Tuesday 7 July 2015

मेरा जिस्म, मेरा गुरुर

अमर उजाला में प्रकाशित — सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तहकीकात

पिछले दिनों सुप्रमी कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी और पीड़िता के बीच समझौता की बात को खारिज करते हुए कहा कि बलात्कार महिला के शरीर रूपी मंदिर के विरुद्ध अपराध है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से  इतर समाज में ऐसी तमाम महिलाएं सामने आ रही हैं जो अपने शरीर को लेकर हीन भावना की शिकार नहीं हैं। वह अपनी व्यक्तिगत मर्जी और पसंद पर खुल कर बोल रही हैं।   


‘हां मैं लड़की हूं, मेरे पास ब्रेस्ट और क्लीवेज है, आपको कोई समस्या है इससे?’ यह ट्वीट फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने तब किया जब एक अंग्रेजी अखबार ने उनके शरीर को सनसनी बनाने की कोशिश की। दीपिका के इस ट्वीट ने भारत के सबसे अधिक बिकने वाले अंग्रेजी अखबार की बोलती बंद कर दी थी। संभवत: यह बॉलीवुड की सबसे तेज और मुखर आवाज रही होगी। दीपिका की तरह ही समाज में ऐसी तमाम महिलाएं हैं जो अपने शरीर को लेकर हीन भावना की शिकार नहीं हैं। ऐसी और भी महिलाएं हैं जो व्यक्तिगत मर्जी और पसंद पर बेधड़क बोल रही हैं।  अब तो वह बेहिचक, बेझिझक और बेबाक बोलने को आतुर सी दिख रही हैं।  तभी तो जब देश के पहले समलैंगिक विज्ञापन में अभिनय करने वाली अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका से विज्ञापन शूट के दौरान किसी हिचक के बारे में पूछा जाता है तो वह बिंदास बोल पड़ती हैं ,  हिचक किस चिड़िया का नाम है। ऐसा करने में तो मुझे मजा आया। अनुप्रिया यही नहीं रूकतीं, वह साथ ही समलैंगिकों के अधिकार का समर्थन करती हैं। टीवी शो कहानी घर घर की में पार्वती की बेटी के किरदार निभा चुकीं नई नवेली फिल्म अभिनेत्री प्रीति गुप्ता कहीं और आगे बढ़कर बोल्ड अंदाज में अपनी सोच जाहिर करती हैं। वह साफ तौर पर कहती हैं, होमोसेक्शुअल होना प्राकृतिक है, इसमें कुछ गलत नहीं है।  प्रीति की सोच हाल ही में फिल्म अनफ्रीडम  में दिए गए न्यूड तस्वीरों के लीक हो जाने बाद सामने आई है।  बिंदास सोच की इस तस्वीर को एक और प्रसंग से मजबूती मिलती है। हाल ही में कनाडा में रहने वाली भारतीय मूल की रूपी कौर ने मासिक धर्म के दौरान अपने कपड़ों और बिस्तर की एक तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की। तब उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि फोटो शेयरिंग वेबसाइट उस तस्वीर को हटा देगी। इंस्टाग्राम ने उनकी तस्वीरें एक नहीं, दो बार ये कहकर हटा दी कि ये फोटो वेबसाइट की कम्युनिटी गाइडलाइंस के अनुरूप नहीं है। लेकिन रूपी कौर ने वेबसाइट के फैसले को चुनौती दी। आखिरकार इंस्टाग्राम ने उनसे माफी मांगी और माना कि रूपी ने ये तस्वीर पोस्ट करके किसी गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं किया है। वहीं जर्मनी के 20 साल की युवती एलोने ने महिलाओं की मासिक धर्म के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए मासिक धर्म में इस्तेमाल होने वाले पैड्स को ही हथियार बना डाला। आलम यह रहा कि पिछले साल जामिया मिलिया सहित देश के तमाम शीर्ष विश्वविद्यालयों में इस तरह के विरोध किए गए। ऐसा नहीं है कि शरीर पर ही महिलाओं की सोच बिंदास हुई है। वैचारिक स्तर पर भी बिंदास दिखने की प्रवृति सामने आई है। तभी तो एक अभिनेत्री जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैंपेन ‘सेल्फी विद डॉटर’ के खिलाफ कुछ बोलती है और सोशल मीडिया पर घिर जाती है तो तुरंत ही देश के प्रधान को खुला पत्र लिख डालने की हिम्मत दिखाती है। दरअसल, प्रधान को पत्र लिखना कोई बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात है पत्र के जरिए समाज को मिले संकेत की। संकेत यह है कि अब आप हमें चौतरफा घेर कर भी चुप नहीं करा सकते। आमतौर पर देखा गया है कि जब भी कोई महिला घर में या ससुराल में तेज बोलती है तो उसे धीरे और कम बोलने की नसीहत मिल जाती है। इस कम बोलने के दबाव के चलते अधिकतर महिलायें अपने ऊपर विश्वास खो देती हैं और वह दूसरों की हां में हां मिलाती रहती हैं जैसा कि दूसरे लोग सुनना चाहते है।  औरत अपनी जुबान का इस्तेमाल अपने जज्बात को बयान करने में भी नहीं कर पाती है उससे बड़ा अन्याय उसके साथ और क्या हो सकता है ? लेकिन पिछले कुछ समय से अब इसी सच और सोच में बदलावा देखने को मिल रहा है।  मेट्रो और बसों में कंधे पर बैग टांगे लड़कियों की भीड़ देखकर साफ पता लगता है कि नई आजादी उन्हें खूब पसंद आ रही है। ऐसा नहीं है कि यह बदलाव सिर्फ महिलाओं में ही आई है उनके प्रति समाज का भी नजरिया बदला है। बदलते समाज के नजरिए का ही उदाहरण है कि पोर्न इंडस्ट्री की एक अभिनेत्री आकर बॉलीवुड की जमी - जमाई सुंदरियों की जड़ों को हिला जाती है। मायानगरी की अभिनेत्रियों की बेचैनी इतनी बढ़ जाती है कि उसे समाज से बाहर दिखाने की मांग तक कर दी जाती है लेकिन दर्शक उसे सिर आंखों पर बिठाते हैं। समाज को उसके अतीत से अब मतलब नहीं रह गया है। समाज उसके अभिनय और कला की कद्र करना सीख रहा है।

