Saturday 30 July 2016

डायन से कम नहीं है डोपिंग

वैसे तो हाल में सबसे ज्यादा चर्चा ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रहे 387 रूसी खिलाड़यों के दल की रही है, जिनमें से 105 खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं के सेवन की जांच करने वाले डोप टेस्ट में पकड़े गए। पर इस विदेशी किस्से के साथ कदमताल करती पहलवान नरसिंह यादव और शॉटपुटर इंदरजीत राव के रूप में खबरें हमारे देश से भी सामने आई हैं। डोपिंग का इतिहास बहुत पुराना है और इसके किस्से भी कम रोचक नहीं हैं...

साल 1968 में मैक्सिको ओलंपिक के लिए भारतीय खिलाड़ियों का ट्रायल चल रहा था। ट्रायल के दौरान दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गए। उस दौरान कृपाल सिंह के मुंह से झाग निकलने लगा था और वे बेहोश हो गए थे। जांच में पता चला कि कृपाल ने नशीले पदार्थ ले रखे थे, ताकि मैक्सिको ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाएं। यह पहली बार था जब भारत में डोपिंग का मामला सामने आया। इस घटना के बाद दुनियाभर में भारत की फजीहत हुई।  संयोग देखिए, मैक्सिको ओलंपिक में ही पहली बार डोप टेस्ट अमल में भी लाया गया और धीरे-धीरे ऐसा करने वाले खिलाड़ियों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। वैसे 1904 ओलंपिक में सबसे पहले डोपिंग का मामला सामने आया था, लेकिन इस संबंध में प्रयास 1920 से शुरू हुए। शक्तिवर्धक दवाओं के इस्तेमाल करने वाले खिलाड़ियों पर नकेल कसने के लिए सबसे पहला प्रयास अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ ने किया और 1928 में डोपिंग के नियम बनाए गए।  लेकिन इस दिशा में बड़ा प्रयास उस वक्त हुआ जब 1998 में प्रतिष्ठित साईकिल रेस टू-डी-फ्रांस के दौरान खिलाड़ी डोप टेस्ट में असफल होते पाए गए। ऐसे में यह महसूस किया गया कि डोप टेस्ट को लेकर अभी तक प्रयास बहुत ही बौना साबित हुआ है। लिहाजा अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 1999 में विश्व एंटी डोपिंग संस्था (वाडा) की स्थापना की। इसके बाद प्रत्येक देश की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर डोपिंग रोधी संस्था ( नाडा) की स्थापना की जाने लगी। बावजूद इसके डोपिंग में फंसने वाले खिलाड़ियों की तादाद बढ़ती ही चली गई। अगर सिर्फ भारत के संदर्भ में बात करें तो  यहां डोपिंग के मामलों में लगातार इजाफा होता गया। नाडा के आंकड़े के मुताबिक 1 जनवरी 2009 से अभी तक कुल 687 एथलीट डोपिंग विवाद के चलते बैन हो चुके हैं। इस हिसाब से देखें तो औसतन हर साल करीब 100 एथलीट बैन हुए हैं। 2012 ओलंपिक में इस आंकड़े में काफी उछाल देखा गया जब 176 एथलीट डोपिंग के कारण बैन हो गए। हालांकि इसके बाद बरती गई सख्ती के कारण अगले दो साल में इस संख्या में भारी गिरावट देखी गई। इस साल भी 18 जुलाई तक 72 एथलीट डोपिंग संबंधी मामलों में फंस चुके हैं। 2009 से पहले के आंकड़े मौजूद नहीं थे। जानकारों की मानें तो  एक खिलाड़ी को पता होता है कि उसका कैरियर छोटा है और अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही ये खिलाड़ी अमीर और मशहूर हो सकते हैं। इसी जल्दबाजी और शॉर्टकट तरीके से मेडल पाने की भूख में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं। इसके अलावा बड़ी इनामी राशि भी एथलीट्स को शॉर्ट-कट अपनाने को उकसा रहा है। उदाहरण के लिए ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी को सरकार की ओर से 75 लाख रुपये, सिल्वर जीतने पर 30 लाख और ब्रान्ज जीतने पर 20 लाख रुपये मिलते हैं। एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी को 30 लाख रुपये की इनामी राशि मिलती है।


ऐसे होता है डोप टेस्ट
किसी प्रतियोगिता या प्रशिक्षण शिविर से पहले खिलाड़ियों का डोप टेस्ट अकसर किया जाता है। यह नाडा या वाडा या फिर दोनों की ओर से किए जा सकते हैं। इसके लिए खिलाड़ियों के यूरीन के सैंपल लिए जाते हैं। नमूना एक बार ही लिया जाता है। पहले चरण को ए और दूसरे चरण को बी कहते हैं। ए पॉजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यदि खिलाड़ी चाहे तो एंटी डोपिंग पैनल से बी-टेस्ट सैंपल के लिए अपील कर सकता है। यदि खिलाड़ी बी-टेस्ट सैंपल में भी पॉजीटिव आ जाए तो उस संबंधित खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।

कैसे होती है खिलाड़ियों पर कार्रवाई
वाडा और नाडा समय के साथ डोप तत्वों की पहचान करती है।  इसके बाद प्रतिबंधित तत्वों की सूची तैयार कर खिलाड़ियों को जानकारी मुहैया कराना, प्रयोगशालाएं स्थापित करना और उसका संचालन करना भी इनका प्रारंभिक दायित्व है। इन संस्थाओं को दंडात्मक शक्ति हासिल है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ यानी आईओसी ने सदस्य देशों से बकायदा सशर्त समझौता किया है।

नाडा को प्रतिबंध करने का अधिकार
नाडा को यह अधिकार है कि वह खिलाड़ियों का औचक डोप टेस्ट करे और दोषी पाए जाने पर खिलाड़ियों पर दो साल से लेकर आजीवन प्रतिबंध लगाए। इसके लिए बकायदा एंटी डोपिंग अनुशासन पैनल और एंटी डोपिंग अपील पैनल की व्यवस्था की गई है जिससे किसी खिलाड़ी के साथ पक्षपात नहीं हो।  नाडा से मिली सजा के खिलाफ खिलाड़ी वाडा में अपील कर न्याय मांग सकता है। इतना ही नहीं खिलाड़ियों के खिलाफ किसी तरह अन्याय ना हो इसलिए विशेष खेल न्यायालय स्पोर्ट्स आर्बिटेशन कोर्ट भी बनाया गया है, जो सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है।

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साल 2014 में एंटी डोपिंग एजेंसी वाडा की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस और इटली के बाद भारत में सबसे ज्यादा डोपिंग के मामले सामने आए।

2014-15 में डोपिंग के मामले           
रुस        148
इटली      123
भारत        96

ट्रैक ऐंड फील्ड एथलीट्स सबसे आगे
भारत में ट्रैक ऐंड फील्ड एथलीट्स (266) में सबसे ज्यादा डोपिंग का उल्लंघन देखा जाता है। इसके बाद वेटलिफ्टिंग (169) का नाम आता है। नियमों का उल्लंघन करने वाले ज्यादातर जूनियर, सीनियर, स्कूल गेम्स और यूनिवर्सिटी स्तर पर भाग लेने वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय के एथलीट्स होते हैं। इसके अलावा बॉक्सर, साइक्लिस्ट, पहलवान, पावरलिफ्टर, तैराक और कबड्डी खिलाड़ी भी डोपिंग में फंसे हैं। 2014 -15 में 29 एथलेटिक्स, पावरलिफ्टिंग  में  23 और वेटलिफ्टिंग में  22 खिलाड़ी फंसे हैं।

