थ ले रखे थे, ताकि मैक्सिको ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाएं। यह पहली बार था जब भारत में डोपिंग का मामला सामने आया। इस घटना के बाद दुनियाभर में भारत की फजीहत हुई।  संयोग देखिए, मैक्सिको ओलंपिक में ही पहली बार डोप टेस्ट अमल में भी लाया गया और धीरे-धीरे ऐसा करने वाले खिलाड़ियों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। वैसे 1904 ओलंपिक में सबसे पहले डोपिंग का मामला सामने आया था, लेकिन इस संबंध में प्रयास 1920 से शुरू हुए। शक्तिवर्धक दवाओं के इस्तेमाल करने वाले खिलाड़ियों पर नकेल कसने के लिए सबसे पहला प्रयास अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ ने किया और 1928 में डोपिंग के नियम बनाए गए।  लेकिन इस दिशा में बड़ा प्रयास उस वक्त हुआ जब 1998 में प्रतिष्ठित साईकिल रेस टू-डी-फ्रांस के दौरान खिलाड़ी डोप टेस्ट में असफल होते पाए गए। ऐसे में यह महसूस किया गया कि डोप टेस्ट को लेकर अभी तक प्रयास बहुत ही बौना साबित हुआ है। लिहाजा अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 1999 में विश्व एंटी डोपिंग संस्था (वाडा) की स्थापना की। इसके बाद प्रत्येक देश की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर डोपिंग रोधी संस्था ( नाडा) की स्थापना की जाने लगी। बावजूद इसके डोपिंग में फंसने वाले खिलाड़ियों की तादाद बढ़ती ही चली गई। अगर सिर्फ भारत के संदर्भ में बात करें तो  यहां डोपिंग के मामलों में लगातार इजाफा होता गया। नाडा के आंकड़े के मुताबिक 1 जनवरी 2009 से अभी तक कुल 687 एथलीट डोपिंग विवाद के चलते बैन हो चुके हैं। इस हिसाब से देखें तो औसतन हर साल करीब 100 एथलीट बैन हुए हैं। 2012 ओलंपिक में इस आंकड़े में काफी उछाल देखा गया जब 176 एथलीट डोपिंग के कारण बैन हो गए। हालांकि इसके बाद बरती गई सख्ती के कारण अगले दो साल में इस संख्या में भारी गिरावट देखी गई। इस साल भी 18 जुलाई तक 72 एथलीट डोपिंग संबंधी मामलों में फंस चुके हैं। 2009 से पहले के आंकड़े मौजूद नहीं थे। जानकारों की मानें तो  एक खिलाड़ी को पता होता है कि उसका कैरियर छोटा है और अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही ये खिलाड़ी अमीर और मशहूर हो सकते हैं। इसी जल्दबाजी और शॉर्टकट तरीके से मेडल पाने की भूख में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं। इसके अलावा बड़ी इनामी राशि भी एथलीट्स को शॉर्ट-कट अपनाने को उकसा रहा है। उदाहरण के लिए ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी को सरकार की ओर से 75 लाख रुपये, सिल्वर जीतने पर 30 लाख और ब्रान्ज जीतने पर 20 लाख रुपये मिलते हैं। एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी को 30 लाख रुपये की इनामी राशि मिलती है।


ऐसे होता है डोप टेस्ट
किसी प्रतियोगिता या प्रशिक्षण शिविर से पहले खिलाड़ियों का डोप टेस्ट अकसर किया जाता है। यह नाडा या वाडा या फिर दोनों की ओर से किए जा सकते हैं। इसके लिए खिलाड़ियों के यूरीन के सैंपल लिए जाते हैं। नमूना एक बार ही लिया जाता है। पहले चरण को ए और दूसरे चरण को बी कहते हैं। ए पॉजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यदि खिलाड़ी चाहे तो एंटी डोपिंग पैनल से बी-टेस्ट सैंपल के लिए अपील कर सकता है। यदि खिलाड़ी बी-टेस्ट सैंपल में भी पॉजीटिव आ जाए तो उस संबंधित खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।

