Sunday 31 January 2016

गणतंत्र का आईना: कई कदम चले हम कई कदम हैं बाकी


इस गणतंत्र ने हमको क्या दिया ? हमने क्या खोया, क्या पाया?   66 बरस बीत जाने के बाद पीछे मुड़कर सोचने की इच्छा स्वाभाविक रूप से होती है। नियति के साथ जो मिलन हुआ था, जो सपने देखे थे, जो अरमान संजोए थे, क्या वह पूरे हुए?  आइए इस गणतंत्र पर इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढें।


ताकत वतन की हम से है

किसी भी देश की ताकत उसकी आर्थिक और सैन्य क्षमताओं में होती है। साल 2007 में भारत ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बन चुका है, वहीं सैन्य शक्ति के मामले में भी भारत सुपर पावर बनने की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय के अध्य्यन के मुताबिक साल 2045 तक भारत ग्लोबल मिलिट्री पॉवर में शुमार होने लगेगा। यानी एक ऐसा देश जो दुनिया में कहीं भी अपने रणनीतिक जरूरतों के मुताबिक दखल देने की ताकत से लैस होगा। भारत के 606 फाइटर्स में 245 विमान मिग-21 श्रेणी के हैं। इनमें से 100 विमान 2017 में हटा दिए जाएंगे। बाकी 2024 तक हटाए जाएंगे।  जमीनी हमले में 85 विमान मिग-27 प्लेन हैं। ये 2020 तक बेड़े से हटा दिए जाएंगे। भारत के पास कुल 836 विमानों का बेड़ा है लेकिन इनमें से जंग लड़ने लायक विमान 450 ही हैं। आने वाले समय में भारत एक शक्तिमान भारत के रूप में उभर कर आ रहा है।  इस गणतंत्र ‌दिवस हमारे मुख्य अतिथि फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसिस ओलांद हैं। भारत को ओलांद से अब तक के सबसे ताकतवर राफेल विमानों पर समझौते की उम्मीद है। राफेल का फ्रेंच में मतलब होता है तूफान। राफेल दो इंजन वाला मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट है। फ्रांस सरकार ने चार यूरोपीय देशों के साथ मिलकर इसे बनाना शुरू किया था। बाद में जब बाकी तीन देश अलग हो गए तो फ्रांस ने अकेले दम पर ही प्रोजेक्ट को पूरा किया। राफेल को लीबिया, माली और इराक में इस्तेमाल किया जा चुका है। राफेल विमान महंगे जरूर हैं लेकिन सुखोई के मुकाबले काफी तेज हैं। ये एयर-टू-एयर, एयर-टू-राफेल और एंटी शिप मिसाइलें अपने साथ ले जा सकते हैं। ये डॉगफाइटर श्रेणी के हैं यानी हवा में दुश्मन के विमानों का करीबी से मुकाबला कर सकते हैं। यह खूबी सुखोई में नहीं है।

जब 24 घंटे खुला रहा न्याय का मंदिर

लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि यहां न्यायपालिका न्याय देने के लिए किसी भी वक्त तैयार रहती है। 1993 मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की याचिका को लेकर देर रात को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे सिर्फ इसलिए खुले ताकि किसी निर्दोष को सजा न हो जाए। पूरी बात को कई बार गौर करने के बाद आखिर न्यायपालिका ने अपना फैसला सुनाया। न्यायपालिका ने साथ ही कुछ ऐसे फैसले लिए जिसने दिग्गजों को कानून के मायने के बारे में बता दिए। इसके सबसे अहम उदाहरण आसाराम और सुब्रत राय सहारा हैं। अपने-अपने क्षेत्र के इन दोनों दिग्गजों पर जब कानून का शिकंजा कसना शुरू हुआ , तो दोनों ने पहले इसे काफी हल्के में लिया।  लेकिन कमाल देखिए कि एक बार ये कानून के शिकंजे में फंसे तो फिर इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता फिलहाल इन्हें या इनके कुनबे को नहीं सूझ रहा। कुछ ऐसा ही हाल 1990 के दशक में फिल्म अभिनेता संजय दत्त का रहा था। 1993 मुंबई दंगों के दौरान घर में अवैध असलहा रखने के मामले में कानून ने जब संजय को गिरफ्त में लेना शुरू किया, तब  शुरू में संजय बिल्कुल बेपरवाह नजर आते रहे लेकिन जब कानून का डंडा चला तो उनके होश ठिकाने आ गए। ऐसे कई और उदाहरण मिल जाएंगे जो हमारे देश की न्यायपालिका की मजबूती के बारे में दुनिया को बताते हैं।




कृषि और डेयरी उद्योग का सुपरपावर

एक वक्त भारत को विदेशों से अनाज मंगाना पड़ता था लेकिन अब कृषि और डेयरी उत्पाद के मामले में भारत न सिर्फ आत्मनिर्भर हो चुका है, बल्कि बड़े निर्यातक के तौर पर भी उभर रहा है। 1965 की हरित क्रांति और 1970 के श्‍वेत क्रांति के जरिए भारत आज कृषि और डेयरी उद्योग में बड़ा निर्यातक बन चुका है। वित्त वर्ष 2014 में डेयरी निर्यात 5,000 करोड़ रुपये को छू चुका है, वहीं 2009 तक जीडीपी में कृषि का हिस्सा करीब 16.6 फीसदी था।  इसमें भी कोई शक नहीं रहा है कि धीरे-धीरे भारत दुनिया के सबसे ज्यादा ऊर्जा खपत वाले देश में बदल रहा है। भारत एशिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक है। अब ताप विद्युत और पन बिजली परियोजनाओं के साथ-साथ परमाणु बिजली सयंत्र लगाने की योजनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। तेल की जरूरत के मामले में भी 2016-17 तक भारत 71 फीसदी तक जरूरत खुद से पूरा करने की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

आईटी में भी हम नंबर वन

सॉफ्टवेयर बनाने, आईटी उत्पाद बनाने में दुनिया भारतीय दिमाग का लोहा मानती है। आईटी सिटी बंगलूरू, हैदराबाद, पुणे, नोएडा और गुड़गांव में ही नहीं आज अन्य छोटे शहरों में भी छोटी-बड़ी आईटी कंपनियों में आईटी तकनीक का विकास जारी है। टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल जैसी देसी कंपनियां भारत की आईटी क्रांति के ध्वजवाहक हैं। मोटा अनुमान है कि भारत में आईटी उद्योग 120 अरब डॉलर का है। 2012 में भारत की जीडीपी में आईटी सेक्टर का हिस्सा 7.5 फीसदी था। इस आईटी क्रांति की बदौलत ही दुनिया के बड़े देशों के आईटी सेक्टर में भी भारतीय प्रतिभाओं का दबदबा बन चुका है। 1980 से 1998 के बीच अमेरिका के सिलिकॉन वैली में जो नई कंपनियां स्थापित हुईं, उनमें सात फीसदी भारत में जन्में उद्यमियों ने शुरू की थीं। यही नहीं, 2007 में एडोबी का सीईओ एक भारतीय शांतनु नारायण को बनाया गया। गूगल की तरक्की में भारतीय प्रतिभा सुंदर पिचाई का अहम योगदान है। जब दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट के तीसरे सीईओ की खोज शुरू हुई तो वो भी भारतीय चेहरे सत्या नडेला पर जा कर खत्म हुई।


चमक रहा है युवा भारत

पिछले 10-15 सालों में भारत के युवाओं में एक अहम परिवर्तन की बयार आई है। उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास हुआ है। आश्चर्यजनक रूप से उसके व्यक्तित्व में निखार आया है। यह भारतीय युवा के कुशल मस्तिष्क की ही तारीफ है कि वैश्विक स्तर पर उस पर विश्वास किया जा रहा है। बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां उसे सौंपी जा रही है। यह देश की राजनीति के लिए निसंदेह शुभ और सुखद लक्षण है कि बुजुर्गों की भीड़ में अब युवा चेहरे चमक रहे हैं।  यह भी एक ठंडक देने वाला तथ्य सामने आया है कि गांव का भोला-भाला गबरू जवान अब सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर सहज पकड़ हासिल कर रहा है। अब अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर उसने बरसों की हीन भावना और संकोच पर विजय हासिल कर ली है। प्रतियोगी परीक्षा से लेकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी हर विधा में अपनी क्षमता का परचम लहराया है। आज शहर के युवा जहां उच्च उपभोक्तावादी ताकतों के शिकार हो रहे हैं,  वहीं अधिकांश ग्रामीण युवाओं ने अपने लक्ष्य   पर से निगाह हटाने की गलती नहीं की है।