दीपिका की माई च्वाइस

पिछले साल अभिनेत्री दीपिका पादुकोण अभिनित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘माई च्वाइस’ ने खूब सुर्खियां बटोरीं। इसकी सराहना भी हुई तो आलोचक भी पीछे नहीं रहे। इस वीडियो में दीपिका को कहते दिखाया गया,‘ मैं शादी करूं या न करूं यह मेरी मर्जी है । मैं शादी से पहले सेक्स करूं या शादी के बाद भी किसी से रिश्ते रखूं यह मेरी इच्छा है।’ सच तो यह है कि दीपिका जैसी अभिनेत्री को यह कहने का साहस इसलिए हुआ कि समाज का एक बड़ा वर्ग महिलाओं के नाम पर भेड़ों जैसा व्यवहार करने लगा है। असहमति के स्वर, सहमति के नारों और महिला जाप के मंत्रों के बीच दब से गए। महिलाओं के बारे में कही गई साधारण सी बात या मजाक पर भी आसमान सर पर उठा लेने की होड़ सी दिखाई देने लगी। इस महिला फोबिया के चलते जो माहौल बना उसमें दीपिका का इस तरह का वीडियो बनाना स्वाभाविक ही था।

एक पक्ष यह भी
ऐसा नहीं कि महिलाओं की बिंदास सोच से ही सशक्तिरण की बात पूरी हो जाती है। महिला सशक्तिरण के बारे में  सोच यह होनी चाहिए कि शिक्षा, रोजगार , तथा अन्य क्षेत्रों में भी उन्हें समान अधिकार मिले। हालांकि अब यह भ्रम नहीं हो कि महिलाओं को अधिकार पुरुष ही देंगे। अब स्थितियां बदली हैं और महिलाओं को अपने अधिकार को पुरुष समाज के जबड़े से छीनना बखूबी आ रहा है।  हालांकि कुछ जानकारों को दीपिका की माई च्वाईस से आपत्ति भी है। उनका कहना है कि महिला की बिंदास सोच का मतलब हर बार यह नहीं होता कि आप किस तरह के कपड़े पहनते हैं। यह भी नहीं कि आप किससे सेक्स करना चाहते हैं या ऐसा ही कुछ और।

