Monday 29 June 2015

एक नाम सतनाम

एनबीए में चुना जाना क्यों है खास सवाल का जवाब आपको ​इसमें मिल जाएगा
अमर उजाला के 28 जून 2015 के अंक में 

 क्रिकेट के देश भारत में बास्केटबॉल को एक नई पहचान और दिशा दिखाने की ओर पहला कदम उठ चुका है। यह कदम उठाया है सात फुट दो इंच के भारी भरकम शरीर वाले शख्स ने । निश्चित ही यह कदम जिस स्‍थान पर पड़ेंगे वहां भारत की धाक मजबूत होगी।   



अमेरिका की प्रतिष्ठित बास्केटबाल लीग एनबीए का नाम सुनते ही जेहन में आते हैं साढ़े छह फुट लंबे कद के विदेशी खिलाड़ी, बेशुमार पैसा और अमेरिका। इस लीग में भारतीय खिलाड़ियों के लिए पहुंचना सपने जैसा था लेकिन यह सपना सच कर दिखाया पंजाब में लुधियाना के नजदीक के गांव ‘बल्लोकी’ के लंबे चौड़े शख्स ने। इस छोटे से गांव को शुक्रवार को बहुत बड़ी पहचान मिल गई जब यहां के किसान बलबीर सिंह के बेटे सतनाम सिंह भामरा का चयन अमेरिका की प्रीमियर बास्केटबॉल लीग नेशनल बास्केटबाल एसोसिएशन के लिए हो गया। भारत में बास्केटबॉल की माली स्थिति को देखते हुए सतनाम की यह उपल‌ब्धि अहम हो जाती है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि बास्केटबाल में विश्वपटल पर भारत की क्या स्थिति है। अकसर एशियन गेम्स में भी भारतीय टीम क्वालीफाई करने में नाकाम रहती है। ऐसे में सतनाम के जरिए एक पहचान की उम्मीद जगी है।  यह रोचक है कि एनबीए में सतनाम सिंह की दिलचस्पी दस साल पहले हुई, जब उन्होंने कोबे ब्रायंट और लीब्रोन जेम्स को खेलते हुए टेलीविजन पर देखा।  जब एनबीए में सतनाम की दिलचस्पी जगी तब उनका कद (9 साल की उम्र में ही) 5 फुट 9 इंच हो गया था। बावजूद इसके सतनाम ने अपने कद को और आगे बढ़ाने की ठान ली। उनके इस नए कद को बढ़ाने में पिता ने अहम भूमिका निभाई। पिता के सहयोग के ‌पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, उनके पिता का कद 7 फुट 4 इंच है। इतना कद होने के बावजूद वह देश के लिए कुछ भी नहीं कर सके। यह टीस उन्हें आज भी सताती है। इस टीस को कम करने के लिए ही उनके दिल में बेटे को इस खेल में भेजने की तमन्ना जगी। एक दिन उनके दोस्त रजिंदर सिंह ने सतनाम के कद को देखते हुए उसे बास्केटबाल खेलने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद सतनाम को लुधियाना के गुरु नानक स्टेडियम में पंजाब बास्केटबॉल एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी तेजा सिंह धालीवाल के पास भेजा गया।  14 साल के सतनाम सिंह को साल 2010 में लुधियाना बास्केटबाल अकादमी (एलबीए) से डैन बारटो जब आईएमजी फ्लोरिडा ले गए तभी यह उम्मीद जग पड़ी थी कि सात फुट दो इंच का युवक एनबीए में प्रवेश कर सकता है। चार साल बाद 2014 में उन्हें फ्लोरिडा से मिलने वाली स्कॉलरशिप समाप्त हो गई। इस दौरान वह अमेरिका के किसी भी कॉलेज के लिए न तो खेल पाए और न ही पढ़ाई कर पाए। चयन के लिए एनबीए ड्राफ्ट में शामिल होने की एक शर्त यह भी रहती है कि चयनित होने की स्थिति में अगली बार ड्राफ्ट में वही खिलाड़ी नाम लिखा सकता है जो वहां कॉलेज स्तर पर खेला हो। सतनाम के पास ऐसा कुछ नहीं था। उन्हें मालूम था कि अगर वह नहीं चुने गए तो भारत वापसी के अलावा उनके पास कुछ नहीं होगा। ऐसे में उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के जरिए लीग के फ्रेंचाईजों का दिल जीतने की कोशिश की। इस कोशिश में वह कामयाब भी हुए और आज सबके चहेते बन गए हैं।




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यह है सतनाम की टीम
सतनाम जिस डलास मैवरिक्स टीम में शामिल हुए हैं, उस टीम ने 1980-81 में पहली बार एनबीए में कदम रखा था। इस टीम ने 1987, 2007, 2010 में तीन डिवीजन खिताब जीते हैं। जबकि उन्होंने दो कॉन्फ्रेंस चैंपियनशिप (2006, 2011) और एक एनबीए चैंपियनशिप (2011) जीती है।

प्रोफाइल
नाम : सतनाम सिंह भामरा
जन्म : 10 दिसंबर, 1995
वजन : 131 किग्रा
कद : 7 फुट 2 इंच

पसंदीदा भोजन
सतनाम बेसन के पकौड़े , मक्के की रोटी, सरसों का साग, बटर चिकन और खोया बर्फी खाने के शौकीन हैं। इनके पसंदीदा अभिनेता बॉलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार हैं । सतनाम जूनियर बच्चन अभिषेक को भी पसंद करते हैं। सतनाम की पसंदीदा फिल्म अक्षय कुमार की सिंह इज किंग है। सतनाम का सपना पिता के लिए कार खरीदने का है। 


सतनाम से लंबे उनके पिता
सतनाम का कद नौ साल की उम्र में ही पांच फुट 9 इंच हो गया था। सतनाम के घर में हर कोई लंबा है। उनके पिता बलबीर सिंह तो उनसे भी दो इंच लंबे हैं। उनकी लंबाई 7 फुट 4 इंच है। उनकी दादी की लंबाई तो 6 फुट 9 इंच और मां की 5 फुट 8 इंच है। आईएमजी एकेडमी द्वारा दिए गए स्कॉलरशिप के बाद वह फ्लोरिडा गए। उस वक्त उन्हें इंग्लिश नहीं आती थी। फ्लोरिडा पहुंचकर ही उन्होंने इंग्लिश सीखी।  सतनाम ने लुधियाना सत्संग रोड स्थित नव भारती पब्लिक स्कूल से आठवीं, नौवीं और दसवीं की पढ़ाई के बाद 2009 में आईएमजी रिलायंस अकादमी यूएसए की ओर से खेलना शुरू किया और दसवीं के बाद की पढ़ाई भी अमेरिका से ही की।

20 नंबर के जूते पहनते हैं
सतनाम के पैर भी काफी लंबे हैं। उनके जूतों का नंबर 20 हैं। जबकि खिलाड़ियों के जूतों का औसत साइज नौ होता है। उन्हें अपने लिए स्पेशल जूते तैयार करवाने पड़ते हैं। यही नहीं, वह आठ फीट लंबे बेड पर सोते हैं। उनके लिए चादर भी स्पेशल तैयार किए जाते हैं।
सतनाम की उपलब्धियां
सतनाम सिंह 2009 और 2011 में चीन में आयोजित सीनियर एशियन बास्केटबाल चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं। 2013 में फिलीपींस में एफआईबीए चैंपियनशिप कप, 2009 में मलेशिया और 2011 में वियतनाम में हुई जूनियर एशियन बास्केटबॉल चैंपियनशिप में सतनाम ने हिस्सा लिया था। 2012-13 में लुधियाना में हुई सीनियर नेशनल बास्केटबाल चैंपियनशिप में सतनाम को दूसरा स्थान मिला। 2013 में कोटक में हुई जूनियर नेशनल बास्केटबाल चैंपियनशिप में दूसरा और 2004 में चित्तौर में हुई जूनियर नेशनल बास्केटबाल चैंपियनशिप में उसे पहला स्थान मिला था।

