Sunday 6 December 2015

किस से किसको डर


 सेंसर बोर्ड का सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है।  'संस्कृति' की रक्षा में कभी-कभी यह किसिंग सीन तक को भी काट देता है। अभी हाल में जेम्स बांड की फिल्म 'स्पेक्टर' के किस‌िंग सीन पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चलाई तो 13 सेकेंड का किस सिर्फ आठ सेकेंड का रह गया।  ऐसे में दर्शकों के जेहन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक आदर्श किस कितने सेकंड का होता है?  कितने सेकेंड के बाद किस को आपत्तिजनक कहा जा सकता है?    

'कुत्ते कमीने, मैं तेरा खून पी जाऊंगा' धर्मेंद्र के मुंह से इस डायलॉग को निकले चार दशक से ज्यादा समय हो चुका है लेकिन आज भी हिंदी सिनेमा का यह सबसे यादगार डायलॉग बना हुआ है। सोचिए, धर्मेंद्र को अगर वर्तमान दौर में यह संवाद बोलना होता तो इसकी सूरत कैसी होती। यह कुछ इस तरह से होता, बीप...बीप...मैं तेरा खून पी जाऊंगा या फिर कुछ और संस्कारी रूप में ऐसा होता, बाबूजी मैं आपका खून पी जाऊंगा। पहली नजर में यह व्यंगात्मक और बिना सिर पैर की बातें हो सकती हैं लेकिन पिछले कुछ समय से सेंसर बोर्ड की 'संस्कारी छवि' की सोशल मीडिया पर कुछ इसी अंदाज में चर्चा हो रही ह‌ै। सेंसर बोर्ड की इस संस्कारी छवि की हालिया ‌शिकार हेट स्टोरी सीरीज की तीसरी फिल्म है लेकिन सुर्खियां बटोरी जेम्स बांड की हालिया रिलीज फिल्म ‘स्पेक्टर’ ने। ‘स्पेक्टर’ के एक किस सीन को 50 फीसदी तक काट दिया गया।  नतीजा यह हुआ कि इस फिल्म में बांड के ‘किस’ इतने छोटे हो गए कि दर्शक एकदम निराश हो गए। फिल्म देखने के बाद उनको मालूम ही नहीं होता कि बांड ‘किस’ कर रहा है कि होठ से होठ मिलाकर कुछ फुसफुसा रहा है। जो जेम्स बांड के प्रशंसक हैं, वह जानते हैं कि उनकी हर फिल्म में जासूसी खलनायकों को जान से मारने, उनके ठिकानों को नेस्तनाबूद करने और सुंदरियों के साथ ‘किस’ करने अथवा संबंध बनाने के बिना पूरी नहीं होती और ये ऐसे ब्रांडीय चिह्न हैं जो अगर न हो तो लगता है कि हम बांड का कोई नैतिक संस्करण देख रहे हैं। भारतीय दर्शकों को बांड को लेकर सेंसर बोर्ड की यह नैतिकता पसंद नहीं आई जिसका सीधा फायदा फिल्म को हुआ। ‘स्पेक्टर’ यहां रिलीज होने के बाद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाते हुए 69 करोड़ रुपये की रिकॉर्डतोड़ कमाई कर ली है। यहां यह बता दें कि ‘स्पेक्टर' की कमाई का आंकड़ा बॉलीवुड की कई बड़े बैनर की फिल्मों की कमाई से कहीं ज्यादा है। सोनी पिक्चर्स इंडिया ने अंग्रेजी, हिंदी, तमिल और तेलुगू भाषा में करीब 1250 स्क्रीनों पर फिल्म को रिलीज किया है।  अगर दुनिया भर की बात करें तो रिलीज होने के 35 दिनों के भीतर ही फिल्म ने कुल मिलाकर 75,191, 6219 डॉलर यानी करीब 50,21,33,03,467 रुपये की कमाई कर ली है। जिससे यह ना केवल लंदन बल्कि दुनियाभर में एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई है।  दर्शकों के जेहन में सबसे बड़ा सवाल यही था कि उन्हें बांड के किस सीन से दूर रखने की कोशिश क्यों की गई? खजुराहो और कामसूत्र की रचना जिस संस्कृति में हुई हो, वहां किसिंग सीन पर कैंची समझ से परे है। ऐसा तो है नहीं कि हमारे यहां के दर्शक आज तक 'अति-उत्तेजित' कर देने वाले किसिंग सीन से आंखे चार न किए हों। इमरान हाशमी से लेकर आमिर खान, करिश्मा कपूर  माधुरी दीक्षित, विनोद खन्ना, ऋषि कपूर तक के किसिंग सीन का 'आंखों-देखा' हाल दर्शक बता सकते हैं। ‌अगर फिल्मों के इतर धारावाहिकों की बात करें तो यहां हर दिन किसी न किसी चैनल पर आपको किस‌िंग सीन देखने को मिल ही जाएंगे। कब इशिता और रमन (सीरियल ये हैं मोहब्बतें ) की लड़ाई किस में बदल जाती है और कब सूरज और संध्या (दीया और बाती हम )का प्यार बिस्तर तक पहुंच जाता है, यह 'सीरियल मरीज' परिवार के किसी भी सदस्य से छुपा नहीं है। तो फिर सवाल लाजिमी है कि ऐसे में किस के मानक और समयावधि को कौन तय करेगा? क्या हमें किस को समझने, समझाने और इसको लेकर दायरे को बढ़ाने की जरूरत है?  खैर, बांड की फिल्म ‘स्पेक्टर’ ने कमाई का कीर्तिमान रच दिया है और पूरा किसिंग सीन यू-ट्यूब पर वायरल भी हो चुका है। इंटरनेट की दुनिया में सेंसर बोर्ड की संस्कारी छवि कारगर साबित होगी अभी तो ऐसा नहीं लग रहा है लेकिन किरकिरी जरूर जारी है। ऐसे मामलों में युवा पहले भी अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं, जब 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व खेलों की आयोजन समिति ने अपनी वेबसाइट पर पर्यटकों को सलाह देते हुए लिखा था ‘पर्यटकों यह पता होना चाहिए कि सार्वजनिक स्थलों पर एक-दूसरे को गले लगाने या किस लेने को भारतीय समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है।’ तब भी ऐसे विचारों का विरोध हुआ था। 2014 में केरल से शुरू हुए ‘किस ऑफ लव’ कैंपेन को कौन भूला जा सकता है। एक 'किस' किस कदर क्रांति में तब्दील हो जाती है यह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। एक कॉफी शॉप में प्रेमी जोड़ों की सरेआम पिटाई के बाद इस अभियान के तहत दिल्ली तक युवाओं ने एक-दूसरे को किस कर विरोध दर्ज कराया था। इसके बावजूद समझने और समझाने का दौर जारी है। किस के वैज्ञानिक तथ्यों को समझें तो होंठ बेहद नाजुक और संवेदनशील अंग होते हैं। किस के दौरान दिमाग के सोमाटोसेंसरी कॉर्टेक्स को सिग्नल मिलता है, जो पार्टनर की भावनाएं समझाने में मदद करता है। शोधकर्ता गॉर्डन गैलप के मुताबिक, जिन संस्कृतियों में चुंबन की परंपरा नहीं है, वहां पार्टनर एक-दूसरे के चेहरे पर चेहरा रगड़कर या नाक से नाक रगड़कर अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं। वह कहते हैं ‘हमें अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है। हर बार किस को अश्लीलता से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।’ लेकिन यह बात समाज को समझने में कितना समय लगेगा यह कहा नहीं जा सकता है। पहलाज निहलानी और टीम ने जेेम्स बॉन्ड के किस सीन पर कैंची चलाकर जो किया वह सही है या गलत इसका फैसला सही मायनों में उस दिन होगा, जिस दिन हम वाकई किस की गहराई को समझने और समझाने से आगे निकलकर इसे अपनाने की ओर बढ़ रहे होंगे। तब तक पता नहीं ...और कितने ‘जेम्स बॉन्ड’ पर कैंची चलेगी।  


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मतलब सिर्फ चूमना नहीं

किस का मतलब सिर्फ चूमना नहीं है, तो फिर क्या है। जैसा कि उन्नीसवीं सदी के वैज्ञानिक हेनरी गिब्सन ने लिखा था, शारीरिक संदर्भ में बात करें तो यह अवरोधिनी मांसपेशियों का निकट संपर्क है।' लेकिन सिर्फ यह वैज्ञानिक परिभाषा किस को समझने के लिए काफी नहीं है। एक किस का क्या क्या मतलब हो सकता है, इस बताने के लिए लाना सित्रोन ने एक पूरी किताब लिख डाली, जिसका नाम है किस का असली मतलब। इस किताब में वह लिखती हैं कि वैज्ञानिक परिभाषाओं से परे कैसे विभिन्न समाजों, फिल्मों, कला और साहित्य में किस के मायने बदलते रहे हैं। यह किताब बताती है कि चुंबन सिर्फ दो प्यार करने वालों की बपौती नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल विभिन्न मकसदों को हासिल करना भी रहा है।

इतिहास है पुराना

प्राचीन रोमन लोग एक चुंबन के साथ किसी भी समझौते पर आधिकारिक रूप से मुहर लगाते थे। पांचवीं सदी में ईसाई अपनी एकजुटता दिखाने के लिए किस किया करते थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि रोमनों से शुरू हुई इस परंपरा में पति यह जांचने के लिए अपनी बेगमों को चूमते थे कि कहीं वह उसकी अनुपस्थिति में शराब तो नहीं पी रही थीं।  इस दिलचस्प इतिहास को पीछे छोड़ते हुए जब हम प्रागैतिहासिक काल में पहुंचते हैं तो यह पाते हैं कि पुरुष या महिला अपने होने वाले पार्टनर के स्वास्थ्य की स्थिति चुंबन से हासिल लार से जानने के लिए चुंबन करते थे।  आलोचकों ने इस नैतिक मूल्यों के लिए खतरा समझते हुए  किसी व्यक्ति के मुंह पर किस करने की बजाय किसी लकड़ी के टुकड़े को किस करने की परंपरा बना डाली। यह परंपरा हजारों साल बाद आज भी जारी है। आज भी लोग धार्मिक साहित्य, क्रूस, पैर, हाथ, अंगूठी, जमीन, भाग्यशाली समझे जाने वाली चीज, ट्रॉफी और यहां तक कि मेंढ़कों को भी चूमते हैं। पशुओं में भी एक दूसरे को चूमने की प्रवृत्ति पाई जाती है। जैविक रूप से इंसानों के सबसे नजदीकी रिश्तेदार बंदर भी एक दूसरे को खूब चूमते हैं। चिंपाजी तो कई बार फ्रेंच किस भी करते देखे गए हैं।

यहां किस करना गुनाह है
वैसे चूमना हर संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा है। दक्षिणी अफ्रीका में संगान लोगों को किस से नफरत है और जब भी वे ऐसा होते देखते हैं तो अपनी नाराजी को जाहिर करने से हिचकते भी नहीं हैं। स्वीडन के लापलैंड इलाके की संस्कृति में भी किस को अच्छी बात नहीं समझा जाता। वहीं कुछ सभ्यताओं में चुंबन को सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है।


बड़ी काम की चीज

वैसे किस करने के काफी फायदे भी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो लोग अकसर किस करते हैं, उन्हें पेट और मूत्राशय से जुड़ी तकलीफें कम होती हैं। उन्हें संक्रमण भी कम ही होता है। किस करना दिल के लिए भी अच्छा होता है। इससे ब्लड प्रेशर कम होता है, मस्तिष्क सक्रिय रहता है, प्रसन्नता के हार्मोन्स पैदा होते हैं और इससे खुद को लेकर जागरुकता भी बढ़ती है। हालांकि प्यार करने वालों को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद उन्हें पता भी न हो कि जब कोई किसी को किस करता है तो उसके लिए चेहरे की 30 मांसपेशियां काम आती हैं। एक किस के लिए दो से छह कैलोरी की जरूरत पड़ती है।  जानकारों का मानना है कि एक चुंबन प्रेम, जोश, एक दूसरे के प्रति सम्मान, खुशआमदीद, दोस्ती और शांति जैसी भावनाएं जाग्रत करता है। अध्ययन बताते हैं कि कोई किसी को बेवजह किस नहीं करता। इसके पीछे कोई न कोई वजह होती है। सिर्फ मजे के लिए ही किस नहीं किया जाता। खास कर महिलाएं यह बात परखने के लिए किस करती है कि संभावित पार्टनर कितनी दूर तक साथ देगा, वहीं पुरुष महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाने की संभावनाएं बढ़ाने के लिए किस का इस्तेमाल करते हैं।


अधिक समय तक जीते हैं चुंबन करने वाले

चिकित्सा वैज्ञानिकों का मानना है कि चुंबन के दौरान जब दोनों की जीभ एक दूसरे से टकराती है तो मुंह में एक के बाद एक कई प्रक्रियाएं सक्रिय हो जाती हैं। इससे रोग निरोधक शक्ति को बढ़ावा मिलता है। मुंह में एक्स्ट्रा सलाइवा रह जाता है वह दांतों में जमे प्लॉक को तोड़कर हटाने में सहायक होता है।  हाल ही में आए एक शोध अध्ययन से मालूम हुआ है कि जो कपल हर दिन सुबह एक दूसरे का चुंबन लेते हैं वे दूसरों की तुलना में पांच साल तक अधिक जीते हैं। प्रेम के आवेग में लिए गए चुंबन से तनाव घट जाता है, कॉर्टीसॉल स्ट्रेस हारमोन कम हो जाते हैं। चेहरे की मांसपेशियां ढीली नहीं पड़तीं और गाल लटकने की समस्या खड़ी ही नहीं होती। चुंबन हार्ट की सेहत के लिए भी अच्छा है क्योंकि चुंबन दिल की धड़कनों की गति बढ़ा देता है, इससे पूरे शरीर में खून का संचार तेज हो जाता है। चुंबन के दौरान प्राकृतिक एंटिबायोटिक्स का स्राव शरीर में अपने आप बढ़ जाता है। चुंबन के बाद शरीर में रह गए थूक में इस तरह का एक एंटीसेप्टिक रसायन भी मौजूद रहता है जो पीड़ा और दर्द को कम करने में मददगार साबित होता है। इसीलिए कहा है कि अच्छे और रसीले चुंबन से उत्पन्न एंडोर्फिन हारमोन मॉर्फीन नामक तेज दर्द निवारक से भी ताकतवर होते हैं।


कैसा हो किस, गीला या सूखा ?
कपल्स की चुंबन को लेकर अलग-अलग राय है। कपल्स भी कई बार एक मत नहीं होते। महिला चाहती है कि वह सूखे चुंबन से संतुष्ट है जबकि पुरुष गीला चुंबन चाहता है। जाहिर है कि इन दोनों के बीच जब भी चुंबन की स्थिति बनेगी वह एक किस्म के तनाव को जन्म देगी। कई कपल गीला चुबंन तो चाहते हैं लेकिन जीभों का आपस में संघर्ष करना उन्हें ठीक नहीं लगता है। कुछ महिलाएं खासकर भारतीय परिवेश में चुंबन को गैर जरूरी मानती हैं। उनकी नजर में सेक्स से चुंबन का कोई लेना देना नहीं होता तो फिर क्यों बेवजह चुंबन करें। कपल्स अंततः उसी नतीजे पर आकर रुकें जिसमें दोनों पार्टनर सहमत हों,फिर चुंबन सूखा रहे तो रहे उससे क्या फर्क पड़ता है?
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चुंबन के प्रकार

बटरफ्लाय किस - जब आप भरी महफिल में अपने साथी को चूमना चाहते हैं तो चूमने का यह तरीका आपकी काफी मदद कर सकता है। इसके लिए सबसे पहले आप अपने साथी की ओर लगातार देखें, जब तक उसका ध्यान आपकी ओर न पहुंच जाए। इसके बाद अपनी पलकें बार-बार झपकाएं। यदि आप इसे ठीक से करते हैं तो आपकी महबूबा आपके इशारे को आसानी से समझ जाएंगी।

फ्रेंच किस - अपनी रोमांटिक भावना को प्रिय तक पहुंचाने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका। इस प्रकार का चुंबन आत्मीय चुंबन कहलाता है। इस प्रकार का चुंबन लेने के लिए अपनी उनको नजदीक लाकर अपनी और उनकी जीभ को टकराया जाता है। दरअसल इसमें जीभ ही महत्वपूर्ण रहती है। उत्तेजना को बढ़ाने वाले इस चुंबन को अधिकतर लोग अपनाते हैं और सही तरीके से अंजाम देते हैं।

एस्किमो किस - चूमने का यह तरीका कुछ हटकर है, जो आपको प्रेम के साथ-साथ थोड़ा मजा भी दिलाएगा। इसके लिए अपने साथी के चेहरे को हाथों में लेकर नाक को आपस में धीमे-धीमे स्पर्श करें। याद रखें ये क्रिया इतनी धीमे से होनी चाहिए कि इसके माध्यम से होने वाली अनुभूति आप महसूस कर सकें।

फ्रीज/मेल्ट किस - यकीनन किस करने का यह तरीका आपके रोमांटिक मूड में न केवल वृद्धि करेगा बल्कि रोमांस में थोड़ी सी मस्ती भी भर देगा। इसके लिए आप अपने मुंह में बर्फ का एक छोटा सा टुकड़ा रखें। अब अपनी मेहबूबा को चूमें और बर्फ का ये टुकड़ा उनके मुंह में डाल दें। इस क्रिया को दोनों दोहराएं। यह नए तरीके का फ्रेंच किस आपको चूमने का दोहरा मजा देगा।