कैसे होती है खिलाड़ियों पर कार्रवाई
वाडा और नाडा समय के साथ डोप तत्वों की पहचान करती है।  इसके बाद प्रतिबंधित तत्वों की सूची तैयार कर खिलाड़ियों को जानकारी मुहैया कराना, प्रयोगशालाएं स्थापित करना और उसका संचालन करना भी इनका प्रारंभिक दायित्व है। इन संस्थाओं को दंडात्मक शक्ति हासिल है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ यानी आईओसी ने सदस्य देशों से बकायदा सशर्त समझौता किया है।

नाडा को प्रतिबंध करने का अधिकार
नाडा को यह अधिकार है कि वह खिलाड़ियों का औचक डोप टेस्ट करे और दोषी पाए जाने पर खिलाड़ियों पर दो साल से लेकर आजीवन प्रतिबंध लगाए। इसके लिए बकायदा एंटी डोपिंग अनुशासन पैनल और एंटी डोपिंग अपील पैनल की व्यवस्था की गई है जिससे किसी खिलाड़ी के साथ पक्षपात नहीं हो।  नाडा से मिली सजा के खिलाफ खिलाड़ी वाडा में अपील कर न्याय मांग सकता है। इतना ही नहीं खिलाड़ियों के खिलाफ किसी तरह अन्याय ना हो इसलिए विशेष खेल न्यायालय स्पोर्ट्स आर्बिटेशन कोर्ट भी बनाया गया है, जो सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है।

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साल 2014 में एंटी डोपिंग एजेंसी वाडा की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस और इटली के बाद भारत में सबसे ज्यादा डोपिंग के मामले सामने आए।

2014-15 में डोपिंग के मामले           
रुस        148
इटली      123
भारत        96

ट्रैक ऐंड फील्ड एथलीट्स सबसे आगे
भारत में ट्रैक ऐंड फील्ड एथलीट्स (266) में सबसे ज्यादा डोपिंग का उल्लंघन देखा जाता है। इसके बाद वेटलिफ्टिंग (169) का नाम आता है। नियमों का उल्लंघन करने वाले ज्यादातर जूनियर, सीनियर, स्कूल गेम्स और यूनिवर्सिटी स्तर पर भाग लेने वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय के एथलीट्स होते हैं। इसके अलावा बॉक्सर, साइक्लिस्ट, पहलवान, पावरलिफ्टर, तैराक और कबड्डी खिलाड़ी भी डोपिंग में फंसे हैं। 2014 -15 में 29 एथलेटिक्स, पावरलिफ्टिंग  में  23 और वेटलिफ्टिंग में  22 खिलाड़ी फंसे हैं।

भारत में डोप के शिकार
2000 ः में डिस्कस थ्रोअर सीमा अंतिल को वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में मिला गोल्ड मेडल छीन लिया गया। उन पर डोपिंग का आरोप लगा।
2005 ः में दो डिस्कस थ्रोअर अनिल कुमार और नीलम जे सिंह नोरैंड्रोस्टेरॉन के सेवन करने के दोषी पाए गए। दोनों पर दो-दो साल की पाबंदी लगा दी गई।
2010 ः में शॉट पटर सौरव विज पर भी दो साल का बैन लगा। हालांकि देश की एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा ने उन्हें क्लीन चीट दे दी।
2011 ः में नाडा ने छह महिला एथलीट पर एक-एक साल की पाबंदी लगाई। इसमें शामिल थे हरिकृष्णन, मनदीप कौर, सनी जोस और अश्विन अकुंजी।

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एक नजर खेल इतिहास के डोपिंग के रोचक मामलों पर :

करवाना पड़ा सेक्‍स चेंज
1986 में यूरोप की शॉटपुट (गोलाफेंक) चैंपियन बनीं हीदी क्रिगर डोपिंग की ऐसी शिकार हुईं कि उन्‍हें अपना सेक्‍स चेंज करवाना पड़ा। अब वह हीदी नहीं एंड्रियाज बन चुकी हैं। मात्र 16 साल की उम्र से उन्‍हें स्‍टेरॉयड वाले ड्रग्‍स दिए गए जिससे उनका शरीर विकृ‍त हो गया और वह मर्द की तरह दिखने लगी। खुद के शरीर को मर्द जैसे देखते हुए उन्‍होंने सेक्‍स चेंज करवा लिया। जर्मनी ने 30 साल लंबे अपने डोपिंग प्रोग्राम के जरिए उनसे कई मेडल्‍स हासिल किए।