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एनबीए बनाम आईपीएल

अमेरिका की प्रतिष्ठित बॉस्केटबाल लीग एनबीए दुनिया की तीसरी सबसे महंगी स्पोर्ट्स लीग है। कई देशों के बास्केटबॉल खिलाड़ी इस लीग में खेलते हैं। अमेरिका की नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन ने 69 साल पहले 1946 में इसे शुरू किया था।  एनबीए और भारत की सबसे महंगी क्रिकेट लीग आईपीएल की अगर तुलना की जाए तो दोनों के बीच आकाश - पाताल का अंतर है। जहां आईपीएल टूर्नामेंट की सालाना कमाई 1000 करोड़  है तो एनबीए की कमाई 29000 करोड़ रुपये है। आईपीएल इतिहास के सबसे महंगे खिलाड़ी युवराज सिंह हैं । युवराज को दिल्ली डेयरडेविल्स ने 16 करोड़ में खरीदा है। वहीं एनबीए की बात करें तो  कोबे ब्राएंट को लेकर्स टीम ने 148 करोड़ रुपये में खरीदा है। आईपीएल की सबसे महंगी टीम मुंबई इंडियंस है। मुकेश अंबानी की मुंबई इंडियंस 1,271 करोड़ की है। वहीं एनबीए लीग की सबसे अमीर टीम एलए लेकर्स है । लेकर्स टीम 16,546 करोड़ की है। हालांकि ईनाम राशि की बात करें तो दोनों लीग में कोई खास अंतर नहीं है। आईपीएल में ईनामी राशि 15 करोड़ है तो एनबीए में यह राशि 15.61 करोड़ है।  अगर दुनिया में सबसे अमीर टीम की बात करें तो फ्रेंच चैंपियन फुटबाल टीम पेरिस सेंट जर्मेन (पीएसजी) अपने खिलाड़ियों को विश्व में अन्य खेलों की तुलना में कहीं अधिक वेतन का भुगतान करती है। पीएसजी अपने प्रथम श्रेणी के खिलाड़ियों को औसतन 50 लाख पाउंड से ज्यादा का सालाना भुगतान कर रही है। इसके मुकाबले यदि आईपीएल के इतिहास के सबसे मंहगे खिलाड़ी युवराज सिंह के 16 करोड़ रुपये के अनुबंध को देखा जाए तो पाउंड में यह राशि 16 लाख पाउंड से कुछ ज्यादा बैठती है। वहीं अमेरिकन बास्केटबाल चैंपियनशिप एनबीए वरीयता सूची में सर्वाधिक भुगतान करने वाली लीग है।

क्यों है यह उपलब्धि खास

अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित बास्केटबॉल लीग एनबीए में सतनाम का चयन होना भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। दरअसल, यह उपलब्धि इसलिए बड़ी है क्योंकि बास्केटबॉल में भारत की रैंकिंग  टॉप - 100 देशों में भी नहीं है। स्थिति यह है कि अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए भारतीय बास्केटबॉल संघ वैश्विक बास्केटबॉल संघ के सामने जद्दोजहद कर रहा है। सबसे अमीर बास्केटबॉल लीग में भारत की पहचान होना कहीं न कहीं यह संकेत देते हैं कि इस खेल में अच्छे दिन आ गए।  सतनाम की उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि 2005 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी खिलाड़ी को बिना कॉलेज, ओवरसीज, प्रफेशनल या फिर एनबीए डेवेलपमेंट लीग में खेले बगैर ही ड्रॉफ्ट में जगह मिल गई।

एनबीए का इतिहास 

1946 में बास्केटबॉल एसोसिएशन ऑफ अमेरिका (बीएए) का गठन किया गया। पहला मैच कनाडा में एक नवंबर 1946 को टोरंटो हसकीस और न्यूयॉर्क निकरबोकर्स के बीच खेला गया। तीन सीजनों के बाद, 1949 में, बीएए का नेशनल बास्केटबॉल लीग के साथ विलय हो गया और नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) का गठन हुआ। एक नवोदित संगठन, अमेरिकन बास्केटबॉल एसोसिएशन 1967 में उभरा और 1976 में एबीए -एनबीए का विलय होने तक, कुछ समय के लिए एनबीए के प्रभुत्व को चुनौती दी। बावजूद इसके आज एनबीए विश्व में लोकप्रियता, वेतन, प्रतिभा और प्रतिस्पर्धा के स्तर के मामले में शीर्ष पेशेवर बास्केटबॉल लीग है। एनबीए से कई प्रसिद्ध खिलाड़ी संबंधित रहे हैं, जिसमें प्रथम प्रभावकारी बिग मैन जॉर्ज मिकन, गेंद संभालने के जादूगर के नाम से मशहूर बॉब कौसी और बॉस्टन सेल्टिक्स टीम की डिफेंसिव प्रतिभा बिल रसेल शामिल हैं।  वर्तमान लीग में कुल तीस टीमें हैं।


हड़ताली लीग एनबीए
यह दिलचस्प है कि दुनिया सबसे अमीर लीग स्पोर्ट़स में शामिल होने के बवाजूद एनबीए के खिलाड़ी अपनी कमाई से संतुष्ट नहीं रहते हैं।  एनबीए लीग को स्ट्राइकर लीग यानी हड़ताली लीग के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, इस लीग के खिलाड़ी किसी न किसी वजह से समय - समय पर हड़ताल पर जाते रहते हैं। एनबीए में  1998-99 के सीजन में वेतन भुगतान की वजह से सिर्फ 50 मैच हो पाए थे। 2013 में एनबीए की कमाई का हिस्सा कम मिलने से खिलाड़ी हड़ताल पर चले गए थे। यहां यह बता दें कि बास्केटबॉल अमेरिका का खूब कमाऊ खेल है। वहां होने वाले लीग मुकाबलों के जरिए खिलाड़ी और टीम मालिक अरबों रुपये कमाते हैं। इस कमाई में सबका हिस्सा होता है।

Wednesday 24 June 2015

भस्मासुर ललित मोदी

अमर उजाला में प्रकाशित मेरा विश्लेषण




इंट्रो:  इस शख्स ने एक भी गेंद नहीं खेली लेकिन बड़े - बड़ों के विकेट चटका दिए। यूपीए के राज्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा । आईपीएल जैसे क्रिकेट - तमाशे को नए सिरे से गढ़ने की नौबत आ गई और अब इसी शख्स की वजह से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की कुर्सी खतरे में पड़ गई। सब जानते हैं यह पंगेबाज शख्स और कोई नहीं ललित मोदी हैं।  क्रिकेट को पूंजी का खेल बना देने वाले ललित मोदी कोई साधारण इंसान नहीं हैं। इस डेंजरस खिलाड़ी की शख्‍सियत पर एक नजर...