---------------
चिली को चाहिए अबॉर्शन का अधिकार
महिलाओं की मुखर आवाज का सबसे बड़ा उदाहरण चिली है। चिली में लगातार अबॉर्शन के अधिकार को लेकर लड़ाई जारी है। चिली में 1931 में ही अबॉर्शन को कानूनन सही करार दिया गया था, तब महिलाओं को वोट का अधिकार भी नहीं दिया गया था। लेकिन बाद में इसे बैन कर दिया गया । फिलहाल, दुनिया में छह देश हैं जहां अनचाहे गर्भ को किसी भी तरह से खत्म करने पर बैन है, उनमें से एक चिली है। भारत में इसके लिए कानून है। भारत में भी दुनिया भर के देशों में अबॉर्शन के अधिकार के समर्थन में कैंपेन किए जाते हैं। 2014 में अक्टूबर के महीने में आयरलैंड में भारतीय मूल की महिला की 17 महीने के गर्भ गिरने के बाद मौत मामले के खिलाफ  बंगलूरू में प्रदर्शन हुआ। देश के कानून के कारण आयरलैंड के डॉक्टरों ने अबॉर्शन करने से मना कर दिया था। एक तस्वीर यह भी है कि टेक्सस में 18 साल से कम की लड़कियों के अपने पैरंट्स की इजाजत के बगैर अबॉर्शन करवाने के बढ़ते मामलों को देखते हुए ऐसा बिल लाने की तैयारी की जा रही है जिससे नाबालिग लड़कियां ऐसे कदम न उठाएं।

'औरत का शरीर उसका अपना मंदिर'

हम यह साफ तौर बता देना चाहते हैं कि बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के किसी मामले में किसी भी तरह के समझौते पर विचार नहीं किया जा सकता। यह उस औरत के शरीर के खिलाफ अत्याचार है जोकि उसका अपना मंदिर है। ये ऐसे अपराध हैं, जो जिंदगी का दम घोंटते हैं और इज्जत पर दाग लगा देते हैं और यह कहने की जरूरत नहीं है कि इज्जत व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण होती है। जब इंसान का शरीर अपवित्र किया जाता है तो उसका सबसे ‘विशुद्ध खजाना’ छिन जाता है। किसी महिला की इज्जत उसके अमर और न खत्म होने वाले स्वाभिमान का हिस्सा होती है। किसी को उस पर दाग लगाने की सोचना भी नहीं चाहिए। ऐसे मामलों में किसी तरह का सुलह या समझौता नहीं हो सकता है क्योंकि यह उसके सम्मान के खिलाफ होगा, जिसका मूल्य सबसे अधिक है। यह पवित्र है। कभी कभी यह ढांढस बंधाया जाता है कि अपराध करने वाला उससे शादी करने को तैयार हो गया है, जोकि गलत तरीके से दबाव डालने जैसा ही है। और हम जोर देकर कहते हैं कि इस मामले में नरमी का रुख अख्तियार करने वाले उपाय से अदालतें पूरी तरह दूर रहें। किसी भी तरह का उदार रुख असाधारण गलती मानी जाएगी। हम ये कहने को मजबूर हैं कि इस तरह का व्यवहार एक महिला के आत्म सम्मान के प्रति असंवेदनशीलता को दिखाती है। इस मामले में किसी भी तरह का उदार रुख या समझौते का विचार पूरी तरह गैर कानूनी है।

