Sunday 29 May 2016

चश्मा तो उतार लीजिए..

किसी भी राज्य सरकार को इस बात का अधिकार है कि वह अफसरों की तैनाती किस पद पर करे। सरकारों को इस बात का भी अधिकार है कि वह अनुशासनहीनता की लक्ष्मण रेखा को पार करते हैं और सियासी गतिविधियों में भाग लेते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करे। लेकिन महज इस बिना पर कि कोई अफसर जवाहर लाल नेहरू की नीतियों की तारीफ करे तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर दी जाए, न्यायसंगत नहीं है। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिला के कलेक्टर अजय गंगवार के साथ यही हुआ। गंगवार ने अपनी फेसबुक पोस्ट में नेहरू की प्रशंसा करते हुए लिखा था -  जरा गलतियां बता दीजिए जो नेहरू को नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने आईआईटी, इसरो, आईआईएम, भेल स्टील प्लांट, बांध, थर्मल पावर लगवाने की पहल की तो क्या ये उनकी गलती थी? इस पोस्ट के बाद गंगवार को कलेक्टर के पद से हटा कर कम महत्व के पद पर भेज दिया गया। आज भले ही सियासी तौर पर कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे की राजनीति प्रतिद्वंद्वी हों लेकिन भूल जाते हैं कि नेहरू सिर्फ कांग्रेस के नेता नहीं हैं। नेहरू पहले प्रधानमंत्री तो थे ही, देश को आजाद कराने में उनकी भूमिका नेतृत्व कारी थी। लंदन से बैरिस्टरी पास करने के बाद उन्होंने सड़क पर संघर्ष करने , पुलिस की लाठियां खाने और सालों घर परिवार से दूर जेल में बिताने का बीहड़ रास्ता चुना। निसंदेह प्रधानमंत्री रहते हुए नेहरू से कश्मीर समस्या के समाधान और चीन से रिश्तों जैसे मुद्दों पर फैसला लेने में गलतियां हुईं लेकिन हमें याद रखना होगा कि नेहरू भी आखिर एक इंसान थे। इन गलतियों के बावजूद उनकी मंशा पर सवाल उनके विरोधी भी नहीं उठाते तो फिर नेहरू की प्रशंसा को अनुशासनहीनता के दायरे में कैसे माना जा सकता है। राज्य सरकारों को फैसले लेते वक्त हर कदम को सियासी चश्मे से नहीं देखना चाहिए। उनसे सहज ये अपेक्षा की जाती है कि देश के लिए समर्पित रहे ऐसे राजनीति प्रतिद्वंद्वियों, जिनके साथ उनकी वैचारिक सहमति नहीं है, का भी वह उतना ही सम्मान करें। लोकतंत्र सबको साथ लेकर चलने का दूसरा नाम है। 


   