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1980 के दशक की बात है। ललित मोदी की मां बीना और पिता कृष्ण कुमार मोदी ने उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए अमेरिक भेजा तो ललित ने अपने लिए अपने मां-बाप से एक कार की मांग की। केके मोदी ने ललित को उस वक्त 5000 अमेरिकी डालर दिए और कोई कामचलाऊ कार खरीदने की सलाह दी। ललित को अपने पिता की यह सलाह पसंद नहीं आई और उन्होंने इस रकम से पहली किश्त भरकर मर्सीडिज बेन्ज (जिसकी कीमत उस वक्त अस्सी लाख रही होगी) खरीद ली।  
इस पर पिता तिलमिला गए और उन्होंने ललित को एक भावुक पत्र लिखा। 
उस पत्र में केके मोदी ने कहा, 
‘ प्रिय ललित, मैंने तुम में कभी कोई बड़ा सपना नहीं देखा और उम्मीद यही है कि आगे भी ऐसा हो लेकिन एक मांग जरूर है कि तुम अपने बड़े सपने देखने के लिए ऐसे कदम न उठाना कि हम शर्मिंदा महसूस करें। ’ 
दरअसल, ललित मोदी हमेशा से ही अमीर दिखने में विश्वास रखते थे इसके लिए उन्हें चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े। हालांकि ललित मोदी जिस कृष्ण कुमार मोदी के बेटे हैं वह 4000 करोड़ रुपयों की कीमत वाली मोदी समूह के अध्यक्ष हैं। ललित मोदी के दादा राज बहादुर गुजरमल मोदी ने देश की राजधानी से सटे मोदीनगर की स्थापना की थी। गुजरमल मोदी उस दौर के बड़े उद्योगपतियों में से एक थे। बचपन से ही ललित अमीर बाप की बिगड़ी औलाद की तरह हरकतें करते थे।  मसलन, वह स्कूल से अक्सर भाग आते थे। बिना ड्राइविंग लाइसेंस के दिल्ली की सड़कों पर फर्राटेदार गाड़ियां चलाते पाए जाते थे। पिता केके मोदी ने परेशान होकर पढ़ाई पूरी करने के लिए विदेश भेजा तो कोकीन के आदी बन गए और ड्यूक युनिवर्सिटी में पढ़ते समय 400 ग्राम कोकीन के साथ पकडे गए।  उन पर उस मामले में अपहरण और मारपीट का भी आरोप लगा। पिता के धनबल ने उन्हें उस मामले में किसी तरह बचाया। ललित मोदी के किस्से मोदीनगर के  लोगों को आज भी याद है। स्थानीय लोग बताते हैं कि ललित अपने दादा के सामने एक बार थाना प्रभारी को किसी छोटी सी बात पर चांटा रसीद कर दिया था। उनके बारे में कहा जाता है कि वह बहुत जल्दी आपा खो देते हैं। ललित को उसके दादा और दादी बहुत चाहते थे। वह जब तक रहे तब तक ललित मोदी नगर में आते - जाते रहे । जवानी के दिनों में ललित का कभी क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं रहा। मोदी का ईएस्पीएन (क्रिकेट चैनल ) से जुड़ाव और शाहरुख खान जैसों से दोस्ती ने क्रिकेट और मनोरंजन के क्षेत्र में घुसपैठ का उनका इरादा बनाया। 1999 में मोदी ने हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में घुसपैठ की। उन दिनों हिमाचल प्रदेश में कोई क्रिकेट स्टेडियम नहीं हुआ करता था। मोदी ने एक स्टेडियम बनाकर वहां ग्रीष्मकालीन क्रिकेट की योजना पर काम शुरू किया लेकिन जब प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के  मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने मोदी को बेदखल कर अपने बेटे को हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन का प्रमुख बना दिया। शरद पवार के बीसीसीआई के अध्यक्ष बनाने में बड़ोदरा के किरण मोरे और राजस्थान के रुंगटा परिवार ने बड़ी बाधाएं खड़ी की थीं। ऐसे में ललित मोदी शरद पवार के कैंप में घुस गए। अब मेहरबानी की बारी शरद पवार की थी। उन्होंने ललित पर राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन पर कब्जे की जिम्मेदारी सौंपी। रुंगटा परिवार पिछले 40 वर्षों से राजस्थान क्रिकेट पर कब्जा जमाए बैठा था। 32 जिला क्रिकेट संघों में कुल 57 सदस्य हुआ करते थे और सभी रुंगटा परिवार के रिश्तेदार थे जिसे ललित मोदी ने अपने पराक्रम से सदा सर्वदा के लिए समाप्त कर दिया। इसी पराक्रम ने उन्हें आईपीएल के कमिश्नर पद तक पहुंचा दिया। आईपीएल का कमिश्नर बनते ही ललित मोदी ने वर्चस्व का मायाजाल फैलाना शुरू कर दिया। और यहीं से शुरू हुई उनकी तिकड़म की राजनीति। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने अपनी चहेती सुनंदा पुष्कर को कोच्ची की टीम में पर्सनल हिस्सेदारी क्या दिला दी ललित मोदी ने ट्विटर पर उनके खिलाफ  अभियान छेड़ दिया। मोदी इस कदर थरूर के पीछे पड़ गए कि उन्हें अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। यहीं से शुरू हुई मोदी के पतन की कहानी। उन पर साल 2010 में आईपीएल संचालन में पैसों की गड़बड़ी का आरोप लगा। इसके बाद मोदी को आईपीएल कमिश्नर के पद से निलंबित कर दिया गया। गड़बड़ी के आरोपों के बाद ललित मोदी ब्रिटेन चले गए थे तब से वह वहीं रह रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने मोदी के खिलाफ  नोटिस जारी किया हुआ है और इस मामले में ललित मोदी की तलाश कर रहा है। हालांकि सात समंदर पार बैठकर भी मोदी तिकड़मबाजी करने में लगे हुए हैं। पहले उन्होंने बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवासन के खिलाफ याचिकाकर्ता आदित्य वर्मा को आर्थिक मदद की बात स्वीकारी और अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया सहित राजनीति जगत की तमाम बड़ी हस्तियों को लपेटे में लेने में लगे हैं।   



वसुंधरा और ललित का रिश्ता पीढ़ियों पुराना 
ललित की दादी और राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की मां राजमाता विजया राजे माता आनंदमयी की अनुयायी थीं। इनकी दोस्ती के चलते वसुंधरा और ललित में भी अच्छी दोस्ती हो गई जो संयोग से ललित से उम्र में 10 साल बड़ी हैं। वसुंधरा के कार्यकाल में ललित ‘सुपर चीफ  मिनिस्टर’ कहे जाते थे। ललित ने वसुंधरा को विश्वास में लेकर रुंगटा परिवार से राजस्थान क्रिकेट संघ छीनने के लिए सभी 57 सदस्यों के मताधिकार को समाप्त कर संघ पर कब्जा जमा लिया। इससे बोर्ड अध्यक्ष शरद पवार इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ललित को बीसीसीआई का उपाध्यक्ष बना दिया। शरद पवार ने ललित मोदी को बीसीसीआई के वाणिज्यिक फैसलों का अधिकार क्या सौंपा ललित ने 2005 से 2008 के बीच बीसीसीआई की कमाई में सात  गुना वृद्धि करने में सफलता दिला दी। यहीं ललित को आईपीएल का कमिश्नर बनाने का कारण बना। मोदी पांच साल से लंदन में रह रहे हैं, लेकिन 2013 में उन्होंने  राजस्थान क्रिकेट अकादमी (आरसीए) का चुनाव भी लड़ लिया। 