बलात्कार के आरोपी और पीड़िता के बीच समझौता के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
----------------
स्त्री अखंडित क्यों नहीं?
स्त्री - देह दो हिस्सों में बंटी रहने के लिए अभिशप्त है : ऊर्घ्वांग स्त्री महान है, कला , सुंदरता, कविता की स्त्रोत है, नीचे की स्त्री जुगुप्सा, घृणित और नरक की खान है। मातृत्व चाहे जितना पूज्य और पवित्र हो जगन्माता भले ही ईश्वर के समकक्ष हो, मगर जिस प्रक्रिया से स्त्री जननी बनती है, वह अश्लील और अदर्शनीय है। इस तरह परिणाम और प्रक्रिया को अलग कर देने से स्त्री को हमेशा के लिए ‘द्विखंडित’ बना डाला। उसके शरीर के दोनों हिस्से हमेशा एक - दूसरे से लड़ते रहे और स्त्री इस द्वंद्व को लेकर एक स्थायी अपराध - बोध में जीती रही। वह समझ नहीं पाती कि अगर देह का आनंद ‘ब्रहम्मानंद सहोदर ’ है तो वे अंग क्यों जगुप्सा जनक हैं , जो इस आनंद के श्रोत हैं?
 स्त्री होने के अपराध - बोध और सामाजिक असुरक्षा के साथ गलत और अनैतिक हो जाने के भय स्त्री - मनोविज्ञान का निर्माण किया है - वह अपराधी ही नहीं, अश्लील भी है। स्त्री - विमर्श का एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह खोज भी है कि ऊपर -नीचे के अंगों के बीच वास्तविक स्त्री कहां है? पुरुष की तरह वह समग्र और अखंडित क्यों नहीं है? इसी वक्तव्य में मैंने अमेरिका की मार्क्सवादी सैद्घांतिक और गंभीर पत्रिका ‘न्यू लैफ्ट रिव्यू ’ का भी हवाला दिया था कि एक बार संपादकों ने कवर पृष्ठ पर न्यूड स्त्री का चित्र छापकर प्रश्न किया कि साथी मनुष्य के शरीर में ऐसा क्या जुगुप्साजनक है कि हम उसे गंदा , अश्लील और अनैतिक मानते हैं?      

राजेंद्र यादव की पुस्तक  ‘वे हमें बदल रहे हैं ’ से साभार

------------



समलैंगिक होना गुनाह नहीं
देश के पहले समलैंगिक विज्ञापन में अनुप्रिया गोयनका ने अहम भूमिका में हैं। अनुप्रिया के लिए इस विज्ञापन में काम करना आसान फैसला था। एक नजर उनकी सोच पर  

क्या आपने इस विज्ञापन को साइन करने से पहले कोई विचार किया?
- बिल्कुल नहीं। मैं तुरंत इस विज्ञापन में रोल प्ले करने के लिए राजी हो गई। मेरा किरदार बेहद रोचक और मजेदार है। मुझे यह करने में मजा आया। मैं हमेशा से इस तरह की चैलेंजिंग भूमिका निभाना चाहती थी।

  इस रोल में ऐसा क्या था जिससे आप आकर्षित हुईं?
- इस विज्ञापन में कुछ तो खास था जिस वजह से मैं आकर्षित हुई। दरअसल, हमारे समाज की सोच है कि खुलकर किसी मर्जी को नहीं स्वीकारते। वह समाज और संस्कृति के बोझ तले दबे रहते हैं और अपनी इच्छाओं का गला घोंटते हैं।  बात जब महिला की हो तब तो और भी संवेदनशलीता बढ़ जाती है।  समलैंगिक होना कोई गुनाह नहीं है। मैं समलैंगिकों के अधिकारों की पक्षधर हूं। इस विज्ञापन में समलैंगिक महिलाओं के प्रति हमारे देश में लोगों की सोच बदलने की पहल है। 

आपको हिचक नहीं हुई?
हंसते हुए ... हिचक, भला क्यों मुझे हिचक हो। मेरा मानना है कि  हिचक जैसी सोच ने ही इच्छाओं का गला घोंट दिया है। इस हिचक को हटाने की जरूरत है।

विज्ञापन पर आपके परिवार ने क्या कहा ?
 

मैंने इस विज्ञापन में काम करने के लिए न ही परिवार को जानकारी दी और न ही उनकी इजाजत ली। मैं एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार से आती हूं। हालांकि मेरी फैमिली बेहद उदार है, जो हमेशा मेरा सपोर्ट करती है।

आपके ब्वॉयफ्रेंड की  प्रतिक्रिया ?
- वैसे तो मेरा ब्वॉयफ्रेंड नहीं है और अगर उसने मेरे इस विज्ञापन को देख लिया होगा तो जरूर मुझे गर्लफ्रेंड नहीं बनाएगा।