Tuesday 9 April 2019

न्यूज रूम में सीवान और शहाबुद्दीन...

            

और, तुम्हारे सीवान के क्या हाल हैं?  
क्या लगता है, कौन जीतेगा?
ये दो ऐसे सवाल हैं जो इन दिनों न्यूज रूम में मुझसे कोई न कोई पूछ ही लेता है। दरअसल, चुनावी मौसम में न्यूज रूम का माहौल भी बिल्कुल चुनावी होता है। कभी न्यूज रूम में आप आएंगे तो आपको हर सीट की जानकारी और हर सीट के समीकरण बताने वाले ढेरों साथी मिल जाएंगे।  

न्यूज रूम में कई ऐसे भी साथी मिलेंगे जो अपनेअपने बीट यानि क्षेत्र में पारंगत हैं लेकिन उन्हें राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। लेकिन जो साथी जिस शहर का होता है उससे उसके लोकसभा क्षेत्र के समीकरण को समझने की हर कोई कोशिश करता है।  खासतौर पर उन सीटों की चर्चा जरूर होती है, जो अकसर चर्चा में रहती हैं।

इन दिनों न्यूज रूम में बिहार की जिन सीटों पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है उनमें बेगूसराय, पटना साहिब, नवादा, पूर्णिया और सीवान हैं।
             
न्यूज रूम में संभवत: हर किसी को मालूम हैमैं सीवान से हूं!  यही वजह है कि राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले साथी  मेरे बिजनेस पत्रकार होने के बावजूद मुझसे हर दो से तीन दिन पर मेरी सीट पर आते हैं और  सीवान लोकसभा के समीकरणों को लेकर बातें करते हैं। मैंने भी कभी इस बात को छुपाया नहीं, मैं भी अपनी समझ के हिसाब से ज्ञान दे ही देता हूं।

लेकिन इन बातों या बहस में जो एक बात कॉमन रहती है वो हैशहाबुद्दीन

शहाबुद्दीन वो नाम है जिसने लंबे समय तक सीवान मे राज किया और लंबे समय से ही जेल में बंद है। ये बातें पुरानी हो चुकी हैं, अब जिले में कोई नहीं चाहता कि शहाबुद्दीन के नाम पर राजनीति हो। लेकिन कोई यह भी नहीं चाहता कि शहाबुद्दीन के नाम के बिना राजनीति हो।  सीवान क्या, बिहार भर में सीवान की बात होती है तो राजद को शहाबुद्दीन के विकास की बात करनी होती है, बीजेपीजेडीयू को शहाबुद्दीन के कारनामों की चर्चा करनी होती है।


राजद और खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि शहाबुद्दीन किसी जनआंंदोलन नहीं बल्कि तेजाब कांड में जेल में बंद हैं। उसी तरह बीजेपी और जेडीयू यह मानने को तैयार नहीं रहती कि शहाबुद्दीन ने सीवान में विकास की एक नई गाथा लिखी।  

शहाबुद्दीन का सच यह है कि बतौर सांसद विकास तो किए लेकिेन अपराध की भी नई परिभाषा लिखी। शहाबुद्दीन देश के एकमात्र ऐसे सांसद रहे जिनके नाम हत्या, फिरौती समेत सबसे ज्यादा आपराधिक मामले थे।

लेकिन जब विकास की बात होती है तो उसमें भी अव्वल हैं। सीवान के स्टेडियम, कॉलेज, अस्पताल की बुलंद नींव शहाबुद्दीन के नाम है।  जिस दौर में नक्सली या रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया बिहार में विस्तार कर रहे थे तब शहाबुद्दीन एक चट्टान की तरह सीवान की सीमाओं पर डटे थे।