Saturday 28 May 2016

एक मां का संघर्ष


 ‘यूपीएससी किसे कहते हैं, यह मैं जानती तक नहीं थी लेकिन अब मेरे बच्चों की सफलता ने इसके बारे में बहुत कुछ बता दिया है।’  ये शब्द उस मां के हैं जिनके चारों बच्चों ने देश की कठिनतम परीक्षाओं में से एक यूपीएसएसी में अपना परचम लहराया है। प्रतापगढ़ के लालगंज अझारा कस्बे में रहने वाली कृष्णा देवी को अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद जरूर थी लेकिन बच्चे अपने भविष्य को इस कदर संवार लेंगे इसका उन्हें जरा भी इल्म नहीं था। कृष्णा देवी कहती हैं,‘ हमें यह पता था कि हमारे बच्चे पढ़ने वाले हैं। वह बचपन में अन्य बच्चों की तरह ही थे। वह भी शरारती थे, उनमें भी आपस में लड़ाई होती थी। कभी दूध के लिए तो कभी मिठाई के लिए लेकिन उन्हें अपने पढ़ने का समय पता होता था। वह तमाम बदमाशियों के बाद भी पढ़ते थे और पढ़ाई लालटेन के आगे गाल पर हाथ रखकर किताब के सामने झपकियां मारने वाली नहीं होती थीं। वह पढ़ाई ईमानदारी की होती थी।’ कृष्णा देवी यह गर्व से कहती हैं कि पढ़ने के मामले में चारों में कोई किसी से कम नहीं था।  कृष्णा देवी की बड़ी बेटी क्षमा और सबसे छोटे बेटे लोकेश ने इस साल यूपीएससी में सफलता हासिल की है जबकि पिछले साल ही माधवी और योगेश इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफल हुए थे। कृष्णा देवी बताती हैं कि उनकी सबसे बड़ी बेटी क्षमा बचपन से ही समझदार थी। वह कहती हैं,‘ क्षमा जब पढ़ने के लिए बैठती थी तो उसको देखकर बाकी तीनों भाई - बहन भी खामोशी से अपनी किताब - कॉपी लेकर बैठ जाते थे। उन्हें कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी।  कृष्णा देवी मानती हैं कि सही मायने में क्षमा ही अपने भाई बहनों के लिए मार्गदर्शक बनी। क्षमा का चयन इस बार आईपीएस के लिए हुआ है। इससे पहले उनका चयन यूपीपीसीएस में भी पुलिस उपाधीक्षक पद के लिए हुआ था और इस समय वह मुरादाबाद में प्रशिक्षण ले रही हैं। कृष्णा देवी ने अपनी छोटी बेटी माधवी को पढ़ने के लिए दिल्ली भी भेजा था लेकिन वहां के बिगड़े हुए माहौल से बेहद डरती थीं। कृष्‍णा देवी अस्वस्थ हैं और करीब दस-बारह साल से बच्चे उनसे दूर हैं। उन्हें इच्छा होती है कि बच्चे उनके साथ रहे लेकिन वह यह भी कहती हैं कि मैं अपने स्वार्थ के लिए उन्हें क्यों रोक कर रखूं। कृष्‍णा देवी ने बच्चों के सफल भविष्य के लिए अपनी खुशियों को तिलांजलि दे दी। वह बताती हैं, ‘हमने कभी भी अपनी खुशियों की परवाह नहीं की। बस हमने उन्हें बिना किसी भेदभाव के पढ़ाया। कृष्णा देवी हंसते हुए यह राज भी खोलती हैं कि चारों बच्चे अपने पापा से बहुत डरते थे। वह आगे बताती हैं कि जब वे स्कूटर से आते थे तो सारे बच्चे शांत हो जाते थे फिर ऐसा लगता ही नहीं था कि घर में कोई है। हालांकि वह स्पष्ट करती हैं कि उनमें वो डर संस्कार और तहजीब की है।  कृष्‍णा देवी के पति अनिल प्रकाश मिश्र ग्रामीण बैंक में मैनेजर हैं। वह सहजता से इस सफलता का श्रेय अध्यापकों और अपनी पत्नी को ही देते हैं। अनिल मिश्र पूर्वजों को भी धन्यवाद देना नहीं भूलते।       

फेसबुक पर गैंगवार

उत्तर प्रदेश की जेलें ही अराजकता की शिकार नहीं हैं। पंजाब का और बुरा हाल है। दरअसल, यहां सजा काट रहे गैंगेस्टर फेसबुक के जरिए अपने विरोधियों की हत्या की जिम्मेदारी लेने के साथ ही पुलिस प्रशासन को चुनौती भी दे रहे हैं।