यहां फीकी पड़ी चमक


राजनीतिक अखाड़े का केंद्र बनी संसद

भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक चिन्ह संसद को माना जाता है लेकिन वर्तमान दौर में संसद राजनीतिक अखाड़े का केंद्र बनती जा रही है। यही वजह है कि यहां काम कम और हंगामा ज्यादा होता है। पिछले कुछ सालों में संसद में कार्यवाही जिस गति से स्थगित हुई हैं वह बेहद चिंतित करने वाला है। संसद में एक मिनट की कार्यवाही का खर्च ढाई लाख रुपये पड़ता है। यानी एक घंटे का खर्च डेढ़ करोड़ रुपये हो जाता है। आमतौर पर राज्यसभा की कार्यवाही एक दिन में पांच घंटे चलती है। लोकसभा की कार्यवाही एक दिन में 8-11 घंटे चलती है। अगर लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर रोजाना 11 घंटे काम हों तो सोमवार से शुक्रवार तक का खर्च बैठता है 115 करोड़। 2010- 2014 के बीच संसद के 900 घंटे बर्बाद हुए। 16वीं लोकसभा के पहले सत्र में हंगामे की वजह से 16 मिनट बर्बाद हुए यानी 40 लाख का नुकसान हुआ। दूसरे सत्र में 13 घंटे 51 मिनट बर्बाद हुए यानी 20 करोड़ सात लाख का नुकसान। तीसरे सत्र में तीन घंटे 28 मिनट काम नहीं हुआ यानी पांच करोड़ 20 लाख का नुकसान। चौथे सत्र में सात घंटे चार मिनट बर्बाद हुए यानी 10 करोड़ 60 लाख रुपये का नुकसान हुआ। पांचवें सत्र में 119 घंटे बर्बाद हुए यानी 178 करोड़ 50 लाख का नुकसान हुआ। संसद का छठा सत्र हाल ही में समाप्त हुआ है। इस सत्र में कार्यवाही स्‍थगित होने की वजह से करीब सौ करोड़ का नुकसान हो गया। 

गहरी हुई अमीर और गरीब के बीच की खाई

अमीर-गरीबों के बीच देश में कितना अंतर बढ़ चुका है, यह तीन बड़ी सर्वे एजेंसियां - ऑक्सफैम, वर्ल्ड वेल्थ और क्रेडिट सुइस के विश्लेषण के बाद पता चलता है।  वर्ल्ड वेल्थ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अति अमीरों की संख्या दो लाख 36 हजार हो गई है। पिछले साल ये आंकड़ा एक लाख 98 हजार था। यानी एक साल में अति अमीर लोगों की आबादी 19.9% बढ़ गई। अति अमीर वो लोग हैं जिनके पास 10 लाख डॉलर यानी 6.76 करोड़ रुपये या इससे अधिक की चल-अचल संपत्ति है। एशिया पैसेफिक के अति धनाढ्यों की इस सूची में भारत चौथे नंबर पर है, जबकि 12 लाख 60 हजार करोड़पतियों के साथ जापान पहले पायदान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद देश में अमीरों की संख्या 50 गुना तक बढ़ गई, वहीं उनकी संपत्ति में 1100 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारत की कुल व्यक्तिगत संपत्ति 2,952 खरब रुपये है। कुल संपत्ति का मतलब जिसमें प्रॉपर्टी, कैश, शेयर सहित बिजनेस से कमाई शामिल हैं। व्यक्तिगत संपत्ति के लिहाज से चीन शीर्ष पर है। उसके पास 11 हजार 669 खरब रुपये की संपत्ति है। भारत एक ओर तो कुल निजी संपत्ति रखने वालों के मामले में एशिया पैसेफिक रीजन का चौथा बड़ा देश है, लेकिन प्रतिव्यक्ति आय के मामले में निचले पायदान पर है। दो लाख 36 हजार 775 रुपये के साथ भारत नीचे की तीन पायदान में है। जबकि 1.38 करोड़ रुपये के आंकड़े के साथ ऑस्ट्रेलिया पहले नंबर पर है। यानी ऑस्ट्रेलिया के लोग एशिया पैसेफिक में किसी भी अन्य देश के लोगों से ज्यादा धनी हैं। 1.08 लाख रुपये के साथ पाकिस्तान में लोग सबसे गरीब हैं।  यहां यह भी बता दें कि देश की कुल संपत्ति का 53 फीसदी हिस्सा यानी 16 लाख खरब रुपए महज 1 फीसदी या 25.4 लाख परिवारों के पास है। देश की कुल संपत्ति का 76.3% हिस्सा 10 फीसदी परिवार के पास है और बाकी 90 फीसदी के हिस्से बचती है महज 23.7 फीसदी संपत्ति।

आत्महत्या करते हमारे अन्नदाता

‘भारत एक कृषि प्रधान देश है’, यह तथ्य वर्तमान दौर में जुमले की तरह लगता है। भारत के महाराष्ट्र, तेलंगाना सहित आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले रिपोर्ट होते हैं। बीते एक दशक से देश भर में होने वाली किसानों की आत्महत्या में दो तिहाई हिस्सेदारी इन्हीं राज्यों की है। नए तौर तरीकों से किसानों की आत्महत्या के मामले की गिनती के बावजूद 2014 में किसानों की कुल आत्महत्या में 90 फीसदी से ज्यादा मामले इन्हीं पांच बड़े राज्यों में सामने आए। बीते 20 साल में महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 64 हजार तक पहुंच गया है। 2014 में देश भर में किसानों की कुल आत्महत्या में 45 फीसदी से ज्यादा मामले इस राज्य में दर्ज किए गए। अकेले महाराष्ट्र में वर्ष 2015 के दौरान कुल 3,228 किसानों ने खुदकुशी की।

लोकतंत्र में ‘लोक’ कहां है

लोकतंत्र की खूबसूरती जनता की भागीदारी से बढ़ती है, लेकिन राजनीति क्षेत्र में यह तथ्य लगातार कमजोर हो रहा है। यहां राजनीतिक विरासत चंद परिवारों में बंट गई है। इंदिरा गांधी के सत्ता में आने के बाद उनसे विरोध रखने वालों ने सबसे पहले परिवारवाद का नारा बुलंद किया था क्योंकि उनके पिता जवाहरलाल बड़े नेता थे। जब वंशवाद का सिलसिला चला तो राजीव, संजय और  सोनिया से होते हुए राहुल गांधी तक आ पहुंचा। यह सिर्फ कांग्रेस की ही बात नहीं है। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के परिवार के लगभग बीस छोटे बड़े सदस्य केन्द्र या उत्तर प्रदेश की कुर्सियों पर विराजमान हैं। अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल के एक दर्जन पारिवारिक लोग कुर्सियों पर काबिज हैं।  हरियाणा में स्वर्गीय देवीलाल के पुत्र ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे कुर्सियों पर हैं। कश्मीर में अब्दुला और मुफ्ती परिवार लंबे समय से टिका है। हिमाचल में भाजपा के प्रेम कुमार धूमल ने सीएम पद संभाला तो उनके पुत्र अनुराग ठाकुर भी पार्टी में सक्रिय हो गए। हरियाणा के दो भूतपूर्व बड़े नेता चौधरी बंसीलाल व भजनलाल के वंशज राजनीति में सक्रिय हैं। लालू प्रसाद ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को चूल्हे से सीधे मुख्यमंत्री बनाया। उनके दोनों बेटे बिहार कैबिनेट में मंत्री हैं। रामविलास पासवान का परिवार भी बिहार की राजनीति में सक्रिय है। वहीं मध्यप्रदेश के राज घराने वाले सिंधिया परिवार की पीढ़ियां राजनीति की अग्रिम पंक्ति में सक्रिय रही हैं। तमिलनाडु में करूणानिधि परिवार तो कर्नाटक में देवगौड़ा परिवार भी इसी कतार में है।
20.5 फीसदी दुनिया के गरीब भारत में हैं। वहीं प्रतिव्यक्ति आय के मामले में भारत निचले पायदान पर है।

120 अरब डॉलर के करीब कारोबार हो चुका है भारतीय आईटी क्षेत्र का। 

1990में सिर्फ दो उद्योगपति थे जिनकी सालाना आय 2.1 लाख करोड़ रुपये थी। 2012 में 46 की दौलत 11.8 लाख करोड़ रुपये थी।

2.50 लाख रुपये खर्च होते हैं एक मिनट की संसदीय कार्यवाही में। स्‍थगित होने से लगता है कई करोड़ का झटका।

36 करोड़ से ज्यादा लोग देश में 50 रुपये रोज से कम में जीवन बिता रहे हैं।

3228 किसानों ने पिछले साल अकेले महाराष्ट्र में खुदकुशी की।  तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ भी कम नहीं।

Monday 18 January 2016

गुम हुआ बटुआ

अमर उजाला में प्रकाशित लेख
 कहते हैं कि जिसकी जेब में जितना ज्यादा पैसा होता है समाज में उसकी इज्जत भी उतनी ही ज्यादा होती है लेकिन आने वाले वक्त में शायद इज्जत उसकी ज्यादा होगी जो कैशलेस तो है लेकिन बैंकिंग कार्ड और कई खास ऐप से लैश है। चौंकिए मत, तकनीक की इस दुनिया में कई ऐसे ही खास बदलाव अभी आने वाले हैं, इंतजार कीजिए।