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मोदीनगर और ललित का रिश्ता 
करीब 75 वर्ष पूर्व बेगमाबाद के नाम से जाना जाने वाला एक शहर किसी नवाब ने अपनी बेगम को खुश करने के लिए बसाया था। बेगमाबाद की किस्मत ने उस समय करवट ली जब 1933 में हरियाणा के मूल निवासी मुल्तानी मल मोदी के पुत्र रायबहादुर गुजरमल मोदी ने सबसे पहले यहां शुगर मिल स्थापित की। इसके बाद साल दर साल डेढ़ दर्जन से अधिक बड़ी इकाइयां स्थापित करके वह अकेले अपने दम पर इस छोटे से कस्बे को देश के औद्योगिक नक्शे पर लाने मे सफल रहे। इस छोटे से कस्बे में मोदी ग्रुप की कंपनियां मुर्गा छाप मोदी थ्रेड, मोदी काटीनेटंल, मोदी शूटिंग, लालटेन, इलेक्ट्राड साबुन, ग्लास, सिल्क एण्ड रेयानॅ मिल मोदी पेंट एण्ड फर्निचर जेवीसी रबर, वनस्पति बिस्कुट, टायर, सिगरेट आदि की स्थापना के बाद यह शहर मोदीनगर के रूप में जाना जाने लगा। वर्ष 1976 में रायबहादुर गुजरमल मोदी के र्स्वग वास के बाद शहर के उद्योग धंधों ने अपना दम तोड़ना शुरू कर दिया और वर्ष 2000 आते-आते लगभग सभी कंपनियां बंद हो गईं। । हालांकि कुछ दिनों तक कारोबार को गुरजमल के बेटे कृष्ण कुमार मोदी ने देखा। कृष्ण कुमार मोदी फिक्की के भी प्रमुख रहे। बाद में ललित मोदी के छोटे भाई समीर मोदी ने मोर्चा संभाला। बहन चारु भी पिता के कारोबार से जुड़ी हैं लेकिन ललित का परिवार से कोई बहुत ताल्लुक नहीं रहा। उन्होंने अपने परिवार की मर्जी की परवाह किए बगैर जब शादी की तो उनका परिवार से संबंध लगभग खत्म सा हो गया। 




ललित मोदी के उदय और पतन की कहानी
1999 :  हिमाचल प्रदेश से औपचारिक तौर पर क्रिकेट प्रशासन में कदम रखा लेकिन स्थानीय अधिकारियों के साथ खराब संबंध के कारण अगले ही साल पद से हटाए ग।ए
2004 :  मोदी ने रूंगटा बंधुओं किशोर और किशन को राजस्थान क्रिकेट संघ (आरसीए) से बाहर किया।
 2004: शरद पवार की अगुआई में जगमोहन डालमिया विरोधी गुट बना, जिसे एन श्रीनिवासन, शशांक मनोहर और ललित मोदी का समर्थन हासिल था। पवार विरोधी उम्मीदवार रणबीर महेंद्रा को हराने में विफल रहे जिन्होंने निवर्तमान अध्यक्ष डालमिया के निर्णायक मत से जीत दर्ज की।
 2005: 40 बरस की उम्र में मोदी बीसीसीआई के पांच उपाध्यक्षों में सबसे युवा रहे।
 2005: बीसीसीआई के मार्केटिंग समिति के अध्यक्ष के तौर पर मोदी ने नाइकी के साथ लाखों डॉलर का किट प्रायोजन करार किया और टीवी प्रसारण करार भी किया।
2008: मोदी ने लुभावनी इंडियन प्रीमियर लीग शुरू की। बीसीसीआई ने उन्हें आईपीएल अध्यक्ष और आयुक्त नियुक्त करते हुए सभी अधिकार दिए
2009: लोकसभा चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद आईपीएल दो का आयोजन दक्षिण अफ्रीका में कराया।
 2009: मोदी आरसीए अध्यक्ष पद चुनाव में आईएएस अधिकारी संजय दीक्षित से हारे जो राज्य क्रिकेट संघ के सबसे विवादास्पद चुनाव में से एक रहे।
 2010: कई ट्वीट की श्रृंखला में कोच्चि टसकर्स केरल के शेयरधारकों का खुलासा किया और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की दिवंगत सुनंदा पुष्कर की फ्रेंचाइजी में लगभग 70 करोड़ की ‘स्वेट इक्विटी’ के बारे में भी बताया। मोदी ने शशि थरूर की संलिप्तता के बारे में भी लिखा और इस केंद्रीय मंत्री को इस विवाद के बाद इस्तीफा देना पडा।
 2010 : सरकारी एजेंसियों ने वर्ष 2009 के आईपीएल से जुडे़ वित्तीय अनियमितताओं और अन्य मुद्दों पर ललित मोदी और बीसीसीआई के खिलाफ  जांच शुरू की।
 2010 : बीसीसीआई ने आईपीएल तीन के फाइनल के खत्म होने के तत्काल बाद मोदी को वित्तीय अनियमितता के आरोप में निलंबित कर दिया।
 2010: अंडरवर्ल्ड से धमकी का हवाला देकर देश से भागे और ब्रिटेन में शरण मांगी। प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ  ब्ल्यू कार्नर नोटिस जारी किया। पासपोर्ट भी रद्द किया गया।
 2011 : बीसीसीआई ने अपनी वार्षिक आम बैठक में जांच समिति बनाई जिसने मोदी के खिलाफ  अनुशासनात्मक कार्रवाई की। इस समिति की अध्यक्षता बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने की। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन समिति के अन्य सदस्य थे।
 2012 : मोदी ने यह स्वीकार किया कि श्रीनिवासन की मदद के लिए और चेन्नई सुपर किंग्स में इंग्लैंड के हरफनमौला खिलाड़ी एंड्रयू फ्लिंटाफ  को शामिल कराने के लिए नीलामी में छेड़छाड़ में उनका हाथ था। श्रीनिवासन ने आरोपों को खारिज किया।
 2013 : अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली आईपीएल की अनुशासन समिति ने मोदी पर आजीवन प्रतिबंध की सिफारिश की और इसके बाद बीसीसीआई ने उन्हें प्रतिबंधित किया। मोदी अदालत की शरण में पहुंचे।
 2014 : राजस्थान क्रिकेट संघ के अध्यक्ष चुने गए और उसके तुरंत बाद बीसीसीआई ने आरसीए पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी वित्तीय मदद वापस ले ली। मामला अदालत में विचाराधीन है।

2014 : 27 अगस्त को दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने मोदी के पासपोर्ट को पुन: बहाल किया।