फेसबुक पर पंजाब की 'नाभा जेल' को टाइप करके सर्च करें तो आपके सामने राज्य के सबसे अधिक सुरक्षा वाली जेल की 150 से अधिक तस्‍वीरें सामने आ जाएंगी। खास बात यह है कि इन तस्‍वीरों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कैदियों ने डाला है। यह मामला सिर्फ नाभा जेल का नहीं है। ऐसा ही हाल पटियाला और फरीदकोट जेल का भी है, जहां के कैदी नियमित रूप से जेल के अंदर की तस्‍वीरें फेसबुक पर अपडेट करते रहते हैं।  फेसबुक और ट्विटर पर ये अपराधी खुद को 'रॉबिन हुड' और 'लायंय ऑफ पंजाब' के रूप में पेश कर रहे हैं । कइयों ने तो अपने फेसबुक प्रोफाइल कवर पिक्चर में खालिस्तानी आइकन जरनैल सिंह भिंडरनवाले की तस्वीर भी लगा रखी है। उनके मुताबिक किसी की हत्या कर देना मात्र उनके लिए काम खत्म करने वाला नहीं माना जाता, खासकर जब तक फेसबुक पर वे इसका श्रेय नहीं ले लेते और उनके उस पोस्ट पर उन्हें बड़ी संख्या में 'लाइक्स' नहीं मिल जाते।  पंजाब की जेलों में बंद गैंग और उनसे जुड़े बदमाश किस कदर बेखौफ हैं इसका पता इस बात से चलता है कि अप्रैल 2015 को गुरजीत सिंह भाटी ने संगरूर जेल से फेसबुक पर अपनी तस्वीर अपलोड की। संगरूर जेल में बंद गुरजीत भाटी गैंग पर एक व्यापारी से आठ लाख फिरौती मांगने का आरोप है। उससे पहले मार्च 2015 में नरवाना गैंग के कुलबीर सिंह ने अपनी तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट की थीं। जबकि कपूरथला जेल में बंद सुक्खा कहलों गैंग के बदमाश अक्सर फेसबुक का इस्तेमाल करते आए हैं। खास बात यह है कि ऐसे अपराधियों की सोशल मीडिया पर प्रशंसकों की भी तादाद बढ़ रही है। मसलन, अभी हाल ही में कई आपराधिक मामलों में नामजद और 2012 के पंजाब विधानसभा चुनाव में फाजिल्का से खड़े हुए गैंगस्टर-पॉलिटिशियन जसविंदर सिंह रॉकी की हिमाचल प्रदेश में हत्या हुई तब अपराध के इस ऑनलाइन बाजार में मानो आग लग गई हो। राॅकी के दोस्तों और फॉलोअर्स ने उसके फेसबुक वॉल पर #RIPजसविंदर सिंह रॉकी का संदेश पोस्ट कर खूब ट्रॉल कराया और साथ ही उसे प्रसिद्ध व्यक्ति बताया। कुछ प्रशंसकों ने तो गाली-गलौच करते हुए लिखा कि वे उसकी मौत का बदला जरूर लेंगे।  वहीं रॉकी हत्या के ठीक एक दिन बाद फिरोजपुर के पुलिस अधिकारी के भगोड़े बेटे व  गैंगस्टर जयपाल ने अपने प्रतिद्वंद्वी गैंग्स और पुलिस अधिकारियों के लिए फेसबुक पर एक पोस्ट करते हुए लिखा, 'गेम तो अभी शुरू हुआ है। (जस्ट वेट एंड वॉच।) आगे-आगे देखिए, होता है क्या?'।  सोशल मीडिया के जरिए जिम्मेदारी लेने की होड़ यही नहीं खत्म होती है। इसमें नया मोड़ तब आया जब पंजाब के 'शेरा खुबान गैंग' के गुंडे 'विक्की गाउंडर' ने जेल के अंदर से 'रॉकी गैंग्स्टर' के शव की तस्वीरें अपने फेसबुक पेज पर शेयर कीं और साथ में लिखा, 'ये पड़ा है रॉकी शूटर, इतना बड़ा शूटर, मेरे शेर भाई का बदला पूरा हुआ- विक्की गाउंडर।'  ग्राउंडर ने साथ ही बठिंडा के एसएसपी स्वपन शर्मा को चुनौती दी है कि वह उसके खिलाफ कार्यवाही करके दिखाएं। उसने फेसबुक पर मर्डर की फोटो के साथ स्टेट्स अपडेट किया। कई मामलों में तो यह भी देखा गया कि गैंगस्टर की मौत के वर्षों बीत जाने के बावजूद आज भी उसका फेसबुक प्रोफाइल अपडेट किया जा रहा है। उसके गुर्गे किसी भी कीमत पर उसे मरने नहीं दे रहे और उसकी मौत का बदला लेने के लिए लोगों को उकसा रहे हैं। आज भी उसके प्रोफाइल में उसकी आत्मा को शांति देने संबंधी संदेश लिखे जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अपराधियों के इस सोशल वार से अन्य यूजर्स भी प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि सोशल मीडिया का असर लोगों के दिमाग पर सबसे ज्यादा पड़ता है। यह भी सच है कि इन हत्यारों ने अपने फेसबुक पोस्ट पर शेखी बघार कर प्रतिद्वंद्वी गैंग के लोगों को बदला लेने के लिए उकसाने का काम किया।
21 जनवरी 2015: पंजाब के फागवारा में गैंगस्टर सुक्खा कहलो को उसके प्रतिद्वंद्वी गैंग ने गोली से उड़ा दिया। उसके बाद खून से लथपथ उसकी बॉडी के चारों ओर घूम-घूमकर हत्यारा डांस करने लगा। इस डांस का वीडियो तैयार कर उसे ऑनलाइन कर दिया गया। 40 अलग-अलग आपराधिक मामलों में नामजद कहलो के फेसबुक पेज पर RIP  संदेशों की झड़ी लग गई। कइयों ने तो अपने संदेशों में यह भी कहा कि वह उसकी मौत का बदला जरूर लेगा।