ईयरलोब किस - ईयरलोब यानी की कानों का सिरा। जब आप अपनी मेहबूबा के नाजुक से कानों के नाजुक से किनारों को चूमते हैं तो उनका रोमांटिक मूड अचानक बढ़ जाता है क्योंकि ये ऐसी जगह है, हां चूमकर आप उनकी उत्तेजना को और बढ़ा देते हैं। लेकिन आपको सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि इसे एकदम धीमे से और नजाकत से करें। अपनी सांसों पर पूरा नियंत्रण रखें।

कुछ अन्य

गालों पर चुंबन, हाथों पर चुंबन , माथे पर चुंबन

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यह भी है खास

टेक्सास के मशहूर मानवशास्त्री वॉन ब्रायंट ने चुंबन या किस पर लंबा शोध किया और पाया कि ऐसी किसी क्रिया के सबसे पहले लिखित प्रमाण 3,500 साल पुराने वेद, पुराणों और संस्कृत पाण्डुलिपियों में मिलते हैं।

2008 में दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन के पास किस करते पाए गए एक विवाहित जोड़े पर अश्लीलता फैलाने के आरोप में मुकदमा जड़ दिया गया। इस बार अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए साफ किया कि प्रेम जताना कोई गैरकानूनी काम नहीं हैं।

अमेरिकी मानवशास्त्री वॉन ब्रायंट बताते हैं कि किस शब्द की उत्पत्ति भी प्राचीन भारत में ही हुई होगी। प्राचीन काल में किसिंग को बूसा या बोसा भी कहा गया, जिससे इसका प्राचीन लैटिन नाम बासियम निकला। इसका आधुनिक जर्मन नाम कुस और अंग्रेजी नाम किस भी यहीं से निकला।

06 जुलाई को विश्व किस डे मनाया जाता है।
12 फरवरी को वैलेंटाइन वीक का किस डे मनाया जाता है।
10  सेकंड के एक चुंबन के दौरान करीब आठ करोड़ जीवाणु चुंबन करने वालों के मुंह में चले जाते हैं। नीदरलैंड के वैज्ञानिकों का एक दल इस नतीजे पर पहुंचा है।

700 प्रकार के जीवाणु करोड़ों की संख्या में मौजूद होते हैं इंसान के मुंह में लेकिन इनमें से कुछ ही ज्यादा तेजी से स्थानांतरित होते हैं।

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बॉलीवुड के विवादित किस

देविका और हिमांशु
1933 में आई हिन्दी फिल्म “कर्मा” में उस समय की मशहूर अदाकारा देविका रानी ने पर्दे पर एक्टर और असली जीवन में अपने पति हिमांशु राय को किस किया था। जिसको लेकर काफी बवाल मचा और महात्मा गांधी ने हिमांशु राय को पत्र भी लिख डाला। 


शिल्पा शेट्टी और रिचर्ड गियर
बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी कुंद्रा की प्रसिद्धि के यूं तो कई कारण हैं, जिनसे कभी उन्हें पॉजिटिव पब्लिसिटी मिली तो कभी नकारात्मक अनुभवों का सामना करना पड़ा। शिल्पा ने साल 2007 में एक किस को लेकर सुर्खियां बटोरी थीं। दिल्ली में एड्स जागरूकता अभियान के तहत जब मंच पर अमेरिकी अभिनेता रिचर्ड गेरे ने शिल्पा को किस किया तो उन्हें खूब आलोचना का शिकार होना पड़ा। हालांकि, बाद में रिचर्ड ने पूरे देश से माफी मांग ली थी। मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि राजस्थान की एक स्थानीय अदालत ने शिल्पा शेट्टी और रिचर्ड गेरे के खिलाफ गिरफ्तारी के आदेश भी दे दिए थे।


सिद्धार्थ माल्या और दीपिका पादुकोण
बात अप्रैल 2013 की है। कोलकाता के ईडन गार्डन स्टेडियम में आईपीएल टीम रॉयल चैलेंजर बंगलूरू और कोलकाता नाइट राइडर्स के बीच मैच चल रहा था। दीपिका, सिद्धार्थ माल्या के साथ बैठकर खेल का मजा ले रही थीं। जैसे ही रॉयल चैलेंजर ने नाइट राइडर्स पर अपनी जीत दर्ज की, सिद्धार्थ ने दीपिका को किस कर लिया। सिद्धार्थ माल्या द्वारा सरेआम दीपिका को किए गए किस ने खूब सुर्खियां बटोरीं।


शाहरुख खान और जोनाथन रॉस

बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान भी किसिंग कॉन्ट्रोवर्सी से नहीं बच सके। बात तब की है जब जोनाथन रॉस का रियलिटी शो काफी पॉपुलर हो रहा था और किंग खान को इस शो में एक अतिथि के रूप में बुलाया गया था। एसआरके के इस शो में हिस्सा लेने के बाद सोशल मीडिया पर एक तस्वीर शेयर हुई, जिसमें वे एक शख्स को स्मूच करते दिखाई दे रहे थे। यह तस्वीर तेजी से सोशल मीडिया के साथ-साथ वर्ल्ड मीडिया में छाने लगी। कई लोग इसे मात्र फोटोशॉप की कलाकारी मान रहे थे।


पद्मिनी कोल्हापुरे ने किया प्रिंस चार्ल्स को

अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे के द्वारा किया गया एक किस आज भी बॉलीवुड के इतिहास में सबसे विवादित रियल किस में गिना जाता है। 1980 में प्रिंस चार्ल्स भारत दौरे पर आए थे। हालांकि, प्रिंस के चारो ओर z-सिक्युरिटी थी, लेकिन किसी बात की परवाह किए बगैर पद्मिनी ने उनके गाल पर किस किया था। फिर क्या, कई दिनों तक यह मामला पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना रहा।


राखी सावंत और मीका सिंह

मॉडल और एक्ट्रेस राखी सावंत सिंगर मीका सिंह के बीच विवाद की शुरुआत एक किस से हुई थी। बात साल 2006 की है, जब राखी, मीका की बर्थ डे पार्टी में गई थीं। पार्टी में मीका ने राखी सावंत को किस कर डाला। फिर क्या, राखी का पारा सातवें असामान पर पहुंच गया। उन्होंने मीका द्वारा किए गए इस किस पर आपत्ति जताई। इतना ही नहीं, उन्होंने इस घटना की शिकायत पुलिस में भी की और मीका पर जबरदस्ती किस करने और छेड़छाड़ के आरोप लगाए।


क्रिस्टियानो रोनाल्डो और बिपाशा बसु

फुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो, जो पुर्तगाल टीम के लिए खेलते हैं, बंगाली बाला बिपाशा बसु संग किस को लेकर खूब चर्चा में रह चुके हैं। साल 2007 में दोनों की एक ऐसी तस्वीर मीडिया में आई थी, जिसमें व‌ह एक-दूसरे को किस कर रहे थे। दरअसल, यह तस्वीर एक पार्टी के दौरान खींची गई थी, जिसके सामने आने के बाद खूब हंगामा हुआ था। बिपाशा के कैरियर के ढलान की वजह इस किस को भी माना जाता है।


महेश भट्ट और पूजा भट्ट

डायरेक्टर-प्रोड्यूसर महेश भट्ट का बेटी पूजा भट्ट के साथ एक मैगजीन के लिए कराया गया फोटोशूट सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा था। सालों पहले स्टारडस्ट मैगजीन के लिए उन्होंने पूजा के साथ लिपलॉक सीन दिया था। ये फोटोशूट स्टारडस्ट मैगजीन ने करवाया था, जिसे उसने कवर पेज पर छापा था। इस फोटो ने इतना विवाद खड़ा किया कि पूजा और महेश भट्ट, दोनों ने इस फोटो को फेक बताया। अब सच्चाई क्या है, ये तो वही जानें। एक बार महेश ने तो यहां तक कह दिया था कि पूजा उनकी बेटी ना होतीं तो वो उससे शादी भी कर लेते।

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जब सोशल म‌ीडिया पर छाया संस्कारी जेम्स बांड
 "संस्कारी" जेम्स बॉन्ड सूट बूट नहीं धोती कुर्ता पहनता है और रथ पर चलता है
"संस्कारी" जेम्स बॉन्ड सिगार की जगह जेम्स बॉन्ड अब अगरबत्ती लेकर चलेगा
  "संस्कारी" जेम्स बॉन्ड  अब शुद्ध हिंदी बोलेगा
  "संस्कारी" जेम्स बॉन्ड   शराब की जगह नारियल का पानी पीएगा
 "संस्कारी" जेम्स बॉन्ड    उनका फोन स्वास्तिक के पैटर्न से अनलॉक होगा
"संस्कारी" जेम्स बॉन्ड    अपनी नई कार लाने से पहले उसके सामने नारियल फोड़ेगा
   "संस्कारी" जेम्स बॉन्ड  किसी भी मिशन पर जाने से पहले दही शक्कर खाएगा
    किसी को मारने के लिए गन नहीं त्रिशूल का इस्तेमाल करेगा
    जेम्स बॉन्ड साइकिल से चलेगा





दीपक कुमार

Sunday 29 November 2015

दोधारी तलवार है शोहरत का सौदा





किसी भी ब्रांड के लिए आमिर खान का साथ भरोसे की गारंटी रहा है लेकिन इस बार स्नैपडील को यही भरोसा कुछ महंगा पड़ गया। दरअसल, असहिष्णुता पर आमिर खान से नाराज कुछ लोगों ने अपने फोन से स्नैपडील के ऐप डिलीट करके इसका प्रचार भी शुरू कर दिया। इससे एक बात तो साफ है कि सेलिब्रेटी के कोई भी अच्छी हरकत या बयान से अगर ब्रांड को फायदा तो नकारात्मक बात से ब्रांड को नुकसान भी पहुंच सकता है।


हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान के देश छोड़ने संबंधी बयान के बाद मचे बवाल के बीच एक युवा ने ट्विटर पर ट्वीट किया, 'असहिष्णुता के क्या मायने होते हैं यह कोई स्नैपडील से पूछे'। यूं तो यह एक मजाकिया ट्वीट था लेकिन इसने स्नैपडील की बेबसी को बखूबी जाहिर कर दिया। दरअसल, आमिर खान ई - कॉमर्स कंपनी स्नैपडील के ब्रांड एंबेसडर हैं। आमिर की असहिष्णुता के बयान से इत्तेफाक न रखने वाले लाखों लोग अपने मोबाइल से ‘अवार्ड वापसी’ की तर्ज पर 'ऐप वापसी' नाम से विरोध कर रहे हैं। इस विरोध के तहत लोगों ने अपने स्मार्टफोन से ऐप डिलीट करना शुरू कर दिया है।  इस घटनाक्रम से अब यह आंका जाने लगा है कि स्टार्स की प्रसिद्घि कैश करवाने की रणनीति जब उलटी पड़ती है तो कितना नुकसान कर सकती है? दरअसल, अपने प्रॉडक्ट का विज्ञापन करने के लिए कंपनियां बड़े - बड़े फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों को ब्रांड एंबेसडर बनाती हैं, जिससे प्रॉडक्ट की सेल बढ़े लेकिन प्रॉडक्ट फेल हो या फिर उसका विज्ञापन करने वाला सितारा, खामियाजा एक - दूसरे को तो उठाना ही पड़ता है। मसलन, मैगी की छवि खराब हुई तो उसका नुकसान उसके ब्रांड एंबेसडर्स को भी उठाना पड़ा था।  स्थिति यह हुई कि मैगी के ब्रांड एंबेसडर अमिताभ बच्चन और माधुरी दीक्षित के अलावा कई साल पहले विज्ञापन छोड़ चुकी प्रिटी जिंटा भी इस लपेटे में आ गईं। अब आमिर पर कीचड़ उछला है तो छींटे स्नैपडील पर भी पड़ने ही थे। खतरा सिर्फ इतना भर नहीं है। आमिर प्रकरण ने भारतीय ऑनलाइन समुदाय को विरोध करने के लिए ट्विटर और फेसबुक के साथ एक नया और सबसे घातक प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध करवाया है और वह गूगल प्ले स्टोर पर ऐप के पेज पर नेगेटिव रिव्यू देना। एक दिन में आमिर के वक्तव्य से गूगल प्ले स्टोर पर स्नैपडील को 32,000 से ज्यादा सिंगल स्टार ( नेगेटिव रेटिंग) मिले हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इस खतरनाक ट्रेंड से बाजार के दिग्गज चकित हैं और कई तो डर भी गए हैं।  यही कारण है कि प्रतिद्वंद्वी दिग्गज एक साथ खड़े हुए हैं और  #ऐपवापसी जैसे ट्रेंड को आगे बढ़ने से रोकने में एक जुट हो जाते हैं। कभी ट्विटर पर स्नैपडील को घेरने वाले फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापक और सीईओ सचिन बंसल कहते हैं कि ब्रांड एंबेसडर की बात का विरोध करने के लिए कंपनी को निशाना बनाना बेतुका है। उनका कहना है कि जरूरी नहीं कि ब्रांड या कंपनी अपने ब्रांड एंबेसडर की निजी राय से इत्तफाक रखें, लिहाजा स्नैपडील के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। दरअसल,  फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी कंपनियां बाजार के इस नए ट्रेंड को आगे नहीं बढ़ने देना चाहती हैं और चाहेंगी भी क्यों? जहां एक ओर ब्रैंड वैल्यू बनाने में करोड़ों रुपये और सैकड़ों दिन लग जाते हैं, वहीं दूसरी ओर इनके ब्रांड एंबसेडर नादानी में अपनी जुबान खोलकर इनका बाजार खराब कर देते हैं। अभी कुछ माह पहले की ही बात है जब एयरटेल और नेट न्यूट्रलिटी के पक्ष में जैसे ही फ्लिपकार्ट ने कदम बढ़ाए तो ऑनलाइन सोशल प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर और गूगल प्ले स्टोर पर फ्लिपकार्ट को काफी विरोध झेलना पड़ा था। लोगों ने तब गूगल प्ले स्टोर पर फ्लिपकार्ट को धुआंधार नेगेटिव रेटिंग से भर दिया था और फ्लिपकार्ट ने तुरंत इस मुद्दे से अपने को अलग करने का बयान दे दिया।  फ्लिपकार्ट के मालिक बंसल बंधु तब मार्केट की इस नई प्रतिक्रिया से  हैरान रह गए थे स्थिति की गंभीरता को समझे बगैर बंसल बंधु हड़बड़ाहट में समझौता कर गए और आज जब उसी हालात में अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी को देखा तो उसके बचाव में आकर खड़े हो गए। केवल बंसल की ही यह राय नहीं है। वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के मुख्य परिचालन अधिकारी सी एम सिंह भी मान रहे हैं कि कंपनी इस तरह के घटनाक्रम पर अब करीबी नजर रखेंगी।  एक बात तो साफ है, जब भी कोई चर्चित हस्ती कुछ कहती है तो उसका बड़ा असर होता है। आखिरकार वह हस्ती किसी न  किसी ब्रांड का प्रचार कर रही है। उनकी कोई भी अच्छी हरकत या बयान से अगर ब्रांड को फायदा तो नकारात्मक बात से ब्रांड को नुकसान भी पहुंच सकता है।


1,20, 000 ः ग्राहक लगभग स्नैपडील ऐप्लिकेशन की रेटिंग घटा चुके हैं 
07ः  लाख ग्राहकों ने अपने मोबाइल फोन से इस ऐप्लिकेशन को हटा दिया है, ऐसा ट्विटर पर दावा किया जा रहा है
32,000 ः से ज्यादा सिंगल स्टार ‌मिला स्नैपडील को आमिर खान के विवादित बयान के एक दिन के भीतर
25 ः से 100 रुपये प्रति यूजर तक खर्च करने पड़ते हैं एक ऐप को इनस्टॉल करवाने के लिए किसी ई-कॉमर्स कंपनी को
700 ः करोड़ डॉलर की ई- कॉमर्स कंपनी है स्नैपडील
23ः नवंबर 2015 तक स्नैपडील की डेली स्टार रेटिंग जहां  3.763 थी, वहीं आमिर के बयान के बाद 1.218 तक पहुंच गई।
30 ः करोड़ का आमिर खान ने स्नैप डील कंपनी के साथ करार किया है।

कैसे पड़ता है असर
दरअसल, जब ई- कॉमर्स कंपनियां  स्नैपडील के गूगल प्ले स्टोर पेज पर कोई नया यूजर अगर इस तरह नेगेटिव कमेंट देखेगा तो ऐप इनस्टॉल ही नहीं करेगा। इसके अलावा जब स्नैपडील ग्राहक सेवा केंद्र में ग्राहक बातचीत करता है तो उसके 24 घंटे के भीतर कॉल करने वाले ग्राहक के पास कंपनी की ओर से रेटिंग के लिए कॉल आता है। यह रेटिंग एक से पांच तक की होती है। कम रेटिंग सेलेक्ट करने पर कंपनी के ग्रोथ रेटिंग पर असर पड़ता है। 