खैरन्यूज रूम में मुद्दे पर लौटते हैं

न्यूज रूम में बात या बहस के दौरान लोग मुझसे दो तरह की बातें कहते हैं
पहली तरह बात में लोग सीधे मुझे यह बताते हैं कि सीवान में शहाबुद्दीन ने बहुत जुल्म किया है
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वहीं दूसरी तरह की बात में लोग कहते हैंकुछ भी हो, शहाबुद्दीन ने काम तो किया ही है

इन दोनों तरह की बात में मेरे विचार कहीं नहीं होते हैं

ये खुद मेरे साथियों का जजमेंट होता है!  संभवत: जो लोगों को दिखाया गया है वही बातें दिल्ली में बैठे हमारे साथी भी अपनी समझ के आधार पर करते हैं। लेकिन हैरानी इस बात की भी है कि सालों से जेल में बंद शहाबुद्दीन पर ही सीवान का कांटा क्यों अटक जाता है। हम उन मुद्दों की बात क्यों नहीं करते जो सीवान को नए तरीके की सियासत सिखाए..

इस सवाल के जवाब की जड़ भी सीवान में ही है..नई पौध हो या पुरानी पीढ़ी, हर किसी के केंद्र में जाति या धर्म है..यह इतना नस—नस में है कि हम इसके बिना रह नहीं सकते हैं। इससे मैं खुद को अलग नहीं मानता हूं!  लेकिन न्यूज रूम में मेरे इरादे और बातें सीवान और यहां के विकास पर फोकस होती हैं, ये मैं खुद से नजरें मिलाकर, जरूर कह सकता हूं!

Friday 26 October 2018

खुद को कानून से उपर समझने वाले नेताओं से मिलिए

वैसे तो आपको बैंक में कोई भी काम करना होगा तो बार-बार पैन कार्ड मांगी जाती है, लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि देश में कई ऐसे सांसद और विधायक हैं, जिनकी पैन डिटेल ही नहीं है। चुनावी सुधार पर काम करने वाली एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक्स रिफॉर्म्स) द्वारा जारी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।

एडीआर के मुताबिक, सात वर्तमान सांसदों और 199 विधायकों ने चुनाव आयोग में अपने पैन की डिटेल नहीं दी है। एडीआर ने चुनाव आयोग के पास जमा कराए गए शपथ पत्र की स्टडी करने के बाद यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 सांसद व 35 विधायक ऐसे भी हैं, जो दूसरी-तीसरी बाद चुने गए, लेकिन उनके शपथ पत्र में दी गई पैन डिटेल में गड़बड़ी है।

करोड़ों के हैं मालिक 
जिन सांसदों व विधायकों ने पैन डिटेल नहीं दी है, उनमें से कई करोड़पति हैं। सात सांसदों में से मिजोरम के कांग्रेसी सांसद सीएल रुआला की संपत्ति 2.57 करोड़ तो ओड़िशा के भुवनेश्वर संसदीय क्षेत्र के सांसद प्रसन्ना कुमार की संपत्ति 1.35 करोड़ रुपए है। हालांकि इस लिस्ट में लक्षद्वीप के मोहम्मद फैजल भी शामिल हैं, जिनकी संपत्ति कुल 5.38 लाख रुपए ही है। इसमें आसाम करीमगंज के राधेश्याम बिश्वास (संपत्ति 70.68 लाख), ओडिशा जाजपुर की सांसद रीता तराई (संपत्ति 16.22 लाख), तमिलनाडु, कृष्णानगरी के सांसद अशोक कुमार (संपत्ति 11.76 लाख) व तिरुवनामलाई के सांसद वनारोजा आर (संपत्ति 37  लाख) के नाम भी शामिल हैं। इन सांसदों ने अपने शपथ पत्र में पैन डिटेल नहीं दी है।


सांसदों से आगे एमएलए 
संपत्ति के मामले में सांसदों से आगे विधायक हैं। कई एमएलए के पास 20 करोड़ से अधिक संपत्ति हैं, लेकिन उन्होंने भी अपनी पैन डिटेज जमा नहीं कराई है। मणिपुर के एक एमएलए की संपत्ति 36 करोड़ है तो मिजोरम के एमएलए की संपत्ति 25 करोड़ रुपए।