28 जनवरी2016 को फरीदकोट मॉडर्न जेल में कुख्यात अपराधी काका फरीदकोटिया का बर्थडे मनाया गया। बाकायदा बैरक में केक मंगवाकर काटा और कैदियों ने अपने मोबाइल से फोटो भी लिए। इस सेलिब्रेशन में बटाला और अमृतसर का गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया, लुधियाना में पुलिस पर फायरिंग करने वाला गैंगस्टर गोरु बच्चा भी था। सेलिब्रेशन के फोटो जग्गू ने रात 8.12 बजे फेसबुक आईडी पर अपलोड किए।

30 जनवरी 2016 को फरीदकोट जेल की ही बैरक की एक फोटो दोपहर 12 बजे जग्गू भगवानपुरिया ने फेसबुक पर अपडेट की। इस तस्वीर में बैरक में मौजूद एक कैदी मोबाइल पर बात कर रहा है और दूसरा मोबाइल पकड़ फेसबुक चला रहा है। जग्गू पर 24 से ज्यादा केस हैं। वह जेल से गैंग को ऑपरेट कर रहा है।

20 फरवरी 2016: रवि ख्वाजके, एक सरपंच को लुधियाना के एक विवाह समारोह में गोली मार दी गई। कुख्यात हिटलैन दविंदर बंबिहा ने अपने फेसबुक पेज पर उसकी हत्या की बात कबूली और उसके इस पोस्ट को 500 से ज्यादा लाइक्स मिले।
30 अप्रैल 2016: गैंगस्टर और राजनीति से तालुल्क रखने वाले जसविंदर सिंह रॉकी को हिमाचल के परवानू के निकट गोली मार दी गई और इसका श्रेय लेने के लिए अपराधियों के बीच ऑनलाइन जंग शुरू हो गई।






25 फीसदी से ज्यादा यूजर्स फेसबुक के किसी भी तरह के प्राइवेसी कंट्रोल को नहीं मानते।
130 लोग जुड़े हैं हर व्यक्ति से औसत रूप से फेसबुक पर
850 लाख सक्रिय मासिक यूजर्स फेसबुक के साथ जुड़े हुए हैं।
21 प्रतिशत एशिया के यूजर्स हैं इस नेटवर्किंग वेबसाइट के कुल यूजर्स में से।
488 लाख यूजर्स लगभग रोज मोबाइल पर फेसबुक चलाते हैं।
86 हजार पोस्ट किए जाते हैं ब्राजील से हर माह, जो सबसे अधिक हैं। 
23 प्रतिशत यूजर्स रोज पांच या उससे अधिक बार अपना फेसबुक अकाउंट चेक करते हैं।
10 या उससे अधिक लाइक्स वाले 42 लाख के करीब पेज हैं फेसबुक पर
01 लाख से अधिक वेबसाइट्स अलग अलग तरह से फेसबुक से जुड़ी हुई है।
85 प्रतिशत महिलाएं फेसबुक पर अपने दोस्तों से परेशान हैं।








भारत के कुछ खास जेल


1.तिहाड़ जेल
देश की राजधानी दिल्ली में बनी ये जेल बड़ी खतरनाक लगती है, लेकिन शायद आपको यकीन न हो यहां पुस्तकालय और पढ़ाई की भी सुविधा है। यहां के रेस्तरां में आपको अच्छा खाना मिलता है और कैदी लोगों को समय-समय पर काम दिया जाता है। ये साउथ एशिया की सबसे बड़ी जेलों में से एक है। यहां बेकरी प्रोडक्ट, हैंडलूम और टेक्स्टाईल की चीजें बनाना कैदियों को सिखाया जाता है ताकि वह जेल से बाहर जाने के बाद अपने हाथ के हुनर से कमा-खा सकें। तिहाड़ जेल में अच्छी प्लेसमेंट भी होती हैं।

2.येरवडा जेल
 यहां के कैदी खेती में भी अव्वल आते हैं और यहां कई तरह के बीज़ों की उपज भी की जाती है। इस जेल में पढ़ाई के लिए एक बढ़िया माहौल मिलता है। यहां गऊ पालन के साथ-साथ कैदियों द्वारा बनाये गये दूध के बने उत्पाद बाजार में बेचे जाते हैं। येरवडा जेल में एक रेडियो स्टेशन भी है जिसके सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