बात 2012 की है। जौनपुर के नितेश राय तब लखनऊ में नए नए रहने आए थे। घर में उनकी पहचान 'टेक्नॉलोजी फ्रेंडली' थी लेकिन वह आज भी बैंक में लंबी कतार में लग कर अपने पापा के अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करते हैं। वहीं नितेश का रूम पार्टनर अभय घर बैठे ही इलाहाबाद में सिविल की तैयारी कर रहे अपने भाई को पैसे ट्रांसफर कर देता है। अब जब नितेश के पिता उसके कमरे पर आते हैं तो उन्हें यह एहसास होता है कि तकनीक के इस बदलते दौर में अभय उनके बेटे से कहीं आगे है। जी हां, अगर आप अभी भी सिर्फ कैश में ट्रांजैक्शन करते हैं तो साफ है कि आप जमाने के साथ कदम मिला कर नहीं चल रहे हैं। क्योंकि कैश की जगह अब बैंकिंग कार्ड्स ने ले ली है और बैंकों में लंबी कतार की जगह कई खास एप्स ने। आपका बटुआ और मोबाईल अब मॉल भी है, मल्टीप्लेक्स भी और जरुरत पड़े तो ये होटेल से खाना मंगवाने में भी मदद करेगा। दरअसल, देश में बैंकिग का तरीका तेजी से बदल रहा है। इसमें इंडिया और भारत के बीच की दूरियां भी मिट रही हैं। इस दौड़ में बैंक ग्राहक से आगे निकलने की कोशिश में हैं। वह चाहते हैं कि ग्राहक जहां पहुंचने वाला है, वहां वो उससे पहले ही पहुंच जाएं। पहले आई मोबाइल बैंकिंग और आए हर बैंक से जुड़े एप्लिकेशंस। मसलन मनी ट्रांसफर, बिल पैमेंट, डिपॉजिट खोलने जैसी बेसिक सर्विसेस आप फोन पर ही कर सकते थे। फिर आया स्मार्टफोन से ई कॉमर्स।  3000-4000 रुपये के स्मार्टफोन से ई- कॉमर्स साइट्स से शॉपिंग बन गया हॉट ट्रेंड। सिनेमा की टिकट बुक करने से लेकर रेडियो टैक्सी बुलाने तक हर काम स्मार्टफोन पर होने लगा। पेमेंट खास मोबाइल के लिए बने वॉलेट्स से हो इसके लिए आया आईसीआईसीआई बैंक का पॉकेट्स और एचडीएफसी बैंक का पेजैप। ये देश के पहले मोबाइल बैंकिंग वॉलेट थे। इनके इस्तेमाल से आप बैंक से जुड़े काम तो कर ही सकते हैं साथ ही बिल भरने और रिचार्ज जैसे काम भी हो सकते थे। सिनेमा, होटल या फ्लाइट बुकिंग भी की जा सकती थी। कुछ बैंकों ने तो अपने ग्राहकों के लिए एक मार्केट प्लेस भी बनाया है। इस पर आप चाहें तो हर महीने किराना भी मंगवा सकते हैं। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी बड़ी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स ने भी मोबाइल से होने वाली ट्रांजेक्शन की संख्या बढ़ने की बात स्वीकारी है। दूसरी कंपनी जो मोबाईल कॉमर्स के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है वह है ‘पेटीएम’। यह मोबाइल और डीटीएच रिचार्ज की सुविधा प्रदाता कंपनी है। पेटीएम के आंकड़ों के अनुसार इसे एक दिन में करीब तीन से चार लाख ऑर्डर्स मिलते हैं जिनमें 25 फीसदी ग्राहक नए होते हैं। इसमें भी कोई शक नहीं कि स्मार्टफोन यूजर्स का बढ़ना मोबाइल ई-कॉमर्स के लिए उज्ज्वल भविष्य का रास्ता बना रहा है लेकिन तेज गति से चलने वाला मोबाइल इंटरनेट, तेज और सस्ती 3जी और 4जी नेटवर्क भी इसके लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है। कुछ हद तक यूजर्स ने ‘ई-वॉलेट सिस्टम’ को अपनाया है लेकिन यह अभी भी देश की मुख्यधारा की पसंद नहीं बन पाया है। किसी भी तरह की खरीदारी को तकनीकी रूप से बेहद तेज और आसान बना देता है। अगर पेटाइम के आंकड़ों की मानें तो वॉलेट में आगे जाने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं और लॉन्च के मात्र 10 महीनों के अंदर इसके 15 मिलियन एक्टिव वॉलेट हैं जिनमें 6.5 मिलियम में पैसे हैं या सेव किया हुआ कार्ड है। बात घूम फिरकर वहीं आती है कि मार्केट में कंपटीशन बढ़ रहा है।  बैंकों के ग्राहक के आधार पर पेटीएम जैसी कंपनियां भी हाथ मारने की कोशिश कर रही हैं। इसलिए मौजूदा बैंक ग्राहक से हर स्तर पर जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, चाहे वो ब्रांच हो, वेबसाइट हो या ई-कॉमर्स साइट हो, मोबाइल हो या जल्द लांच होने वाला एपल वॉच। क्योंकि ग्राहक कहीं भी मिल सकता है। और इस बात का एहसास देश के सबसे बड़े और सबसे पुराने बैंकों को भी है। तो फिर जल्दी से आंखें बंद कर लीजिए। किसी ऐसे ट्रांजेक्शन के बारे में सोचिए जो आप अपने बैंक के जरिए करना चाहते हैं। अब आंखें खोल लीजिए। बिल्कुल किसी जिन्न की तरह आपका बैंक आपके सामने हाजिर है। लेकिन, उसे एक्सेस करने के लिए आपको किसी अल्लादीन के चीराग की जरुरत नहीं है, बस चाहिए एक फोन, टैबलेट या फिर लैपटॉप और अगर आपको ये सब स्टार ट्रेक का कोई सीन लग रहा है, तो आदत लगा लीजिए आपका बैंक अब ऐसा ही लगने वाला है।


स्वीडन बना पहला कैशलेस देश
लगातार विश्व में टेक्नोलॉजी का दौर आगे बढ़ता ही जा रहा है, इसके तहत ही आज हम इलेक्ट्रॉनिक्स का अधिक उपयोग करने लग गए है। अब इस सूचना तकनीक के जरिये स्वीडन दुनिया का ऐसे पहला देश बनने में सफल हो गया है जो कैशलेस है। कैशलेस देश होने का आसान सा मतलब ये है कि पैसों का लेन-देन बैंकिंग के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से हो। यानी डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल किया जाए। पेमेंट के लिए बैंकों की एनईएफटी (नेशनल इलेक्ट्रानिक फंड ट्रांस्फर) और आरटीजीएस (रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट) जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल किया जाए। कैशलेस देश बनने से काले धन को रोकने में काफी हद तक कामयाबी मिलती है। कैशलेस देश में कालेधन के लेन-देन की गुंजाइश बेहद कम हो जाती है। सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ जाता है क्योंकि बैंक कार्ड से पेमेंट होने से कर चोरी को रोका जा सकता है। कैशलेस इकोनॉमी में सरकारी मशीनरी में फैले भ्रष्टाचार को भी जड़ से मिटाने में मदद मिलती है। वहीं नोटों की प्रिंटिग का सरकारी खर्च कम हो जाता है। सरकार के लिए सब्सिडी और अन्य आर्थिक लाभ लोगों के बैंक खाते में सीधे ट्रांसफर करना आसान हो जाता है। बैंक के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के जरिए लेन-देन करने में वक्त भी बचता है। कैश की चोरी और लूट-पाट का डर भी नहीं होता।

और भी हैं कतार में
स्वीडन में कैश लेन-देन बीते जमाने की बात होने वाली है। कैशेलस देश बनने की लाइन में दुनिया के पांच देश और हैं। कैशलेस बनने की दिशा में बढ़ रहे देशों की लिस्ट में नंबर एक पर स्वीडन है जहां 96 फीसदी लोगों के पास बैंक डेबिट कार्ड हैं और सिर्फ तीन फीसदी लेन-देन कैश में होते हैं। दूसरे नंबर पर बेल्जियम है जहां 86 फीसदी नागरिकों के पास बैंक डेबिट कार्ड हैं और केवल सात फीसदी लेन- देन कैश में होता है। तीसरे नंबर पर  फ्रांस का नाम है जहां 69 फीसदी आबादी के पास डेबिट कार्ड है और 8 फीसदी लेन-देन में ही कैश का इस्तेमाल होता है। 10 फीसदी कैश ट्रांजेक्शन्स और 88 फीसदी नागरिकों के पास डेबिट कार्ड वाला कनाडा कैशलेस देश बनने की दिशा में सबसे तेजी से बढ़ रहा दुनिया का चौथा देश है। जबकि ब्रिटेन इस सूची में पांचवे नंबर पर है जहां 88 फीसदी नागरिकों के पास डेबिट कार्ड है और सिर्फ 11 फीसदी लेन -देन कैश में होता है।