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विवाद पर आमिर के वक्तव्य
' मैं अब भी अटल हूं'
सबसे पहले मैं एक बात साफ करना चाहूंगा कि न मेरा और न ही मेरी पत्नी का इरादा यह देश छोड़ने का है। हमारा न कोई ऐसा इरादा था, न है और न रहेगा। जो कोई भी ऐसी बात फैलाने की कोशिश कर रहा है, उसने या तो मेरा साक्षात्कार नहीं देखा या फिर जानबूझकर गलतफहमी फैलाना चाह रहा है। भारत मेरा देश है और मैं इससे बेइंतहा प्यार करता हूं, यही मेरी सरजमीं है। दूसरी बात यह कि इंटरव्यू के दौरान जो भी मैंने कहा, उस पर मैं अब भी अटल हूं। जो लोग मुझे देशद्रोही कह रहे हैं उनसे मैं कहूंगा कि मुझे हिंदुस्तानी होने पर गर्व है। इस सच्चाई के लिए मुझे न किसी के इजाजत की जरूरत है और न ही किसी के सर्टिफिकेट की। मैंने अपने दिल की बात कही और लोग इस वक्त मुझे भद्दी गालियां दे रहे हैं। गालियां देने वालों से मैं कहना चाहूंगा कि मुझे बड़ा दुख है कि मेरा कहा वह सच साबित कर रहे हैं। मैं उन सारे लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जो आज इस वक्त मेरे साथ खड़े हैं। हमें हमारे इस खूबसूरत और बेमिसाल देश के खूबसूरत चरित्र को सुरक्षित रखना है। हमें सुरक्षित रखनी है इसकी एकता, इसकी अखंडता, इसकी विविधता, इसकी सभ्यता और इसकी संस्कृति। हमें देश के इतिहास, अनेकांतवाद, भषाई बहुलता, प्यार, संवेदनशीलता और इसकी जज्बाती ताकत को सुरक्षित रखना है।

मैं अंत में रबिंद्रनाथ टैगोर की एक कविता दोहराना चाहूंगा, कविता नहीं बल्कि यह एक प्रार्थना है।
 ‘जहां उड़ता फिरे मन बेखौफ और सिर हो शान से उठा हुआ/जहां ज्ञान हो सबके लिए बेरोकटोक बिना शर्त रखा हुआ/जहां घर की चौखट से छूती सरहदों में न बंटा हो जहान/जहां सच की गहराइयों से निकले हर बयान/जहां बाजुएं बिना थके लकीरें कुछ मुकम्मल तराशें/जहां सही सोच को धुंधला न पाए उदास मुर्दा रवायतें/जहां दिलो-दिमाग तलाशें नए खयाल और उन्हें अंजाम दें/ऐसी आजादी के स्वर्ग में, ऐ भगवान, मेरे वतन की हो नई सुबह। जय हिंद।
आमिर खान






तल्ख रिश्तों का इतिहास पुराना है!
ये पहला मौका नहीं है, जब आमिर खान और मोदी या फिर बीजेपी के बीच तलवारें खीची हैं। अगर ये कहा जाए कि दशक भर से ये सिलसिला चल रहा है, तो गलत नहीं होगा। इसकी शुरुआत हुई थी वर्ष 2006 के अप्रैल महीने में। आमिर खान अपनी फिल्म ‘रंग दे बसंती’ के साथी कलाकारों के साथ 15 अप्रैल 2006 के दिन दिल्ली के जंतर मंतर पर पहुंचे थे और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर के साथ जा बैठे। मेधा पाटकर गुजरात के केवड़िया में नर्मदा नदी पर बन रहे सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध कर रही थीं। आमिर ने भी मेधा के सुर में सुर मिलाते हुए बांध की ऊंचाई बढ़ाने का ये कहते हुए विरोध किया कि जब तक विस्थापित किसानों का सही ढंग से पुनर्वास नहीं हो जाता, तब तक बांध की उंचाई बढ़ाया जाना गलत है। इसे लेकर गुजरात में हाहाकार मच गया। हालात ये बने कि गुजरात के ज्यादातर हिस्सों में ‘रंग दे बसंती’ का प्रदर्शन रोकना पड़ा। कई जगह तोड़फोड़ हुई। उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस विवाद के कुछ माह बाद ही आमिर खान ने वडोदरा की एक घटना को आधार बनाकर बीबीसी को दिए इंटरव्यू में मोदी सरकार और राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना कर डाली। साथ ही उन्होंने 2002 गुजरात दंगे में राज्य सरकार की भूमिका को भी कठघरे में ला दिया।
इसी दौरान आमिर खान की एक और फिल्म ‘फना’ रिलीज हुई लेकिन गुजरात में इस फिल्म का प्रदर्शन नहीं हो पाया।  आमिर खान और गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार के बीच टकराव का सिलसिला तब और बढ़ा, जब आमिर की मशहूर फिल्म ‘लगान’ में चिंकारा का इस्तेमाल होने संबंधी मामले की जांच गुजरात के वन विभाग ने तेज की। दरअसल आमिर खान की इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग वर्ष 1999-2000 के बीच गुजरात के कच्छ जिले में ही हुई थी। इसी फिल्म के एक दृश्य को फिल्माने के लिए आमिर खान की तत्कालीन पत्नी रीना ने आमिर खान प्रोडक्शन के बैनर तले गुजरात के वन विभाग को पत्र लिखकर चिंकारा के इस्तेमाल की अनुमति सितंबर 1999 में मांगी थी लेकिन वन विभाग ने इसकी इजाजत नहीं दी।  आमिर और मोदी के कड़वे संबंधों के बीच बड़ा टर्न 2014 में आया। मई 2014 में मोदी की अगुआई में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी। 23 जून 2014 को आमिर खान प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए उनके ऑफिस गए और बाद में खुद ही इस मुलाकात की तस्वीर ट्वीट की, साथ मे ये जानकारी भी दी कि उनके ‘वोट फॉर चेंज’ कैंपेन के संबंध में पीएम मोदी से बातचीत हुई। साथ में आमिर ने मोदी के प्रति आभार भी जताया कि उन्होंने मुलाकात के लिए लंबा समय दिया।

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जब सेलिब्रेटी से अलग ‌हुई कंपनी

जस्टिन गैटलीन - अमेरिका के धावक जस्टिन गैटलिन पर 2004 एथेंस ओलंपिक में डोपिंग टेस्ट में फेल होने की वजह से चार साल का बैन लगा। इसका असर यह हुआ कि स्पोर्ट्स की बड़ी कंपनी नाइके ने उनसे करार तोड़ लिया।  
आस्कर पिस्टोरियस - जब 2013 में दक्षिण अफ्रीका के पैरालिंपिक एथलीट ऑस्कर पिस्टोरियस पर प्रेमिका रीवा स्टीनकैंप के खून का आरोप लगा तब स्पोर्ट्स कंपनी ओकले ने उनसे नाता तोड़ लिया वहीं नाइके ने भी अनुबंध को आगे नहीं बढ़ाया।
ओ जे सिंपसन  - मशहूर फुटबॉलर और अमेरिकन मूवी स्टार सिंपसन को कैलिफॉर्निया में पूर्व पत्नी और उसके दोस्त की हत्या और कसीनो में डकैती के अपराध में गिरफ्तार किया गया। इस घटना के बाद अमेरिका की हार्टज कार कंपनी ने सिंपसन से करार तोड़ दिया। इस कंपनी से सिंपसन को हर साल पांच लाख डॉलर यानी करीब 3.50 करोड़ रुपये की आमदनी होती थी। 

स्टेफनी राइस - ऑस्ट्रेलिया की तीन बार ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता तैराक स्टेफनी राइस से जगुअर कार कंपनी ने तब दूरी बना ली जब उन्होंने 2010 में समलैंगिकों के विरोध में ट्वीट किया। यह कंपनी उन्हें करीब एक लाख डॉलर का भुगतान करती थी।

माडोना - अमेरिका की पॉप स्टार माडोना से 1989 में पेप्सी ने करार तोड़ लिया। माडोना ने उस दौरान चर्च और कैथोलिक समुदाय के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
माइक टायसन - 1988 में पत्नी द्वारा गाली - गलौच के आरोप के बाद मुक्केबाज माइक टायसन से पेप्सी ने करार तोड़ लिया।
लांस आर्मस्ट्रांग  - डोपिंग में फंसने के बाद लांस आर्मस्ट्रांग से नाइके, ट्रेक साइकल्स, एफआरएस जैसी बड़ी कंपनियों ने करार तोड़ लिया।
टाइगर वुड्स  -  2010 में सेक्स स्कैंडल में फंसने के बाद अमेरिका के दिग्गज गोल्फर टाइगर वुड्स से पेय पदार्थ कंपनी गेटोरेड जीएम ने करार तोड़ लिया।
माइकल फेलेप्स  - एयरपोर्ट के बाहर स्मोकिंग करते हुए अमेरिका के स्टार तैराक फेलेप्स की तस्वीर सार्वजनिक होने के बाद खाद्य प्रोडक्ट केलॉग ने उन्हें अपना एंबेसडर बनाने से इन्कार कर दिया।
सलमान खान - 2001-02 में सलमान की गाड़ी से फुटपाथ पर सो रहे एक मजदूर की कुचलकर मौत हो गई, चार घायल हो गए। इस घटना के बाद थम्सअप कोल्ड ड्रिंक ने  सलमान खान से करार तोड़ लिया । 
संजय दत्त  -  मुंबई की टाडा अदालत ने 2007 में संजय दत्त को आर्म्स एक्ट के तहत छह साल कैद की सजा सुनाई । इस घटना के बाद कोलकाता की गारमेंट्रस कंपनी रूपा ने उनसे करार तोड़ लिया।
अमिताभ बच्चन - आईफा से जुड़े रहे अमिताभ बच्चन 2010 में इस बड़े फिल्म उत्सव से अलग हो गए। दरअसल, श्रीलंका में तमिलों के साथ दुर्व्यवहार को लेकर साउथ इंडियन फिल्म चेम्बर ऑफ कॉमर्स के विरोध के बाद उन्होंने डर कर यह फैसला लिया। 2010 में आईफा का आयोजन श्रीलंका में ही हुआ था।
कैट मोस - माडल कैट मोस को हवाई अड्डे पर स्मोकिंग करते हुए पकड़ा गया। जिसके बाद उनसे ट्रेवन कार कंपनी ने करार तोड़ लिया।
वायने रूनी - इंग्लैंड के फुटबॉलर रूनी को 2010 में पेप्सी ने नाता तोड़ लिया। रूनी पर पत्नी को धोखा देने का आरोप लगा था। 
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कुछ अन्य विज्ञापन जिसके
फांस में फंसे कलाकार…

विज्ञापनः किसान चैनल
विवादः जुलाई, 2015 विज्ञापन के बदले अमिताभ बच्चन पर 6.31 करोड़ रुपये लेने का आरोप
मामल - केंद्र सरकार ने मई में ही किसान चैनल लॉन्च किया है। इसके विज्ञापन के लिए बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन को लिया गया था। दावा है कि बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन ने किसान चैनल का विज्ञापन करने की लिए फीस ली है। जबकि अमिताभ बच्चन ने खुलासा किया उन्होंने कोई फीस नहीं ली है।

कल्याण ज्वैलर्स
विवादः अप्रैल, 2015 में नस्लभेदी और बाल मजदूरी को बढ़ावा देने का आरोप लगा।
क्या था मामला
अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन ने कल्याण ज्वैलर्स के साथ 10 करोड़ रुपए सालाना में करार किया था। उन पर आरोप लगे थे कि ये विज्ञापन ‘नस्लीय’ होने के अलावा बच्चों की गुलामी को बढ़ावा देता है। इस विज्ञापन में आभूषणों से लदी ऐश्वर्या राय के पीछे एक दुबले-पतले सांवले रंग के बच्चे को लाल रंग की छतरी उठाए हुए दिखाया गया था। सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक ग्रुप ने ऐश्वर्या को लिखे पत्र में इस तस्वीर को ‘बेहद आपत्तिजनक’ बताया था। विज्ञापन पर मचे बवाल के बाद कल्याण ज्वैलर्स ने अपने फेसबुक पेज पर माफीनामा जारी किया था।

थम्सअप
विवादः मई, 2015 में बोतल पर नहीं प्रिंट थी फ्लेवर की जानकारी। सैंपल ब्रांडिंग में फेल
क्या था मामला
एमपी में गुना के खाद्य एवं औषधि विभाग ने थम्सअप के सैंपल लेकर उसे जांच के लिए भोपाल की सरकारी लैब में भेजा था। जांच में सामने आया कि थम्सअप ने अपनी बोतल पर फ्लेवर की जानकारी प्रिंट नहीं की है। ग्राहकों को नहीं पता कि वह थम्सअप के रूप में क्या पी रहे हैं। इसके बाद खाद्य एवं औषधि विभाग ने बॉलीवुड कलाकार सलमान खान, अक्षय कुमार और साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के हीरो महेश बाबू को नोटिस थमाया था।

हिमामी फेयर एंड हैंडसम क्रीम
 विवादः 2013 में इस विज्ञापन में शाहरुख मर्दों को गोरा करने की क्रीम के फायदे गिनाते नजर आए थे। इसके बाद शाहरुख पर रंगभेद का आरोप लगा था।
क्या था मामला
लगभग दो साल पहले शाहरुख खान ने एक फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन किया था, जिसपर विवाद खड़ा हो गया था। शाहरुख इस विज्ञापन में मर्दों को गोरा करने की क्रीम के फायदे गिनाते हुए नजर आते थे। इस विज्ञापन के खिलाफ एक ऑनलाइन कैंपेन ‘डार्क एंड ब्यूटीफुल’ शुरू हो गया था। इसके बाद आमिर खान समेत कई बॉलीवुड सितारों ने यह निर्णय लिया कि वे ऐसे किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन नहीं करेंगे जो ऐसे भ्रम फैलाती है। हालांकि, शाहरुख खान ने इस विवादित मुद्दे पर चुप रहने में ही समझदारी समझी।

लिवाइस
विवादः 2009 में रैंप शो में प्रचार के लिए अश्लील हरकत का आरोप
क्या था मामला
साल 2009 में खिलाड़ी अक्षय कुमार तब विवादों में घिर गए थे, जब वह फैशन वीक के दौरान रैंप पर उतरे थे। अक्षय कुमार इस रैंप शो में एक जींस के ब्रांड के लिए उतरे थे। इस दौरान अक्षय ने अपनी पत्नी टि्वंकल खन्ना से पैंट का बटन खोलने के लिए कहा और उन्होंने ऐसा किया भी। कई लोगों ने अक्षय और टि्वंकल की इस हरकत को अश्लील बताया। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तो अक्षय के खिलाफ अश्लीलता फैलाने का केस भी दर्ज करा दिया था। हालांकि, विवाद बढ़ने के बावजूद अक्षय ने इस पर माफी मांगने से इनकार कर दिया था।

मैनफोर्स
विवाद ः हाल ही में एक नेता ने सनी लियोनी के मैनफोर्स विज्ञापन पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि इस वजह से बलात्कार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस विवाद के बाद मैनफोर्स कंपनी को विज्ञापन की स्क्रिप्ट बदलनी पड़ी। हालांकि अभी भी इस कंपनी की ब्रांड एंबेस्डर सनी लियोनी हैं।

यह भी हैं
-  इसी तरह मधु सप्रे और मॉडल व एक्टर मिलिंद सोमन का 1995 में आया एक शूज का विज्ञापन अब तक का सबसे विवादित विज्ञापन माना जाता है। विज्ञापन के रिलीज होते हुए इस पर प्रति‍बंध लगा दिया गया था। इस विज्ञापन में दोनों ने सिर्फ जूते ही पहन रखे थे और उनके शरीर पर एक पॉलीथन लिपटा हुआ था। इस विज्ञापन के बाद इन दोनों को तरह के कानूनी नोटिस का सामना करना पड़ा था।

- बिपाशा बसु एवं मॉडल व अभिनेता डिनो मोरिया ने मिलकर 1998 में एक कामुक विज्ञापन किया था जो विवादों में घिर गया था। अंडरवियर के इस विज्ञापन को लेकर लंबे समय तक विवाद जारी रहा था।

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बॉलीवुड के 'बादशाह' आमिर खान
बॉलीवुड में विज्ञापन दुनिया के बादशाह शाहरुख खान नहीं बल्कि आमिर खान हैं। वह अपनी शर्तों पर काम करते हैं और खास प्रोडक्ट के साथ ही जुड़ते हैं। आमिर खान एक दिन की शूटिंग के लिए पांच करोड़ लेते हैं। आमिर के बाद सलमान का नाम आता है जो साढ़े तीन से पांच करोड़ का अनुबंध कर पाते हैं। शाहरुख खान तीसरे नंबर पर हैं जो 3.5 करोड़ से चार करोड़ की डील साइन करते हैं और उनकी ना कोई शर्त होती है ना कोई च्वाईस। शाहरुख पेंट, ई-कॉमर्स, से लेकर शराब के विज्ञापन तक कर सकते हैं। ऐसा इस व्यवसाय से जुड़े पंडितों का मानना है। रणबीर कपूर पहले एक करोड़ लेते थे लेकिन जब से कैटरीना के साथ रहने की खबरों में आए हैं वह तीन करोड़ के आंकड़े पर आ गए हैं।  रणवीर सिंह 60 से 70 लाख तक में विज्ञापन कर लेते हैं।
 अभिनेत्रियों की बात करें तो विज्ञापन दुनिया में दीपिका पादुकोण की अधिक मांग है। पहले वह 50 से 60 लाख तक की माॅडल वैल्यू वाली लड़की थीं जो अब दो करोड़ लेने लगी हैं। इसके बाद कैटरीना हैं जो 1.5 से 1.7 करोड़ रुपये की मोटी रकम लेती हैं। प्रियंका चोपड़ा (1 से 1.3 करोड़) ऐश्वर्या राय (1 से 1.5 करोड़), अनुष्का शर्मा (60 से 70 लाख) कंगना रनोट ( 50 लाख प्रति दिन के शूट पर) और आलिया भट्ट (एक करोड़) तक पाने वाली तारिका बताई जाती हैं। श्रद्धा कपूर (‘आशिकी-2’ और ‘हैदर’ की कामयाबी के बाद) 60 से 70 लाख की रकम लेती हैं।