पैन में गड़बड़ी 
एडीआर की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई सांसद व एमएलए ऐसे हैं, जो एक से अधिक बार तो चुने गए हैं, लेकिन जब उन्होंने अलग-अलग बार शपथ पत्र जमा कराया तो उसमें पैन की अलग अलग जानकारी दी गई है। जैसे कि, पहले पैन नंबर कुछ और था और बाद में बदला हुआ था। यहां दिलचस्प बात यह है कि इन सांसदों व एमएलए की सपंत्ति पहली बार सांसद बने नेताओं से कही अधिक है। जैसे कि पुरी से सांसद पिनाकी मिश्रा की संपत्ति 137 करोड़ रुपए है, जबकि महाराष्ट्र के सतारा के सांसद के पास 60 करोड़ रुपए की संपत्ति है।

Thursday 28 June 2018

मायावती की राह पर तेजप्रताप !

​वैसे तो सियासत में आत्ममुग्ध नेताओं की लंबी फेहरिस्त है लेकिन इस मामले में मायावती ने जो मुकाम हासिल किया है वो संभवत: अब तक कोई नहीं कर सका है। यह आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा ही है कि उन्होंने जिंदा रहते हुए ही अपनी मूर्तियां तब बनवा लीं। तब उन्होंने सरकारी खजाने को अपनी मूर्तियों पर खूब लुटाया।

लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट की मानें तो यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में पार्क और माया के अलावा काशीराम की मूर्तियां पर कुल 5,919 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
वहीं नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी की पत्थर की 30 मूर्तियां जबकि कांसे की 22 प्रतिमाएं लगवाई गईं थी। इसमें 685 करोड़ का खर्च आया था। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन पार्कों और मूर्तियों के रखरखाव के लिए 5,634 कर्मचारी बहाल किए गए थे।

ये तो हुई पुरानी बात, अब नए दौर में नई आत्ममुग्धता लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप में दिख रही है। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा कि उन्होंने फिल्मों में एंट्री ली है इस वजह से आत्ममुग्ध हैं। उनकी आत्ममुग्धता का लंबा रिकॉर्ड रहा है। तेजप्रताप यादव ने कुछ महीनों पहले ही एक वीडियो सॉन्ग लांच किया था। उस वीडियो में 'तेजप्रताप पुकार रहा है' नाम से गाना गया है। इस वीडियो में उन्होंने खुद को गरीबों का मसीहा से लेकर विकास पुरुष तक बताया है।    

इससे पहले सार्वजनिक मंच पर कई ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने बांसुरी से लेकर शंखनाद तक किया है। यानी उन्होंने वो सभी हथकंडे अपनाए हैं जिसके जरिए मीडिया में सुर्खियां ​मिलती रहे और आत्ममुग्धता को भी तृप्ति मिले। बहरहाल, तेजप्रताप का यह रुप सामान्य नेताओं से बिल्कुल अलग है। यह आत्ममुग्धता न तो कभी उनके पिता लालू यादव में रही और न ही तेजस्वी यादव में है। संभवत : यही वजह है कि तेजप्रताप बिहार की राजनीति में ज्यादा मायने नहीं रखते हैं।  

Saturday 21 April 2018

सलमान खान की राह पर पवन सिंह!