आसान नहीं कैशलेस भारत
अगर भारत में कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देना है तो सरकार को बहुत बड़े कदम उठाने पड़ेंगे जिसमें सबसे अहम बात है सूचना तकनीक को फ्राड से मुक्त करना अहम है। वर्ष 2012 के मुकाबले वर्ष 2014 में वेबसाइट हैकिंग और ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड से जुड़े साइबर अपराध में 40% का इज़ाफा हुआ है। 2015 का आंकड़ा अभी नहीं आ सका है। एक सर्वे के मुताबिक पिछले दो वर्षों में बैंक फ्रॉड के मामले 10% बढ़ गए हैं। और बैंक फ्रॉड के सिर्फ 25 फीसदी मामलों में ही रकम वापस मिल पाती है।

50 करोड़ के करीब डेबिट कार्ड भारत में इस्तेमाल हो रहे हैं और 86 फीसदी से ज्यादा लेन-देन कैश में होते हैं।

10 फीसदी से भी कम भारत के शॉपिंग मॉल्स में खरीदारी बैंक कार्ड के जरिए होती है।
60 फीसदी भारतीय उपभोक्ता ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर सामान खरीदते वक्त कैश ऑन डिलीवरी का विकल्प चुनते हैं।
0.8 फीसदी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इजाफा हो सकता है, इलेक्ट्रानिक ट्रांजेक्शन्स को बढ़ावा देने पर।
03   फीसदी स्वीडन में सिर्फ लेन-देन (ट्रांजेक्शन्स) कैश में होते हैं।


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कुछ खास ऐप

माहवारी और प्रजनन के बारे में बताने वाला ऐप
गर्भधारण से लेकर माहवारी तक से जुड़े लक्षणों को बताने वाला एक ऐप तैयार किया गया है। प्रजनन स्वास्थ्य पर नजर रखने वाला यह ऐप महिलाओं में होने वाली माहवारी, प्रजनन और माहवारी से पहले मूड में होने वाले बदलावों का पूर्वानुमान लगा सकता है। इस कदम को उसी तरह से देखा जा रहा है जैसे 1960 के दशक में गर्भनिरोधक गोली की खोज को देखा गया, जिसने सेक्स और सामाजिक व्यवहार के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। क्लू नाम के इस ऐप की चीफ एक्जीक्यूटीव और सह-संस्थापक इडा टीन के मुताबिक आज की तारीख में औरतों के लिए यह जानना क्रांतिकारी बात है कि उन्हें माहवारी कब आएगी। हालांकि क्लू कोई गर्भनिरोध में काम आने वाला ऐप नहीं है। इस ऐप का आइडिया इडा के निजी अनुभव से आया है।

नर्स की तरह ख्याल रखेगा ऐप
अगर कोई समय से दवा खाने की याद दिलाने से लेकर डॉक्टर की पर्ची और जांच रिपोर्ट तक आसान भाषा में समझाए और संभाल कर रखने लगे। इसी तरह आपके ब्लड प्रेशर, पल्स रेट और डायबिटीज आदि का वर्षों का रिकार्ड रखे और वह भी पूरी तरह मुफ्त तो कैसा रहेगा। ये सारे काम अब मोबाइल ऐप "एम-तत्व" करेगा। यानी यह मोबाइल ऐप अब चौबीस घंटे मुफ्त नर्स की तरह से देखभाल करेगा। 

रोमांस करना सिखाएगा ऐप
'हाऊ टू टेक्स्ट ए गर्ल' नाम का यह ऐप लड़कियों को किस तरह से मैसेज किए जाएं इसके तरीके बताता है। महज 0.6 एमबी का यह ऐप उन लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है जो किसी लड़की को अपने दिल की बात कहने से घबराते हैं। इस ऐप में कुछ खास कैटेगरी दी गई हैं। जैसे फ्लर्टिंग मैसेज, मेकिंग प्लान और डिचिंग प्लान। जिस भी तरह का मैसेज आप करना चाहें उस कैटेगरी में क्लिक कीजिए और सामने होंगे कई सारे उदाहरण।

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अभी और चौंकिये

चोरी - चोरी
एप्पल बना रहा सेल्फ ड्राइविंग कार
ब्रिटेन के अखबार 'द गार्डियन' ने हाल ही में यह दावा किया है कि एप्पल सेल्फ ड्राइविंग कार बनाने की एक गुप्त परियोजना पर काम कर रहा है।  यह भी दावा किया गया है कि मई 2015 में एप्पल के गुप्त स्पेशल प्रोजेक्ट के कुछ इंजीनियर 'गो मेन्टम स्टेशन' के अधिकारियों से मुलाकात की थी। फ्रांसिस्को का 2,100 एकड़ में फैला 'गो मेन्टम स्टेशन' पहले आर्मी बेस हुआ करता था जो अब ऑटोनोमस गाड़ियों की जांच के लिए बड़े मैदान में तब्दील हो चुका है।
इस मुलाकात के बात विदेशी मीडिया में एप्पल की सेल्फ ड्राइविंग कार की चर्चा जोर शोर से शुरू हो गई। इसके बाद इस अफवाह को भी बल मिली की एप्पल  'मेन्टम स्टेशन' ग्राउंड में अपनी सेल्फ ड्राइविंग कार की टेस्टिंग कर सकता है। पहले अफवाह यह थी कि एप्पल  'टाइटन' नाम के प्रोजेक्ट के तहत इलेक्ट्रिक सेल्फ ड्राइविंग कार का निर्माण कर रहा है लेकिन यह पहला मौका है जब ऐसे दस्तावेज मिले हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि एप्पल सेल्फ ड्राइविंग कार बना रहा है। इन अफवाहों को बल मिलने की कई वजह हैं, जैसे हाल ही में एप्पल के सीईओ का लगातार दुनिया की बड़ी कार कंपनियों के मालिकों के साथ बैठक करना और अधिकारियों का गाड़ियों के बारे में बयान देना।

स्मार्टफोन के बाद स्मार्ट होम
स्मार्टफोन के इस दौर में एक ऐसे स्मार्ट होम की कल्पना करना कोई अजीब बात नहीं जहां उपकरण एक दूसरे से बातें करेंगे और फ्रिज खुद दूध की देखभाल करेगा। बहुत जल्द यह सपना भी सच होने वाला है। बर्निल में हुए ईफा इलेक्ट्रॉनिक मेले में भविष्य के स्मार्ट घरों की कल्पना पेश की जा चुकी है। ईफा में कोरियाई कंपनी सैमसंग ने 2020 को ध्यान में रखते हुए भविष्य का घर पेश किया। इसमें एक ऐसी तकनीक भी होगी जो किचन में खाना बनाते समय एक के बाद एक आपको बताती जाएगी कि कब क्या किया जाए। यहां तक कि एक ऐसा डिजिटल कोच जो आपके साथ दौड़ लगाएगा। साथ ही आपको बताता जाएगा कि आपने कितनी कसरत की और कितनी करना बाकी है। कुछ ऐप भी ऐप तैयार किए जा रहे हैं। ये ऐप यह पता लगा सकेंगे कि घर पर कोई है या नहीं।


हैरान करेंगे भविष्य के युद्ध
अमरीकी नौसेना के मुताबिक भविष्य में ऐसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाएगा जो अदृश्य हों, जिनका पता न लगाया जा सके । साथ ही वह सैटेलाइट, कंप्यूटर, राडार और विमानों सहित सब कुछ बंद कर सकते हों। यह वह हथियार होंगे जिनमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन का इस्तेमाल किया जाता है। यह हथियार इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों को जाम या पूरी तरह से तबाह कर सकते हैं।  सुरक्षा उपकरण बनाने में लगी कंपनियां ऐसे हथियार भी विकसित करने में लगी हैं जो पर्याप्त दूरी से वार कर सकें।

दीवार पर चलेगी कार
 अब तक तकनीक की दुनिया में रोबोट कारों ने बढ़िया प्रदर्शन कर अच्छी जगह बनाई हुई है और अब नई तकनीक के दौरान रोबोटिक कारों का दीवार पर चलाना भी संभव हो गया है। डिज्नी और इटीएच ने एक बेहद अलग तरह की खोज कर एक रोबोट का नमूना तैयार किया है जो दीवार पर चल सकता है। खास बात यह है कि यह ईंटों वाले सख्त रास्तों पर भी आसानी से चल सकता है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में इस तकनीक से ऐसी रोबोटिक कारें बनाई जाएगी जिन्हें मिशन के दौरान हर जगह पर भेजा जा सकेगा।