भारत में डोप के शिकार
2000 ः में डिस्कस थ्रोअर सीमा अंतिल को वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में मिला गोल्ड मेडल छीन लिया गया। उन पर डोपिंग का आरोप लगा।
2005 ः में दो डिस्कस थ्रोअर अनिल कुमार और नीलम जे सिंह नोरैंड्रोस्टेरॉन के सेवन करने के दोषी पाए गए। दोनों पर दो-दो साल की पाबंदी लगा दी गई।
2010 ः में शॉट पटर सौरव विज पर भी दो साल का बैन लगा। हालांकि देश की एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा ने उन्हें क्लीन चीट दे दी।
2011 ः में नाडा ने छह महिला एथलीट पर एक-एक साल की पाबंदी लगाई। इसमें शामिल थे हरिकृष्णन, मनदीप कौर, सनी जोस और अश्विन अकुंजी।

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एक नजर खेल इतिहास के डोपिंग के रोचक मामलों पर :

करवाना पड़ा सेक्‍स चेंज
1986 में यूरोप की शॉटपुट (गोलाफेंक) चैंपियन बनीं हीदी क्रिगर डोपिंग की ऐसी शिकार हुईं कि उन्‍हें अपना सेक्‍स चेंज करवाना पड़ा। अब वह हीदी नहीं एंड्रियाज बन चुकी हैं। मात्र 16 साल की उम्र से उन्‍हें स्‍टेरॉयड वाले ड्रग्‍स दिए गए जिससे उनका शरीर विकृ‍त हो गया और वह मर्द की तरह दिखने लगी। खुद के शरीर को मर्द जैसे देखते हुए उन्‍होंने सेक्‍स चेंज करवा लिया। जर्मनी ने 30 साल लंबे अपने डोपिंग प्रोग्राम के जरिए उनसे कई मेडल्‍स हासिल किए।

खेल इतिहास की सबसे गंदी दौड़
बेन जॉनसन कनाडा के तेज धावक हैं। सियोल ओलंपिक में 1988 में 100 मीटर रेस को 9.79 सेकेंड में रेस पूरी कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया था लेकिन तीन दिन बाद यह साफ हो गया कि बेन जॉनसन ने डोपिंग की। उनके खून से स्टैनोजोलोल नाम का स्टेरॉयड मिला। जॉनसन के साथ दौड़े आठ में से छह धावक डोपिंग के दोषी पाए गए। इस दौड़ में दूसरा स्‍थान पा‍ने वाले यूएस एथलीड कार्ल लुईस पर भी दाग लग गया था। इसे खेलों के इतिहास की सबसे गंदी दौड़ कहा गया। कांस्य मेडल पाने वाले कल्‍विन स्मिथ डोपिंग टेस्‍ट में पास हुए थे।

जेल की खानी पड़ी हवा
अमेरिका की स्टार एथलीट मारियन जोन्‍स कई युवा लड़कियों की हीरो थीं। ट्रैक एंड फील्ड वर्ल्ड चैंपियन और ओलंपिक की गोल्ड विजेता मारियन जोन्स से साल 2000 के सारे मेडल्‍स छिन लिए गए। 2007 में मारियन ने माना कि उसने उन मुकाबलों के दौरान डोपिंग की थी। मारियन ने इस मामले में ग्रैंड ज्यूरी के सामने झूठ बोलने की बात स्वीकारी और तब उन्हें छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई।

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..और डोप ने बनाया विलेन

शारापोवा: टेनिस की सनसनी मारिया शारापोवा इसी साल ऑस्ट्रेलियन ओपन के दौरान हुए डोप टेस्ट में शारापोवा नाकाम रहीं और उन पर इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन ने दो साल का बैन लगा दिया।

लांस आर्मस्ट्रॉन्ग:  लांस ने 1996 में कैंसर से जंग जीती और साइकलिंग की दुनिया में दोबारा कदम रखा जिससे उनकी सुरपहीरो की छवि बन गई थी। लेकिन डोपिंग में फंसने के कारण उन पर जिंदगी भर का प्रतिबंध लगाया गया है। उनसे सभी खिताब छीन लिए गए।

शेन वॉर्न: 2003 वर्ल्ड कप शुरू होने से एक दिन पहले शेन वॉर्न प्रतिबंधित दवा पाने के दोषी पाए गए थे। इसके बाद ऑस्ट्रेलियन बोर्ड ने एक साल का बैन लगाया था।

शोएब अख्तर: वहीं, कभी दुनिया के सबसे तेज गेंदबाजों में शुमार रहे अख्तर को 2006 में डोपिंग का दोषी पाए जाने के बाद दो साल के लिए निलंबित किया गया था।

मार्टिना हिंगिस: टेनिस की पूर्व नंबर एक खिलाड़ी मार्टिना हिंगिस पर भी डोपिंग का दाग लग चुका है। 2008 में डोपिंग के कारण हिंगिस पर दो साल का बैन लगाया गया था।

डिएगो माराडोना: फुटबॉल के इस दिग्गज को 1991 में कोकिन के इस्तेमाल की वजह से 15 महीने का बैन झेलना पड़ा था। इसके बाद 1994 के फीफा वर्ल्ड कप के दौरान भी वह दोषी पाए गए और उन्हें दोबारा बैन किया गया।

टाइसन गे ः बोल्ट के बाद सबसे तेज धावक माने जाने वाले वाले अमेरिकी स्प्रिंटरगे को 2013 में स्‍टेरॉयड लेने का दोषी पाए जाने पर अमेरिकी एंटी-डोपिंग एजेंसी ने एक साल के लिए बैन कर दिया। उनसे 2012 लंदन ओलंपिक में जीता सिल्वर मेडल भी छिन गया।

ली चोंग वीः मलेशिया के बैडमिंटन खिलाड़ी ली चोंग वी भी डोपिंग की बदनाम गली का हिस्सा रह चुके हैं। उन पर आठ महीने का प्रतिबंध लगा। वी 2008 और 2012 के ओलंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं और तीन बार विश्व चैंपियन भी रहे हैं।


86 साल पहले इलाज के लिए खोजा गया
स्टेरॉयड बना बॉडी बनाने करने का जरिया



नरसिंह यादव मामले में एक चीज जो बार-बार जेहन में घूमती है कि आखिर स्टेरॉयड होते क्या हैं। 86 साल पहले जिस कृत्रिम हार्मोन की खोज पुरुषों के सेक्स हार्मोन को विकसित करने और शरीर के विकास को लेकर की गई थी, वह आज बॉडी बनाने का जरिया बन चुकी है। एक रिपोर्ट...