और भी हैं चेहरे
सिर्फ सितारे ही नहीं, विज्ञापन की दुनिया में अब लेखक (चेतन भगत, जावेद अख्तर) शैफ (संजीव कपूर, विकास खन्ना), फिल्म डायरेक्टर (करण जौहर, अनुराग कश्यप) आदि भी शामिल हो गए हैं। चेतन भगत पांच से सात लाख और करण जौहर विज्ञापन फिल्म के डायरेक्शन के साथ एक करोड़ की मांग करते हैं। यही हालत टीवी सितारों की है जो पाॅपुलरिटी के अनुपात में पैसा पाते हैं। फोटोग्राफर डब्बू रत्नानी भी एक कैमरा प्रोडक्ट-निकॉन डिजिटल कैंपेन के साथ जुड़े हैं। क्रिकेटरों के बारे में भी इसी तरह ग्रेडिंग की जाती है। धोनी (5 करोड़), विराट (1.75 करोड़) युवराज सिंह करोड़ों रुपये एक दिन के शूट के लिए लेते हैं। बैडमिंटन में वर्ल्ड चैंपियन का खिताब पाने के बाद साइना नेहवाल (60 से 75 लाख साल का) और सानिया मिर्जा (टेनिस खिलाड़ी) को 60 लाख तक दिए जाने की चर्चा रही है।

बॉलीवुड सितारों की कमाई (सामान्यतः प्रति विज्ञापन )
आमिर खान – 5 करोड़
सलमान खान – 3.5 – 5 करोड़
शाहरुख खान – 3.5 – 4 करोड़
दीपिका पादुकोण – 2 करोड़
ऐश्वर्या राय – 1 – 1.5 करोड़
प्रियंका चोपड़ा – 1 – 1.3 करोड़
आलिया भट्ट – 1 करोड़
अनुष्का शर्मा – 60 से 70 लाख
श्रद्धा कपूर – 60 से 70 लाख



 दीपक कुमार
deepak841226@gmail.com

Sunday 13 September 2015

परोपकार का पाखंड

प्रतिष्ठित मैग्जीन फोर्ब्स एशिया की हीरोज ऑफ फिलेंथ्रपी यानी परोपकार के नायकों की हाल ही में जारी सूची में सात भारतीयों को भी शामिल किया गया है। भारतीयों की दानवीरता की इस प्रवृत्ति को देश में खासे गर्व के देखा जा रहा है। लेकिन हैरत की बात है कि दानवीरों की सूची में शामिल कई लोग अपनी आधी या पूरी संपत्ति दान कर देने के बावजूद शीर्षस्थ अमीरों की सूची में अपना स्थान कायम रखे हुए हैं।  सवाल  है कि संपत्ति का काफी बड़ा हिस्सा दान कर देने के बावजूद इन ‘अकिंचन’ लोगों का नाम अरबपतियों-खबरपतियों की सूची में कैसे शामिल हो जाता है? गणित के सामान्य नियम के हिसाब से  2-2=0 होता है। तो फिर यह कौन सा अर्थशास्त्र  है जिसके तहत  दो में से दो घट जाने पर भी दो बचे रहते हैं ? यह वाकई दान है या फिर खेल कुछ और है?    दरअसल, बात पुरानी है, पर बहुत नहीं। 2010 में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स और बर्कशायर हैथवे के प्रमुख वॉरन बफेट ने संयुक्त रूप से अभियान चलाने की पहल की - ‘द गिविंग प्लेज’ यानी दान की प्रतिबद्धता। इसके तहत दोनों उद्योगपतियों ने अपनी बड़ी संपत्ति का हिस्सा दान देने की घोषण करते हुए दूसरे उद्योगपतियों से भी ऐसा ही करने की अपील की। जाने माने निवेशक और हैथवे के मुख्य कार्यकारी वॉरन बफेट तो इस अभियान से जुड़ने से पहले ही लगभग सारी संपत्ति बिल और मलिंडा गेट्स फाउंडेशन को देने की घोषणा कर चुके थे। यहां यह बताना भी जरूरी है कि बफेट कोई छोटे-मोटे उद्योगपति नहीं हैं। उनकी कुल संपत्ति  47 अरब डॉलर से ज्यादा की है। बहरहाल, पुन: गेट्स और बफेट के संपत्ति दान करने के अभियान की ओर लौटते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि इस अभियान को वैश्विक स्तर पर व्यापक समर्थन मिला। दुनिया के कई बड़े उद्योगपतियों ने ,जिसमें कुछ भारतीय उद्योगपति भी शामिल हैं, इसमें शिरकत पर रजामंदी जाहिर की। न्यूयॉर्क के तत्कालिन मेयर माइकल ब्लूमबर्ग, सीएनएन के संस्थापक टेड टर्नर सहित अमेरिका के करीब  40 अरबपतियों ने वादा किया कि वह अपनी संपत्ति का 50 फीसदी हिस्सा दान कर देंगे।  दुनिया हैरत में थी। वह लोग जिनके संस्थानों में वेतन और भत्तों को लेकर तमाम तरह के विरोधाभास हैं, कई जगह तो न्यूनतम वेतन को लेकर संघर्ष है, जो संस्थान अपेक्षाकृत कमजोर आर्थिक हैसियत वाले देशों में महज इसलिए आपनी शाखाएं खोलते हैं ताकि  सस्ते श्रम और ढीले कानूनों का पूरी बेदर्दी से उपभोग कर सकें। वह आखिर क्यों अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान करने को तैयार हैं। दरअसल, खेल उतना सीधा है नहीं जितना दिखता है। ऐसा नहीं है कि इन उद्योगपतियों का एकाएक ह्दय परिवर्तन हो गया है। इनके भीतर से करुणा की धारा फूट चली है और वह दूसरों का दुख हरने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हो गए हैं।  खेल गहरा है। इसके न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक पक्ष भी हैं जो हमें समझना होगा। उद्योगपतियों ने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान किया है जबकि अर्थशास्त्र की बुनियादी जानकारी रखने वाला शख्स भी जानता है कि उद्योगपतियों की वास्तविक संपत्ति निजी संपत्ति नहीं होती । इनकी वास्तविक संपत्ति शेयरों और विभिन्न कंपनियों में हिस्सेदारी में है। वॉरन बफेट की ही बात करें तो उनकी संपत्ति का 99 फीसदी हिस्सा उनकी व्यक्तिगत संपत्ति से नहीं आता है। यह आता है वॉल मार्ट और गोल्डमान साक्स जैसे वित्तीय कारपोरेशनों के शेयरों से। बिल गेट्स के मामले में भी कुछ - कुछ ऐसा ही है। उनकी वास्तविक संपत्ति को लेकर ऐसा मकड़जाल है कि इसका सही आकलन करना मुश्किल हो जाता है।  तो यह है दान की महिमा की असली तस्वीर।   परोपकार के इस खेल के राजनैतिक और सामाजिक पहलू को समझना भी जरूरी है। किसी भी व्यवस्था को बचाए रखने की पहली शर्त होती है समाज में शांति और समानता। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता के कारण इस शांति और संतोष पर आंच आने लगी है। स्मार्ट फोन वाली पीढ़ी में पनपते आक्रोश को भांपते हुए   रणनीति के तहत ही दान-पुण्य के काम किए जा रहे हैं ताकि वंचितजन मौजूदा तंत्र को अपना हितैषी समझें। यह रणनीति काफी हद तक सफल भी साबित हो रही है।  बेखबर जनता बिल गेट्स और वॉरेन बुफे की चैरिटी से चमत्कृत है, और उन्हें महान त्यागी मान रही है। लेकिन यह त्याग कितना नाकाफी है  इसे महज एक छोटे से आंकड़े से समझा जा सकता हहै।  कई साल पहले आई अर्जुन सेनगुप्ता समिति की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 84 करोड़ लोग 20 रुपये प्रतिदिन या उससे कम की आय पर जीते हैं। अगर इन सभी बेहद गरीब लोगों पर मेलिंडा एंड गेट्स फाउंडेशन समेत दुनिया के दस शीर्ष एनजीओ की ओर से जुटाई गई कुल रकम खर्च कर दी जाए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। ज्यादा से ज्यादा प्रतिदिन की आमदनी 20 से बढ़कर 25 रुपये  हो जाएगी।

Friday 11 September 2015

क्या हैं रैना के इरादे

कुछ दिनों से भारतीय क्रिकेटर ‌टीम के स्टार खिलाड़ी सुरेश रैना की सक्रियता बॉलीवुड में बढ़ गई है। अभी हाल ही में रैना कलर्स चैनल के दो चर्चित शोज में नजर आए तो अपकमिंग फिल्म मेरठियां गैंगस्टर के लिए एक गाना भी रिकॉर्ड किया है। आखिर इस सक्रियता की क्या है वजह?वैसे तो सुरेश रैना की पहचान बतौर क्रिकेटर है लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह मायानगरी की दुनिया में दिलचस्पी दिखाते नजर आ रहे हैं। हाल के कुछ दिनों में तो अचानक उनकी सक्रियता बढ़ गई है। अभी हाल ही में वह कलर्स चैनल पर प्रसारित बॉलीवुड एक्‍टर अनुपर खेर के शो 'कुछ भी हो सकता है' में अपनी जिंदगी और करियर के अनुभव साझा किए तो कॉमेडी नाइट्स विद कपिल में गायकी का टैलेंट दिखाते भी नजर आए। यही नहीं रैना जल्द ही अभिनेता जीशान कादरी की पहली निर्देशित फिल्म ‘मेरठियां गैंगस्टर’ के लिए गीत गाते भी नजर आएंगे। रैना ने सोमवार को गाना रिकॉर्ड भी कर लिया है। बॉलीवुड में रैना की बढ़ी सक्रियता के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि बॉलीवुड में सक्रियता बढ़ाकर रैना क्रिकेट से संन्यास लेने से पहले अपने लिए एक प्लेटफॉर्म तैयार करना चाहते हैं जिसके जरिए वह भविष्य में एक्टिंग की दुनिया में जलवा बिखेर सके। वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि रैना की इस सक्रियता के पीछे की वजह उनकी नई शीर्ष खेल प्रबंधन समूह आईओएस स्पोर्ट्स एंड इंटरटेनमेंट है। दरअसल, आईओएस का दबाव है कि रैना मार्केट में अपनी एक खास पहचान बनाए और दर्शकों से रूबरू हों। करार करते वक्त ही आईओएस स्पोर्ट्स के एमडी नीरव तोमर ने कहा था कि रैना काफी शर्मीले हैं और उन्हें अभी तक मार्केट में सही तरीके से पेश नहीं किया गया है। हम उन्हें एक विश्वसनीय ब्रैंड के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। बताते चलें कि रैना ने महेंद्र सिंह धोनी के दोस्त की कंपनी रिति स्पोर्ट्स को छोड़ आईओएस संग 35 करोड़ रुपये में तीन साल का करार किया है। इसका एक पहलू यह भी है कि रैना पिछले कुछ समय से स्पॉट फिक्सिंग मामले में बतौर खिलाड़ी सभी के निशाने पर हैं। फिक्सिंग मामले में चेन्नई सुपर‌किंग्स के रैना का नाम कई बार दबी जुबान लिया जा चुका है। ऐसे में आईओएस चाहती है कि रैना इस छवि से बाहर निकले और इसके लिए जरूरी है कि वह दर्शकों से सीधे रूबरू हों। यही वजह है कि रैना पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में विभिन्न माध्यमों से अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं। यही नहीं रैना लगातार सोशल मीडिया के जरिए भी प्रशंसकों संग जुड़े रहने की कोशिश में जुटे हैं। वर्तमान टीम में संभवतः रैना ऐसे खिलाड़ी हैं जो सीधे प्रशंसकों से लाइव चैट करते हैं। रैना इसके अलावा मीडिया के विभिन्न माध्यमों से भी अपने आप को चर्चा में बनाए हुए हैं। अभी हाल ही में पत्नी संग उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरी हैं जिनमें वह पत्नी प्रियंका के लिए सेक्सोफोन बजाते दिख रहे थे। यही नहीं रैना ने कपिल के शो कॉमेडी नाइट्स में भी सेक्सोफोन बजाया। बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि गायिकी में रैना को प्रशंसक पसंद करते हैं या नहीं। मेरठियां गैंगस्टर’ 18 सितंबर को सिनेमा घरों में प्रदर्शित होगी। इस फिल्म के एडीटर अनुराग कश्यप हैं। इसी दिन कंगना रानावत की फिल्म ‘कट्टी बट्टी’ प्रदर्शित होगी।

Tuesday 7 July 2015

मेरा जिस्म, मेरा गुरुर

अमर उजाला में प्रकाशित — सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तहकीकात

पिछले दिनों सुप्रमी कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी और पीड़िता के बीच समझौता की बात को खारिज करते हुए कहा कि बलात्कार महिला के शरीर रूपी मंदिर के विरुद्ध अपराध है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से  इतर समाज में ऐसी तमाम महिलाएं सामने आ रही हैं जो अपने शरीर को लेकर हीन भावना की शिकार नहीं हैं। वह अपनी व्यक्तिगत मर्जी और पसंद पर खुल कर बोल रही हैं।   


‘हां मैं लड़की हूं, मेरे पास ब्रेस्ट और क्लीवेज है, आपको कोई समस्या है इससे?’ यह ट्वीट फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने तब किया जब एक अंग्रेजी अखबार ने उनके शरीर को सनसनी बनाने की कोशिश की। दीपिका के इस ट्वीट ने भारत के सबसे अधिक बिकने वाले अंग्रेजी अखबार की बोलती बंद कर दी थी। संभवत: यह बॉलीवुड की सबसे तेज और मुखर आवाज रही होगी। दीपिका की तरह ही समाज में ऐसी तमाम महिलाएं हैं जो अपने शरीर को लेकर हीन भावना की शिकार नहीं हैं। ऐसी और भी महिलाएं हैं जो व्यक्तिगत मर्जी और पसंद पर बेधड़क बोल रही हैं।  अब तो वह बेहिचक, बेझिझक और बेबाक बोलने को आतुर सी दिख रही हैं।  तभी तो जब देश के पहले समलैंगिक विज्ञापन में अभिनय करने वाली अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका से विज्ञापन शूट के दौरान किसी हिचक के बारे में पूछा जाता है तो वह बिंदास बोल पड़ती हैं ,  हिचक किस चिड़िया का नाम है। ऐसा करने में तो मुझे मजा आया। अनुप्रिया यही नहीं रूकतीं, वह साथ ही समलैंगिकों के अधिकार का समर्थन करती हैं। टीवी शो कहानी घर घर की में पार्वती की बेटी के किरदार निभा चुकीं नई नवेली फिल्म अभिनेत्री प्रीति गुप्ता कहीं और आगे बढ़कर बोल्ड अंदाज में अपनी सोच जाहिर करती हैं। वह साफ तौर पर कहती हैं, होमोसेक्शुअल होना प्राकृतिक है, इसमें कुछ गलत नहीं है।  प्रीति की सोच हाल ही में फिल्म अनफ्रीडम  में दिए गए न्यूड तस्वीरों के लीक हो जाने बाद सामने आई है।  बिंदास सोच की इस तस्वीर को एक और प्रसंग से मजबूती मिलती है। हाल ही में कनाडा में रहने वाली भारतीय मूल की रूपी कौर ने मासिक धर्म के दौरान अपने कपड़ों और बिस्तर की एक तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की। तब उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि फोटो शेयरिंग वेबसाइट उस तस्वीर को हटा देगी। इंस्टाग्राम ने उनकी तस्वीरें एक नहीं, दो बार ये कहकर हटा दी कि ये फोटो वेबसाइट की कम्युनिटी गाइडलाइंस के अनुरूप नहीं है। लेकिन रूपी कौर ने वेबसाइट के फैसले को चुनौती दी। आखिरकार इंस्टाग्राम ने उनसे माफी मांगी और माना कि रूपी ने ये तस्वीर पोस्ट करके किसी गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं किया है। वहीं जर्मनी के 20 साल की युवती एलोने ने महिलाओं की मासिक धर्म के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए मासिक धर्म में इस्तेमाल होने वाले पैड्स को ही हथियार बना डाला। आलम यह रहा कि पिछले साल जामिया मिलिया सहित देश के तमाम शीर्ष विश्वविद्यालयों में इस तरह के विरोध किए गए। ऐसा नहीं है कि शरीर पर ही महिलाओं की सोच बिंदास हुई है। वैचारिक स्तर पर भी बिंदास दिखने की प्रवृति सामने आई है। तभी तो एक अभिनेत्री जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैंपेन ‘सेल्फी विद डॉटर’ के खिलाफ कुछ बोलती है और सोशल मीडिया पर घिर जाती है तो तुरंत ही देश के प्रधान को खुला पत्र लिख डालने की हिम्मत दिखाती है। दरअसल, प्रधान को पत्र लिखना कोई बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात है पत्र के जरिए समाज को मिले संकेत की। संकेत यह है कि अब आप हमें चौतरफा घेर कर भी चुप नहीं करा सकते। आमतौर पर देखा गया है कि जब भी कोई महिला घर में या ससुराल में तेज बोलती है तो उसे धीरे और कम बोलने की नसीहत मिल जाती है। इस कम बोलने के दबाव के चलते अधिकतर महिलायें अपने ऊपर विश्वास खो देती हैं और वह दूसरों की हां में हां मिलाती रहती हैं जैसा कि दूसरे लोग सुनना चाहते है।  औरत अपनी जुबान का इस्तेमाल अपने जज्बात को बयान करने में भी नहीं कर पाती है उससे बड़ा अन्याय उसके साथ और क्या हो सकता है ? लेकिन पिछले कुछ समय से अब इसी सच और सोच में बदलावा देखने को मिल रहा है।  मेट्रो और बसों में कंधे पर बैग टांगे लड़कियों की भीड़ देखकर साफ पता लगता है कि नई आजादी उन्हें खूब पसंद आ रही है। ऐसा नहीं है कि यह बदलाव सिर्फ महिलाओं में ही आई है उनके प्रति समाज का भी नजरिया बदला है। बदलते समाज के नजरिए का ही उदाहरण है कि पोर्न इंडस्ट्री की एक अभिनेत्री आकर बॉलीवुड की जमी - जमाई सुंदरियों की जड़ों को हिला जाती है। मायानगरी की अभिनेत्रियों की बेचैनी इतनी बढ़ जाती है कि उसे समाज से बाहर दिखाने की मांग तक कर दी जाती है लेकिन दर्शक उसे सिर आंखों पर बिठाते हैं। समाज को उसके अतीत से अब मतलब नहीं रह गया है। समाज उसके अभिनय और कला की कद्र करना सीख रहा है।

