Thursday 12 February 2015

पांच साल पूरा बवाल


दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के जारी होने के एक दिन बाद मैं संभवतः विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन गेट के बाहर दो लोगों की बातचीत सुन रहा था।  वह निश्चित ही निम्म आय वर्ग के लोग थे। उन्होंने एक दूसरे से  जीत का दंभ भरा। उनके आवाज में एक भारीपन और नशा था। वह भारीपन और नशा ‌भावुकता का नहीं बल्कि अति आत्मविश्वास का था। दरअसल, दोष उनका भी नहीं था। उन्हें आम आदमी पार्टी द्वारा जिस तरह के सपने दिखाए गए उन सपनों के जरिए उन लोगों ने खुद को अंबानी -अदानी की श्रेणी में रखना शुरू कर दिया है। दिल्ली की जनता का केजरीवाल पर यह अति आत्मविश्वास निश्चित ही खतरनाक है।  दिल्ली के चुनावी नतीजों का सबसे अहम पहलू  यह है कि केजरीवाल प्रतीको की राजनीति करने में माहिर हैं। उन्हें मीडिया में खुद को बना कर रखना बखूबी आता है। अहम बात यह है कि उनके फौज में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने कैमरा केंद्रित राजनीति ही की है। ऐसे में मीडिया में बने रहने के लिए एक बार फिर वह केंद्र के साथ आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलाएंगे। मीडिया उन पर और वे मोदी पर हमला करेंगे; फिर धरने को हथयार बनाएंगे। फिर कोई सोमनाथ भारती जैसा मंत्री पुलिस अधिकारी से लड़ जाएगा। असल में केजरीवाल की यह जीत उन्हें तुक्के में मिली है शायद इस जीत का अंदाजा उन्हें भी नहीं था। इस जीत को पचा पाना निश्चित ही उनके लिए आसान नहीं होगा। उनके इतिहास को देखते हुए हम कह सकते हैं कि उनका अहंकार चरम पर जाना तय है। हालांकि जीत के बाद से ही केजरीवाल और उनकी पार्टी के दूसरे नेता लगातार कह रहे हैं कि उनके कार्यकर्ताओं को अहंकार से दूर रहना होगा, लेकिन देखना अहम होगा कि कितना अमल कर पाते हैं। इस 67 विधायकों में अधिकतर वो हैं जो केजरीवाल को कभी भी 'गच्चा' दे सकते हैं।यह भी सच है कि 'आरोप रनर' केजरीवाल  काम की बजाए सत्ता सुख लेने में दिलचस्पी रहेगी और राज्य में नाकामी का ठिकरा हर वक्त केंद्र पर ही फोड़ेंगे।
नतीजों का एक पहलू यह भी है कि केजरीवाल की टीम में ज्यादातर खिलाड़ी राजनीति की पिच पर लंबा अनुभव नहीं रखने वाले हैं। ऐसे में केजरीवाल को खुद के अलावा चुने गए 66 विधायकों की लंबी-चौड़ी फौज भी संभालनी होगी जो  अनुभव हीन केजरीवाल नहीं कर सकते हैं।  दिल्ली चुनाव के नतीजों का बड़ा नुकसान यह है कि विधानसभा में विपक्ष की मौजूदगी न के बराबर होगी। 67 सत्ताधारी विधायकों के बीच तीन विपक्षी विधायकों की आवाज सुनना कई बार बहुत मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में विधानसभा में होने वाली बहसों और कामों के एकतरफा हो जाने का डर बना रहेगा और संयोग यह है कि केजरीवाल अपने आगे किसी की सुनते भी नहीं है।  राजनीति में वादे कमोबेश उसी तरह होते हैं, जैसे किसी पक्षी के लिए पंख। राजनीति की उड़ान के लिए भी वादों के पंखों की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन जब पंख ज़रूरत से ज्यादा बड़े हो जाएं, तो दूर तक उड़ना मुश्किल हो जाता है, इसलिए केजरीवाल सरकार जिन वादों के पंखों के सहारे इस वक्त सातवें आसमान पर है, उसे वे वादे जल्द पूरे भी करने होंगे, वरना जनता पर कतरने में भी वक्त नहीं लगाएगी।  अब पांच साल के लिए मंच सज गया है,  बवाल मचेगा, जनता पछताएगी औरहर दिन नया कांड होगा, इंतजार कीजिए।