क्या है स्टेरॉयड
स्टेरॉयड एनाबॉलिक एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड का छोटा नाम है। 1930 में इसकी खोज ऐसे लोगों के इलाज के मकसद से हुई थी, जिनके अंडकोष (टेस्टिल्स) जरूरी मात्रा में ग्रोथ हार्मोन नहीं बना पाते। फिर कई जानलेवा बीमारियों में इसका उपयोग होने लगा। लेकिन चीजें तब बदलीं, जब खिलाड़ियों के बीच जब बॉडी बनाने के लिए लोकप्रिय हुआ।

एनाबॉलिक और एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड
एनाबॉलिक स्टेरॉयड मसल्स बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। वहीं, एंड्रोजेनिक को मर्दानगी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।

कैसे होता है इस्तेमाल
इंजेक्शन, गोली के रूप में और आजकल जैल के तौर पर भी स्टेरॉयड का उपयोग हो रहा है। दुनिया के ज्यादातर देशों में स्टेरॉयड के बिना डॉक्टरी सलाह इस्तेमाल पर बैन है।

बॉडी बिल्डिंग में उपयोग होने वाले चर्चित स्टेरॉयड
गोली के रूप में
- एंड्रोल
- ऑक्सेंडिन
- डेनाबोल
- मिंस्ट्रोल

इंजेक्शन के जरिए
- डेका ड्योरोबलीन
- टेस्टोस्टेरोन
- इक्विपोज
- टीएचजी


तीन तरह से होता है कोर्स
1. पिरामिड- इसमें पिरामिड की तरह डोज ली जाती है। पहले थोड़ी और फिर धीरे-धीरे डोज बढ़ाई जाती है और एक समय के बाद खत्म कर दी जाती है।
2. स्टैकिंग - जब कई स्टेरॉयड को एक साथ मिलाकर लिया जाए तो इसे स्टैकिंग कहते हैं। कई बार तो गोली और इंजेक्शन तक साथ लिया जाता है।
3. साइकिल  - इसमें एक तयशुदा समय के दौरान स्टेरॉयड की अलग-अलग डोज लेकर बंद कर दी जाती है, फिर कुछ समय बाद इसे शुरू किया जाता है।
- पिरामिड कोर्स को स्टेरॉयड लेने का सबसे सही तरीका माना गया है। यह कोर्स 6 से 12 सप्ताह में पूरा हो जाता है।

क्या है मेथेडिनन
नरसिंह यादव के शरीर में जिस मेथेडिनन के अंश पाए गए, वह बाजार में डेनाबोल के नाम से बिकता है और एक एनाबॉलिक स्टेरॉयड है। बात 1953 की है। रूस के खिलाड़ियों ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में टेस्टोस्टेरोन नाम के स्टेरॉयड का उपयोग किया था, जिसके बाद बाद अमेरिकी डॉक्टरों ने अपने खिलाड़ियों को रूसी खिलाड़ियों से टक्कर लेनेे के लिए मेथेडिनन को ईजाद किया। 1956 में यह तैयार हुई और खिलाड़ियों ने ही इसे डेनाबोल नाम दिया।

काम और साइकिल
डेनाबोल गोली के रूप में आती है। यह व्यक्ति की चर्बी बढ़ाती है। बॉडी बिल्डर एक बार में इसकी 75 ग्राम डोज तक ले लेते हैं। छह से आठ सप्ताह तक इसका कोर्स चलता है। यह लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचाती है और महिलाएं इस्तेमाल कर लें तो उनमें मर्दाना लक्षण पैदा कर देती है।

फैक्ट
- 32 तरह के स्टेरॉयड मौजूद हैं इस समय बाजार में। इनमें कई बॉडी बिल्डिंग में उपयोग हो रहे हैं।
- 15 से 18 दिन तक रहता है शरीर में ओमनाड्रेन स्टेरॉयड का असर, सबसे लंबा अवधि का स्टेरॉयड।
- 06 घंटे तक असर रहता है डेनाबोल की एक डोज का शरीर में असर।


Saturday 23 July 2016

कबूतरबाजी से ट्रांसजेंडरों की एंट्री तक ओलंपिक

खेलों का महाकुंभ यानी ओलंपिक पांच अगस्त से ब्राजील के शहर रियो में शुरू हो जाएगा। इस साल 206 देश ओलंपिक में हिस्सा ले रहे हैं। 116 साल पहले इस आयोजन में जहां कबूतरों को मारने पर मेडल मिलता था, वहीं आज ट्रांसजेंडर भी ओलंपिक जीतने का सपना देख रहे हैं।

बतौर पुुरुष जन्मे और अब ट्रांसजेंडर बन चुके दो ब्रिटिश एथलीटों के इस साल रियो ओलंपिक में भाग लेेने की उम्मीद है। उनके नाम का खुलासा नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए ताकि खेल के दौरान वह शर्मिंदगी का शिकार न हों। अगर दोनों प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं तो ऐसा पहली बार होगा, जब ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर भाग लेंगे। दोनों महिला प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेंगे। दौड़, मुक्केबाजी और कुश्ती ओलंपिक के वह खेल हैं, जो कोई 1200 साल से खेले जा रहे हैं। हालांकि तब ओलंपिक को आधिकारिक दर्जा नहीं मिला था। उस समय योद्धाओं के बीच प्रतिस्पर्धा के तौर पर खेलों का आयोजन किया जाता था, जो 776 ईसा पूर्व अपने आधिकारिक अस्तित्व में आए। लेकिन 394 ईस्वी के बाद रोम के सम्राट थियोडोडिस ने ओलंपिक को मूर्ति पूजा का उत्सव करार देते हुए प्रतिबंधित कर दिया। 19वीं शताब्दी में यूरोप में यह परंपरा फिर जिंदा हुई। फ्रांस के रहने वाले बैरो पियरे डी कुवर्तेन ने इसे शुरू करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने दो लक्ष्य रखे। पहला खेल को लोकप्रिय बनाना दूसरा, शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा। 1896 में पहली बार ग्रीस की राजधानी एथेंस में ओलंपिक आयोजित हुए। करीब 34 साल तक ओलंपिक लोकप्रिय होने के लिए जूझता रहा। वजह थी, भव्यता की कमी और कई अटपटे खेल। अब 1900 में हुए पेरिस ओलंपिक को ही जानिये, कबूतरों को मारने की प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। 300 कबूतर मारे गए थे। बेल्जियम के लिओन डी इसके चैंपियन बने थे, लेकिन 1930 में सब बदल गया। बर्लिन ओलंपिक को राजनीतिक और सामाजिक समर्थन मिला। अटपटे खेल बंद किए गए और ओलंपिक चल निकला। 1950 के दशक में सोवियत संघ और अमेरिका ने भी इस खेल में हिस्सा लेना शुरू किया। इसके बाद तो ओलंपिक खेलों का महाकुंभ बन गया। 

यूरोप की देन को 34 साल तक अमेरिका
व सोवियत संघ ने बनाया जंग का मैदान

बैरो पियरे डी कुवर्तेन ने ओलंपिक को शुरू करते समय शांतिपूर्ण आयोजन का जो लक्ष्य रखा, वह पूरा नहीं हो सका। 1968 में मैक्सिको ओलंपिक में अमेरिका से पदक तालिका में पीछे रहना सोवियत संघ को ऐसा अखरा कि 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में सोवियत संघ ने अमेरिका से एक तिहाई ज्यादा पदक जीतकर इसका बदला लिया। 1980 में मास्को ओलंपिक में अमेरिका और पश्चिम के कई देशों ने हिस्सा नहीं लिया तो 1984 में सोवियत संघ ने भी लॉस एंजिलिस ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया। 1988 के सियोल ओलंपिक में सोवियत संघ हावी रहा तो 1992 में विघटन के बावजूद एक साथ शामिल होकर सोवियत यूनियन ने बार्सिलोना ओलंपिक में शीर्ष स्थान हासिल किया। इसके बाद के आयोजनों में अमेरिका प्रथम स्थान पर रहा।

चीन ने की धमाकेदार शुरुआत
साल 2000 के बाद चीन भी ओलंपिक पदक तालिका में अच्छी जगह बनाने लगा। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में उसने सबसे ज्यादा पदक जीते। इसे अब तक का सर्वश्रेष्ठ आयोजन माना जाता है। 


जब पेड़ की टहनी मेडल के तौर पर
मिलती थी तब भी वैसा ही जोश था

आज खिलाड़ी गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल के लिए भिड़ते हैं, लेकिन ओलंपिक के शुरुआती दिनों में यह पदक नहीं मिलते थे। तब जीतने वाले को जैतून के पेड़ की टहनी और माला इनाम में दी जाती थी। लेकिन उस समय भी जीत का जज्बा और जोश वैसा ही था, जैसा आज है।