दीपिका की माई च्वाइस

पिछले साल अभिनेत्री दीपिका पादुकोण अभिनित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘माई च्वाइस’ ने खूब सुर्खियां बटोरीं। इसकी सराहना भी हुई तो आलोचक भी पीछे नहीं रहे। इस वीडियो में दीपिका को कहते दिखाया गया,‘ मैं शादी करूं या न करूं यह मेरी मर्जी है । मैं शादी से पहले सेक्स करूं या शादी के बाद भी किसी से रिश्ते रखूं यह मेरी इच्छा है।’ सच तो यह है कि दीपिका जैसी अभिनेत्री को यह कहने का साहस इसलिए हुआ कि समाज का एक बड़ा वर्ग महिलाओं के नाम पर भेड़ों जैसा व्यवहार करने लगा है। असहमति के स्वर, सहमति के नारों और महिला जाप के मंत्रों के बीच दब से गए। महिलाओं के बारे में कही गई साधारण सी बात या मजाक पर भी आसमान सर पर उठा लेने की होड़ सी दिखाई देने लगी। इस महिला फोबिया के चलते जो माहौल बना उसमें दीपिका का इस तरह का वीडियो बनाना स्वाभाविक ही था।

एक पक्ष यह भी
ऐसा नहीं कि महिलाओं की बिंदास सोच से ही सशक्तिरण की बात पूरी हो जाती है। महिला सशक्तिरण के बारे में  सोच यह होनी चाहिए कि शिक्षा, रोजगार , तथा अन्य क्षेत्रों में भी उन्हें समान अधिकार मिले। हालांकि अब यह भ्रम नहीं हो कि महिलाओं को अधिकार पुरुष ही देंगे। अब स्थितियां बदली हैं और महिलाओं को अपने अधिकार को पुरुष समाज के जबड़े से छीनना बखूबी आ रहा है।  हालांकि कुछ जानकारों को दीपिका की माई च्वाईस से आपत्ति भी है। उनका कहना है कि महिला की बिंदास सोच का मतलब हर बार यह नहीं होता कि आप किस तरह के कपड़े पहनते हैं। यह भी नहीं कि आप किससे सेक्स करना चाहते हैं या ऐसा ही कुछ और।

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चिली को चाहिए अबॉर्शन का अधिकार
महिलाओं की मुखर आवाज का सबसे बड़ा उदाहरण चिली है। चिली में लगातार अबॉर्शन के अधिकार को लेकर लड़ाई जारी है। चिली में 1931 में ही अबॉर्शन को कानूनन सही करार दिया गया था, तब महिलाओं को वोट का अधिकार भी नहीं दिया गया था। लेकिन बाद में इसे बैन कर दिया गया । फिलहाल, दुनिया में छह देश हैं जहां अनचाहे गर्भ को किसी भी तरह से खत्म करने पर बैन है, उनमें से एक चिली है। भारत में इसके लिए कानून है। भारत में भी दुनिया भर के देशों में अबॉर्शन के अधिकार के समर्थन में कैंपेन किए जाते हैं। 2014 में अक्टूबर के महीने में आयरलैंड में भारतीय मूल की महिला की 17 महीने के गर्भ गिरने के बाद मौत मामले के खिलाफ  बंगलूरू में प्रदर्शन हुआ। देश के कानून के कारण आयरलैंड के डॉक्टरों ने अबॉर्शन करने से मना कर दिया था। एक तस्वीर यह भी है कि टेक्सस में 18 साल से कम की लड़कियों के अपने पैरंट्स की इजाजत के बगैर अबॉर्शन करवाने के बढ़ते मामलों को देखते हुए ऐसा बिल लाने की तैयारी की जा रही है जिससे नाबालिग लड़कियां ऐसे कदम न उठाएं।

'औरत का शरीर उसका अपना मंदिर'

हम यह साफ तौर बता देना चाहते हैं कि बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के किसी मामले में किसी भी तरह के समझौते पर विचार नहीं किया जा सकता। यह उस औरत के शरीर के खिलाफ अत्याचार है जोकि उसका अपना मंदिर है। ये ऐसे अपराध हैं, जो जिंदगी का दम घोंटते हैं और इज्जत पर दाग लगा देते हैं और यह कहने की जरूरत नहीं है कि इज्जत व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण होती है। जब इंसान का शरीर अपवित्र किया जाता है तो उसका सबसे ‘विशुद्ध खजाना’ छिन जाता है। किसी महिला की इज्जत उसके अमर और न खत्म होने वाले स्वाभिमान का हिस्सा होती है। किसी को उस पर दाग लगाने की सोचना भी नहीं चाहिए। ऐसे मामलों में किसी तरह का सुलह या समझौता नहीं हो सकता है क्योंकि यह उसके सम्मान के खिलाफ होगा, जिसका मूल्य सबसे अधिक है। यह पवित्र है। कभी कभी यह ढांढस बंधाया जाता है कि अपराध करने वाला उससे शादी करने को तैयार हो गया है, जोकि गलत तरीके से दबाव डालने जैसा ही है। और हम जोर देकर कहते हैं कि इस मामले में नरमी का रुख अख्तियार करने वाले उपाय से अदालतें पूरी तरह दूर रहें। किसी भी तरह का उदार रुख असाधारण गलती मानी जाएगी। हम ये कहने को मजबूर हैं कि इस तरह का व्यवहार एक महिला के आत्म सम्मान के प्रति असंवेदनशीलता को दिखाती है। इस मामले में किसी भी तरह का उदार रुख या समझौते का विचार पूरी तरह गैर कानूनी है।

बलात्कार के आरोपी और पीड़िता के बीच समझौता के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
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स्त्री अखंडित क्यों नहीं?
स्त्री - देह दो हिस्सों में बंटी रहने के लिए अभिशप्त है : ऊर्घ्वांग स्त्री महान है, कला , सुंदरता, कविता की स्त्रोत है, नीचे की स्त्री जुगुप्सा, घृणित और नरक की खान है। मातृत्व चाहे जितना पूज्य और पवित्र हो जगन्माता भले ही ईश्वर के समकक्ष हो, मगर जिस प्रक्रिया से स्त्री जननी बनती है, वह अश्लील और अदर्शनीय है। इस तरह परिणाम और प्रक्रिया को अलग कर देने से स्त्री को हमेशा के लिए ‘द्विखंडित’ बना डाला। उसके शरीर के दोनों हिस्से हमेशा एक - दूसरे से लड़ते रहे और स्त्री इस द्वंद्व को लेकर एक स्थायी अपराध - बोध में जीती रही। वह समझ नहीं पाती कि अगर देह का आनंद ‘ब्रहम्मानंद सहोदर ’ है तो वे अंग क्यों जगुप्सा जनक हैं , जो इस आनंद के श्रोत हैं?
 स्त्री होने के अपराध - बोध और सामाजिक असुरक्षा के साथ गलत और अनैतिक हो जाने के भय स्त्री - मनोविज्ञान का निर्माण किया है - वह अपराधी ही नहीं, अश्लील भी है। स्त्री - विमर्श का एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह खोज भी है कि ऊपर -नीचे के अंगों के बीच वास्तविक स्त्री कहां है? पुरुष की तरह वह समग्र और अखंडित क्यों नहीं है? इसी वक्तव्य में मैंने अमेरिका की मार्क्सवादी सैद्घांतिक और गंभीर पत्रिका ‘न्यू लैफ्ट रिव्यू ’ का भी हवाला दिया था कि एक बार संपादकों ने कवर पृष्ठ पर न्यूड स्त्री का चित्र छापकर प्रश्न किया कि साथी मनुष्य के शरीर में ऐसा क्या जुगुप्साजनक है कि हम उसे गंदा , अश्लील और अनैतिक मानते हैं?      

राजेंद्र यादव की पुस्तक  ‘वे हमें बदल रहे हैं ’ से साभार

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समलैंगिक होना गुनाह नहीं
देश के पहले समलैंगिक विज्ञापन में अनुप्रिया गोयनका ने अहम भूमिका में हैं। अनुप्रिया के लिए इस विज्ञापन में काम करना आसान फैसला था। एक नजर उनकी सोच पर  

क्या आपने इस विज्ञापन को साइन करने से पहले कोई विचार किया?
- बिल्कुल नहीं। मैं तुरंत इस विज्ञापन में रोल प्ले करने के लिए राजी हो गई। मेरा किरदार बेहद रोचक और मजेदार है। मुझे यह करने में मजा आया। मैं हमेशा से इस तरह की चैलेंजिंग भूमिका निभाना चाहती थी।

  इस रोल में ऐसा क्या था जिससे आप आकर्षित हुईं?
- इस विज्ञापन में कुछ तो खास था जिस वजह से मैं आकर्षित हुई। दरअसल, हमारे समाज की सोच है कि खुलकर किसी मर्जी को नहीं स्वीकारते। वह समाज और संस्कृति के बोझ तले दबे रहते हैं और अपनी इच्छाओं का गला घोंटते हैं।  बात जब महिला की हो तब तो और भी संवेदनशलीता बढ़ जाती है।  समलैंगिक होना कोई गुनाह नहीं है। मैं समलैंगिकों के अधिकारों की पक्षधर हूं। इस विज्ञापन में समलैंगिक महिलाओं के प्रति हमारे देश में लोगों की सोच बदलने की पहल है। 

आपको हिचक नहीं हुई?
हंसते हुए ... हिचक, भला क्यों मुझे हिचक हो। मेरा मानना है कि  हिचक जैसी सोच ने ही इच्छाओं का गला घोंट दिया है। इस हिचक को हटाने की जरूरत है।

विज्ञापन पर आपके परिवार ने क्या कहा ?
 

मैंने इस विज्ञापन में काम करने के लिए न ही परिवार को जानकारी दी और न ही उनकी इजाजत ली। मैं एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार से आती हूं। हालांकि मेरी फैमिली बेहद उदार है, जो हमेशा मेरा सपोर्ट करती है।

आपके ब्वॉयफ्रेंड की  प्रतिक्रिया ?
- वैसे तो मेरा ब्वॉयफ्रेंड नहीं है और अगर उसने मेरे इस विज्ञापन को देख लिया होगा तो जरूर मुझे गर्लफ्रेंड नहीं बनाएगा।
 



Monday 29 June 2015

एक नाम सतनाम

एनबीए में चुना जाना क्यों है खास सवाल का जवाब आपको ​इसमें मिल जाएगा
अमर उजाला के 28 जून 2015 के अंक में 

 क्रिकेट के देश भारत में बास्केटबॉल को एक नई पहचान और दिशा दिखाने की ओर पहला कदम उठ चुका है। यह कदम उठाया है सात फुट दो इंच के भारी भरकम शरीर वाले शख्स ने । निश्चित ही यह कदम जिस स्‍थान पर पड़ेंगे वहां भारत की धाक मजबूत होगी।   



अमेरिका की प्रतिष्ठित बास्केटबाल लीग एनबीए का नाम सुनते ही जेहन में आते हैं साढ़े छह फुट लंबे कद के विदेशी खिलाड़ी, बेशुमार पैसा और अमेरिका। इस लीग में भारतीय खिलाड़ियों के लिए पहुंचना सपने जैसा था लेकिन यह सपना सच कर दिखाया पंजाब में लुधियाना के नजदीक के गांव ‘बल्लोकी’ के लंबे चौड़े शख्स ने। इस छोटे से गांव को शुक्रवार को बहुत बड़ी पहचान मिल गई जब यहां के किसान बलबीर सिंह के बेटे सतनाम सिंह भामरा का चयन अमेरिका की प्रीमियर बास्केटबॉल लीग नेशनल बास्केटबाल एसोसिएशन के लिए हो गया। भारत में बास्केटबॉल की माली स्थिति को देखते हुए सतनाम की यह उपल‌ब्धि अहम हो जाती है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि बास्केटबाल में विश्वपटल पर भारत की क्या स्थिति है। अकसर एशियन गेम्स में भी भारतीय टीम क्वालीफाई करने में नाकाम रहती है। ऐसे में सतनाम के जरिए एक पहचान की उम्मीद जगी है।  यह रोचक है कि एनबीए में सतनाम सिंह की दिलचस्पी दस साल पहले हुई, जब उन्होंने कोबे ब्रायंट और लीब्रोन जेम्स को खेलते हुए टेलीविजन पर देखा।  जब एनबीए में सतनाम की दिलचस्पी जगी तब उनका कद (9 साल की उम्र में ही) 5 फुट 9 इंच हो गया था। बावजूद इसके सतनाम ने अपने कद को और आगे बढ़ाने की ठान ली। उनके इस नए कद को बढ़ाने में पिता ने अहम भूमिका निभाई। पिता के सहयोग के ‌पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, उनके पिता का कद 7 फुट 4 इंच है। इतना कद होने के बावजूद वह देश के लिए कुछ भी नहीं कर सके। यह टीस उन्हें आज भी सताती है। इस टीस को कम करने के लिए ही उनके दिल में बेटे को इस खेल में भेजने की तमन्ना जगी। एक दिन उनके दोस्त रजिंदर सिंह ने सतनाम के कद को देखते हुए उसे बास्केटबाल खेलने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद सतनाम को लुधियाना के गुरु नानक स्टेडियम में पंजाब बास्केटबॉल एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी तेजा सिंह धालीवाल के पास भेजा गया।  14 साल के सतनाम सिंह को साल 2010 में लुधियाना बास्केटबाल अकादमी (एलबीए) से डैन बारटो जब आईएमजी फ्लोरिडा ले गए तभी यह उम्मीद जग पड़ी थी कि सात फुट दो इंच का युवक एनबीए में प्रवेश कर सकता है। चार साल बाद 2014 में उन्हें फ्लोरिडा से मिलने वाली स्कॉलरशिप समाप्त हो गई। इस दौरान वह अमेरिका के किसी भी कॉलेज के लिए न तो खेल पाए और न ही पढ़ाई कर पाए। चयन के लिए एनबीए ड्राफ्ट में शामिल होने की एक शर्त यह भी रहती है कि चयनित होने की स्थिति में अगली बार ड्राफ्ट में वही खिलाड़ी नाम लिखा सकता है जो वहां कॉलेज स्तर पर खेला हो। सतनाम के पास ऐसा कुछ नहीं था। उन्हें मालूम था कि अगर वह नहीं चुने गए तो भारत वापसी के अलावा उनके पास कुछ नहीं होगा। ऐसे में उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के जरिए लीग के फ्रेंचाईजों का दिल जीतने की कोशिश की। इस कोशिश में वह कामयाब भी हुए और आज सबके चहेते बन गए हैं।




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यह है सतनाम की टीम
सतनाम जिस डलास मैवरिक्स टीम में शामिल हुए हैं, उस टीम ने 1980-81 में पहली बार एनबीए में कदम रखा था। इस टीम ने 1987, 2007, 2010 में तीन डिवीजन खिताब जीते हैं। जबकि उन्होंने दो कॉन्फ्रेंस चैंपियनशिप (2006, 2011) और एक एनबीए चैंपियनशिप (2011) जीती है।

प्रोफाइल
नाम : सतनाम सिंह भामरा
जन्म : 10 दिसंबर, 1995
वजन : 131 किग्रा
कद : 7 फुट 2 इंच

पसंदीदा भोजन
सतनाम बेसन के पकौड़े , मक्के की रोटी, सरसों का साग, बटर चिकन और खोया बर्फी खाने के शौकीन हैं। इनके पसंदीदा अभिनेता बॉलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार हैं । सतनाम जूनियर बच्चन अभिषेक को भी पसंद करते हैं। सतनाम की पसंदीदा फिल्म अक्षय कुमार की सिंह इज किंग है। सतनाम का सपना पिता के लिए कार खरीदने का है। 