3.पुझल जेल
ये जेल तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है। ये जेल 2006 में बनाई गई थी। इसमें कैदियों को रखने के लिए सबसे बड़ा और अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस कॉम्प्लेक्स है। यहां मेडिटेशन हॉल, पब्लिक म्यूजिक सिस्टम, जिम और योगा की क्लास भी लगती है। रसोई और अस्पताल में भी सुविधा अच्छी है।

4.नैनी जेल
इलाहाबाद के पास स्थित ये जेल ब्रिटिश राज के दौरान की है। राज्य में सबसे ज्यादा ऑर्गेनिक खेती इसी जेल में होती है, जो इसे एक विशेष ख्याति दिलाता है। यहां के कैदियों को खेती की आधुनिक विधाओं से समय-समय पर रूबरू करवाया जाता है, ताकि वह भविष्य में खेती को एक नई दिशा और नए आयाम दे सकें।

5.राजामुंदरी जेल
ये जेल आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी में है। ये सबसे बड़ी और सबसे पुरानी जेलों में से एक है। यहां कैदियों की सुरक्षा का खासा ध्यान रखा जाता है। कैदियों के खेलने के लिए एक स्टेडियम भी है। यहां के कैदी लकड़ी का अच्छा सामान बनाते हैं और साक्षरता दर भी अधिक है। वर्कशॉप और अस्पताल की भी सुविधा है।

6. आर्थर रोड जेल

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में ये जेल है। यहां समय-समय पर कैदियों के लिए योगा कैंप लगते रहते हैं। मुंबई में होने के कारण जगह की थोड़ी कमी है, लेकिन कैदियों को हाथ के हुनर सिखाए जाते हैं ताकि भविष्य में वो अपना जीवनयापन कर सकें।


यहां बार - बार आना चाहेंगे अपराधी

कई ऐसे देश भी हैं जहां की कुछ जेलों में अपराधियों को हर तरह के ऐशो-आराम की सुविधाएं दी जाती है और कैदी यहां आने के बाद किसी चीज की कमी महसूस नहीं करते।

1. सैन पेड्रो जेल

अमेरिकी प्रांत बोलीविया में स्थित सैन पेड्रो जेल एक ऐसी जेल है जो कि कुछ सेक्शन और क्लास में बंटी हुई है। इसमें हर कैदी का अपना प्राइवेट कमरा भी होता है। यहां पर कैदी को प्राइवेट सेल खरीदने के लिए 1,000 डॉलर से लेकर 1,500 डॉलर तक देना पड़ता है। इसमें सामान लेने के लिए दुकानें भी है। इस जेल में बच्चें भी कैदी होते हैं।

2. हाल्डेन प्रिजन 
नार्वे के इस जेल में हर अपराधी को घर के जैसा अच्छा खाना, बड़े-बड़े कमरे, मोबाईल, प्राइवेट बाथरूम, टेलीविजन अदि तरह की हर सुविधा मिलती है। नार्वे में इस जेल को शांतिपूर्ण और आरामदायक जेल माना जाता है। यहां पर कैदीयों के लिए  सिक्योरिटी का इंतजाम भी किया गया है।

3. डोल्लोन प्रिजन
स्विट्जरलैंड की स्थित इस डोल्लोन प्रिजन जेल में कैदियों को जो कमरा दिया जाता है वह बहुत ही बड़ा है। कमरे में उन्हें अलमारी, बीएड, टेबल, सोने के लिए बिस्तर अदि तक दिया जाता है। यहां कैदियों को मोबाईल के जरिए सोशल मीडिया से जुड़े रहने की छुट है।

4. एचएमपी एडीवेल

स्कॉटलैंड की इस जेल में कैदियों के लिए एक हॉल बनाया गया है जिसमे वह रहते है। देखने में इसके अंदर का नजारा किसी कंपनी के सेमिनार हॉल की तरह लगता है।

5.बैस्टॉय प्रिजन

नॉर्वे की इस जेल में कैदीयों को रहते के लिए सनबाथ, टेनिस, घुड़सवारी जैसे सभी ऐशो-आराम दिए जाते है जो कि अपराध करने पर मिलते है न कि पैसों से।

6. ओटागो कॉरेक्‍शन

न्यूजीलैंड की इस जेल में जैसे कमरे हैं वैसे कमरे हमें किसी भी साधारण होटल में मिल जाते है। यहां पर हर व्यक्ति का कमरा पर्सनल होता है। जिसमें एक ही व्यक्ति रह सकता है।