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इशारों से नाचेगी दुनिया
आने वाले समय में विज्ञान किस मोड़ पर जाएगा यह अंदाजा लगाना तो मुश्किल है लेकिन एक बात तय है कि व्यक्ति डिजिटल होता चला जाएगा। बीस - तीस साल बाद की दुनिया आज से बहुत ही अलग होगी। आज हम इंटरनेट को हौव्वा मानते हैं लेकिन भविष्य में यह बच्चा लगेगा। मसलन, वाई - फाई की जगह लाईफाई लेगा। इस लाईफाई के जरिए आप तीन घंटे की फिल्म तीन सेकेंड में डाउनलोड कर सकेंगे। स्मार्ट फोन को हम अल्टीमेट मानते हैं लेकिन यकीन मानिए आने वाले समय में सुपर स्मार्टफोन भी बनेगा। इस तरह की डिवाइसेज और ऐप जरूर आएंगे, जिसके जरिए हमारा काम बिल्कुल सीमित रह जाएगा। भविष्य में हमें बस सांस लेने भर की जरूरत रहेगी। बाकी सारा काम हमारी उंगलियां करेंगी। यानी इशारों पर नाचने वाली कहावत सही होगी और तकनीकी रूप से ताकतवर  इंसान दुनिया को नचाएगा। भविष्य में यह भी संभव है कि टेस्ट ट्यूब में खाना बने। ई- कॉमर्स कंपनियों ने हमारा काम को और आसान किया है। वहीं तमाम तरह के एप्स भी आए हैं जो चौंकाते हैं। ई- वॉलेट या मोबाईल - वॉलेट तो कमाल की चीज है। इसने कैश रखने के चलन को ही बदल कर रख दिया है। मोबाईल वॉलेट का भविष्य खूबसूरत है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि कैशलेस होना इतना आसान है। हमारे यहां सरकार और कॉरपोरेट द्वारा कैशलेस होने का दबाव बनाया जा रहा है । हालांकि मेरे समझ से करीब अगले तीस सालों तक भारत को कैशलेस कर पाना बेहद मुश्किल भी है। यह भी सच है कि बैंकिंग कार्ड्स और ई- वॉलटे पर निर्भर होने के जितने फायदे हैं नुकसान भी कम नहीं है। सच कहूं तो मैं क्रेडिट कार्ड यूज करने से घबराता हूं क्योंकि इसके मिस यूज होने की संभावना बनी रहती है। कैशलेस होने का मतलब यह है कि इससे क्राइम का स्टैंडर्ड भी डिजिटल हो जाएगा। यानी कि चोरी - डकैती तो कम होगी लेकिन साइबर क्राइम बढ़ेगा। तकनीक की इस दुनिया में मानवीय मेले - जोल भी जरूरी है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि तकनीक ने हम सबको एक सीमित संसाधन में समेट कर रख दिया है। मसलन, फेसबुक को ही ले लें । हम कितना भी फेसबुक पर बात कर लें लेकिन फेस टू फेस बात करने का मजा कुछ अलग है।

पल्लव वाघेला
लेखक वरिष्ठ वैज्ञानिक पत्रकार हैं।
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ऐसे समझ लीजिए मोबाइल वॉलेट को

यह आपके स्मार्टफोन में मौजूद एक वर्चुअल वॉलेट जिसमें पैसे डिजिटल मनी के रूप में स्टोर किए जाते हैं। यानी कुलमिलाकर यह डिजिटल पर्स है जिसमें से पैसे का निकालकर आप पैसे का लेन-देन और पेमेंट कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर आप किसी कॉफी शॉप में जाते हैं। यदि यह कॉफी शॉप किसी मोबाइल वॉलेट सर्विस प्रोवाइड से जुड़ी हुई है तो आप कॉफी का पैसा अपने मोबाइल से चुका सकते हैं। आप एप, टेक्स्ट मैसेज, सोशल मीडिया या वेबसाइट से भी पैसा चुका सकते हैं। भारत में फिलहाल चार तरह के मोबाइल वॉलेट एक्टिव है। इनमें ओपन, सेमी-ओपन, सेमी-क्लोज्ड और क्लोज्ड। ओपन आपको किसी सामान या किसी सर्विस के लिए कीमत अदा करने की सुविधा देता है। इसके तहत आप बैंकिंग करने समेत पैसा ट्रांसफर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए वोडाफोन का एम-पैसा ऎसा ही मोबाइल वॉलेट है। सेमी-ओपन के तहत आप उस व्यापारी अथवा दुकानदार के साथ ट्रांजेक्शन कर सकते हैं जिसका यह वॉलेट सर्विस प्रोवाइडर के साथ कॉन्ट्रैक्ट है। इसमें आप कैश नहीं निकाल सकते और ना ही पैसे वापस ले सकते हैं। इस वॉलेट में आप पैसा लोड करेंगे, उतना ही खर्च कर सकते हैं। एयरटेल मनी इसका उदाहरण है। वहीं क्लोज्ड काफी लोकप्रिय सर्विस है। इस वॉलेट में ऑर्डर के कैंसल या वापस होने पर व्यापारी अथवा दुकानदार के पास पैसा जब्त रहता है। जबकि सेमी क्लोज्ड वॉलेट के तहत आप ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं तथा कोई सर्विस भी ले सकते हैं, हालांकि इसमें आप कैश नहीं निकाल सकते।

मोबाइल वॉलेट के फायदे और नुकसान
आपका मनुअल वॉलेट यानी पर्स खो सकता है, चोरी हो सकता है, यहां तक की आपकी जेब भी काटी जा सकती है, लेकिन आपका मोबाइल वॉलेट न तो चोरी हो सकता है और न ही खो सकता है। आप मनुअल पर्स से पेमेंट करते हैं तो खुले पैसों की दिक्कत आ सकती है जैसे आपका बिल अगर 395.50 पैसा हुआ तो तो आपको खुले पैसों के लिए प्रोब्लम हो सकती है अथवा राउंड फिगर में पेमेंट करना पड़ सकता है। जिबकि मोबाइल वॉलेट में आपको खुले पैसों के भरटकने की जरूरत नहीं तथा पैसे भी उतने ही कटेंगे जितने का बिल हुआ यानी एक पैसा भी कम ज्यादा नहीं हो सकता। सबसे पहले तो यह उन लोगों के काम की चीज है जो टेक्नोफ्रेंडली हैं साथ इसके लिए अच्छी स्पीड वाले इंटरनेट कनेक्शन की भी जरूरत होती है। मोबाइल वॉलेट सर्विस प्रोवाइडर से बहुत कम संख्या में व्यापारी और दुकानदार लिस्टेड हैं। मोबाइल वॉलेट में प्रतिदिन के हिसाब से पैसे डिपॉजिट करने और खर्च करने की सीमा होती है।

Sunday 3 January 2016

सबकी अपनी - अपनी भावना

वर्तमान दौर में हमारी भावनाएं बहुत संवेदनशील और असंयमित हो गई हैं। यह कभी भी और किसी भी रूप में आहत हो सकती हैं। पिछले कुछ समय से धर्म के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। टीवी पर आपत्तिजनक कंटेंट दिखाए जाने की शिकायत करने के लिए गठित संस्‍था बीसीसीसी की हालिया रिपोर्ट भी इसी ओर इशारा करती है।  