आलीशान है मोदी की लाइफ - स्टाइल 
एक आंकड़े के मुताबिक ललित मोदी की अब तक की व्यक्तिगत कमाई लगभग 36 अरब रुपये की है। लंदन के प्रतिष्ठित 117 स्लोएन स्ट्रीट पर उनका पांच मंजिला पैलेस है, जो कि 7000 स्क्वैयर फीट में फैला है। इस आलीशान बंगले में आठ डबल बेडरूम, सात बाथरूम, दो गेस्ट रूम, चार रिसेप्शन रूम, दो किचन और एक लिफ्ट हैं। यही नहीं दुनिया के कई अन्य देशों में भी उनकी प्रॉपर्टी बताई जाती हैं।  ललित मोदी स्पोर्ट्स कारों के बेहद शौकीन हैं। उनके कलेक्शन में तेज-तर्रार स्पोर्ट्स कारें शुमार हैं। मोदी ट्विटर पर अपनी ऐशो - आराम की जिंदगी वाली तस्वीरें डालते रहते हैं। पेरिस हिल्टन और नाओमी कैंपबेल जैसी सुपरस्टार के साथ उनकी तस्वीरें हैं। आईपीएल की बदौलत भी उन्होंने बहुत संबंध कमाए हैं। बॉलीवुड में शाहरुख से लेकर प्रीति जिंटा और दीपिका पादुकोण तक उनके करीबी दोस्त हैं। राजनीति जगत में राजीव शुक्ला, वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज और उनके परिवार से मोदी की करीबियां हैं।

मोदी का टशन 
ललित मोदी के बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जो साबित करते हैं कि वह हमेशा सत्ता प्रतिष्ठान के करीबी रहे हैं बल्कि ‘टशन’ के मामले में भी वह किसी से कम नहीं। वसुंधरा राजे सिंधिया के पहले शासनकाल (2003-2008) में ललित मोदी राजस्थान में सत्ता के अहम केंद्र हो गए थे। हालत यह थी कि प्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स ललित मोदी की अकड़ से खुद को आहत महसूस करते थे। बताया जाता है कि वह वसुंधरा के सामने सेंट्रल टेबल पर पैर रखकर बैठते थे।  साल 2005-2006 में मोदी ने जयपुर के बेहद मंहगे और मशहूर रामबाग पैलेस होटल को ही अपना घर बना रखा था। वह भी सिर्फ  इसलिए क्योंकि यहां से सिर्फ  सड़क पार करने पर सवाई मान सिंह क्रिकेट स्टेडियम था, जहां क्रिकेट एसोसिएशन दफ्तर भी था। मोदी के साथ एक बड़ा विवाद नवंबर, 2008 में जुड़ा। इस समय उन्होंने भारत पाकिस्तान मैच के दौरान एसएमएस स्टेडियम में तिरंगे पर शराब परोसी। मामले में मोदी पर तिरंगे को मेजपोश की तरह इस्तेमाल करने और उस पर शराब परोसने के आरोप हैं। मीडिया में भी कई फोटो आए। मामला कोर्ट में है। 


टी-20 क्रिकेट जैसी रही मोदी की प्रेम कहानी 
ललित मोदी को विदेश में पढ़ाई के दौरान अपनी मां की सहेली मीनल से प्रेम हो गया। मीनल उम्र में मोदी से नौ साल बड़ी थीं। बावजूद इसके दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ने लगा। हालांकि मोदी मीनल को शादी के लिए प्रपोज नहीं कर पाए। इसके चलते मीनल की शादी एक नाइजीरियाई व्यापारी से तय हो गई। शादी से ठीक एक दिन पहले ललित मोदी ने मीनल को शादी के लिए प्रपोज किया। ऐन वक्त पर ये प्रस्ताव सुनकर मीनल काफी चौंक गई और मोदी पर गुस्सा हो गई। इसके बाद मीनल ने मोदी से चार साल तक बात नहीं की। मीनल की शादी के बाद भी मोदी उनका इंतजार करते रहे। मीनल की शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और उनका तलाक हो गया। तलाक ने मीनल को मोदी के और करीब कर दिया। हालांकि दोनों के रिश्ते का परिवार में जमकर विरोध हुआ। लेकिन दोनों के प्रेम के आगे परिवार को घुटने टेकने पड़े। इसके बाद 1991 में दोनों ने विवाह कर लिया। मोदी ने मीनल की पहले पति से हुई बेटी करीमा को अपना नाम दिया। करीमा की शादी डाबर ग्रुप के मालिक विवेक बर्मन के बेटे गौरव से कराई। गौरव के भाई की आईपीएल टीम किंग्स इलेवन पंजाब में हिस्सेदारी भी है। मोदी के एक बेटी और एक बेटा है। बेटी का नाम आलिया है और वह स्विट्जरलैंड में पढ़ाई करती है। जबकि बेटे का नाम रुचिर है।


सबसे शक्तिशाली चेहरों में से एक 
इंडिया टूडे पत्रिका के अनुसार ललित मोदी 21 वीं सदी में भारत के 20 सबसे शक्तिशाली लोगों में सूचीबद्ध हैं। उन्हें इसलिए सम्मिलित किया गया क्योंकि 2005 में बोर्ड में उनके शामिल होने के बाद से बीसीसीआई के राजस्व में सात गुना वृद्धि हुई ।  2008 अगस्त अंक की प्रमुख खेल पत्रिका स्पोर्ट्स प्रो द्वारा वैश्विक आंकड़ों के खेल से जुड़े पावर लिस्ट में उनकी गणना 17 नंबर पर की गई। उन्हें बेस्ट रेन मेकर (पैसा निर्माता) के रूप में किसी भी खेल के क्षेत्र में विश्व भर के खेल के इतिहास में स्थान मिला। इतने कम समय में वह एक ऐसे खेल प्रशासक बने जिन्होंने अपने संगठन के लिए चार अरब अमरीकी डॉलर जुटाया है। इतना सब कुछ उन्होंने अवैतनिक क्षमता में रहते हुए किया। द टेलीग्राफ  ने उन्हें क्रिकेट के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है। टाइम मैगजीन (जुलाई 2008) ने उन्हें 2008 के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खेल कार्यकारी अधिकारियों की सूची में 16 नंबर पर रखा। अक्टूबर 2008 अंक के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पत्रिका बिजनेस वीक में ललित मोदी को विश्व में 25 सबसे शक्तिशाली खेल वैश्विक आंकड़ों की सूची में 19 नंबर पर स्थान मिला। ललित मोदी ने मोस्ट इनोवेटिव बिजनेस लीडर ऑफ इंडिया (भारत के सबसे नवप्रवर्तनशील व्यापारिक नेता) का पुरस्कार भी प्राप्त किया। डीएनए अखबार ने भारत में 50 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में उन्हें 17 वें स्थान पर क्रमित किया।

जारी है क्रिकेट पिच पर खूनी खेल


खेलों में बरसी संपन्नता ने क्रिकेट को व्यावसायिकता की तरफ मोड़ दिया, उससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी। आक्रामकता को नया तेवर मिला। आक्रामकता क्रिकेट की अनिवार्य पहचान बनी हुई है और पिच पर खिलाड़ियों के खून रिसने का सिलसिला जारी है।