7. जस्टिस सेंटर लेबॉन

ऑस्ट्रिया की इस जेल में कैदियों के कमरे काल कोठरी की तरह छोटे-छोटे है। इस छोटे से कमरे में उनहे हर तरह की सुविधा जैसे कि कुर्सी, सोफा अादि दी गई है लेकिन यह सब कमरे एयरकंडिशन भी हैं।

8. सौलेंटन प्रिसन

स्वीडन की इस जेल में रहने वाले कैदियों के पास घर में हर तरह की सुविधा उपलब्‍ध रहती है। खास बात यह है कि सरकार मुफ्त में सुविधा मुह‌ैया कराती है।

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Sunday 15 May 2016

भोजपुरी को मिली नई झुलनी!



अभी हाल ही की बात है, मैं भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार ‌दिनेश लाल यादव की फिल्म  निरहुआ हिन्दुस्तानी
देख रहा था। भोजपुरी पृष्ठिभूमि से होने के बावजूद फिल्म देखने से कुछ मिनट पहले तक इस कलेवर की फिल्मों को लेकर मेरा अनुभव कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था। यहां यह बताने में भी हिचक नहीं है कि भोजपुरी के  रवि किशन, दिनेश लाल, मनोज तिवारी जैसे शीर्षस्‍थ अभिनेताओं के नाम के अलावा मुझे ज्यादा कुछ पता भी नहीं रहा है।  लेकिन पिछले कुछ समय से मेरे अंदर भोजपुरी फिल्मों को जानने की जिज्ञासा सी होने लगी है। दरअसल, यह असर फिल्म निरहुआ हिन्दुस्तानी का ही है। ऐसा नहीं है कि मैं फिल्म का प्रमोशन कर रहा ह‌ूं क्योंकि और न ही किसी की भक्‍ति कर रहा हूं क्योंकि यह फिल्म काफी दिनों पहले ही रिलीज हो चुकी है। फिल्म जिन्होंने नहीं देखी है उन्हें बता दूं कि फिल्म में गरीब दिनेश लाल खूबसूरत लड़की से शादी के सपने लेकर मुंबई आता है और यहां परिस्थिति और वसीयत की मजबूरी से बंधी अमीर आम्रपाली दुबे से उसकी  शादी हो जाती है। खास बात यह है कि आम्रपाली दुबे यह जानते हुए भी अनजान दिनेशलाल से शादी करती है कि कुछ दिनों में ही उसके पति को फांसी हो जाएगी और वह दिनेश की इस सजा से बेहद खुश भी है लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर होता है और आम्रपाली को दिनेश के साथ गांव जाना पड़ता है। वहीं इन दोनों में प्यार हो जाता है।  फिल्म में कई गाने हैं लेकिन उनमें से "नी झुलनी के छईयां बलम  .."  गाने की मिठास ने कहीं न कहीं इस सिनेमा की मिठास को सामने लाने का काम किया है। यह गाना इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रहा है। इस गाने को यूट्यूब पर अब तक 12 लाख से भी ज्यादा लोग देख चुके है। कल्पना और दिनेश लाल की आवाज में लगभग चार मिनट के इस गाने में अश्लीलता का कोई नामोनिशान नही है। दरअसल, इस गाने ने मेरे जैसे लोगों की सोच को बदलने का काम किया है और भोजपुरी फिल्मों और गानों पर फिर से विश्वास की अलख जगाने की कोशिश भी की है।  शायद यह मेरे अस्थिर व्यवहार का परिचय रहा हो लेकिन सच यह है कि निरहुआ और पवन सिंह जैसे कलाकारों के जरिए भोजपुरी फिल्म अपने आप को बदल भी रहा है और गढ़ भी रहा है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि दो साल पहले तक गुडु रंगीला, राधेश्याम रसिया और बादल बवाली या फिर कल्लुआ, दिपक दिलदार जैसे गायकों ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी थीं । यही वजह है कि भोजपुरी गानों की विश्वसनीयता भी कठघरे में आई। भोजपुरी गानों का नाम सुनते ही हमरा हऊ चाहीं, सात आईटम, चुए लागल और चढ़ल जवानी रसगुल्ला बा जैसे गाने दिमाग में आते थे लेकिन अब 'नी झुलनी के छईयां' जैसे गाने की वजह से भोजपुरी को नई झुलनी यानी नया गहना मिल गया है।  


https://www.youtube.com/watch?v=FmEgQYzcAns