...जो एक बार ही खेले गए
भारत में सबसे लोकप्रिय क्रिकेट ओलंपिक में सिर्फ एक बार खेला गया। 1900 के पेरिस ओलंपिक के बाद 116 साल से यह महाकुंभ में शामिल होने की बाट जोह रहा है। रग्बी, गोल्फ, रस्साकसी, स्टैंडिंग हाईजंप भी एक बार ही खेले गए। 1904 और 1932 में सामूहिक झूला और जिमभनास्टिक प्रतियोगिता हुई फिर नहीं। 1912 में पिस्तौल युद्ध भी खेला गया था। इसमें एक डमी के गले पर निशाना लगाया गया।

80 साल में ओलंपिक मशाल के रंग
1936 में बर्लिन ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा शुरू हुई। यूनान के प्राचीन शहर ओलंपिया स्थित हीरा के मंदिर से ओलंपिक मशाल का सफर शुरू होता है। 1952 में ओस्लो में हुए ओलंपिक में पहली बार विमान के जरिए मशाल को ले जाया गया। 1956 के स्टॉकहोम ओलंपिक में घोड़े की पीठ पर और 2000 के सिडनी ओलंपिक में ऊंटों पर ओलंपिक मशाल ले जाई गई। 1960 के रोम ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा का टीवी पर सीधा प्रसारण हुआ। आज की मशाल गैस से जलती है।



भारत तो बहुत पीछे, लेकिन हॉकी में नाम कमाया
ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन अब तक बेहद फीका रहा है। 100 साल में हम सिर्फ 20 पदक जीत पाए हैं। इसमें 11 हॉकी के हैं। भारतीय हॉकी टीम ने 28 साल तक ओलंपिक में राज किया। आठ स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक जीते। 1980 में मास्को ओलंपिक में आखिरी बार स्वर्ण जीता। लेकिन इसके बाद पीछे रह गए। साल 2000 में सिडनी ओलंपिक में भारत की कर्णम मलेश्वरी ने भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतकर नाम रोशन किया। आजाद भारत के लिए पदक जीतने वाले केडी जाधव पहले खिलाड़ी थे। उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में फ्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक जीता था। हालांकि 1900 के पेरिस ओलंपिक में नार्मन प्रिटचार्ड ने भारत की ओर से हिस्सा लेते हुए एथलेटिक्स में दो पदक जीते थे।

रियो में भारत के सितारे
- 99 खिलाड़ियों के दल में 32 खिलाड़ी हॉकी से हैं। 16 पुरुष और 16 खिलाड़ी महिला टीम में हैं।
- 07 खिलाड़ी (चार महिलाएं और तीन पुरुष) बैडमिंटन में हिस्सा लेंगे। साइना नेहवाल भी इसमें शामिल।
- 12 निशानेबाज भी रियो ओलंपिक का हिस्सा बनेंगे। पिछली बार के पदक विजेता गगन नारंग से है उम्मीद।
- 19 भारतीय एथीलीट रियो ओलंपिक में भाग लेंगे। हॉकी के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा दल है।
...लेकिन दो बार के पदक विजेता सुशील कुमार की कमी खलेगी। इस साल ओलंपिक में आठ पहलवान शामिल हो रहे हैं।

- 194 देशों के 10,290 एथीलीट रियो ओलंपिक में भाग ले रहे हैं।
- 28 खेलों के लिए 306 आयोजन किए जाएंगे।
- 400 एथीलीट अकेले चीन के ओलंपिक में भाग लेने पहुंच रहे हैं।
- 1996 और 2000 में ओलंपिक से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को पांच अरब डॉलर की आय हुई थी।
- 35 हजार लोगों को रोजगार मिला था लंदन में हुए ओलंपिक के दौरान।



Sunday 17 July 2016

सड़े हुए समाज की अप्सरा थीं बलोच

सोशल मीडिया पर जो लोग सक्रिय रहते हैं शायद उनके लिए कंदील बलोच का नाम न तो अनजाना है और न ही उनके कारनामों से लोग अनजान हैं। बलोच अंधधर्म, आतंक और फतवों के साए में सड़ रहे पाकिस्तान की मॉडल जरूर थीं लेकिन उनमें से एक नहीं, उनसे जुदा थी। उन्हें न तो बुर्के में रहना पसंद था और न ही धर्मगुरुओं के कुरान की बातों में यकीन था। वह बदनाम जरूर थीं लेकिन पाकिस्तान की मूल समस्याओं से अनजान नहीं। दरअसल, कंदील ने उस तहजीब पर हमला बोला था, जिसकी दुहाई देने वालों की फौज गला दबाने को बैठी थी। यह अलग बात है कि उनके तरीकों ने उन्हें ड्रामा क्वीन बना दिया लेकिन सच यह है कि कंदील की मौत ने एक ही झटके में पाकिस्तान के सड़े हुए उस समाज की रूपरेखा खींच दी, जिसको देखने के लिए न तो वहां की हुकुमत तैयार है और न ही वहां का समाज। आपसी रंजिश, वाद- विवाद, सहमति- असहमति जैसे तमाम पहलू हैं जो इस संवेदनहीन समाज में हत्या के लिए काफी हैं लेकिन जब मौत सिर्फ इसलिए कर दी जाए कि लड़की ने परंपरा को नकारते हुए अपना अंग प्रदर्शन किया है तो समझ लीजिए, हर दिन आपका समाज और आप गर्त में जा रहे हैं।  


कंदील के कुछ चर्चित बयान हैं जो यह बताने को काफी हैं कि वह किस कदर हर दिन - हर पल पाकिस्तान के बुर्केधारी समाज को चुनौती दे रही थीं -  
- लोग कहते हैं कि मैं पाकिस्तान को बदनाम कर रही हूं। लेकिन मैं रूकूंगी नहीं, इतना तो तय है कि मै सर पर दुप्पटा ओढ़ने वाली नहीं हूं। पाकिस्तान के एक और इंटरनेट सेंसेशन ताहेर शाह से तुलना किया जाना मुझे पसंद नहीं। मैं मॉडल-एक्ट्रेस हूं और वह जोकर है।
- मैं पढ़ना चाहती थी, लेकिन मुझे पढ़ने नहीं दिया गया। अब मैं कामयाब हूं तो कई लोग मुझसे पैसे ऐंठने के लिए आने लगे हैं ।
 

उस वीडियो को देख लीजिए, जिसने ली बलोच की जान 

.. ऊंची थी उड़ान
खुद को कुंवारी बता कर फैशन इंडस्‍ट्री में दाखिल होने वाली बलोच के बारे में कहा जाता था कि उसकी एक नहीं, तीन शादियां हुईं और वो सात साल के एक बच्‍चे की मां भी थी। आशिक हुसैन नाम के एक शख्स ने बलोच का पति होने का दावा किया था। पेशावर में सिलाई-कढ़ाई की दुकान चलाने वाले शाहिद इकबाल ने भी कहा था कि उन दोनों ने करीब 13 साल पहले कंदील के परिवार से छुप कर शादी की थी। इकबाल ने ही बताया था कि 2008 में कंदील की पहली शादी हुई थी और उनका एक बेटा भी है। जिसे बाद में पैसों और शोहरत के लिए कंदील छोड़ कर चली गई। बाद में एक उर्दू चैनल से अपनी शादी के बारे में बात करते हुए कंदील ने माना कि आशिक हुसैन से उनकी शादी हुई थी और उनका एक बेटा भी है। इन बातों के बाद बलोच माना था कि उसने अपने बेटे की कस्‍टडी के लिए दावा भी किया था, पर उस समय आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण उसने बच्‍चे को उसके पिता को सौंप दिया और फिर कभी जाहिर नहीं किया कि वो उसकी मां हैं। कंदील के अनुसार उनकी ये शादी 18 साल की उम्र में उनके माता पिता ने जबरदस्‍ती कर दी थी, जबकि वे पढ़ना चाहती थी और उस गंवार इलाके में नहीं रहना चाहती थी, जहां पढ़ाई पर पाबंदी थी। वहीं आशिक का कहना है कि उसकी शादी किसी की जबरदस्ती के कारण नहीं हुई थी, बल्‍कि उनकी लव मैरिज थी। सबूत के तौर पर उन्‍होंने कंदील के खून से लिखे खत भी दिखाए थे, जो बेहद रोमांटिक थे।