खेल इतिहास की सबसे गंदी दौड़
बेन जॉनसन कनाडा के तेज धावक हैं। सियोल ओलंपिक में 1988 में 100 मीटर रेस को 9.79 सेकेंड में रेस पूरी कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया था लेकिन तीन दिन बाद यह साफ हो गया कि बेन जॉनसन ने डोपिंग की। उनके खून से स्टैनोजोलोल नाम का स्टेरॉयड मिला। जॉनसन के साथ दौड़े आठ में से छह धावक डोपिंग के दोषी पाए गए। इस दौड़ में दूसरा स्‍थान पा‍ने वाले यूएस एथलीड कार्ल लुईस पर भी दाग लग गया था। इसे खेलों के इतिहास की सबसे गंदी दौड़ कहा गया। कांस्य मेडल पाने वाले कल्‍विन स्मिथ डोपिंग टेस्‍ट में पास हुए थे।

जेल की खानी पड़ी हवा
अमेरिका की स्टार एथलीट मारियन जोन्‍स कई युवा लड़कियों की हीरो थीं। ट्रैक एंड फील्ड वर्ल्ड चैंपियन और ओलंपिक की गोल्ड विजेता मारियन जोन्स से साल 2000 के सारे मेडल्‍स छिन लिए गए। 2007 में मारियन ने माना कि उसने उन मुकाबलों के दौरान डोपिंग की थी। मारियन ने इस मामले में ग्रैंड ज्यूरी के सामने झूठ बोलने की बात स्वीकारी और तब उन्हें छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई।

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..और डोप ने बनाया विलेन

शारापोवा: टेनिस की सनसनी मारिया शारापोवा इसी साल ऑस्ट्रेलियन ओपन के दौरान हुए डोप टेस्ट में शारापोवा नाकाम रहीं और उन पर इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन ने दो साल का बैन लगा दिया।

लांस आर्मस्ट्रॉन्ग:  लांस ने 1996 में कैंसर से जंग जीती और साइकलिंग की दुनिया में दोबारा कदम रखा जिससे उनकी सुरपहीरो की छवि बन गई थी। लेकिन डोपिंग में फंसने के कारण उन पर जिंदगी भर का प्रतिबंध लगाया गया है। उनसे सभी खिताब छीन लिए गए।

शेन वॉर्न: 2003 वर्ल्ड कप शुरू होने से एक दिन पहले शेन वॉर्न प्रतिबंधित दवा पाने के दोषी पाए गए थे। इसके बाद ऑस्ट्रेलियन बोर्ड ने एक साल का बैन लगाया था।

शोएब अख्तर: वहीं, कभी दुनिया के सबसे तेज गेंदबाजों में शुमार रहे अख्तर को 2006 में डोपिंग का दोषी पाए जाने के बाद दो साल के लिए निलंबित किया गया था।

मार्टिना हिंगिस: टेनिस की पूर्व नंबर एक खिलाड़ी मार्टिना हिंगिस पर भी डोपिंग का दाग लग चुका है। 2008 में डोपिंग के कारण हिंगिस पर दो साल का बैन लगाया गया था।

डिएगो माराडोना: फुटबॉल के इस दिग्गज को 1991 में कोकिन के इस्तेमाल की वजह से 15 महीने का बैन झेलना पड़ा था। इसके बाद 1994 के फीफा वर्ल्ड कप के दौरान भी वह दोषी पाए गए और उन्हें दोबारा बैन किया गया।

टाइसन गे ः बोल्ट के बाद सबसे तेज धावक माने जाने वाले वाले अमेरिकी स्प्रिंटरगे को 2013 में स्‍टेरॉयड लेने का दोषी पाए जाने पर अमेरिकी एंटी-डोपिंग एजेंसी ने एक साल के लिए बैन कर दिया। उनसे 2012 लंदन ओलंपिक में जीता सिल्वर मेडल भी छिन गया।

ली चोंग वीः मलेशिया के बैडमिंटन खिलाड़ी ली चोंग वी भी डोपिंग की बदनाम गली का हिस्सा रह चुके हैं। उन पर आठ महीने का प्रतिबंध लगा। वी 2008 और 2012 के ओलंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं और तीन बार विश्व चैंपियन भी रहे हैं।


86 साल पहले इलाज के लिए खोजा गया
स्टेरॉयड बना बॉडी बनाने करने का जरिया



नरसिंह यादव मामले में एक चीज जो बार-बार जेहन में घूमती है कि आखिर स्टेरॉयड होते क्या हैं। 86 साल पहले जिस कृत्रिम हार्मोन की खोज पुरुषों के सेक्स हार्मोन को विकसित करने और शरीर के विकास को लेकर की गई थी, वह आज बॉडी बनाने का जरिया बन चुकी है। एक रिपोर्ट...