कहा जाता है कि खेल, युद्ध का अहिंसक और मित्रतापूर्ण रूपांतरण है। लेकिन कभी - कभी खेल में ऐसी दुर्घटना हो जाती है, जो याद दिलाती हैं कि तमाम एहतियात के बावजूद खेल उतने अहिंसक और सुरक्षित नहीं हैं, जितना हम मानते हैं। बंगाल के युवा प्रतिभाशाली क्रिकेटर अंकित केशरी की एक मैच के दौरान लगी चोट से मौत भी ऐसी ही है। अंकित बंगाल की अंडर-19 क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके थे और भारत की अंडर-19 टीम के संभावित खिलाड़ियों में भी उनका नाम था।  अंकित ‘मौत के मैच’ में खेलने वाले 11 खिलाड़ियों में से नहीं थे, वह अतिरिक्त खिलाड़ी थे। वह थोड़ी ही देर पहले किसी खिलाड़ी की जगह क्षेत्ररक्षण करने मैदान में आए थे। एक कैच उनकी तरफ  उछला, जिसे पकड़ने एक ओर से वह दौड़े,  दूसरी ओर से गेंदबाज खुद कैच पकड़ने दौड़ पड़ा, इसमें कुछ नया नहीं था। 1999 में श्रीलंका के खिलाफ एक मैच में ऐसा ही हुआ। आस्ट्रेलिया के स्टीव वॉ शार्ट फाइन लेग पर फील्डिंग कर रहे थे, जेसन गिलेस्पी डीप स्क्वायर लेग पर थे। एक कैच को लपकने की कोशिश में दोनों टकरा गए। स्टीव की नाक और गिलेस्पी का पैर चोटिल हो गया। गिलेस्पी को पंद्रह महीने तक क्रिकेट से दूर रहना पड़ा जबकि स्टीव वॉ को नाक की सर्जरी करानी पड़ी। इस तरह की घटनाएं क्रिकेट में आम होती हैं कि एक ही कैच पकड़ने दो खिलाड़ी दौड़ पड़े। कभी कैच पकड़ा जाता है, तो कभी दोनों के बीच गलतफहमी की वजह से छूट जाता है, कभी दोनों खिलाड़ी टकरा भी जाते हैं और थोड़ी - बहुत चोट भी लग जाती है। लेकिन दो खिलाड़ियों के टकराने से किसी एक खिलाड़ी ( अंकित केशरी ) के मौत की घटना संभवतः पहली बार है।  जाहिर है कि उन्हें नियम बना कर रोका नहीं जा सकता लेकिन जरूरी है क्रिकेट में जरूरत से ज्यादा आक्रमकता को रोकना। पिछले साल कंगारू टीम के युवा खिलाड़ी फिल ह्यूज की मौत पर ऑस्ट्रेलिया में काफी आंसू बहे लेकिन वहां की क्रिकेट संस्कृति में तो विपक्षी टीम को मानसिक व शारीरिक रूप से ध्वस्त करने की चाहत कूट-कूट कर भरी हुई है। इसके लिए सिर्फ गेंद ही हथियार नहीं होती, गाली-गलौज और सामने वाले खिलाड़ी को उकसाने की हर तरह की हरकत वहां सालों से हो रही हैं। बाकी देशों में भी आक्रामकता को खेल का अनिवार्य हिस्सा मान लिया गया है। मसलन, वेस्टइंडीज के मैल्कम मार्शल को बल्लेबाज जितना सहमा हुआ दिखता था, उतना ही उन्हें आनंद आता था। आस्ट्रेलिया के जेफ थामसन को पिच पर गिरी बल्लेबाज की खून की बूंदें राहत देती थीं। इसमें कोई दो मत नहीं कि पिछले कुछ सालों में क्रिकेट श्रेष्ठता साबित करने का जरिया बन गया है। प्रतिष्ठा तो इससे जुड़ी ही है, आर्थिक फायदा भी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि अरबों रुपये का राजस्व उगलने वाला यह खेल  थोड़ा विवादित और आक्रामक होगा ही ताकि उस मैच की ओर दर्शकों का ध्यान आकर्षित हो। जानकारों का मानना है कि आज के दौर में मैदान पर खिलाड़ियों की आक्रामकता स्क्रिप्टेड है। कई पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि मैदान पर आक्रामक रवैया अपनाने की मांग मैनजमेंट और संस्‍थाएं करती हैं ताकि लोगों का ध्यान आक्रामक खिलाड़ी और मुकाबलों की ओर आकर्षित हो। शायद इसी का नतीजा है कि विराट कोहली वर्तमान दौर के आक्रामक खिलाड़ियों में शुमार हो चुके हैं और दर्शकों की नजर में देश का आक्रामक प्रतिनिध बने हुए हैं। आज के दौर में जहां संस्‍थाएं किसी भी मैच को टीवी चैनल का रियालिटी शो बनाने की कोशिश में लगी हुई हैं
जिस वजह से मैदान पर तरह - तरह से  खिलाड़ियों को उकसाया जाता है। बल्लेबाजी कर रहे खिलाड़ी को गेंदबाज उकसाता है तो गेंदबाजी कर रहे खिलाड़ी को बल्लेबाज।  जिसका नतीजा यह होता है कि 
दोनों एक दूसरे को करारा जवाब देने के चक्कर में कुछ खतरनाक कदम उठा लेते हैं। मसलन बल्लेबाज , कुछ खतरनाक शॉट मारने की कोशिश करता है तो गेंदबाज कुछ खतरनाक बाउंसर। बाउंसर  तेज गेंदबाज का सबसे अचूक हथियार माना जाता है। मकसद खिलाड़ी को पीछे की ओर धकेलना होता है। पिच के बीच टप्पा खा कर गेंद उछल कर बल्लेबाज की छाती के ऊपर आती है और घबरा कर बल्लेबाज या तो सुरक्षात्मक अंदाज अपनाता है या गेंद के रास्ते से हटने की कोशिश करता है अथवा लेग साइड पर गेंद को मार कर रन लेने का जोखिम उठाता है। इस पूरी कोशिश में जरा सा संतुलन गड़बड़ाते ही चोट लगने का खतरा बना रहता है और अगर यह चोट सिर के किसी हिस्से में लगती है तो फिल ह्यूज की तरह के हादसों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।  ऐसे में रास्ता यही है कि अंपायर ज्यादा सतर्क रहें और अगर उन्हें लगे कि गेंदबाज जानबूझ कर बल्लेबाज को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है तो उसे चेतावनी दे।  अंपायरों को अतिरिक्त अधिकार देना जरूरी है क्योंकि वह ही तय कर सकते हैं कि गेंदबाज की उग्रता में क्या भावना छिपी है? साथ ही विकेट कीपर, फील्डर और बल्लेबाज के लिए आधिक सुरक्षित उपकरण विकसित किए जाने की जरूरत है। खिलाड़ियों को अपनी तकनीक भी सुधारनी होगी।  क्रिकेट अब पहले जैसा जेंटलमैन गेम तो बनने वाला नहीं है। खिलाड़ियों के लिए वह जितना सुरक्षित हो जाए, उतना ही अच्छा है।


जब बाउंसर ने गावस्कर को डराया
1975-76 में किग्संटन में माइकल होल्डिंग की अगुवाई में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों ने बाउंसरों की बौछार कर भारतीय खिलाड़ी अंशुमन गायकवाड़ का कान तोड़ दिया। विश्वनाथ की उंगली टूट गई और ब्रजेश पटेल भी अस्पताल पहुंच गए। सुनील गावस्कर ने शरीर को जानबूझ कर निशाना साध कर गेंद फेंकने की जब चीनी मूल के अंपायर सैंग ह्यू से शिकायत की तो उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। गावस्कर ने गुस्से में बैट पटक दिया और कहा, `मैं यहां मरना नहीं चाहता। मुझे अपने नवजात बेटे से मिलना है।’ स्थिति यह थी कि  हर बाउंसर के साथ दर्शक चिल्लाते थे, किल हिम! (इन्हें मार डालो) हिट हिम, (इनके सिर पर मारो)।  जब भी बल्लेबाज को गेंद लगती प्रशंसक बीयर केन के साथ उछलते और खुशी मनाते।