अगर आपसे कोई सवाल पूछे कि बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान की किस्मत बदलने वाली फिल्म कौन सी थी तो आपका जवाब वांटेडहोगा। और सच भी यही है। साउथ फिल्म की रीमेक वांटेडने सलमान खान की किस्मत तो बदली ही इसके साथ ही कमाई के भी नए रिकॉर्ड का आगाज कर गई। अब इसी फिल्म के जरिए भोजपुरी फिल्मों के पावर हाउसपवन सिंह भी अपनी किस्मत बदलने में जुटे हैं।   दरअसल, भोजपुरी सुपरस्‍टार पवन सिंह की अपकमिंग फिल्म का नाम वांटेड है। इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज हो चुका है। इतने कम समय में ट्रेलर को यू ट्यूब पर लोग खूब सराह रहे हैं।

वहीं काफी लोगों ने यह मान लिया है कि पवन सिंह, बॉलीवुड के भाईजान सलमान खान की राह पर चल निकले हैं। वह वांटेडमें एक्शन और कॉमेडी में भी सलमान खान की नकल करते हैं। इसी तरह पवन सिंह अपनी एक और अपकमिंग फिल्म लोहा पहलवान में भी सलमान खान की सुल्तान जैसे नजर आ रहे हैं।    यह नकल सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित नहीं है। यह निजी जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही है। जिस तरह निजी जिंदगी में सलमान खान की ऐश्वर्या राय के साथ प्यार और फिर तकरार की खबरों ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी। उसी तरह पवन सिंह के हालात पवन सिंह की भी निजी जिंदगी में देखने को मिल रही है। तभी तो हाल ही में पवन सिंह और उनकी कथित प्रेमिका रहीं अक्षरा सिंह के बीच विवाद ने भी सलमान और एशवर्या के विवाद की याद दिला दी।


हालांकि भोजपुरी फिल्मों को समझने वाले लोग इस फिल्म को पवन सिंह के कैरियर के लिए मील का पत्थर मान रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि पवन सिंह का कैरियर के साथ ही पर्सनल लाइफ भी कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक तरफ खुशियां आ रही हैं तो दूसरी तरफ विवाद का भी सिलसिला चल निकला है। जहां शादी कर नई जिंदगी बसाने में जुटे हैं तो दूसरे विवादों में भी घिरते नजर आ रहे हैं। इसके बावजूद पवन सिंह की एक्टिंग में कभी कोई गिरावट नहीं देखने को मिली। बल्कि धीरे धीरे यह और गाढ़ी होती चली गई। बहरहाल पवन सिंह की अपकमिंग फिल्म वान्टेड के ट्रेलर और पहला ऑडियो ट्रैक भी खूब सराहा जा रहा है। यहां यह बता दें कि  वांटेड इस साल रिलीज होने वाली पवन सिंह की पहली फिल्म है। फिल्म 27 अप्रैल को रिलीज होगी। अब देखना अहम है कि उन्हें दर्शक किस तरह पसंद करते हैं।


Wednesday 8 November 2017

बिग बॉस या बंदिश!



अगर आपसे कोई सवाल पूछे कि कौन सा ऐसा शो है जो परिवार संग देखना पसंद नहीं करेंगे? तो इस बात की अधिक संभावना है कि आपका जवाब कलर्स का चर्चित शो ‘बिग बॉस’हो। दरअसल, बिग बॉस एक ऐसा शो है जिसके जरिए चैनल द्वारा दर्शकों के बीच फूहड़ता और विवाद को बेहद ही चटपटे अंदाज में परोसा जाता है। शो के मेकर्स भी इस सच को मान चुके हैं कि जितने विवाद जुड़ेंगे, टीआरपी उतनी ज्यादा मिलेगी। यही वजह है कि हर सीजन में कंटेस्टेंट को सेलेक्ट करने से पहले बेहद रिसर्च किया जाता है। इस रिसर्च के जरिए यह पता लगाया जाता है कि कंटेस्टेंट कितना विवादित है।

इसके अलावा इस बात पर भी गौर किया जाता है कि कौन सा कन्टेस्टेंट सबसे ज्यादा फुटेज ले सकता है। यह भी सच है कि बिग बॉस के अब तक के सफर में चैनल ने शो के साथ हर तरह के प्रयोग किए। शो के होस्ट में बदलाव से लेकर कॉमनर्स की घर में एंट्री तक इन्हीं प्रयोगों की एक बानगी है।