पाकिस्तान में महिलाओं की हालत भी जान लीजिए
यह सच है कि पाकिस्तान में महिलाओं के साथ जानवरों जैसा व्यवहार होता है। पाकिस्तान के बनने के करीब साठ दशक बाद भी यहां महिलाएं दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक पिछड़ी हैं। यातना, प्रताड़ना, दुष्कर्म, वैवाहिक दमन और सम्मान के नाम पर हत्याएं आम बातें हैं, इसलिए इन पर बहुत शोर नहीं होता। पाकिस्तान ऐसे तत्वों को लेकर समझौतावादी हो गया है जो धर्म के नाम पर समाज पर अपनी दकियानूसी सोच थोपना चाहते हैं। मुख्तारन माई (सामूहिक दुष्कर्म की शिकार) और मलाला जैसी कुछ पीड़िताओं ने अपनी कोशिशों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति और सराहना पाई। लेकिन, इन्हें भी पाकिस्तान में जश्न मनाने की अनुमति नहीं। लैंगिक समानता के मामले में पाकिस्तान दुनिया का दूसरा सबसे बदतर देश है। हर साल 5 हजार से ज्यादा महिलाएं घरेलू हिंसा में मार दी जाती है। हैरानी की बात तो ये है कि पाकिस्तान में घरेलू हिंसा को क्राइम नहीं माना जाता है। वर्तमान में पकिस्तान में स्त्रियों की हालत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पिछले साल ही पाक में 1100 मामले महिलाओं की ऑनर किलिंग के थे तथा आत्महत्या के मामले भी कम नहीं थे। पिछले साल महिलाओं के खिलाफ 8 हजार मामले दर्ज किए गए। पुलिस स्टेशन, अदालत और शिकायत प्रकोष्ठों में दर्ज घटनाओं के अनुसार, वर्ष 2008 से 2011 के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में 13 प्रतिशत वृद्धि हुई है।






Saturday 16 July 2016

संघर्ष की कहानी रितु रानी


जब आप बतौर कप्तान अपनी टीम को एक नए मुकाम पर ले जाते हों और उस मुकाम को सही दिशा देने की बारी आए तब आपकी कप्तानी छिन ली जाए, इससे बड़ी नाइंसाफी क्या हो सकती है। यही अन्याय भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रहीं रितु रानी के साथ हुआ है। दरअसल, रितु रानी को रियो ओलंपिक टीम से बाहर कर दिया गया है।  रितु 2011 से भारतीय टीम की कमान संभाल रही थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि उन्हीं के नेतृत्व में महिला टीम ने 36 साल बाद ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया लेकिन अब अनुशासनहीनता और उनके फॉर्म को कारण बताकर टीम से बाहर कर दिया गया है।
रितु का आरोप है कि उनके साथ बेवजह ऐसा किया गया और वह राजनीति का शिकार हुई हैं। बहरहाल,  पीछे की कहानी क्या है, इस बारे में कुछ कह पाना बहुत मुमकिन नहीं है। वैसे ये भी दिलचस्प है कि करीब दो महीने पहले ही हॉकी इंडिया की ओर से रितु को 'अजीत पाल सिंह मिडफिल्डर अवॉर्ड' से नवाजा गया। साथ ही अर्जुन अवार्ड के लिए उनका नाम भेजा गया । यही नहीं कुछ ही दिन पहले जब पीएम नरेंद्र मोदी ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों से मिले तो उसमें भी रितु शामिल थीं और फिर अचानक इस फैसले ने लोगों को हैरान कर दिया है। सोशल मीडिया पर भी रितु के समर्थन में एक अभियान चल रहा है।  29 दिसंबर 1991 को हरियाणा में जन्मी रितु रानी ने अपनी पढ़ाई श्री गुरु नानक देव सीनियर हाइयर सकेंड्री स्कूल से की थी। महज 12 साल की उम्र में रितु ने शाहाबाद मारकंडा के शाहबाद हॉकी अकादमी में हॉकी के गुर सिखकर भारतीय महिला हॉकी के लिए इतिहास लिखने के लिए अपनी शुरुआत का आगाज किया था।  14 साल की उम्र में हॉकी की यह दिग्गज खिलाड़ी भारत की सीनियर टीम में शामिल हो गई थीं और साथ ही 2006 मैड्रिड में हुए वर्ल्ड कप में सबसे युवा खिलाड़ी के रूप में टीम का हिस्सा थीं। इसके बाद रितु रानी ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2009 में रूस में आयोजित चैंपियन चैलेंजर्स में भारत के लिए सबसे ज्यादा गोल जमाने वाली खिलाड़ी के तौर पर उभरी थीं। रितु रानी के इस बेहतरीन परफॉर्मेंस का ही कारण था कि भारत की महिला टीम ने चैंपियन चैंलेंजर्स का खिताब अपने नाम कर लिया था। वह अद्भूत प्रतिभा के कारण साल 2011 में भारतीय महिला टीम की कप्तान बनीं। रितु रानी के नेतृत्व में भारत की महिला टीम ने कई रिकॉर्ड अपने नाम िकए ।  2013 में कुआलालम्पुर में हुए एशिया कप में ब्रांज मेडल सहित 2014, इंचियोन में एशियन गेम्स में ब्रांज मेडल हासिल कर भारत की टीम ने भारतीय महिला हॉकी को भारतीय प्रशंसकों के दिल में जगह बनाने में कामयाब रही थीं। पांच फुट दो इंच लंबी रितु रानी के करियर में सबसे एतिहासिक समय तब आया जब उनकी कप्तानी में भारतीय महिला टीम ने लगभग 36 साल बाद ओलंपिक में शामिल हुई है जो इस हॉकी खिलाड़ी के योगदान को अमर कर जाता है। रितु रानी ने अब तक 213 मैच भारतीय महिला टीम के लिए खेल चुकी हैं




हर्ष को बनाया हमसफर
इसी एक जुलाई को पटियाला के पंजाबी गायक हर्ष शर्मा उर्फ हैश से रितु रानी ने सगाई की थी। दोनों ने ओलिंपिक के बाद शादी करने का फैसला किया है। हर्ष शर्मा पटियाला के रहने वाले हैं। उनकी मां पूनम बाला पटियाला में एनआईएस (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) में हॉकी कोच हैं। रितु 2014 तक रेलवे की खेल कोटे से रेलवे की कर्मचारी रहीं और 2014 में उन्होंने हरियाणा पुलिस ज्वाइन किया।

Thursday 14 July 2016

पोर्न से ज्यादा खोजा गया ‘पोकेमॉन गो’


क्रैश हुए गूगल के सर्वर, टूट रहे रिश्ते

सिर्फ तीन देशों में रिलीज हुआ मोबाइल गेम ‘पोकेमॉन गो’ गूगल पर सबसे ज्यादा खोजी जानी वाली सामग्री बन गया है। लोगों में गेम की ऐसी दीवानगी है कि पोर्न वीडियो भी पोकेमॉन से कम सर्च हो रहा है। गूगल की मूल कंपनी का वह हिस्सा जो इस खेल के लिए सर्वर उपलब्ध करा रहा है, लगातार क्रैश हो रहा है। कई और दिलचस्प वाकये भी ‘पोकेमॉन गो’ के बहाने सामने आए हैं।