दीपक तिवारी

Wednesday 4 February 2015

खत्म हुआ धोनी का गोल्डन टच

विश्वकप शुरू होने में अब बहुत कम दिन बचे हैं। 15 फरवरी को पाकिस्तान के खिलाफ  टीम इंडिया विश्वकप में अपने सफर का आगाज करेगी। लेकिन उससे पहले ही टीम इंडिया बैकफुट पर है। टीम हर मोर्चे पर फेल हो रही है। अहम बात यह है कि टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ही हर मोर्चे पर फेल हो रहे हैं। 2011 विश्वकप के फाइनल मैच में धोनी का विजयी छक्का, 2007 टी-20 विश्वकप के फाइनल में जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर सौंपने का साहसिक फैसला ने धोनी के जज्बे और संयम को दर्शाया लेकिन अब अचानक धोनी की चमक फीकी पड़ गई है।  लंबे समय से धोनी अपनी ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सके हैं। 254 वनडे मैच खेल चुके धोनी ने न जाने कितने मैच में भारत को जीत दिलाई होगी लेकिन अब धोनी का बल्ला शांत है। आखिरी बार धोनी को किसी मैच में फिनिशर की भूमिका निभाते हुए कब देखा गया यह अब किसी को शायद ही याद हो। आखिरी ओवरों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है यह शायद धोनी के दो साल पहले के परफॉर्मेंस से अंदाजा लगाया जा सकता है।  छठे क्रम पर बल्लेबाजी करने के लिए उतरते वाले धोनी का लंबे समय से हेलिकॉप्टर शॉट भी नहीं देखने को मिला है। 

कभी प्रयोगों के लिए मशहूर धोनी की स्थिति यह है कि उनका हर दांव फेल हो रहा है। मसलन, ऑस्ट्रेलिया में ट्राई सीरीज के दौरान जब धोनी ने टेस्ट सीरीज में शानदार प्रदर्शन कर चुके विराट कोहली को नंबर चार पर बल्लेबाजी के लिए भेजा तो वह फेल हुए और क्रिकेट के जानकारों ने माही के इस फैसले को ‘बेवकूफी’ करार दिया। क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ियों ने तो यहां तक कह दिया कि धोनी नए नए प्रयोग कर युवा खिलाड़ी विराट के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यानी टीम इंडिया एक ओर ढेर हो रही है और दूसरी ओर धोनी के फैसले भी गलत साबित हो रहे हैं। एक पहलू यह भी है कि स्पॉट फिक्सिंग मामले में जब से धोनी का नाम उछला है  तभी से उनकी चमक गायब है। वहीं यह भी एक तथ्य है कि 34 साल के धोनी की उम्र बढ़ रही है जिसका असर उनके खेल पर पड़ना स्वाभाविक है। बहरहाल , विश्वकप में अगर टीम इंडिया को खिताब बरकरार रखनी है तो धोनी को अपने पुराने रंग में लौटना ही होगा। 


बेबी से बदलेगा लक : फरवरी में टीम इंडिया और कप्तान धोनी की रूठी किस्मत फिर से लौटकर आ सकती है। क्योंकि खबर है कि कप्तान धोनी जल्द ही पापा बनने वाले हैं। साक्षी धोनी फरवरी माह में विश्वकप के दौरान अपने पहले बच्चे को जन्म दे सकती हैं। बताया जा रहा है कि प्रेग्नेंट होने की वजह से ही साक्षी पिछले 5-6 महीने से कैप्टन कूल धोनी के साथ किसी टूर पर नजर नहीं आईं। इससे पहले वो अकसर टीम इंडिया और कप्तान धोनी को चीयर्स करती मैदान पर नजर आ जाती थीं। खबर ये भी है कि पिछले काफी समय से ज्यादातर वक्त साक्षी धोनी अपने घर पर ही रह रही हैं। बताया तो यह भी जा रहा है कि नवंबर माह में कप्तान धोनी ने साक्षी की प्रेग्नेंसी कारणों से चोट का बहाना बनाया था। जिसके बाद से उन्हें श्रीलंका के खिलाफ घरेलू वनडे सीरीज और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज के पहले टेस्ट मैच में आराम दिया गया था।  बता दें कि पिछले साल इंग्लैंड दौरे पर गई टीम इंडिया के कप्तान धोनी से जब फैमिली प्लान के बारे में मीडिया ने सवाल किए थे तो उन्होंने हंसते हुए कहा था, ‘हम प्रैक्टिस कर रहे हैं’।