सतनाम से लंबे उनके पिता
सतनाम का कद नौ साल की उम्र में ही पांच फुट 9 इंच हो गया था। सतनाम के घर में हर कोई लंबा है। उनके पिता बलबीर सिंह तो उनसे भी दो इंच लंबे हैं। उनकी लंबाई 7 फुट 4 इंच है। उनकी दादी की लंबाई तो 6 फुट 9 इंच और मां की 5 फुट 8 इंच है। आईएमजी एकेडमी द्वारा दिए गए स्कॉलरशिप के बाद वह फ्लोरिडा गए। उस वक्त उन्हें इंग्लिश नहीं आती थी। फ्लोरिडा पहुंचकर ही उन्होंने इंग्लिश सीखी।  सतनाम ने लुधियाना सत्संग रोड स्थित नव भारती पब्लिक स्कूल से आठवीं, नौवीं और दसवीं की पढ़ाई के बाद 2009 में आईएमजी रिलायंस अकादमी यूएसए की ओर से खेलना शुरू किया और दसवीं के बाद की पढ़ाई भी अमेरिका से ही की।

20 नंबर के जूते पहनते हैं
सतनाम के पैर भी काफी लंबे हैं। उनके जूतों का नंबर 20 हैं। जबकि खिलाड़ियों के जूतों का औसत साइज नौ होता है। उन्हें अपने लिए स्पेशल जूते तैयार करवाने पड़ते हैं। यही नहीं, वह आठ फीट लंबे बेड पर सोते हैं। उनके लिए चादर भी स्पेशल तैयार किए जाते हैं।
सतनाम की उपलब्धियां
सतनाम सिंह 2009 और 2011 में चीन में आयोजित सीनियर एशियन बास्केटबाल चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं। 2013 में फिलीपींस में एफआईबीए चैंपियनशिप कप, 2009 में मलेशिया और 2011 में वियतनाम में हुई जूनियर एशियन बास्केटबॉल चैंपियनशिप में सतनाम ने हिस्सा लिया था। 2012-13 में लुधियाना में हुई सीनियर नेशनल बास्केटबाल चैंपियनशिप में सतनाम को दूसरा स्थान मिला। 2013 में कोटक में हुई जूनियर नेशनल बास्केटबाल चैंपियनशिप में दूसरा और 2004 में चित्तौर में हुई जूनियर नेशनल बास्केटबाल चैंपियनशिप में उसे पहला स्थान मिला था।

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एनबीए बनाम आईपीएल

अमेरिका की प्रतिष्ठित बॉस्केटबाल लीग एनबीए दुनिया की तीसरी सबसे महंगी स्पोर्ट्स लीग है। कई देशों के बास्केटबॉल खिलाड़ी इस लीग में खेलते हैं। अमेरिका की नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन ने 69 साल पहले 1946 में इसे शुरू किया था।  एनबीए और भारत की सबसे महंगी क्रिकेट लीग आईपीएल की अगर तुलना की जाए तो दोनों के बीच आकाश - पाताल का अंतर है। जहां आईपीएल टूर्नामेंट की सालाना कमाई 1000 करोड़  है तो एनबीए की कमाई 29000 करोड़ रुपये है। आईपीएल इतिहास के सबसे महंगे खिलाड़ी युवराज सिंह हैं । युवराज को दिल्ली डेयरडेविल्स ने 16 करोड़ में खरीदा है। वहीं एनबीए की बात करें तो  कोबे ब्राएंट को लेकर्स टीम ने 148 करोड़ रुपये में खरीदा है। आईपीएल की सबसे महंगी टीम मुंबई इंडियंस है। मुकेश अंबानी की मुंबई इंडियंस 1,271 करोड़ की है। वहीं एनबीए लीग की सबसे अमीर टीम एलए लेकर्स है । लेकर्स टीम 16,546 करोड़ की है। हालांकि ईनाम राशि की बात करें तो दोनों लीग में कोई खास अंतर नहीं है। आईपीएल में ईनामी राशि 15 करोड़ है तो एनबीए में यह राशि 15.61 करोड़ है।  अगर दुनिया में सबसे अमीर टीम की बात करें तो फ्रेंच चैंपियन फुटबाल टीम पेरिस सेंट जर्मेन (पीएसजी) अपने खिलाड़ियों को विश्व में अन्य खेलों की तुलना में कहीं अधिक वेतन का भुगतान करती है। पीएसजी अपने प्रथम श्रेणी के खिलाड़ियों को औसतन 50 लाख पाउंड से ज्यादा का सालाना भुगतान कर रही है। इसके मुकाबले यदि आईपीएल के इतिहास के सबसे मंहगे खिलाड़ी युवराज सिंह के 16 करोड़ रुपये के अनुबंध को देखा जाए तो पाउंड में यह राशि 16 लाख पाउंड से कुछ ज्यादा बैठती है। वहीं अमेरिकन बास्केटबाल चैंपियनशिप एनबीए वरीयता सूची में सर्वाधिक भुगतान करने वाली लीग है।

क्यों है यह उपलब्धि खास

अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित बास्केटबॉल लीग एनबीए में सतनाम का चयन होना भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। दरअसल, यह उपलब्धि इसलिए बड़ी है क्योंकि बास्केटबॉल में भारत की रैंकिंग  टॉप - 100 देशों में भी नहीं है। स्थिति यह है कि अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए भारतीय बास्केटबॉल संघ वैश्विक बास्केटबॉल संघ के सामने जद्दोजहद कर रहा है। सबसे अमीर बास्केटबॉल लीग में भारत की पहचान होना कहीं न कहीं यह संकेत देते हैं कि इस खेल में अच्छे दिन आ गए।  सतनाम की उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि 2005 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी खिलाड़ी को बिना कॉलेज, ओवरसीज, प्रफेशनल या फिर एनबीए डेवेलपमेंट लीग में खेले बगैर ही ड्रॉफ्ट में जगह मिल गई।

एनबीए का इतिहास 

1946 में बास्केटबॉल एसोसिएशन ऑफ अमेरिका (बीएए) का गठन किया गया। पहला मैच कनाडा में एक नवंबर 1946 को टोरंटो हसकीस और न्यूयॉर्क निकरबोकर्स के बीच खेला गया। तीन सीजनों के बाद, 1949 में, बीएए का नेशनल बास्केटबॉल लीग के साथ विलय हो गया और नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) का गठन हुआ। एक नवोदित संगठन, अमेरिकन बास्केटबॉल एसोसिएशन 1967 में उभरा और 1976 में एबीए -एनबीए का विलय होने तक, कुछ समय के लिए एनबीए के प्रभुत्व को चुनौती दी। बावजूद इसके आज एनबीए विश्व में लोकप्रियता, वेतन, प्रतिभा और प्रतिस्पर्धा के स्तर के मामले में शीर्ष पेशेवर बास्केटबॉल लीग है। एनबीए से कई प्रसिद्ध खिलाड़ी संबंधित रहे हैं, जिसमें प्रथम प्रभावकारी बिग मैन जॉर्ज मिकन, गेंद संभालने के जादूगर के नाम से मशहूर बॉब कौसी और बॉस्टन सेल्टिक्स टीम की डिफेंसिव प्रतिभा बिल रसेल शामिल हैं।  वर्तमान लीग में कुल तीस टीमें हैं।


हड़ताली लीग एनबीए
यह दिलचस्प है कि दुनिया सबसे अमीर लीग स्पोर्ट़स में शामिल होने के बवाजूद एनबीए के खिलाड़ी अपनी कमाई से संतुष्ट नहीं रहते हैं।  एनबीए लीग को स्ट्राइकर लीग यानी हड़ताली लीग के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, इस लीग के खिलाड़ी किसी न किसी वजह से समय - समय पर हड़ताल पर जाते रहते हैं। एनबीए में  1998-99 के सीजन में वेतन भुगतान की वजह से सिर्फ 50 मैच हो पाए थे। 2013 में एनबीए की कमाई का हिस्सा कम मिलने से खिलाड़ी हड़ताल पर चले गए थे। यहां यह बता दें कि बास्केटबॉल अमेरिका का खूब कमाऊ खेल है। वहां होने वाले लीग मुकाबलों के जरिए खिलाड़ी और टीम मालिक अरबों रुपये कमाते हैं। इस कमाई में सबका हिस्सा होता है।

Wednesday 24 June 2015

भस्मासुर ललित मोदी

अमर उजाला में प्रकाशित मेरा विश्लेषण




इंट्रो:  इस शख्स ने एक भी गेंद नहीं खेली लेकिन बड़े - बड़ों के विकेट चटका दिए। यूपीए के राज्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा । आईपीएल जैसे क्रिकेट - तमाशे को नए सिरे से गढ़ने की नौबत आ गई और अब इसी शख्स की वजह से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की कुर्सी खतरे में पड़ गई। सब जानते हैं यह पंगेबाज शख्स और कोई नहीं ललित मोदी हैं।  क्रिकेट को पूंजी का खेल बना देने वाले ललित मोदी कोई साधारण इंसान नहीं हैं। इस डेंजरस खिलाड़ी की शख्‍सियत पर एक नजर...



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1980 के दशक की बात है। ललित मोदी की मां बीना और पिता कृष्ण कुमार मोदी ने उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए अमेरिक भेजा तो ललित ने अपने लिए अपने मां-बाप से एक कार की मांग की। केके मोदी ने ललित को उस वक्त 5000 अमेरिकी डालर दिए और कोई कामचलाऊ कार खरीदने की सलाह दी। ललित को अपने पिता की यह सलाह पसंद नहीं आई और उन्होंने इस रकम से पहली किश्त भरकर मर्सीडिज बेन्ज (जिसकी कीमत उस वक्त अस्सी लाख रही होगी) खरीद ली।  
इस पर पिता तिलमिला गए और उन्होंने ललित को एक भावुक पत्र लिखा। 
उस पत्र में केके मोदी ने कहा, 
‘ प्रिय ललित, मैंने तुम में कभी कोई बड़ा सपना नहीं देखा और उम्मीद यही है कि आगे भी ऐसा हो लेकिन एक मांग जरूर है कि तुम अपने बड़े सपने देखने के लिए ऐसे कदम न उठाना कि हम शर्मिंदा महसूस करें। ’ 
दरअसल, ललित मोदी हमेशा से ही अमीर दिखने में विश्वास रखते थे इसके लिए उन्हें चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े। हालांकि ललित मोदी जिस कृष्ण कुमार मोदी के बेटे हैं वह 4000 करोड़ रुपयों की कीमत वाली मोदी समूह के अध्यक्ष हैं। ललित मोदी के दादा राज बहादुर गुजरमल मोदी ने देश की राजधानी से सटे मोदीनगर की स्थापना की थी। गुजरमल मोदी उस दौर के बड़े उद्योगपतियों में से एक थे। बचपन से ही ललित अमीर बाप की बिगड़ी औलाद की तरह हरकतें करते थे।  मसलन, वह स्कूल से अक्सर भाग आते थे। बिना ड्राइविंग लाइसेंस के दिल्ली की सड़कों पर फर्राटेदार गाड़ियां चलाते पाए जाते थे। पिता केके मोदी ने परेशान होकर पढ़ाई पूरी करने के लिए विदेश भेजा तो कोकीन के आदी बन गए और ड्यूक युनिवर्सिटी में पढ़ते समय 400 ग्राम कोकीन के साथ पकडे गए।  उन पर उस मामले में अपहरण और मारपीट का भी आरोप लगा। पिता के धनबल ने उन्हें उस मामले में किसी तरह बचाया। ललित मोदी के किस्से मोदीनगर के  लोगों को आज भी याद है। स्थानीय लोग बताते हैं कि ललित अपने दादा के सामने एक बार थाना प्रभारी को किसी छोटी सी बात पर चांटा रसीद कर दिया था। उनके बारे में कहा जाता है कि वह बहुत जल्दी आपा खो देते हैं। ललित को उसके दादा और दादी बहुत चाहते थे। वह जब तक रहे तब तक ललित मोदी नगर में आते - जाते रहे । जवानी के दिनों में ललित का कभी क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं रहा। मोदी का ईएस्पीएन (क्रिकेट चैनल ) से जुड़ाव और शाहरुख खान जैसों से दोस्ती ने क्रिकेट और मनोरंजन के क्षेत्र में घुसपैठ का उनका इरादा बनाया। 1999 में मोदी ने हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में घुसपैठ की। उन दिनों हिमाचल प्रदेश में कोई क्रिकेट स्टेडियम नहीं हुआ करता था। मोदी ने एक स्टेडियम बनाकर वहां ग्रीष्मकालीन क्रिकेट की योजना पर काम शुरू किया लेकिन जब प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के  मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने मोदी को बेदखल कर अपने बेटे को हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन का प्रमुख बना दिया। शरद पवार के बीसीसीआई के अध्यक्ष बनाने में बड़ोदरा के किरण मोरे और राजस्थान के रुंगटा परिवार ने बड़ी बाधाएं खड़ी की थीं। ऐसे में ललित मोदी शरद पवार के कैंप में घुस गए। अब मेहरबानी की बारी शरद पवार की थी। उन्होंने ललित पर राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन पर कब्जे की जिम्मेदारी सौंपी। रुंगटा परिवार पिछले 40 वर्षों से राजस्थान क्रिकेट पर कब्जा जमाए बैठा था। 32 जिला क्रिकेट संघों में कुल 57 सदस्य हुआ करते थे और सभी रुंगटा परिवार के रिश्तेदार थे जिसे ललित मोदी ने अपने पराक्रम से सदा सर्वदा के लिए समाप्त कर दिया। इसी पराक्रम ने उन्हें आईपीएल के कमिश्नर पद तक पहुंचा दिया। आईपीएल का कमिश्नर बनते ही ललित मोदी ने वर्चस्व का मायाजाल फैलाना शुरू कर दिया। और यहीं से शुरू हुई उनकी तिकड़म की राजनीति। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने अपनी चहेती सुनंदा पुष्कर को कोच्ची की टीम में पर्सनल हिस्सेदारी क्या दिला दी ललित मोदी ने ट्विटर पर उनके खिलाफ  अभियान छेड़ दिया। मोदी इस कदर थरूर के पीछे पड़ गए कि उन्हें अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। यहीं से शुरू हुई मोदी के पतन की कहानी। उन पर साल 2010 में आईपीएल संचालन में पैसों की गड़बड़ी का आरोप लगा। इसके बाद मोदी को आईपीएल कमिश्नर के पद से निलंबित कर दिया गया। गड़बड़ी के आरोपों के बाद ललित मोदी ब्रिटेन चले गए थे तब से वह वहीं रह रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने मोदी के खिलाफ  नोटिस जारी किया हुआ है और इस मामले में ललित मोदी की तलाश कर रहा है। हालांकि सात समंदर पार बैठकर भी मोदी तिकड़मबाजी करने में लगे हुए हैं। पहले उन्होंने बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवासन के खिलाफ याचिकाकर्ता आदित्य वर्मा को आर्थिक मदद की बात स्वीकारी और अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया सहित राजनीति जगत की तमाम बड़ी हस्तियों को लपेटे में लेने में लगे हैं।   



वसुंधरा और ललित का रिश्ता पीढ़ियों पुराना 
ललित की दादी और राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की मां राजमाता विजया राजे माता आनंदमयी की अनुयायी थीं। इनकी दोस्ती के चलते वसुंधरा और ललित में भी अच्छी दोस्ती हो गई जो संयोग से ललित से उम्र में 10 साल बड़ी हैं। वसुंधरा के कार्यकाल में ललित ‘सुपर चीफ  मिनिस्टर’ कहे जाते थे। ललित ने वसुंधरा को विश्वास में लेकर रुंगटा परिवार से राजस्थान क्रिकेट संघ छीनने के लिए सभी 57 सदस्यों के मताधिकार को समाप्त कर संघ पर कब्जा जमा लिया। इससे बोर्ड अध्यक्ष शरद पवार इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ललित को बीसीसीआई का उपाध्यक्ष बना दिया। शरद पवार ने ललित मोदी को बीसीसीआई के वाणिज्यिक फैसलों का अधिकार क्या सौंपा ललित ने 2005 से 2008 के बीच बीसीसीआई की कमाई में सात  गुना वृद्धि करने में सफलता दिला दी। यहीं ललित को आईपीएल का कमिश्नर बनाने का कारण बना। मोदी पांच साल से लंदन में रह रहे हैं, लेकिन 2013 में उन्होंने  राजस्थान क्रिकेट अकादमी (आरसीए) का चुनाव भी लड़ लिया। 


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मोदीनगर और ललित का रिश्ता 
करीब 75 वर्ष पूर्व बेगमाबाद के नाम से जाना जाने वाला एक शहर किसी नवाब ने अपनी बेगम को खुश करने के लिए बसाया था। बेगमाबाद की किस्मत ने उस समय करवट ली जब 1933 में हरियाणा के मूल निवासी मुल्तानी मल मोदी के पुत्र रायबहादुर गुजरमल मोदी ने सबसे पहले यहां शुगर मिल स्थापित की। इसके बाद साल दर साल डेढ़ दर्जन से अधिक बड़ी इकाइयां स्थापित करके वह अकेले अपने दम पर इस छोटे से कस्बे को देश के औद्योगिक नक्शे पर लाने मे सफल रहे। इस छोटे से कस्बे में मोदी ग्रुप की कंपनियां मुर्गा छाप मोदी थ्रेड, मोदी काटीनेटंल, मोदी शूटिंग, लालटेन, इलेक्ट्राड साबुन, ग्लास, सिल्क एण्ड रेयानॅ मिल मोदी पेंट एण्ड फर्निचर जेवीसी रबर, वनस्पति बिस्कुट, टायर, सिगरेट आदि की स्थापना के बाद यह शहर मोदीनगर के रूप में जाना जाने लगा। वर्ष 1976 में रायबहादुर गुजरमल मोदी के र्स्वग वास के बाद शहर के उद्योग धंधों ने अपना दम तोड़ना शुरू कर दिया और वर्ष 2000 आते-आते लगभग सभी कंपनियां बंद हो गईं। । हालांकि कुछ दिनों तक कारोबार को गुरजमल के बेटे कृष्ण कुमार मोदी ने देखा। कृष्ण कुमार मोदी फिक्की के भी प्रमुख रहे। बाद में ललित मोदी के छोटे भाई समीर मोदी ने मोर्चा संभाला। बहन चारु भी पिता के कारोबार से जुड़ी हैं लेकिन ललित का परिवार से कोई बहुत ताल्लुक नहीं रहा। उन्होंने अपने परिवार की मर्जी की परवाह किए बगैर जब शादी की तो उनका परिवार से संबंध लगभग खत्म सा हो गया। 