जिस आयु वर्ग में सबसे लोकप्रिय, वही तो देखता है पोर्न
‘पोकेमॉन गो’ 18 से 24 साल के लोगों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में इस उम्र के लोग या कहें युवा पोर्न की गिरफ्त में हैं। लेकिन ‘पोकेमॉन गो’ ने बीते एक हफ्ते में सब बदलकर रख दिया है। गूगल ट्रेंड की मानें तो पिछले कुछ दिनों में ‘पोकेमॉन गो’ इतना ज्यादा सर्च किया गया कि इसने पोर्न वीडियो को कहीं पीछे छोड़ दिया है। ऐसा पहली बार है कि जब युवा पोर्नोग्राफी से ज्यादा एक मोबाइल गेम ढूंढ रहे हैं।

1990 में हुआ था जन्म, आज हर घर का हिस्सा है पोकेमॉन
जापानी कंपनी निन्टेंडो ने 1990 में पहली बार पोकेमॉन गेम लॉन्च किया था। हालांकि गेम को कामयाबी तब मिली जब इसने कार्ड के रूप में स्कूलों का रुख किया। तब कार्ड को आपस में बदलकर इसे खेला जाता है। इसके बाद टीवी पर पोकेमॉन की कार्टून सीरीज आई, जिसने बच्चों के बीच अपनी पैठ बनाई। 26 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि पोकेमॉन को स्मार्टफोन गेम के रूप में बाजार में उतारा गया है।

दो से तीन दिन में आएगा भारत में
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में ऐप स्टोर और गूगल प्ले स्टोर से गेम मुफ्त में डाउनलोड किया जा सकता है। भारतीय उपभोक्ताओं को अभी इसके लिए इंतजार करना होगा। लेकिन ऐसी खबरें हैं कि अगले दो से तीन दिन में यह ऐप की शक्ल में यह गेम भारत में भी लॉन्च हो जाएगा।


ऐसे खेलिये
पोकेमॉन शब्द का पूरा अर्थ पॉकेट मॉन्स्टर (राक्षस) है। इस मोबाइल फोन गेम में लोग वर्चुअल दुनिया के ट्रेनर बनकर अलग-अलग शक्लों में मौजूद कई शैतानों को पकड़ते हैं, और फिर उन्हें एक-दूसरे से लड़ाते हैं। इसी आधार पर गेम में उनके ग्रेड और अंक बढ़ते हैं। पोकेमॉन गो पहले से चल रही पोकेमॉन सीरीज़ का नया गेम है, जिसे इस बार एंड्रायड और आईओएस डिवाइस में भी इंस्टाल किया जा सकता है। पोकेमॉन गो में आभासी दुनिया और असली दुनिया को मिला दिया गया है, जिससे खेल का रोमांच बढ़ जाता है। इस खेल से जुड़ा ऐप जीपीएस के जरिये आपकी लोकेशन और आपके फोन की घड़ी के आधार पर तय करता है कि कौन-सा पोकेमॉन आपके सामने आएगा। अगर आप घास के आसपास हैं तो कीड़े - मकोड़े जैसा, और अगर पानी के पास हैं जलजीवों जैसे पोकेमॉन पकड़ने होते हैं।

और प्रेमिका ने कहा, किसी एक को चुनना होगा
पोकेमॉन गो गेम की युवाओं को ऐसी लत लगी है कि रिश्ते टूटने की खबरें भी सामने आ रही हैं। अमेरिका की रहने वाली जूलिया वाकर ने अपने प्रेमी के लिए पोकेमॉन का पिकाचू गेम खरीदा, लेकिन वह उसका आदी हो गया। वहीं लिएन नाम के एक यूजर ने अपना ट्वीट शेयर करते हुए बताया कि उसकी प्रेमिका ने पोकेमॉन या उसमें से किसी एक को चुनने के लिए कहा है।

Saturday 2 July 2016

‘मौत की सेल्फी’ लेने का शौक क्यों?



कभी सेल्फी शौक हुआ करती थी। दायरा बढ़ा तो जुनून बनी और अब दुनियाभर में लोगों का पागलपन बनती जा रही है। जोखिम भरी जगहों पर एक क्लिक के जरिए हजारों लाइक्स की उम्मीद में युवा मौत के मुंह में समा रहे हैं। कानपुर में बीते दिनों सात बच्चे गंगा में डूबकर मर गए इसी सेल्फी के चक्कर में। कम से कम आप तो बचकर ही रहना।

सबसे आगे हम
- 49 मौतें हुईं साल 2014 में सेल्फी लेने के चक्कर में दुनियाभर में। सबसे ज्यादा 19 मौतें भारत में।
- 27 मौतें हुईं साल 2015 में सेल्फी के चक्कर में पूरी दुनिया में। इसमें आधी मौतें भारत में ही हुईं।
- भारत के अलावा अमेरिका और कनाडा क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं सेल्फी से हुई मौतों के मामले में।

युवा ही हैं चपेट में
- 21 साल है औसत उम्र सेल्फी लेने के चक्कर जान गंवाने वालों की। इसमें भी 75 फीसदी पुरुष थे।

मोबाइल से लगाव
27 सेकंड भी दूर नहीं रह पाते पुुरुष अपने मोबाइल से, महिलाएं 57 सेकंड की दूरी ही झेल पाती हैं।

ऐसा है नशा
10 लाख से ज्यादा सेल्फी ली जाती हैं दुनियाभर में 18 से 24 साल के युवाओं के बीच रोजाना।
05 करोड़ 84 लाख से ज्यादा तस्वीरें इंस्टाग्राम पर अपलोड हो चुकी हैं हैशटेग सेल्फी के साथ।
50 फीसदी कॉलेज पढ़ने वाले छात्र और 77 फीसदी छात्राएं अपनी सेल्फी स्नैपचैट पर अपलोड करते हैं।

हादसे या लापरवाही
- महाराष्ट्र के नागपुर की एक झील में सेल्फी लेने के बाद आधा दर्जन छात्र नदी में डूबे।
- ताजमहल के सामने जापानी पर्यटक सेल्फी लेने के दौरान सीढ़ियों पर फिसलकर घायल हुआ, बाद में मौत।
- अमेरिका के कैलिफोर्निया में बंदूक के साथ सेल्फी लेती महिला से दबा ट्रिगर, मौके पर मौत।
- बुल्गारिया में बुल रन के दौरान सांडों के साथ सेल्फी लेने की कोशिश में गई युवक की जान।

कोशिश
मुंबई पुलिस ने शहर भर में एक दर्जन से ज्यादा जगहों को नो सेल्फी जोन घोषित कर दिया है।

13 सितंबर 2002 को पहली बार ऑस्ट्रेलियाई इंटरनेट फोरम में सेल्फी शब्द का उपयोग हुआ था।
सेल्फी के साथ अब वेल्फी शब्द भी लोकप्रिय हो रहा है। इसमें फोटो की जगह वीडियो रिकॉर्ड किया जाता है।
सेल्फी खींचने के लिए बाजार में सेल्फी स्टिक भी मौजूद हैं। एंड्रायड उपभोक्ताओं के लिए ब्लूटूथ सेल्फी स्टिक भी आ गई है।

सावधान, आगे अफवाह है....