' मैं जितने धर्मों को जानता हूं उन सब में हिंदू धर्म सबसे अधिक सहिष्‍णु है। इसमें कट्टरता का जो अभाव है वह मुझे बहुत पसंद आता है, क्‍योंकि इससे उसके अनुयायों को आत्‍माभिव्‍यक्ति के लिए अधिक-से-अधिक अवसर मिलता है। हिंदू धर्म एकांगी धर्म नहीं होने के कारण उसके अनुयायी न सिर्फ अन्‍य सब धर्मों पर आदर कर सकते हैं लेकिन दूसरे धर्मों में जो कुछ अच्‍छाई हो उसकी प्रशंसा भी कर सकते हैं और उसे हजम भी कर सकते हैं।' राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ये विचार वर्तमान दौर में प्रासंगिक हैं या नहीं इस बहस में पड़ने से पहले टीवी पर आपत्तिजनक कंटेंट दिखाए जाने की शिकायत करने के लिए 2011 में गठित संस्‍था ब्रॉडकास्‍ट कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल (बीसीसीसी) की हालिया रिपोर्ट पर एक नजर डाल लेते हैं।  रिपोर्ट मे बताया गया है कि टेलीविजन के कंटेंट से संबंधित शिकायतों की प्रवृत्ति में बदलाव आया है।  रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2012 और नवंबर 2015 के बीच प्राप्त टीवी कंटेंट की करीब पांच हजार शिकायतों में से 28 प्रतिशत ‘धर्म व समुदाय’ से संबंधित थीं। यानी एक चौथाई से भी ज्यादा दर्शकों की भावनाएं आहत सिर्फ धर्म को लेकर हुईं।  मतलब साफ है कि भावनाएं आहत होने वाले दिलों की तादाद बढ़ी हैं। शायद हर चोट का इलाज दुनिया में है लेकिन ये बार-बार छोटी छोटी बात पर आहत होने वाली भावनाओं वाली बीमारी लाइलाज है। वर्तमान दौर में भावनाएं आहत होने के कई प्रकार हैं।  मसलन, सब टीवी पर प्रसारित होने वाले भगवान चित्रगुप्त पर आधारित कॉमेडी सीरियल 'यम हैं हम '  के कंटेंट को लेकर कुछ कायस्थ संस्थाओं ने बीसीसीसी के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उनका कहना था कि शो में चित्रगुप्त, जिन्हें कायस्‍थ अपना भगवान मानते हैं, को बेहद ही मजाकिया और गलत अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। हालांकि सीरियल के कुछ एपिसोड देखने के बाद बीसीसीसी इस नतीजे पर पहुंची कि यह शो समाज के लिए अच्छे मैसेज देता है। इससे किसी भी धर्म अथवा समुदाय की भावना आहत नहीं होती है। इसी तरह सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले शो 'संकटमोचन हनुमान' के बारे में कहा गया कि इस धारावाहिक के पात्र अजीबोगरीब हैं और इसमें भगवान हनुमान से संबंधि‌त मनगढ़ंत किस्से दिखाए गए हैं।  शो को देखने के बाद बीसीसीसी ने सारे आरोपों को खारिज किया और प्रसारण प्रतिबंध से भी इन्कार किया।  सवाल उठता है कि क्या सचमुच धार्मिक शो में तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है या यूं ही बात-बात पर भावनाएं आहत हो जाती हैं?  लाइफ ओके के चर्चित शो 'देवों के देव महादेव' के सहयोगी संपादक रह चुके देवदत्त पटनायक इस तरही की शिकायतों को बेतुका बताते हैं। वह कहते हैं, ' हमने अपने शो महादेव में भगवान शंकर की बेटी का भी जिक्र किया, जिसके बारे में किसी भी ग्रंथ में कुछ नहीं लिखा गया है लेकिन हमें एक लोककथा के जरिए इसकी जानकारी मिली और हमने दर्शकों के सामने इसी को अपने ढंग से प्रस्तुत कर दिया। अब आप ही बताइए, यह कौन तय करेगा कि क्या सही है और क्या गलत? मेरी समझ से ऐसे प्रयोगों की तारीफ होनी चाहिए। ' वह आगे कहते हैं, ' बीआर चोपड़ा के 'महाभारत' को ही देख लीजिए। पारंपरिक महाभारत को संपादित कर 12 अध्याय का कर दिया गया लेकिन आम धारणा यह बन गई कि चोपड़ा के 'महाभारत' जो दिखाया गया वो सही था। इसी तरह रामानंद सागर की 'रामायण' को देखकर भी लोगों ने अपने दिमाग में भगवान और उनके किस्सों की एक छवि बना ली।    हालांकि यह सीरियल सिर्फ तुलसीदास के रामचरित मानस से प्रेरित था। आज तक दक्षिण भारत के रामायण का कह‌ीं जिक्र नहीं किया गया है।' देवदत्त आगे कहते  हैं, ' उदाहरण के तौर पर स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले शो 'सिया के राम' को ले लीजिए। अब तक हम सीता को एक बेबस और लाचार स्‍त्री के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं लेकिन इस शो के जरिए पहली बार दर्शकों को रामायण, सीता की नजर से देखने का मौका मिल रहा है। ऐसा भी नहीं है कि शो में मनगढ़ंत किस्से दिखाए जा रहे हैं । यह दक्षिण भारत के रामायण से प्रेरित धारावाहिक है।  इसमें बताया गया है कि सीता सिर्फ एक बेबस लड़की नहीं है बल्कि शिक्षित और मजबूत भी है। ' इस बाबत सीरियल 'महाभारत' के प्रोड्यूसर सिद्घार्थ तिवारी कहते हैं,' जब भगवान को उस तरह से पेश किया जाता है जैसे साधारण लोग रहते हैं और व्यवहार करते हैं तब लोग इस तरह की कल्पना से ज्यादा जुड़ाव महसूस कर पाते हैं चाहे वह कोई भी दौर रहा हो। ' हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि ज्यादातर मामलों में भावनाएं खुद नहीं भड़कतीं, बल्कि भड़काई जाती हैं।  वर्ना भावनाएं आहत तो भोजपुरी भजन ‘ऐ गणेश के पापा’ के बोल पर भी हो सकती थीं। भोजपुरी गायिका कल्पना द्वारा गया यह भजन पूरे उत्तर भारत में मशहूर हुआ था। आज भी धार्मिक उत्सवों में यह भजन जरूर बजता है लेकिन कहीं कोई विरोध के स्वर नहीं उठते हैं। जानकार मानते हैं कि भावनाएं आहत होने के पीछे पहचान स्थापित करने की एक कोशिश भी होती है।

'हिंदुत्व में हर विचार के लोगों के लिए जगह'
दीवी सीरियल के कुछ दर्शकों की भावनाएं भले ही बहुत जल्द आहत हो जाती हों लेकिन हिंदुत्व की मूल अवधारणा इससे भिन्न है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व की जड़ता पर प्रहार करते हुए उसकी उदारता की व्याख्या किया और कहा, ' यह एक ऐसा धर्म है जिसका कोई एक संस्‍थापक नहीं है। इसका कोई एक धर्मग्रंथ नहीं है और न ही इनकी सीखों का एक रूप है। इसे सनातन धर्म के तौर पर बताया गया है। यह सदियों की प्रेरणा और सामुदायिक समझदारी की परिणति है। हिंदुत्व इसी का प्रचार - प्रसार है।  जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस  एनवी रमन्ना की पीठ ने मंदिरों में पुजारियों की नियुक्तियों के फैसले के संदर्भ में हिंदुत्व के बारे में कहा, ' लोगों का समूह जिन विचारों को
मानता है धर्म उसी को अपने में समाहित करता है। एक धर्म के रूप में हिंदुत्व किसी एक विचार को किनारे किए या उसे चुने बगैर सभी तरह के विचारों को अपने में जगह देता है। ' कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य से तो यह कहा जा सकता है कि हमारे धर्मनिरपेक्ष ढांचे के तहत धार्मिक मामलों से वह किनारे रहे लेकिन अदालतों से ऐसा नहीं कहा जा सकता है।'
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30 हजार के करीब शिकायतों का निपटारा बीसीसीसी ने 2011 में अपने गठन से लेकर इस साल नवंबर तक किया है।
01 फीसदी शिकायतें कलाकारों को धूम्रपान करते पेश करने तथा शराब व नशीले पदार्थों के सेवन के दृश्यों के प्रसारण से जुड़ी हैं। इन दृश्यों से घर के बड़े - बुर्जुग खफा हैं।
02 फीसदी शिकायतें आम बंदिशों की कैटेगरी में हैं। इनमें देश का गलत नक्शा दिखाना, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान और अदालत की कार्यवाही को गलत तरीके से दिखाना शामिल है।
08 प्रतिशत ने टीवी शोज में अभद्र भाषा के इस्तेमाल तथा अश्लीलता को लेकर शिकायत की है। विशेषकर अंग्रेजी कार्यक्रमों के कंटेंट की।
11 प्रतिशत शिकायतें डरावने व अंधविश्वास फैलाने वाले शो की हैं। शिकायत करने वाले ज्यादातर लोगों ने इनके प्रसारण समय पर सवाल उठाए हैं।
11 फीसदी शिकायतें क्राइम शोज के बारे में आई हैं। खासकर इनमें दिखाई जाने वाली शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना और घरेलू हिंसा से लोग आहत हुए हैं।
28 प्रतिशत ने धार्मिक व पौराणिक कथाओं पर आधारित कार्यक्रमों को लेकर शिकायतें की हैं। इनका मानना है कि कुछ शो तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।
39 फीसदी शिकायतें विकलांग, बाल विवाह, शोषण, महिलाओं का रूढ़िवादी चित्रण और सार्वजनिक भावना को ठेस पहुंचाने वाले कंटेंट के प्रसारण से जुड़ी हैं।


क्या है बीसीसीसी?
चैनलों के लिए दिशा-निर्देश जारी करने व कार्यक्रमों से जुड़े सुधारात्मक उपाय सुझाने के लिए जून 2011 में भारतीय प्रसारण संघ ने बीसीसीसी का गठन किया गया था। इसमें 13 सदस्य हैं। यह काउंसिल न केवल दर्शकों से मिलने वाली शिकायतों की, बल्कि गैर सरकारी संगठनों व सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं की भी समीक्षा करती है।


बन चुका है हिंदू लीगल सेल 
सीरियल अथवा फिल्मों के जरिए जिनकी भावनाएं आहत हुई जा रही हैं, उनके दिलों पर कानूनी मरहम लगाने के लिए हिंदू लीगल सेल बन चुका है। इसे देशभर के 100 से ज्यादा वकीलों ने पिछले साल लॉन्च किया था। यह संगठन 'हिंदू मानवाधिकारों' के लिए लड़ने के साथ ही आस्था के खिलाफ किसी भी अनादर से निपटेगा। इस सेल ने हाल में आमिर खान और 'पीके' के निर्माताओं के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए एक मामला दर्ज कराया था। सेल ने फिल्ममेकर रामगोपाल वर्मा के गणेश चतुर्थी मनाने के औचित्य को लेकर किए गए ट्वीट्स को लेकर वर्मा के खिलाफ भी एक मामला दर्ज कराया था। 
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जिन धार्मिक शो की
हो चुकी है शिकायत