ललित मोदी के उदय और पतन की कहानी
1999 :  हिमाचल प्रदेश से औपचारिक तौर पर क्रिकेट प्रशासन में कदम रखा लेकिन स्थानीय अधिकारियों के साथ खराब संबंध के कारण अगले ही साल पद से हटाए ग।ए
2004 :  मोदी ने रूंगटा बंधुओं किशोर और किशन को राजस्थान क्रिकेट संघ (आरसीए) से बाहर किया।
 2004: शरद पवार की अगुआई में जगमोहन डालमिया विरोधी गुट बना, जिसे एन श्रीनिवासन, शशांक मनोहर और ललित मोदी का समर्थन हासिल था। पवार विरोधी उम्मीदवार रणबीर महेंद्रा को हराने में विफल रहे जिन्होंने निवर्तमान अध्यक्ष डालमिया के निर्णायक मत से जीत दर्ज की।
 2005: 40 बरस की उम्र में मोदी बीसीसीआई के पांच उपाध्यक्षों में सबसे युवा रहे।
 2005: बीसीसीआई के मार्केटिंग समिति के अध्यक्ष के तौर पर मोदी ने नाइकी के साथ लाखों डॉलर का किट प्रायोजन करार किया और टीवी प्रसारण करार भी किया।
2008: मोदी ने लुभावनी इंडियन प्रीमियर लीग शुरू की। बीसीसीआई ने उन्हें आईपीएल अध्यक्ष और आयुक्त नियुक्त करते हुए सभी अधिकार दिए
2009: लोकसभा चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद आईपीएल दो का आयोजन दक्षिण अफ्रीका में कराया।
 2009: मोदी आरसीए अध्यक्ष पद चुनाव में आईएएस अधिकारी संजय दीक्षित से हारे जो राज्य क्रिकेट संघ के सबसे विवादास्पद चुनाव में से एक रहे।
 2010: कई ट्वीट की श्रृंखला में कोच्चि टसकर्स केरल के शेयरधारकों का खुलासा किया और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की दिवंगत सुनंदा पुष्कर की फ्रेंचाइजी में लगभग 70 करोड़ की ‘स्वेट इक्विटी’ के बारे में भी बताया। मोदी ने शशि थरूर की संलिप्तता के बारे में भी लिखा और इस केंद्रीय मंत्री को इस विवाद के बाद इस्तीफा देना पडा।
 2010 : सरकारी एजेंसियों ने वर्ष 2009 के आईपीएल से जुडे़ वित्तीय अनियमितताओं और अन्य मुद्दों पर ललित मोदी और बीसीसीआई के खिलाफ  जांच शुरू की।
 2010 : बीसीसीआई ने आईपीएल तीन के फाइनल के खत्म होने के तत्काल बाद मोदी को वित्तीय अनियमितता के आरोप में निलंबित कर दिया।
 2010: अंडरवर्ल्ड से धमकी का हवाला देकर देश से भागे और ब्रिटेन में शरण मांगी। प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ  ब्ल्यू कार्नर नोटिस जारी किया। पासपोर्ट भी रद्द किया गया।
 2011 : बीसीसीआई ने अपनी वार्षिक आम बैठक में जांच समिति बनाई जिसने मोदी के खिलाफ  अनुशासनात्मक कार्रवाई की। इस समिति की अध्यक्षता बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने की। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन समिति के अन्य सदस्य थे।
 2012 : मोदी ने यह स्वीकार किया कि श्रीनिवासन की मदद के लिए और चेन्नई सुपर किंग्स में इंग्लैंड के हरफनमौला खिलाड़ी एंड्रयू फ्लिंटाफ  को शामिल कराने के लिए नीलामी में छेड़छाड़ में उनका हाथ था। श्रीनिवासन ने आरोपों को खारिज किया।
 2013 : अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली आईपीएल की अनुशासन समिति ने मोदी पर आजीवन प्रतिबंध की सिफारिश की और इसके बाद बीसीसीआई ने उन्हें प्रतिबंधित किया। मोदी अदालत की शरण में पहुंचे।
 2014 : राजस्थान क्रिकेट संघ के अध्यक्ष चुने गए और उसके तुरंत बाद बीसीसीआई ने आरसीए पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी वित्तीय मदद वापस ले ली। मामला अदालत में विचाराधीन है।

2014 : 27 अगस्त को दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने मोदी के पासपोर्ट को पुन: बहाल किया।


आलीशान है मोदी की लाइफ - स्टाइल 
एक आंकड़े के मुताबिक ललित मोदी की अब तक की व्यक्तिगत कमाई लगभग 36 अरब रुपये की है। लंदन के प्रतिष्ठित 117 स्लोएन स्ट्रीट पर उनका पांच मंजिला पैलेस है, जो कि 7000 स्क्वैयर फीट में फैला है। इस आलीशान बंगले में आठ डबल बेडरूम, सात बाथरूम, दो गेस्ट रूम, चार रिसेप्शन रूम, दो किचन और एक लिफ्ट हैं। यही नहीं दुनिया के कई अन्य देशों में भी उनकी प्रॉपर्टी बताई जाती हैं।  ललित मोदी स्पोर्ट्स कारों के बेहद शौकीन हैं। उनके कलेक्शन में तेज-तर्रार स्पोर्ट्स कारें शुमार हैं। मोदी ट्विटर पर अपनी ऐशो - आराम की जिंदगी वाली तस्वीरें डालते रहते हैं। पेरिस हिल्टन और नाओमी कैंपबेल जैसी सुपरस्टार के साथ उनकी तस्वीरें हैं। आईपीएल की बदौलत भी उन्होंने बहुत संबंध कमाए हैं। बॉलीवुड में शाहरुख से लेकर प्रीति जिंटा और दीपिका पादुकोण तक उनके करीबी दोस्त हैं। राजनीति जगत में राजीव शुक्ला, वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज और उनके परिवार से मोदी की करीबियां हैं।

मोदी का टशन 
ललित मोदी के बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जो साबित करते हैं कि वह हमेशा सत्ता प्रतिष्ठान के करीबी रहे हैं बल्कि ‘टशन’ के मामले में भी वह किसी से कम नहीं। वसुंधरा राजे सिंधिया के पहले शासनकाल (2003-2008) में ललित मोदी राजस्थान में सत्ता के अहम केंद्र हो गए थे। हालत यह थी कि प्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स ललित मोदी की अकड़ से खुद को आहत महसूस करते थे। बताया जाता है कि वह वसुंधरा के सामने सेंट्रल टेबल पर पैर रखकर बैठते थे।  साल 2005-2006 में मोदी ने जयपुर के बेहद मंहगे और मशहूर रामबाग पैलेस होटल को ही अपना घर बना रखा था। वह भी सिर्फ  इसलिए क्योंकि यहां से सिर्फ  सड़क पार करने पर सवाई मान सिंह क्रिकेट स्टेडियम था, जहां क्रिकेट एसोसिएशन दफ्तर भी था। मोदी के साथ एक बड़ा विवाद नवंबर, 2008 में जुड़ा। इस समय उन्होंने भारत पाकिस्तान मैच के दौरान एसएमएस स्टेडियम में तिरंगे पर शराब परोसी। मामले में मोदी पर तिरंगे को मेजपोश की तरह इस्तेमाल करने और उस पर शराब परोसने के आरोप हैं। मीडिया में भी कई फोटो आए। मामला कोर्ट में है। 


टी-20 क्रिकेट जैसी रही मोदी की प्रेम कहानी 
ललित मोदी को विदेश में पढ़ाई के दौरान अपनी मां की सहेली मीनल से प्रेम हो गया। मीनल उम्र में मोदी से नौ साल बड़ी थीं। बावजूद इसके दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ने लगा। हालांकि मोदी मीनल को शादी के लिए प्रपोज नहीं कर पाए। इसके चलते मीनल की शादी एक नाइजीरियाई व्यापारी से तय हो गई। शादी से ठीक एक दिन पहले ललित मोदी ने मीनल को शादी के लिए प्रपोज किया। ऐन वक्त पर ये प्रस्ताव सुनकर मीनल काफी चौंक गई और मोदी पर गुस्सा हो गई। इसके बाद मीनल ने मोदी से चार साल तक बात नहीं की। मीनल की शादी के बाद भी मोदी उनका इंतजार करते रहे। मीनल की शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और उनका तलाक हो गया। तलाक ने मीनल को मोदी के और करीब कर दिया। हालांकि दोनों के रिश्ते का परिवार में जमकर विरोध हुआ। लेकिन दोनों के प्रेम के आगे परिवार को घुटने टेकने पड़े। इसके बाद 1991 में दोनों ने विवाह कर लिया। मोदी ने मीनल की पहले पति से हुई बेटी करीमा को अपना नाम दिया। करीमा की शादी डाबर ग्रुप के मालिक विवेक बर्मन के बेटे गौरव से कराई। गौरव के भाई की आईपीएल टीम किंग्स इलेवन पंजाब में हिस्सेदारी भी है। मोदी के एक बेटी और एक बेटा है। बेटी का नाम आलिया है और वह स्विट्जरलैंड में पढ़ाई करती है। जबकि बेटे का नाम रुचिर है।


सबसे शक्तिशाली चेहरों में से एक 
इंडिया टूडे पत्रिका के अनुसार ललित मोदी 21 वीं सदी में भारत के 20 सबसे शक्तिशाली लोगों में सूचीबद्ध हैं। उन्हें इसलिए सम्मिलित किया गया क्योंकि 2005 में बोर्ड में उनके शामिल होने के बाद से बीसीसीआई के राजस्व में सात गुना वृद्धि हुई ।  2008 अगस्त अंक की प्रमुख खेल पत्रिका स्पोर्ट्स प्रो द्वारा वैश्विक आंकड़ों के खेल से जुड़े पावर लिस्ट में उनकी गणना 17 नंबर पर की गई। उन्हें बेस्ट रेन मेकर (पैसा निर्माता) के रूप में किसी भी खेल के क्षेत्र में विश्व भर के खेल के इतिहास में स्थान मिला। इतने कम समय में वह एक ऐसे खेल प्रशासक बने जिन्होंने अपने संगठन के लिए चार अरब अमरीकी डॉलर जुटाया है। इतना सब कुछ उन्होंने अवैतनिक क्षमता में रहते हुए किया। द टेलीग्राफ  ने उन्हें क्रिकेट के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है। टाइम मैगजीन (जुलाई 2008) ने उन्हें 2008 के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खेल कार्यकारी अधिकारियों की सूची में 16 नंबर पर रखा। अक्टूबर 2008 अंक के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पत्रिका बिजनेस वीक में ललित मोदी को विश्व में 25 सबसे शक्तिशाली खेल वैश्विक आंकड़ों की सूची में 19 नंबर पर स्थान मिला। ललित मोदी ने मोस्ट इनोवेटिव बिजनेस लीडर ऑफ इंडिया (भारत के सबसे नवप्रवर्तनशील व्यापारिक नेता) का पुरस्कार भी प्राप्त किया। डीएनए अखबार ने भारत में 50 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में उन्हें 17 वें स्थान पर क्रमित किया।

जारी है क्रिकेट पिच पर खूनी खेल


खेलों में बरसी संपन्नता ने क्रिकेट को व्यावसायिकता की तरफ मोड़ दिया, उससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी। आक्रामकता को नया तेवर मिला। आक्रामकता क्रिकेट की अनिवार्य पहचान बनी हुई है और पिच पर खिलाड़ियों के खून रिसने का सिलसिला जारी है।

कहा जाता है कि खेल, युद्ध का अहिंसक और मित्रतापूर्ण रूपांतरण है। लेकिन कभी - कभी खेल में ऐसी दुर्घटना हो जाती है, जो याद दिलाती हैं कि तमाम एहतियात के बावजूद खेल उतने अहिंसक और सुरक्षित नहीं हैं, जितना हम मानते हैं। बंगाल के युवा प्रतिभाशाली क्रिकेटर अंकित केशरी की एक मैच के दौरान लगी चोट से मौत भी ऐसी ही है। अंकित बंगाल की अंडर-19 क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके थे और भारत की अंडर-19 टीम के संभावित खिलाड़ियों में भी उनका नाम था।  अंकित ‘मौत के मैच’ में खेलने वाले 11 खिलाड़ियों में से नहीं थे, वह अतिरिक्त खिलाड़ी थे। वह थोड़ी ही देर पहले किसी खिलाड़ी की जगह क्षेत्ररक्षण करने मैदान में आए थे। एक कैच उनकी तरफ  उछला, जिसे पकड़ने एक ओर से वह दौड़े,  दूसरी ओर से गेंदबाज खुद कैच पकड़ने दौड़ पड़ा, इसमें कुछ नया नहीं था। 1999 में श्रीलंका के खिलाफ एक मैच में ऐसा ही हुआ। आस्ट्रेलिया के स्टीव वॉ शार्ट फाइन लेग पर फील्डिंग कर रहे थे, जेसन गिलेस्पी डीप स्क्वायर लेग पर थे। एक कैच को लपकने की कोशिश में दोनों टकरा गए। स्टीव की नाक और गिलेस्पी का पैर चोटिल हो गया। गिलेस्पी को पंद्रह महीने तक क्रिकेट से दूर रहना पड़ा जबकि स्टीव वॉ को नाक की सर्जरी करानी पड़ी। इस तरह की घटनाएं क्रिकेट में आम होती हैं कि एक ही कैच पकड़ने दो खिलाड़ी दौड़ पड़े। कभी कैच पकड़ा जाता है, तो कभी दोनों के बीच गलतफहमी की वजह से छूट जाता है, कभी दोनों खिलाड़ी टकरा भी जाते हैं और थोड़ी - बहुत चोट भी लग जाती है। लेकिन दो खिलाड़ियों के टकराने से किसी एक खिलाड़ी ( अंकित केशरी ) के मौत की घटना संभवतः पहली बार है।  जाहिर है कि उन्हें नियम बना कर रोका नहीं जा सकता लेकिन जरूरी है क्रिकेट में जरूरत से ज्यादा आक्रमकता को रोकना। पिछले साल कंगारू टीम के युवा खिलाड़ी फिल ह्यूज की मौत पर ऑस्ट्रेलिया में काफी आंसू बहे लेकिन वहां की क्रिकेट संस्कृति में तो विपक्षी टीम को मानसिक व शारीरिक रूप से ध्वस्त करने की चाहत कूट-कूट कर भरी हुई है। इसके लिए सिर्फ गेंद ही हथियार नहीं होती, गाली-गलौज और सामने वाले खिलाड़ी को उकसाने की हर तरह की हरकत वहां सालों से हो रही हैं। बाकी देशों में भी आक्रामकता को खेल का अनिवार्य हिस्सा मान लिया गया है। मसलन, वेस्टइंडीज के मैल्कम मार्शल को बल्लेबाज जितना सहमा हुआ दिखता था, उतना ही उन्हें आनंद आता था। आस्ट्रेलिया के जेफ थामसन को पिच पर गिरी बल्लेबाज की खून की बूंदें राहत देती थीं। इसमें कोई दो मत नहीं कि पिछले कुछ सालों में क्रिकेट श्रेष्ठता साबित करने का जरिया बन गया है। प्रतिष्ठा तो इससे जुड़ी ही है, आर्थिक फायदा भी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि अरबों रुपये का राजस्व उगलने वाला यह खेल  थोड़ा विवादित और आक्रामक होगा ही ताकि उस मैच की ओर दर्शकों का ध्यान आकर्षित हो। जानकारों का मानना है कि आज के दौर में मैदान पर खिलाड़ियों की आक्रामकता स्क्रिप्टेड है। कई पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि मैदान पर आक्रामक रवैया अपनाने की मांग मैनजमेंट और संस्‍थाएं करती हैं ताकि लोगों का ध्यान आक्रामक खिलाड़ी और मुकाबलों की ओर आकर्षित हो। शायद इसी का नतीजा है कि विराट कोहली वर्तमान दौर के आक्रामक खिलाड़ियों में शुमार हो चुके हैं और दर्शकों की नजर में देश का आक्रामक प्रतिनिध बने हुए हैं। आज के दौर में जहां संस्‍थाएं किसी भी मैच को टीवी चैनल का रियालिटी शो बनाने की कोशिश में लगी हुई हैं
जिस वजह से मैदान पर तरह - तरह से  खिलाड़ियों को उकसाया जाता है। बल्लेबाजी कर रहे खिलाड़ी को गेंदबाज उकसाता है तो गेंदबाजी कर रहे खिलाड़ी को बल्लेबाज।  जिसका नतीजा यह होता है कि 
दोनों एक दूसरे को करारा जवाब देने के चक्कर में कुछ खतरनाक कदम उठा लेते हैं। मसलन बल्लेबाज , कुछ खतरनाक शॉट मारने की कोशिश करता है तो गेंदबाज कुछ खतरनाक बाउंसर। बाउंसर  तेज गेंदबाज का सबसे अचूक हथियार माना जाता है। मकसद खिलाड़ी को पीछे की ओर धकेलना होता है। पिच के बीच टप्पा खा कर गेंद उछल कर बल्लेबाज की छाती के ऊपर आती है और घबरा कर बल्लेबाज या तो सुरक्षात्मक अंदाज अपनाता है या गेंद के रास्ते से हटने की कोशिश करता है अथवा लेग साइड पर गेंद को मार कर रन लेने का जोखिम उठाता है। इस पूरी कोशिश में जरा सा संतुलन गड़बड़ाते ही चोट लगने का खतरा बना रहता है और अगर यह चोट सिर के किसी हिस्से में लगती है तो फिल ह्यूज की तरह के हादसों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।  ऐसे में रास्ता यही है कि अंपायर ज्यादा सतर्क रहें और अगर उन्हें लगे कि गेंदबाज जानबूझ कर बल्लेबाज को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है तो उसे चेतावनी दे।  अंपायरों को अतिरिक्त अधिकार देना जरूरी है क्योंकि वह ही तय कर सकते हैं कि गेंदबाज की उग्रता में क्या भावना छिपी है? साथ ही विकेट कीपर, फील्डर और बल्लेबाज के लिए आधिक सुरक्षित उपकरण विकसित किए जाने की जरूरत है। खिलाड़ियों को अपनी तकनीक भी सुधारनी होगी।  क्रिकेट अब पहले जैसा जेंटलमैन गेम तो बनने वाला नहीं है। खिलाड़ियों के लिए वह जितना सुरक्षित हो जाए, उतना ही अच्छा है।