 जिस सोशल मीडिया को वर्तमान में अपनी बात रखने का बेहतरीन प्लेटफॉर्म माना जा रहा है वहां अफवाह और झूठ का साम्राज्य भी कायम हो रहा है। इस ‘अफवाह संसार’ में आम आदमी ही नहीं जाने-अनजाने में सितारे भी शरीक होने लगे हैं। 


अगर यह सवाल किया जाए कि सोशल मीडिया पर किसी सूचना या पोस्ट को लाइक या शेयर करने से पहले आप कितनी बार क्रॉस चेक करते हैं ? निश्चित ही आपका जवाब नहीं में होगा। सोचिए, अगर किसी वायरल झूठ को कोई सेलेब्रिटी सच समझकर शेयर कर दे तो क्या हो? ऐसा ही कुछ हुआ स्नूकर और बिलियर्ड्स के वर्ल्ड चैंपियन भारत के पंकज आडवाणी के साथ। दरअसल, सोशल मीडिया पर हाल ही में एक मैसेज वायरल हुआ था, जिसमें कहा गया कि यूनेस्को द्वारा पीएम मोदी को बेस्ट पीएम घोषित किया गया है। हकीकत में यूनेस्को ने ऐसा कुछ नहीं किया है लेकिन इसकी सच्चाई जाने बगैर पंकज आडवाणी ने इस मैसेज के आधार पर पीएम मोदी को बधाई देते हुए ट्वीट कर दिया। फिर क्या था, जैसे ही साइबर संसार के धुरंधरों को पता चला उन्होंने आडवाणी का जमकर मजाक उड़ाया। हालांकि आमतौर पर कैमरे से दूर रहने वाले पंकज ने बाद में सफाई भी दे दी लेकिन तब तक उनकी फजीहत हो चुकी थी। कुछ माह पहले  एक पैरोडी अकाउंट से किए गए ट्वीट को लेकर दिल्ली के पुलिस प्रमुख बी एस बस्सी को भी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी। बस्सी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एक टीवी पत्रकार पर निशाना साधा था। टीवी पत्रकार के पैरोडी ट्वीट में खुद पर लगाए गए आरोप से चिढ़े बस्सी ने केजरीवाल और पत्रकार को ‘खुद का गुणगान’ करने वाला कहा जबकि उन्होंने इस तथ्य पर गौर ही नहीं किया कि ऑनलाइन गाली-गलौज की प्रवृति के कारण पत्रकार ने काफी दिनों से ट्विटर का इस्तेमाल बंद कर रखा है। बस्सी जब तक ट्वीट डिलीट करते वह ट्रॉल किए जा चुके थे।  पैरोडी ट्वीट करने वाले शख्स से शीर्ष पुलिस अधिकारी का चकमा खा जाना मामूली बात नहीं थी। दरअसल, अराजकता सोशल मीडिया की पहचान बनती जा रही है और यहां सूचना और अफवाह में अंतर मिट जाता है। गलत सूचनाएं वायरल होने से  ही मुजफ्फरनगर और असम जैसे दंगे हुए। आए दिन इस संसार में ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार, शशि कपूर और कादर खान जैसे सितारों को जिंदा रहते ही श्रद्धांजलि दे दी जाती है। साइबर दनिया में पैरोडी अकांउट और फोटोशॉप का लगातार दबदबा बढ़ता जा रहा है और 'अंध यूजर' बेधड़क बिना किसी जांच परख के उसे 'लाइक', 'शेयर'या 'रीट्वीट' करने को तैयार बैठे रहते हैं। फोटोशॉप के जरिए तो झूठ-फरेब फैलाने का खेल हर दिन खेला जा रहा है। हो सकता है, कुछ युवा मसखरी में ऐसा करते हों लेकिन सेलिब्रेटी और संस्थान भी इसका हिस्सा बन जाते हैं। बीते साल की बात है, सोशल मीडिया पर फिल्मकार अमुराग कश्यप ने एक फिरकी ली । उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी एक आंख पर चोट लगी तस्वीर शेयर की थी। उन्होंने लिखा कि यह मिक्सड मार्शल आर्ट्स लड़ाके से झड़प की देन है। जाहिर है इस तस्वीर को वायरल होना था। इसके बाद सामने आए कश्यप ने खुद इस तस्वीर को फर्जी बता दिया। उन्होंने कहा कि यह एक बनावटी इम्तिहान था। इस पर खबर बनाने वाले पत्रकार और समाचार संस्थाओं को झेंपना पड़ा। कश्यप ने कहा कि उन्होंने शर्त लगाई थी कि यह तस्वीर बिना क्रॉस चेक के खबर बन जाएगी, यकीनन वह जीत गए।  इसी तरह 2015 में जब चेन्नई में लगातार बारिश के बाद बाढ़ आई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां का हवाई दौरा किया। उसी दिन प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो ने प्रधानमंत्री मोदी की एक तस्वीर ट्वीट पर शेयर की, जिसमें वे हेलिकॉप्टर में बैठे हैं और खिड़की से बाढ़ग्रस्त चेन्नई का जायजा ले रहे हैं। कुछ देर बाद इस फोटो को फर्जी बताया गया। असली तस्वीर में हेलिकॉप्टर की खिड़की के बाहर हर ओर पानी और पेड़ वगैरह दिख रहे थे, जबकि पीआईबी की फोटो में फोटोशॉप की मदद से शहर के हालात को स्पष्ट दिखाने के लिए खिड़की से बाहर पानी में डूबे मकानों की एक तस्वीर पेस्ट कर दी गई। ट्विटर पर खूब खिल्ली उड़ाए जाने के बाद पीआईबी ने यह फोटो डिलीट कर दी। कुछ ऐसा ही दिल्ली सरकार की आॅड-इवेन योजना के बारे में भी 2009 की एक तस्वीर प्रसारित करके दिखाया गया कि कैसे यह योजना फेल हो गई है। ऐसा ही कुछ लातूर में पानी की रेल चलाई गई तो कहा गया कि भारत में पहली बार पानी की रेल चली है। इस पर एक अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी कि 2 मई, 1986 को भारत में पहली बार गुजरात के राजकोट में पानी की रेल चली थी। राजस्थान में पिछले 14 साल से पानी सप्लाई के लिए रेलवे की सेवा ली जा रही है। ये उदाहरण बताने के लिए काफी हैं कि ऑनलाइन अफवाह का दबदबा बढ़ता जा रहा है। यह भी सच है कि सोशल मीडिया से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए भारत तैयार नहीं है। भारत की सरकार के लिए साइबर सिक्योरिटी अभी तक प्राथमिकता का विषय नहीं है इसलिए ना तो ध्यान दिया जाता है, ना ही इसे लेकर कोई राष्ट्रीय नीति है। भारत के पास बजट तो है लेकिन इसे कैसे खर्च किया जाए इसका अधिकारियों को पता नहीं है। लेकिन ब्रिटेन इसको लेकर चेत चुका है। ब्रिटिश सरकार की ओर से  अगस्त 2011 में लंदन में हुए दंगे में सोशल मीडिया की भूमिका पर एक समिति भी बनाई गई। इस समिति ने ‘आफ्टर द रायट्स’ नाम से रिपोर्ट पेश की। समिति ने सोशल मीडिया पर अफवाह पर मुख्यधारा के मीडिया और सेलिब्रेटियों के विश्वास करने को गंभीर माना।   




अफवाह 
सीमा पर तिरंगा फहराते जवान
हाल ही में फर्जी पोस्ट्स में शुमार होने वाली तस्वीर सीमा पर तिरंगा फहराते जवानों की थी। देशभर के सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में तिरंगा फहराए जाने के एलान के बाद समाचार चैनलों पर बहस के दौरान बीजेपी प्रवक्ता ने इसका हवाला दिया था। उन्होंने कहा था कि भारतीय सैनिक मरते दम तक सीमा पर तिरंगा फहराने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि हकीकत यह थी कि तस्वीर फर्जी थी और फोटोशॉप के जरिए बनाई गई थी। पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित हो चुकी यह तस्वीर आइवोजीमा में झंडा फहराते जवान की थी।