एक पक्ष लापरवाही का
पिछले साल फिल ह्यूज की मौत के बाद इंग्लैंड के दिग्गज खिलाड़ी ज्यॉफ्री बॉयकाट ने कह‌ा था, कुछ भी कर लिया जाए, मैदान पर होने वाले हादसों को नहीं रोका जा सकता। उनका मानना है, किक्रेट के नए-नए प्रारूप सामने आने से खेल का हुलिया ही बदल गया है। तकनीक की उपेक्षा होने लगी है। हेलमेट पहनने के बाद खिलाड़ी मान लेते हैं कि उन्हें चोट नहीं लग सकती। वे लापरवाह हो जाते है। ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में वे ज्यादा खेलने में व्यस्त रहते है और अपनी तकनीक की खामियों में सुधार नहीं कर पाते। खिलाड़ी पुराने सैनिकों की तरह बख्तर बंद पहन कर खेलें तो बात अलग है नहीं तो हेलमेट या अन्य उपकरणों में कितना भी सुधार क्यों न कर लिया जाए, हादसे नहीं थमने वाले।


जब चोट से प्रभावित हुआ खेल
28 साल के भारतीय खिलाड़ी नॉरी कट्रेक्टर 1962 में आधा दर्जन ऑपरेशन के बाद बच तो गए,  लेकिन उन्हें क्रिकेट से नाता तोड़ना पड़ा। टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर दक्षिण अफ्रीका के मार्क बाउचर की 2013 में विकेट की गिल्ली उछलकर आंख में लग जाने से आगे क्रिकेट खेल सकने लायक रोशनी ही नहीं बची। पूर्व भारतीय विकेट कीपर सैयद सबा करीम भी ऐसी ही दुर्घटना का शिकार होने के बाद अपनी दाईं आंख गवां बैठे थे। वह अनिल कुंबले की गेंद को पकड़ने में चूक गए और गेंद सीधे उनकी आंख में लगी। क्रिकेट के सबसे बड़े बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर भी अपने पहले टेस्ट मैच में वकार यूनिस की गेंद का शिकार हुए। नाक में गेंद लगने से उनकी नाक लहुलुहान हो गई थी। लेकिन जिंदादिल सचिन ने हार नहीं मानी और बैटिंग जारी रखी। इस घटना के बाद सचिन ने खुले हेलमेट की जगह ग्रिल वाले हेलमेट लगाना शुरू कर दिया। सचिन ने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि उस चोट के बाद मेरा मन क्रिकेट छोड़ने का हो गया था। सचिन की ही तरह वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज ब्रायन लारा भी चोट का शिकार हो चुके हैं। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी - 2004 के सेमीफाइनल में लारा पाकिस्तानी गेंदबाज शोएब अख्तर की बाउंसर पर चकमा खा गए और गेंद सीधी उनके सिर पर लगी। ब्रायन लारा खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि यदि उस दिन हेलमेट नहीं होता तो शायद उनके सर की धज्जियां ही उड़ जातीं। लारा ने यह भी कहा था कि वह चोट उन्हें आज भी परेशान करती है।  दक्षिण अफ्रीका के पूर्व ओपनर गैरी क्रिस्टन भी शोएब अख्तर की खतरनाक बाउंसर पर अपनी नाक तुड़वा चुके हैं। पूर्व भारतीय कप्तान अनिल कुंबले सन 2002 में वेस्टइंडीज के खिलाफ  मार्वन ढिल्लन की गेंद पर चोट खाकर जबड़ा तुड़वा चुके हैं। कुंबले उस चोट के बाद लंबे समय तक क्रिकेट से बाहर रहे और बाद में वह बाउंसर खेलने से बचते भी रहे।


वो साहसी खिलाड़ी
लेकिन कई ऐसे बल्लेबाज भी हुए जो तेज गेंदों से घायल होने के बाद भी खेलने वापस आए। इनमें से एक खिलाड़ी का किस्सा यहां बताना जरूरी है। उसका नाम ज्यादातर लोग नहीं जानते। वह थे सुल्तान जरावई जो करोड़पति थे और शौकिया क्रिकेट खेलते थे। वह यूएई टीम के कप्तान भी थे। उनका मुकाबला 1996 में रावलपिंडी में दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक गेंदबाज एलेन डोनाल्ड से हुआ। उन्होंने हेलमेट की बजाय एक हैट पहना था। डोनाल्ड की पहली ही गेंद उठती हुई बाउंसर थी। गेंद जरावई के सिर में लगी और वह चकरा गए, पांच मिनट बेहोश रहे लेकिन कुछ ही सेकेंड बाद उन्होंने अपना हैट उठाया और फिर बल्लेबाजी करने चले आए। छह गेंद बाद वह आउट हो गए लेकिन अपनी बहादुरी की छाप छोड़ गए। इंग्लैंड के महान बल्लेबाज डेनिस क्रॉम्पटन को 1948 में रे लिंडवॉल ने अपने बाउंसर से बुरी तरह जख्मी कर दिया। उनके सिर पर दो टांके लगे लेकिन वह घबराए नहीं और अस्पताल से लौटकर बैटिंग करने आए, उन्होंने उस मैच में शानदार 145 नाबाद रन बनाए।



सिलसिला मौत का ....
-  इंग्लैंड के जैस्पर विनाल का निधन 28 अगस्त 1624 को एक क्लब मैच के दौरान सिर में बैट लगने से हो गया था।
-  नॉटिंघम में 29 जून, 1870 को इंग्लैंड के जॉर्ज समर्स (उम्र ः25 ) के सिर पर गेंद से गंभीर चोट लगी, कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई।
- इंग्लैंड के एंडी डुकाट (उम्र ः 56 ) का 23 जुलाई, 1942 को लंदन में एक क्रिकेट मैच के दौरान शॉट गेंद सीने पर लगी फिर दिल का दौरा पड़ गया।
- कराची में 17 जनवरी, 1959 को एक मैच के दौरान पाकिस्तान के अब्दुल अजीज ( उम्रः 18 )की छाती में गेंद से जानलेवा चोट लगी।
- इंग्लैंड के विल्फ स्लैक का निधन गांबिया के बंजुल में एक मैच के दौरान बल्लेबाजी करते हुए हुआ, स्लैक 34 साल के थे।
- इंग्लैंड के ही इयान फोली (उम्र ः 30 ) भी एक मैच के दौरान गंभीर रूप से चोटिल हुए जिसके कुछ दिनों बाद 30 अगस्त 1993 को उनका निधन हो गया।
-  1998 में भारतीय क्रिकेटर रमन लांबा (उम्र: 38 साल) की भी मौत सिर में बॉल लगने के कारण हुई थी। वह बांग्लादेश के ढाका में क्लब क्रिकेट खेल रहे थे। शॉर्ट लेग पर फील्डिंग के दौरान रमन के सिर पर एक तेज शॉट लगा। चोटिल लांबा को ढाका के पोस्ट ग्रेजुएट अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
- पाकिस्तान के वसीम रजा ( उम्र : 54 ) का 23 अगस्त, 2006 को इंग्लैंड के मर्लों में मैच के दौरान दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
- इंग्लैंड के अंपायर जेनकिंस 2009 में एक लीग मैच में अंपायरिंग कर रहे थे।  क्षेत्ररक्षक द्वारा फेंकी गई गेंद दुर्घटनावश 72 वर्षीय जेनकिंस के सिर पर जा लगी और मौत हो गई।
-  इंग्लैंड के काउंटी क्लब खिलाड़ी 33 वर्षीय ब्यूमोंट 2012 में खेल के मैदान पर दिल का दौरा पड़ने से गिर पड़े और अस्पताल ले जाए जाने पर मृत घोषित कर दिए गए।
- दक्षिण अफ्रीका के विकेटकीपर बल्लेबाज डैरिन रैंडाल ( उम्र :32 ) को 27 अक्टूबर, 2013 को एलिस में एक मैच के दौरान सिर में गंभीर चोट लगी और मौत हो गई।
-  2013 में घरेलू क्रिकेट खेलने के दौरान एक गेंद पाकिस्तान के जुल्फिकर भट्टी (उम्र: 22 साल) के सीने पर लगी थी, उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वो बच नहीं सके।
- 30 नवंबर, 2014 को इजरायल के ऐशडोड शहर में एक मैच के दौरान अंपायरिंग कर रहे 55 साल के ऑस्कर हिलेल की गेंद लगने से मौत हो गई।
- बल्लेबाजी के दौरान सिर में गंभीर चोट लगने के बाद आस्ट्रेलिया के फिल ह्यूज का निधन 27 नवंबर 2014  सिडनी में हुआ।
- भारत के अंकित केसरी का निधन 20 अप्रैल, 2015 को कोलकाता में हुआ। वह 17 अप्रैल को एक मैच में क्षेत्ररक्षण करने के दौरान अपने साथी खिलाड़ी से टकरा गए थे और यह चोट जानलेवा साबित हुई।