जब बाउंसर ने गावस्कर को डराया
1975-76 में किग्संटन में माइकल होल्डिंग की अगुवाई में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों ने बाउंसरों की बौछार कर भारतीय खिलाड़ी अंशुमन गायकवाड़ का कान तोड़ दिया। विश्वनाथ की उंगली टूट गई और ब्रजेश पटेल भी अस्पताल पहुंच गए। सुनील गावस्कर ने शरीर को जानबूझ कर निशाना साध कर गेंद फेंकने की जब चीनी मूल के अंपायर सैंग ह्यू से शिकायत की तो उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। गावस्कर ने गुस्से में बैट पटक दिया और कहा, `मैं यहां मरना नहीं चाहता। मुझे अपने नवजात बेटे से मिलना है।’ स्थिति यह थी कि  हर बाउंसर के साथ दर्शक चिल्लाते थे, किल हिम! (इन्हें मार डालो) हिट हिम, (इनके सिर पर मारो)।  जब भी बल्लेबाज को गेंद लगती प्रशंसक बीयर केन के साथ उछलते और खुशी मनाते।


एक पक्ष लापरवाही का
पिछले साल फिल ह्यूज की मौत के बाद इंग्लैंड के दिग्गज खिलाड़ी ज्यॉफ्री बॉयकाट ने कह‌ा था, कुछ भी कर लिया जाए, मैदान पर होने वाले हादसों को नहीं रोका जा सकता। उनका मानना है, किक्रेट के नए-नए प्रारूप सामने आने से खेल का हुलिया ही बदल गया है। तकनीक की उपेक्षा होने लगी है। हेलमेट पहनने के बाद खिलाड़ी मान लेते हैं कि उन्हें चोट नहीं लग सकती। वे लापरवाह हो जाते है। ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में वे ज्यादा खेलने में व्यस्त रहते है और अपनी तकनीक की खामियों में सुधार नहीं कर पाते। खिलाड़ी पुराने सैनिकों की तरह बख्तर बंद पहन कर खेलें तो बात अलग है नहीं तो हेलमेट या अन्य उपकरणों में कितना भी सुधार क्यों न कर लिया जाए, हादसे नहीं थमने वाले।


जब चोट से प्रभावित हुआ खेल
28 साल के भारतीय खिलाड़ी नॉरी कट्रेक्टर 1962 में आधा दर्जन ऑपरेशन के बाद बच तो गए,  लेकिन उन्हें क्रिकेट से नाता तोड़ना पड़ा। टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर दक्षिण अफ्रीका के मार्क बाउचर की 2013 में विकेट की गिल्ली उछलकर आंख में लग जाने से आगे क्रिकेट खेल सकने लायक रोशनी ही नहीं बची। पूर्व भारतीय विकेट कीपर सैयद सबा करीम भी ऐसी ही दुर्घटना का शिकार होने के बाद अपनी दाईं आंख गवां बैठे थे। वह अनिल कुंबले की गेंद को पकड़ने में चूक गए और गेंद सीधे उनकी आंख में लगी। क्रिकेट के सबसे बड़े बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर भी अपने पहले टेस्ट मैच में वकार यूनिस की गेंद का शिकार हुए। नाक में गेंद लगने से उनकी नाक लहुलुहान हो गई थी। लेकिन जिंदादिल सचिन ने हार नहीं मानी और बैटिंग जारी रखी। इस घटना के बाद सचिन ने खुले हेलमेट की जगह ग्रिल वाले हेलमेट लगाना शुरू कर दिया। सचिन ने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि उस चोट के बाद मेरा मन क्रिकेट छोड़ने का हो गया था। सचिन की ही तरह वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज ब्रायन लारा भी चोट का शिकार हो चुके हैं। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी - 2004 के सेमीफाइनल में लारा पाकिस्तानी गेंदबाज शोएब अख्तर की बाउंसर पर चकमा खा गए और गेंद सीधी उनके सिर पर लगी। ब्रायन लारा खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि यदि उस दिन हेलमेट नहीं होता तो शायद उनके सर की धज्जियां ही उड़ जातीं। लारा ने यह भी कहा था कि वह चोट उन्हें आज भी परेशान करती है।  दक्षिण अफ्रीका के पूर्व ओपनर गैरी क्रिस्टन भी शोएब अख्तर की खतरनाक बाउंसर पर अपनी नाक तुड़वा चुके हैं। पूर्व भारतीय कप्तान अनिल कुंबले सन 2002 में वेस्टइंडीज के खिलाफ  मार्वन ढिल्लन की गेंद पर चोट खाकर जबड़ा तुड़वा चुके हैं। कुंबले उस चोट के बाद लंबे समय तक क्रिकेट से बाहर रहे और बाद में वह बाउंसर खेलने से बचते भी रहे।


वो साहसी खिलाड़ी
लेकिन कई ऐसे बल्लेबाज भी हुए जो तेज गेंदों से घायल होने के बाद भी खेलने वापस आए। इनमें से एक खिलाड़ी का किस्सा यहां बताना जरूरी है। उसका नाम ज्यादातर लोग नहीं जानते। वह थे सुल्तान जरावई जो करोड़पति थे और शौकिया क्रिकेट खेलते थे। वह यूएई टीम के कप्तान भी थे। उनका मुकाबला 1996 में रावलपिंडी में दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक गेंदबाज एलेन डोनाल्ड से हुआ। उन्होंने हेलमेट की बजाय एक हैट पहना था। डोनाल्ड की पहली ही गेंद उठती हुई बाउंसर थी। गेंद जरावई के सिर में लगी और वह चकरा गए, पांच मिनट बेहोश रहे लेकिन कुछ ही सेकेंड बाद उन्होंने अपना हैट उठाया और फिर बल्लेबाजी करने चले आए। छह गेंद बाद वह आउट हो गए लेकिन अपनी बहादुरी की छाप छोड़ गए। इंग्लैंड के महान बल्लेबाज डेनिस क्रॉम्पटन को 1948 में रे लिंडवॉल ने अपने बाउंसर से बुरी तरह जख्मी कर दिया। उनके सिर पर दो टांके लगे लेकिन वह घबराए नहीं और अस्पताल से लौटकर बैटिंग करने आए, उन्होंने उस मैच में शानदार 145 नाबाद रन बनाए।



सिलसिला मौत का ....
-  इंग्लैंड के जैस्पर विनाल का निधन 28 अगस्त 1624 को एक क्लब मैच के दौरान सिर में बैट लगने से हो गया था।
-  नॉटिंघम में 29 जून, 1870 को इंग्लैंड के जॉर्ज समर्स (उम्र ः25 ) के सिर पर गेंद से गंभीर चोट लगी, कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई।
- इंग्लैंड के एंडी डुकाट (उम्र ः 56 ) का 23 जुलाई, 1942 को लंदन में एक क्रिकेट मैच के दौरान शॉट गेंद सीने पर लगी फिर दिल का दौरा पड़ गया।
- कराची में 17 जनवरी, 1959 को एक मैच के दौरान पाकिस्तान के अब्दुल अजीज ( उम्रः 18 )की छाती में गेंद से जानलेवा चोट लगी।
- इंग्लैंड के विल्फ स्लैक का निधन गांबिया के बंजुल में एक मैच के दौरान बल्लेबाजी करते हुए हुआ, स्लैक 34 साल के थे।
- इंग्लैंड के ही इयान फोली (उम्र ः 30 ) भी एक मैच के दौरान गंभीर रूप से चोटिल हुए जिसके कुछ दिनों बाद 30 अगस्त 1993 को उनका निधन हो गया।
-  1998 में भारतीय क्रिकेटर रमन लांबा (उम्र: 38 साल) की भी मौत सिर में बॉल लगने के कारण हुई थी। वह बांग्लादेश के ढाका में क्लब क्रिकेट खेल रहे थे। शॉर्ट लेग पर फील्डिंग के दौरान रमन के सिर पर एक तेज शॉट लगा। चोटिल लांबा को ढाका के पोस्ट ग्रेजुएट अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
- पाकिस्तान के वसीम रजा ( उम्र : 54 ) का 23 अगस्त, 2006 को इंग्लैंड के मर्लों में मैच के दौरान दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
- इंग्लैंड के अंपायर जेनकिंस 2009 में एक लीग मैच में अंपायरिंग कर रहे थे।  क्षेत्ररक्षक द्वारा फेंकी गई गेंद दुर्घटनावश 72 वर्षीय जेनकिंस के सिर पर जा लगी और मौत हो गई।
-  इंग्लैंड के काउंटी क्लब खिलाड़ी 33 वर्षीय ब्यूमोंट 2012 में खेल के मैदान पर दिल का दौरा पड़ने से गिर पड़े और अस्पताल ले जाए जाने पर मृत घोषित कर दिए गए।
- दक्षिण अफ्रीका के विकेटकीपर बल्लेबाज डैरिन रैंडाल ( उम्र :32 ) को 27 अक्टूबर, 2013 को एलिस में एक मैच के दौरान सिर में गंभीर चोट लगी और मौत हो गई।
-  2013 में घरेलू क्रिकेट खेलने के दौरान एक गेंद पाकिस्तान के जुल्फिकर भट्टी (उम्र: 22 साल) के सीने पर लगी थी, उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वो बच नहीं सके।
- 30 नवंबर, 2014 को इजरायल के ऐशडोड शहर में एक मैच के दौरान अंपायरिंग कर रहे 55 साल के ऑस्कर हिलेल की गेंद लगने से मौत हो गई।
- बल्लेबाजी के दौरान सिर में गंभीर चोट लगने के बाद आस्ट्रेलिया के फिल ह्यूज का निधन 27 नवंबर 2014  सिडनी में हुआ।
- भारत के अंकित केसरी का निधन 20 अप्रैल, 2015 को कोलकाता में हुआ। वह 17 अप्रैल को एक मैच में क्षेत्ररक्षण करने के दौरान अपने साथी खिलाड़ी से टकरा गए थे और यह चोट जानलेवा साबित हुई।


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क्या कहते हैं आंकड़े
एक रिसर्च के मुताबिक हर 25वें सेकंड में या एक साल में 13, 50000 बार एक युवा एथलीट सिर की चोट लगने के कारण इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती होता है। अमेरिकी संस्था ‘सेफ  किड्स वर्ल्ड वाइड’ द्वारा किए शोध के मुताबिक खिलाड़ी सबसे ज्यादा सिर की चोट के कारण अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं। यह शोध दुनिया भर में खेले जाने वाले 14 सबसे लोकप्रिय खेलों में दर्ज हुए प्रकरणों के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अस्पतालों के इमरजेंसी रूम में भर्ती होने वाले 12 फीसदी केस सिर पर आघात के होते हैं। इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं 12 से 15 उम्र के एथलीट। अगर भारत में क्रिकेट के दौरान चोटिल होने वाले खिलाड़ियों की बात की जाए तो हर दिन करीब 233 बच्चे गंभीर रूप से घायल होते हैं और अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं, जिनमें से नौ खिलाडी़ दम तोड़ देते हैं। 


हेलमेट ः तब और अब में फर्क
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के युवा बल्लेबाज की मौत के बाद खिलाड़ियों के हेलमेट पर सवाल खड़े होने लगे। ह्यूज ने जो हेलमेट पहना हुआ था उससे पीछे गर्दन वाला हिस्सा कवर नहीं हो पा रहा था और गेंद जाकर सीधे वहीं लगी। उनका हेलमेट 2013 वर्जन वाला था, जबकि हाल ही में 2014 वर्जन वाले हेलमेट से कान के पास वाला हिस्सा भी ग्रिल के जरिए कवर होता है। भारत के महानतम बल्लेबाज सुनील गावस्कर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने करियर में कभी भी हेलमेट नहीं पहना। हालांकि उन्होंने 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ  एक वनडे मैच में प्रायोगिक तौर पर सिर को सुरक्षा देने वाला कैप (हेडगियर) पहना लेकिन इसे हेलमेट नहीं कहा जा सकता। 1977 में डेनिस लिली और टोनी ग्रेग ने प्रायोगिक तौर पर मोटरसाइकिल के हेलमेट की तरह हेलमेट पहनना शुरू किया। क्रिकेट में सबसे पहले हेलमेट पहनने की शुरुआत 17 मार्च, 1978 को ऑस्ट्रेलिया के ग्राहम नील यालेप ने वेस्टइंडीज के खिलाफ  एक मैच के दौरान की थी। हालांकि इस हेलमेट के प्रयोग पर अंदर काफी गरमी होती थी क्योंकि हवा के अंदर जाने का कोई प्रबंध नहीं था। धीरे-धीरे हेलमेट में सुधार आता गया और हेलमेट को हवादार भी बनाया जाने लगा। अगस्त, 1994 को कोलंबो में खेले गए मैच में श्रीलंका के बल्लेबाज असांका गुरुसिंघा ने इस हवादार हेलमेट को पहना। धीरे-धीरे क्षेत्ररक्षक भी हेलमेट पहनने लगे। 90 के दशक के बाद जैसे-जैसे क्रिकेट मैच ज्यादा होने लगे वैसे-वैसे ही टिकाऊ और उपयोगी हेलमेट की मांग बढ़ने लगी। हेलमेट के बनावट में और सुधार आया, उसे हल्का होने के साथ-साथ और लचीला भी बनाया जाने लगा।

हेलमेट खरीदते समय खिलाड़ी रखे इन बातों का ध्यान
ये बातें अनिवार्य
-  फेसगार्ड और सिर के कवर के बीच पर्याप्त जगह।
  -  कान की सुरक्षा।
- कान के पीछे और गर्दन के ऊपरी हिस्से के लिए एक्स्ट्रा ग्रिल।
-  सिर को कवर करने वाली टोपी मजबूत हो।

तो खिलाड़ी ही हैं जान के दुश्मन
ऐसा नहीं है कि क्रिकेट के लिए उच्च तकनीक हेलमेट नहीं बनाए गए हैं। इंग्लैंड की एल्बियॉन स्पोर्ट्स ने एक ऐसा हेलमेट बनाया जो सिर का अधिकतर भाग कवर करता था और इससे टकराने के बाद गेंद आसानी से दूसरी ओर उछल जाती थी लेकिन उसकी बिक्री ही नहीं हुई और कंपनी को अपने उन हेलमेट्स को बाजार से हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके पीछे क्रिकेटरों का नए प्रयोग के लिए तैयार नहीं होना माना गया। कई कंपनियां यह भी कहती हैं कि क्रिकेट के कई दिग्गज ही हेलमेट में नई तकनीक लाने में बाधा बने हुए हैं। ये आधुनिक तकनीक वाले हेलमेट को इस खेल के पारंपरिक सौंदर्य को बिगाड़ने वाला मानते हैं। वहीं कुछ कंपनियों का आरोप है कि क्रिकेट की संस्थाओं को भी इस तरह की हेलमेट्स से परेशानी है। कंपनियों का कहना है , हर देश की क्रिकेट संस्‍थाओं में दिग्गज खिलाड़ियों का ही वर्चस्व है और वह इसके एवज में मोटी रकम चाहते हैं। अगर हम उन्हें मोटी रकम खिलाए तो संभव है कि आधुनिक तकनीक के हेलमेट प्रयोग में आ जाए।  हालांकि हाल ही में आइसीसी ने हेलमेट में नए संशोधनों की सिफारिश की है। हेलमेट में मुंह के समक्ष जाली के बीच की दूरी ज्यादा होने के कई बार गेंद बल्लेबाज की नाक एवं माथे में लग सकती है। ऐसे में आइसीसी ने खेल उपकरण विशेषकर हेलमेट बनाने वाली कंपनियों से और सुरक्षित हेलमेट बनाने की अपील की है।