नासा से भारतीय लड़की को न्यौता
बीते दिनों सोशल मीडिया के सभी मंचों पर पश्चिम बंगाल की एक 18 साल की लड़की शतपर्णा मुखर्जी को लेकर गर्व करने लायक खबर फैल रही थी। इसमें बताया गया था कि अंतरिक्ष अनुसंधान में सबसे काम को अंजाम देने वाली वैज्ञानिक संस्था नासा ने लड़की को अपने साथ इंटर्नशिप की पेशकश की है। जल्द ही यह खबर फर्जी साबित हो गई। नासा ने साफ किया कि उनके पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि इस नाम के किसी को इंटर्नशिप, स्कॉलरशिप या किसी भी तरह की अकादमिक या आर्थिक मदद की पेशकश की गई है।द्

धोनी की बेटी की पहली झलक
बीते साल भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की बेटी जीवा की पहली झलक वाला वीडियो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहा था। एक तस्वीर में भी धोनी को जीवा के साथ दिखाया गया था। मगर, यह सच नहीं था। जीवा की मां साक्षी धोनी ने तस्वीर और वीडियो को फर्जी बताया। बाद के दिनों में जीवा को देखने वाले सबने यकीन किया कि उस तस्वीर और वीडियो में दिखाई गई नन्ही बच्ची जीवा नहीं थी।

एमएच-17 को बम से गिराने का वीडियो
बीते दिनों लोगों का ध्यान खींच रहा हवाई जंग का वीडियो फर्जी साबित हो गया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिखाया गया था कि जुलाई 2014 में मलेशिया एयरलाइंस के एमएच-17 विमान को रूसी रुझान वाले आतंकियों ने मिसाइल मारकर गिरा दिया था। बाद में यह फुटेज नकली साबित हो गया।

जिसको खाने से होती है मौत
आपको जागरूक करने के नाम पर सॉफ्ट ड्रिंक, आलू चिप्स, कैंडिज को मौत का सामान बताया जाता है। कई सालों से चल रहे ऐसे पोस्टस के पीछे कोई खास रिसर्च या सबूत नहीं होते। यह सिर्फ हवाई चेतावनी के सहारे फैला दिया जाता है और किसी का भला नहीं करता। हाल ही में टॉफी पल्स कैंडीज को लेकर ऐसे पोस्ट्स वायरल हुए थे. इनका कोई आधार नहीं था, लेकिन इसने लाइक, शेयर और कमेंट्स को खूब आकर्षित किया।


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जो सरकार ने किया

844 सोशल मीडिया पेज ब्लॉक किए गए सरकार द्वारा जनवरी से नवंबर, 2015 के बीच।
492 पेज इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के सेक्शन 69ए के तहत ब्लॉक किए गए।
4,192 मामले सेक्शन 66ए के तहत दर्ज किए गये देश भर में पिछले साल।
15,155 फेसबुक के कंटेंट को प्रतिबंधित किया गया सरकार के द्वारा इस वर्ष जून तक
352 साइट लिंक प्रतिबंधित किए गए 2015 के नवंबर महीने तक।
19 फीसदी है भारत में इंटरनेट की पहुंच भारत में जो कि इस श्रेणी में दुनिया की तीसरी सबसे संख्या है।

 




तुक्का या इक्का - तुषार कपूर

बॉलीवुड में जब एक अभिनेता अपने पुत्र को भी सिनेमा जगत में लाता है तो दर्शकों को आशा होती है कि उसका बेटा भी पिता की तरह बेहतरीन अभिनय से उनका मनोरंजन करेगा लेकिन सत्तर के दशक के सुपरस्टार जितेंद्र के बेटे तुषार कपूर के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुषार ने अभिनय की दुनिया में पिता की जग हंसाई ही कराई लेकिन निजी जिंदगी में वह जितेंद्र के आदर्श पुत्र बने। एक इंटरव्यू के दौरान जितेंद्र ने तुषार के बारे में कहा था - मैं जब घर से बाहर निकलता हूं तो उसकी उम्र के लड़कों को देखता हूं और जब शाम को आता हूं तो फिर तुषार को देख्रता हूं फिर मुझे बेटे पर गर्व होता है।' उनकी यह बात काफी हद तक सही भी है। दरअसल, तुषार ने अभिनय की दुनिया में खास पहचान भले ही न बनाई हो लेकिन निजी जिंदगी में वह बेहद संयमित और विवादों से दूर रहते हैं। उनकी पहचान उस आदर्श बेटे के रूप में भी की जा सकती है जिसने विवादों की मायानगरी में रहते हुए भी अपने पिता को झेंपने पर मजबूर नहीं किया। उनकी पहचान उस संजीदा भाई के रूप में भी की जा सकती है जिसने हर कदम पर बहन एकता का साथ दिया। उनकी पहचान उस पिता के रूप में की जा सकती है जिसने सेरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा कर सिंगल फादर बनने का जज्बा दिखाया। दरअसल, तुषार ने हमेशा से प्रयोग करने की कोशिश की। फिर वह चाहे बतौर अभिनेता हों या फिर बतौर पिता। तुषार ने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2001 में फिल्म 'मुझे कुछ कहना है' से की। इस फिल्म में तुषार ने लवर ब्वॉय की भूमिका निभाई। फिल्म के लिए तुषार को सर्वश्रेष्ठ डेब्यू अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। लेकिन इसके बाद तुषार की फिल्में टिकट खिड़की पर उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं। फिल्म के जानकार तुषार को तुक्के का हीरो कहने लगे लेकिन 2004 में तुषार कपूर को राजकुमार संतोषी की फिल्म खाकी में काम करने का अवसर मिला। अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, अजय देवगन जैसे मल्टीस्टारों के बावजूद तुषार ने अपनी छोटी सी भूमिका से दर्शकों का दिल जीत लिया। अगले ही साल फिल्म 'क्या कूल है हम' के जरिए तुषार ने अपने आप को एक नये अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। इस फिल्म में उन्होंने हास्य अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया लेकिन अब भी उन्हें एक पहचान की जरूरत थी। ऐसे में 2006 में तुषार के पास डायरेक्टर रोहित शेट्टी फिल्म 'गोलमाल'लेकर आए। तुषार के कैरियर के लिए यह फिल्म मील का पत्थर साबित हुई।इस फिल्म में तुषार कपूर ने बिना कोई संवाद बोले दर्शकों को हंसाते हंसाते लोटपोट कर दिया। मल्टीस्टारर फिल्म के सीक्वल में भी तुषार के अभिनय की चर्चा हुई। फिल्म शूट आउट एट लोखंडवाला में तुषार के अभिनय का नया अंदाज दर्शकों को देखने को मिला। फिल्म में तुषार कपूर ने अपने नकारात्मक किरदार से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। तुषार कपूर ने द डर्टी पिक्चर में भी अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद तुषार ने क्या कूल है हम 3 और मस्तीजादे जैसी एडल्ट फिल्मों में भी काम किया।  कहते हैं कि पोर्न स्टार सनी लियोनी के साथ जब कोई रोमांटिक होने को तैयार नहीं था, तब तुषार आगे आए थे और उन्होंने सनी के साथ मस्तीजादे फिल्म में रोमांस किया था।  तुषार की पढ़ाई अमेरिका से हुई है। उन्होंने स्टेफन एम रॉज कॉलेज से बीबीए की डिग्री ली है।