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क्या कहते हैं आंकड़े
एक रिसर्च के मुताबिक हर 25वें सेकंड में या एक साल में 13, 50000 बार एक युवा एथलीट सिर की चोट लगने के कारण इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती होता है। अमेरिकी संस्था ‘सेफ  किड्स वर्ल्ड वाइड’ द्वारा किए शोध के मुताबिक खिलाड़ी सबसे ज्यादा सिर की चोट के कारण अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं। यह शोध दुनिया भर में खेले जाने वाले 14 सबसे लोकप्रिय खेलों में दर्ज हुए प्रकरणों के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अस्पतालों के इमरजेंसी रूम में भर्ती होने वाले 12 फीसदी केस सिर पर आघात के होते हैं। इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं 12 से 15 उम्र के एथलीट। अगर भारत में क्रिकेट के दौरान चोटिल होने वाले खिलाड़ियों की बात की जाए तो हर दिन करीब 233 बच्चे गंभीर रूप से घायल होते हैं और अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं, जिनमें से नौ खिलाडी़ दम तोड़ देते हैं। 


हेलमेट ः तब और अब में फर्क
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के युवा बल्लेबाज की मौत के बाद खिलाड़ियों के हेलमेट पर सवाल खड़े होने लगे। ह्यूज ने जो हेलमेट पहना हुआ था उससे पीछे गर्दन वाला हिस्सा कवर नहीं हो पा रहा था और गेंद जाकर सीधे वहीं लगी। उनका हेलमेट 2013 वर्जन वाला था, जबकि हाल ही में 2014 वर्जन वाले हेलमेट से कान के पास वाला हिस्सा भी ग्रिल के जरिए कवर होता है। भारत के महानतम बल्लेबाज सुनील गावस्कर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने करियर में कभी भी हेलमेट नहीं पहना। हालांकि उन्होंने 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ  एक वनडे मैच में प्रायोगिक तौर पर सिर को सुरक्षा देने वाला कैप (हेडगियर) पहना लेकिन इसे हेलमेट नहीं कहा जा सकता। 1977 में डेनिस लिली और टोनी ग्रेग ने प्रायोगिक तौर पर मोटरसाइकिल के हेलमेट की तरह हेलमेट पहनना शुरू किया। क्रिकेट में सबसे पहले हेलमेट पहनने की शुरुआत 17 मार्च, 1978 को ऑस्ट्रेलिया के ग्राहम नील यालेप ने वेस्टइंडीज के खिलाफ  एक मैच के दौरान की थी। हालांकि इस हेलमेट के प्रयोग पर अंदर काफी गरमी होती थी क्योंकि हवा के अंदर जाने का कोई प्रबंध नहीं था। धीरे-धीरे हेलमेट में सुधार आता गया और हेलमेट को हवादार भी बनाया जाने लगा। अगस्त, 1994 को कोलंबो में खेले गए मैच में श्रीलंका के बल्लेबाज असांका गुरुसिंघा ने इस हवादार हेलमेट को पहना। धीरे-धीरे क्षेत्ररक्षक भी हेलमेट पहनने लगे। 90 के दशक के बाद जैसे-जैसे क्रिकेट मैच ज्यादा होने लगे वैसे-वैसे ही टिकाऊ और उपयोगी हेलमेट की मांग बढ़ने लगी। हेलमेट के बनावट में और सुधार आया, उसे हल्का होने के साथ-साथ और लचीला भी बनाया जाने लगा।

हेलमेट खरीदते समय खिलाड़ी रखे इन बातों का ध्यान
ये बातें अनिवार्य
-  फेसगार्ड और सिर के कवर के बीच पर्याप्त जगह।
  -  कान की सुरक्षा।
- कान के पीछे और गर्दन के ऊपरी हिस्से के लिए एक्स्ट्रा ग्रिल।
-  सिर को कवर करने वाली टोपी मजबूत हो।

तो खिलाड़ी ही हैं जान के दुश्मन
ऐसा नहीं है कि क्रिकेट के लिए उच्च तकनीक हेलमेट नहीं बनाए गए हैं। इंग्लैंड की एल्बियॉन स्पोर्ट्स ने एक ऐसा हेलमेट बनाया जो सिर का अधिकतर भाग कवर करता था और इससे टकराने के बाद गेंद आसानी से दूसरी ओर उछल जाती थी लेकिन उसकी बिक्री ही नहीं हुई और कंपनी को अपने उन हेलमेट्स को बाजार से हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके पीछे क्रिकेटरों का नए प्रयोग के लिए तैयार नहीं होना माना गया। कई कंपनियां यह भी कहती हैं कि क्रिकेट के कई दिग्गज ही हेलमेट में नई तकनीक लाने में बाधा बने हुए हैं। ये आधुनिक तकनीक वाले हेलमेट को इस खेल के पारंपरिक सौंदर्य को बिगाड़ने वाला मानते हैं। वहीं कुछ कंपनियों का आरोप है कि क्रिकेट की संस्थाओं को भी इस तरह की हेलमेट्स से परेशानी है। कंपनियों का कहना है , हर देश की क्रिकेट संस्‍थाओं में दिग्गज खिलाड़ियों का ही वर्चस्व है और वह इसके एवज में मोटी रकम चाहते हैं। अगर हम उन्हें मोटी रकम खिलाए तो संभव है कि आधुनिक तकनीक के हेलमेट प्रयोग में आ जाए।  हालांकि हाल ही में आइसीसी ने हेलमेट में नए संशोधनों की सिफारिश की है। हेलमेट में मुंह के समक्ष जाली के बीच की दूरी ज्यादा होने के कई बार गेंद बल्लेबाज की नाक एवं माथे में लग सकती है। ऐसे में आइसीसी ने खेल उपकरण विशेषकर हेलमेट बनाने वाली कंपनियों से और सुरक्षित हेलमेट बनाने की अपील की है।