क्या है स्टेरॉयड
स्टेरॉयड एनाबॉलिक एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड का छोटा नाम है। 1930 में इसकी खोज ऐसे लोगों के इलाज के मकसद से हुई थी, जिनके अंडकोष (टेस्टिल्स) जरूरी मात्रा में ग्रोथ हार्मोन नहीं बना पाते। फिर कई जानलेवा बीमारियों में इसका उपयोग होने लगा। लेकिन चीजें तब बदलीं, जब खिलाड़ियों के बीच जब बॉडी बनाने के लिए लोकप्रिय हुआ।

एनाबॉलिक और एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड
एनाबॉलिक स्टेरॉयड मसल्स बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। वहीं, एंड्रोजेनिक को मर्दानगी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।

कैसे होता है इस्तेमाल
इंजेक्शन, गोली के रूप में और आजकल जैल के तौर पर भी स्टेरॉयड का उपयोग हो रहा है। दुनिया के ज्यादातर देशों में स्टेरॉयड के बिना डॉक्टरी सलाह इस्तेमाल पर बैन है।

बॉडी बिल्डिंग में उपयोग होने वाले चर्चित स्टेरॉयड
गोली के रूप में
- एंड्रोल
- ऑक्सेंडिन
- डेनाबोल
- मिंस्ट्रोल

इंजेक्शन के जरिए
- डेका ड्योरोबलीन
- टेस्टोस्टेरोन
- इक्विपोज
- टीएचजी


तीन तरह से होता है कोर्स
1. पिरामिड- इसमें पिरामिड की तरह डोज ली जाती है। पहले थोड़ी और फिर धीरे-धीरे डोज बढ़ाई जाती है और एक समय के बाद खत्म कर दी जाती है।
2. स्टैकिंग - जब कई स्टेरॉयड को एक साथ मिलाकर लिया जाए तो इसे स्टैकिंग कहते हैं। कई बार तो गोली और इंजेक्शन तक साथ लिया जाता है।
3. साइकिल  - इसमें एक तयशुदा समय के दौरान स्टेरॉयड की अलग-अलग डोज लेकर बंद कर दी जाती है, फिर कुछ समय बाद इसे शुरू किया जाता है।
- पिरामिड कोर्स को स्टेरॉयड लेने का सबसे सही तरीका माना गया है। यह कोर्स 6 से 12 सप्ताह में पूरा हो जाता है।

क्या है मेथेडिनन
नरसिंह यादव के शरीर में जिस मेथेडिनन के अंश पाए गए, वह बाजार में डेनाबोल के नाम से बिकता है और एक एनाबॉलिक स्टेरॉयड है। बात 1953 की है। रूस के खिलाड़ियों ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में टेस्टोस्टेरोन नाम के स्टेरॉयड का उपयोग किया था, जिसके बाद बाद अमेरिकी डॉक्टरों ने अपने खिलाड़ियों को रूसी खिलाड़ियों से टक्कर लेनेे के लिए मेथेडिनन को ईजाद किया। 1956 में यह तैयार हुई और खिलाड़ियों ने ही इसे डेनाबोल नाम दिया।

काम और साइकिल
डेनाबोल गोली के रूप में आती है। यह व्यक्ति की चर्बी बढ़ाती है। बॉडी बिल्डर एक बार में इसकी 75 ग्राम डोज तक ले लेते हैं। छह से आठ सप्ताह तक इसका कोर्स चलता है। यह लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचाती है और महिलाएं इस्तेमाल कर लें तो उनमें मर्दाना लक्षण पैदा कर देती है।

फैक्ट
- 32 तरह के स्टेरॉयड मौजूद हैं इस समय बाजार में। इनमें कई बॉडी बिल्डिंग में उपयोग हो रहे हैं।
- 15 से 18 दिन तक रहता है शरीर में ओमनाड्रेन स्टेरॉयड का असर, सबसे लंबा अवधि का स्टेरॉयड।
- 06 घंटे तक असर रहता है डेनाबोल की एक डोज का शरीर में असर।


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