यम हैं हम
शिकायत ः सब टीवी पर प्रसारित होने वाला भगवान चित्रगुप्त जी पर आधारित कॉमेडी सीरियल 'यम हैं हम ' पर भगवान पर आपत्तिजनक टिप्पणी और तरह तरह के बेतुके व्यंग्य पर कई कायस्थ संस्थाओं ने अपना विरोध जाहिर किया है।  हालांकि सीरियल के कुछ एपिसोड देखने के बाद बीसीसीसी इस नतीजे पर पहुंची कि यह शो समाज के लिए अच्छे मैसेज देता है। इससे किसी भी धर्म अथवा समुदाय की भावना आहत नहीं होती है।
 
यम किसी से कम नहीं
शिकायतः एपिक चैनल के शो यम किसी से कम नहीं के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि यम का किरदार कमजोर और लालची है।  यह किरदार भारतीय भगवान का उपहास उड़ाता है लेकिन बीसीसीसी ने माना कि शो में यम का किरदार कॉमिक और व्यंग्यात्मक है। इसमें कुछ भी  अनादरपूर्ण अथवा आहत करने वाला नहीं है।

संकटमोचन हनुमान
सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले शो संकटमोचन हनुमान के बारे में कहा गया कि इस धारावाहिक के पात्र व्यंगात्मक और ऊटपटांग से हैं। इस शो को देखने के बाद बीसीसीसी ने सारे आरोपों को खारिज किया और प्रसारण प्रतिबंध से भी इन्कार किया। 

नारायन - नारायन
बिग मैजिक पर प्रसारित होने वाले शो नारायन - नारायन की भी शिकायत हो चुकी है।  आरोप है कि इस शो में नारद मुनि को बेहद कॉमिक और नौटंकी के अंदाज में पेश किया गया है और इसकी कहानियां फेक हैं। हालांकि बीसीसीसी ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया और इसे सिर्फ हास्य शो करार किया।   

महाभारत ः स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले एकता कपूर के शो महाभारत की भी शिकायत हुई थी। आरोप है कि इस शो के कंटेंट से छेड़छाड़ हुई है।  बीसीसीसी ने पाया कि यह शो एक अलग तरह का प्रयोग था। इस पर पाबंदी का सवाल नहीं है।    

देवों के देव महादेव ः लाइफ ओके का चर्चित सीरियल देवों के देव महादेव को लेकर भी बवाल मच चुका है। आरोप है कि  सीरियल में भगवान शिव और पार्वती के बीच के प्रेम को बेहद ही अश्लील तरीके से दिखाया गया है। साथ ही  ऐसे किस्से भी दिखाए गए हैं जिनका ग्रंथों में कहीं जिक्र नहीं है। हालांकि बीसीसीसी ने इस शो में किसी भी तरह की अश्लीलता होने और कंटेंट से छेड़छाड़ से इन्कार किया।   

 बुद्धा ः  जी टीवी के सीरियल  बुद्धा के कंटेंट को लेकर कई शिकायतें बीसीसीसी को मिलीं। आरोप है कि भगवान  बुद्ध के किरदार को जरूरत से ज्यादा ग्लैमर रूप दिया गया है। दिलचस्प यह है कि   बौद्ध धर्म के भगवान बुद्ध की जीवनी पर आधारित शो में कंटेंट से संबंधित शिकायतें हिंदू धर्म के लोगों ने किया। आरोपों को बीसीसीसी ने खारिज कर दिया।       

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जिन गानों ने बनाया भक्त 
और भगवान को मॉर्डन

बीडी जलइले से ज्योति जलइले तक…
2010 में आई फिल्म ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ में एक भजन ‘ज्योति जलाइले’ पर कुछ लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी थी। सुखविंदर सिंह द्वारा गाया गया यह भजन फिल्म ‘ओमकारा’ के एक आइटम नंबर ‘बीड़ी जलाइले’ के तर्ज पर है। गुलजार द्वारा लिखे गए गीत बीड़ी जलाइले को बिपाशा बासु के ऊपर बेहद हॉट तरीके से फिल्माया गया था। कई ऐसे भी मॉर्डन भजन हैं जिन्हें क्षेत्रीय भाषाओं में रिकॉर्ड किया गया लेकिन वह पूरे देश में मशहूर हुईं।

ऐ गणेश के पापा
भोजपुरी का बहुचर्चित भजन ‘ऐ गणेश के पापा’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। 1997 में भोजपुरी गायिका कल्पना द्वारा गया यह भजन बिहार सहित पूर्वांचल में बेहद मशहूर हुआ था। इस भजन में देवी पार्वती और शंकर भगवान के बीच हो रही एक काल्पनिक वार्तालाप के साथ गाया गया है। देवी पार्वती शंकर भगवान को गणेश के पापा कहकर सबोंधित करती हैं और उनके लिए पत्थर पर भांग पीसने में अपनी असमर्थता जताती हैं। इस गाने की पूर्वांचल में आज भी खूब धूम है। 

राधा-कृष्ण की हरियाणवी लव स्टोरी
कुछ साल पहले एक हरियाणवी भजन पूरे हिंदी क्षेत्र में हिट हुआ था। इस भजन के बोल कुछ इस प्रकार थे- अरे रे मेरी जान है राधा, तेरे पे कुर्बान में राधा…रह न सकूंगा तुझसे दूर मैं… इस गीत में श्रीकृष्ण राधा से अपने प्रेम का इजहार कर रहे हैं। इस गाने की धूम आज भी है।

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हॉलीवुड में धर्म का बाजार गर्म

एक्स-मैन: एपोकैलिप्स ः  हाल ही में एक्‍स-मैन सीरीज की नई फिल्‍म का ट्रेलर जारी हुआ है, जिसका टाइटल है ‘एक्स-मैन: एपोकैलिप्स’। इसके ट्रेलर में फिल्‍म का विलेन खुद की तुलना हिन्‍दू देवता भगवान राम और कृष्‍ण से करता नजर आ रहा है। इस बारे में पता चलने पर अमेरिका में एक हिन्‍दू नेता राजन जेड ने इस डायलॉग को फिल्‍म से हटाने की मांग की है। खबरों के मुताबिक, फिल्‍म में अभिनेता ऑस्‍कर इसाक विलेन की भूमिका में हैं। ट्रेलर में वो एक डायलॉग बोलते नजर आ रहे हैं 'मुझे जिंदगी में कई बार कई नामों से पुकारा गया है। राम, कृष्ण और यावेह।' राजन जेड ने डायरेक्‍टर ब्रायन सिंगर से इस डायलॉग को ट्रेलर और फिल्‍म दोनों से हटाने की मांग की है, क्‍योंकि यह डायलॉग धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है।

आइज वाइड शट: श्रीलंकाई तमिल कर्नाटक शैली के गायक मानिकराम योगेश्वरन से लंदन के एक स्टूडियो ने गीता के श्लोक गाने के लिए बुलावा भेजा। वह काफी खुश हुए, क्योंकि उन्हें विश्व स्तर पर परफॉर्म करने का मौका मिल रहा था लेकिन इसका इस्तेमाल स्टेनले क्यूब्रिकके निर्देशन में बनी विवादित फिल्म आइज वाइड में टॉम कू्रज और निकोल किडमैन के अंतरंग दृश्यों के फिल्मांकन में किया गया। योगेश्वरन को पता भी नहीं था कि उनके द्वारा गया श्लोक का इस्तेमाल इस तरह से किया जाएगा।

होली स्मोक: इसी कड़ी में केट विंसलेट और हार्वे केटल अभिनीत फिल्म होली स्मोक को भी कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इसकी भारत में शूटिंग को लेकर कहा गया कि इसमें हिंदू धर्म को नास्तिक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

नाइन लाइव्स: विश्व प्रसिद्ध सोनी म्यूजिक ने वर्ष 1997 में नाइन लाइव्स सीडी निकाली थी। इसमें भगवान कृष्ण को अपमानजनक मुद्रा में दिखाया गया था। भगवान कृष्ण के सीने से ऊपर का हिस्सा बिल्ली का था।

इंडियाना जोंस एंड टेंपल आॅफ डूम: स्पिलबर्ग ने इंडियाना जोंस और द टेंपल आॅफ डूम में दो औरतों के चित्र दिखाए, जिसमें एक को विदूषक और दूसरी को दुष्टात्मा के रूप में दिखाया गया। सर्वविदित है कि हिंदू धर्म में देवी काली को बुराइयों को खत्म करने वाली शक्ति के रूप में जाना जाता है, लेकिन स्पिलबर्ग ने उन्हें दानवी के रूप में दर्शाया।

मडोना: वर्ष 1998 में एमटीवी अवार्ड समारोह के दौरान मडोना ने खुद को भगवान शिव की वेशभूषा में प्रस्तुत करके अंतराष्ट्रीय फैशन जगत में हलचल मचा दी थी। मडोना ने इस बात को काफी भुनाया।

टूडी स्टेलर: हाल में लंदन के रॉयल ओपेरा हाउस के तिब्बती पीस गार्डेन में पॉप स्टार स्टींग्स की पत्नी टूडी स्टेलर एक ऐसी स्कर्ट में दिखी, जो भगवान गणेश के परिधानों की डिजाइन पर आधारित थी। इस ड्रेस की तारीफ तो हुई, पर ऐसे वस्त्रों पर हिंदुओं के देवी-देवताओं के चिन्हों-प्रतीकों का इस्तेमाल धर्म विरुद्ध है।

जेना: वॉरियर प्रिंसेस: 1999 के फरवरी माह में दुनिया के सबसे मशहूर टीवी सीरियलों में से एक जेना: वॉरियर प्रिंसेस में कृष्ण, हनुमान, काली और इंद्रजीत जैसे हिंदू देवताओं को इस अंदाज में दिखाया गया, जिसकी चर्चा हमारे धर्मग्रंथों या किंवदंतियों में कहीं नहीं है।

माइक मायर: वर्ष 1999 के अप्रैल माह में वैनिटी फायर के लिए फोटोग्राफर डेविड ला चैपल माइक मायर के शॉट्स ले रहे थे। इन शॉट्स में माइक मायर ने हिंदू देवी-देवताओं की वेशभूषा में एक कार्टूनिस्ट की तरह पोज दिया था। दक्षिण एशियाई पत्रकार संघ के सदस्यों ने इसकी निंदा की और कहा कि यह हिंदू देवी-देवताओं का घोर अपमान है, पर न्यूज वीक ने इस संदर्भ में सफाई दी कि हो सकता है, इस समय हॉलीवुड हिंदूवाद को बढ़ावा दे रहा हो।


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जिनसे आहत हुई भावना
 'धर्म संकट' ः हाल ही में रिलीज हुई फ‍िल्‍म 'धर्म संकट ' को लेकर बवाल मच चुका है। फ‍िल्‍म में एक्‍टर परेश रावल, नसीरुद्दीन शाह और अनु कपूर के जरिए की गई कॉमेडी ने कुछ विवादित मुद्दे खड़े कर दिए। पूरी फ‍िल्‍म एक कट्टर हिंदू (परेश रावल) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसको बड़े होने के बाद इस बात का पता चलता है कि वह तो पैदायशी मुस्लिम है। उसे हिंदू परिवार ने सिर्फ गोद लिया था। फ‍िल्‍म का प्‍लॉट इतना विवादास्‍पद है कि सेंसर बोर्ड को भी फ‍िल्‍म को सर्टिफ‍िकेट देने से पहले एक पंडित और एक मौलवी को बुलवा कर पहले उन्‍हें फ‍िल्‍म दिखानी पड़ी। उसके बाद सर्टिफ‍िकेशन प्रोसेस को ध्‍यान में रखते हुए उनसे पूछा गया कि क्या कहीं कोई विवादास्‍पद सीन फ‍िल्‍म से काटना है?

पीके (2014)
बीते साल रिलीज हुई ये फ‍िल्‍म जितनी बड़ी हिट हुई, उतनी ही ज्‍यादा कंट्रोवर्शियल भी रही। आमिर खान ने फ‍िल्‍म में एक एलियन का किरदार निभाया, जो गलती से धरती पर आ जाता है।  यहां आकर वह लोगों के निजी फायदे के लिए धर्म के गलत इस्‍तेमाल को देखते है और उससे काफी आहत होता है। फ‍िल्‍म में ज्‍यादातर हिंदू धर्म से जुड़ी चीजों को दिखाया गया है। ऐसे में हिंदू धर्म से जुड़े कुछ लोगों ने आवाज उठाई कि फ‍िल्‍म में हिंदुत्‍व के गलत चेहरे को दिखाया गया है और अनावश्‍यक रूप से हिंदू रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाया गया है।

'दोजख: स्वर्ग की खोज में' (2015)
फ‍िल्‍म मुस्लिम पिता और बेटे पर आधारित है, जो फ‍िल्‍म की शुरुआत से ही इस्‍लाम धर्म के कट्टर अनुयायी दिखाए गए हैं। कट्टर मुस्लिम पिता इस बात को बिल्‍कुल भी पसंद नहीं करता है कि उसके बेटे की दोस्‍ती एक हिंदू पुजारी से है। बेटा हिंदू रीति-रिवाजों और त्‍योहारों को काफी पसंद करने लगता है। यहीं से खड़ा होता है विवाद और ये कट्टर पिता अपने बेटे को खो देता है। आखिर में कट्टर पिता इस बात को मान लेता है कि उसे धर्म से ज्‍यादा अपने बेटे की जरूरत है।

'ओह माय गॉड' (2012)  
इस कॉमेडी ड्रामा फ‍िल्‍म में समाज के लिए एक खास संदेश दिया गया है। पूरी फ‍िल्‍म एक नास्तिक के आसपास घूमती है। कई मसाला मूवी के बीच में यह फ‍िल्‍म एक ताजी हवा की तरह थी। फ‍िल्‍म में धर्म के नाम पर जमकर हो रहे व्यावसायीकरण पर प्रकाश डाला गया है। यह फ‍िल्‍म उस देश के लिए बनाई गई जहां हजारों लोग भगवान के अवतार कहे जाने वाले लोगों की पूजा करते हैं, उन पर अंधा विश्‍वास करते हैं। फ‍िल्‍म को कई जगह विवादों का सामना करना पड़ा। मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट ने सेंसर बोर्ड से फ‍िल्‍म में हिदू धर्म को लेकर बोले गए शब्‍दों के खिलाफ एक्‍शन लेने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने यह आदेश एक याचिका के आधार पर दिया। काफी तनाव और विवादों के बाद फ‍िल्‍म आगे बढ़ सकी, लेकिन बड़ी संख्‍या में दर्शकों ने फ‍िल्‍म को पसंद भी किया।

मोहल्ला अस्सी ः उपन्यास पर आधारित सनी देओल की फिल्म 'मोहल्ला अस्सी ' भी विवादों में रही। फिल्म पर हिंदू भावनाओं के विपरीत बताने के आरोप को काफी गंभीरता से लेते हुए स्टार कॉस्टिंग को समन जारी किए गए। दायर मामले में कहा गया कि फिल्म मोहल्ला अस्सी में कलाकार को भगवान शंकर का वेश धारण कर गाली-गलौज करते हुए दिखाया गया है। इसके अलावा फिल्म में धार्मिक नगर को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने फिल्म पर रोक भी लगा दी।

बजरंगी भाईजान ः साल 2015 की सुपरहिट फिल्मों में एक बजरंगी भाईजान के टाइटल को लेकर बवाल मचा। आरोप हैं कि फिल्म का टाइटल भगवान हनुमान के उपनाम से प्रेरित है। साथ ही कुछ हिंदू संगठनों ने कोर्ट में  कहा कि फिल्म के एक गाने ' सेल्फी ले ले रे.. ' में हनुमान चालीसा का मजाक उड़ाया गया है। हालांकि कोर्ट में फिल्म को हरी झंडी मिल गई। 

गुड्डू रंगीला ः निर्देशक सुभाष कपूर की फिल्म ‘गुड्डू रंगीला’ के एक गाने ‘ कल रात माता का मुझे ईमेल आया है’ को लेकर इसके निर्माताओं को धमकी मिली।  बाद में सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कई संवादों पर कैंची चलाई।

विश्वरूपम : कमल हसन की जासूसी रोमांचक फिल्म 'विश्वरूपम' पर मुस्लिम संगठनों ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि फिल्म में समुदाय को गलत रूप में दिखाया गया है। इसके अलावा कमल की एक और फिल्म 'दशावतरम' को लेकर भी बवाल मचा । 

एमएसजी : डेरा सच्चा सौदा के संत गुरमीत राम रहीम सिंह की फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड (एमएसजी) रिलीज होने से पहले ही सुर्खियों में रही। गुरमीत राम रहीम सिंह पर गुरू गोविंद सिंह जी की नकल करने के जो आरोप लगे। साथ ही सेंसर बोर्ड ने 'एमएसजी' की रिलीज पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि इसमें राम रहीम ने खुद को 'भगवान' के रूप में पेश किया है। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं।

जो बोले सो निहाल : पंजाब में सिख संगठनों ने इस फिल्‍म का विरोध किया और धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाया।

बाहुबली ः इस साल की सुपरहिट फिल्म बाहुबली को लेकर भी विवाद हुआ। फिल्म के एक सीन में अभिनेता प्रभाष भगवान शिव की मुर्ति को उखाड़ कर कंधे पर रख लेता है। इस सीन को लेकर कुछ हिंदू संगठनों ने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। 
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