स्वामी ओम और बिग बॉस

मसलन, पिछले सीजन में स्वामी ओम जैसे विवादित कॉमनर्स को ‘बिग बॉस’ के घर में एंट्री दी गई। जब स्वामी ओम घर में पहुंचे तब उनकी हरकतों को देखकर देशभर के लोग हैरान थे। खुद को संत बताने वाले स्वामी ओम को लोगों ने घर के अंदर अश्लीलता के अलावा लड़ाई करते हुए भी देखा।
इससे स्वामी ओम को पॉपुलैरिटी तो मिली ही उसके साथ ही शो की टीआरपी भी अच्छी रही। शो से बाहर किए जाने के बाद स्वामी ओम ने बिग बॉस और होस्ट सलमान खान की जमकर आलोचना की।

ठीक उसी तरह इस सीजन में भी कई दिलचस्प किरदार घर में रहने के लिए चुने गए। उन्हीं में से एक ​दाउद इब्राहिम के कथित रिश्तेदार जुबैर खान भी थे। जुबैर को सीजन के पहले वीकेंड पर ही घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इस दौरान शो के होस्ट सलमान खान ने उन्हें लताड़ भी लगाई। शो से बाहर होने के बाद जुबैर ने भी स्वामी ओम की तरह मीडिया में जमकर बयानबाजी की। जुबैर ने एक कदम आगे बढ़कर सलमान खान के खिलाफ केस भी कर दिया।
इस साल शो में एक और दिलचस्प किरदार की एंट्री हुई । इस किरदार का नाम ढिंचैक पूजा है। बदनाम होकर भी नाम कमाने वाली पूजा को इंटरनेट की दुनिया की नई सनसनी कहना गलत नहीं होगा।
कुछ ऐसी ही कहानी अर्शी खान की भी है। खुद को पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद आफरीदी के बच्चे की मां बताने वाली अर्शी भी इस सीजन की सबसे बड़ी ड्रामेबाज किरदारों में से है। ऐसे किरदारों के जरिए दर्शकों को मनोरंजन तो मिलता है लेकिन वो बातें पीछे छूट जाती हैं जिसके लिए लोग शो देखते हैं।

शो का मकसद

किसी शो का मकसद हर उम्र के लोगों को एंटरटेन करना होना चाहिए ताकि परिवार संग भी उस शो का हिस्सा बना जा सके। यह अहम नहीं ​है कि शो का प्रसारण समय क्या है, यह देखना जरूरी है कि क्या इस शो के जरिए हर उम्र और हर वर्ग के लोग एंटरटेन हो पा रहे हैं या फिर एंटरटेनमेंट की भी एक लकीर खींच गई है, इस लकीर के उस पार परिवार है तो इस पार आप। अगर ऐसा है तो समझ लीजिए कि वो एंटरटेनमेंट नहीं बल्कि बंदिश है। बिग बॉस की इस बंदिश में रहकर एंटरटेनमेंट की तलाश कर रहे हैं तो वो मिलना मुश्किल है। एंटरटेनमेंट तो वो होता है जिससे कोई हिचक न हो। अगर हिचक हो रही है तो वो एंटरटेनमेंट नहीं, अश्लीलता है। ऐसे में यह जरूरी है कि बिग बॉस को उस लायक बनाया जाए जिसे परिवार संग देखा जा सके।     

Saturday 23 September 2017

ताकि 'भरोसे' में न पड़े दरार..

यह महज संयोग ही है कि जब देश के पीएम नरेंद्र मोदी काशी के दौरे पर हैं उसी वक्‍त में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में बेटियां अपने वजूद की लड़ाई  लड़ रही हैं। ऐसे में सवाल है कि पीएम और यहां के सांसद मोदी का रिएक्‍शन क्‍या होना चाहिए? क्‍या उन्‍हें अपने रुट में बदलाव कर लेना चाहिए या फिर वहां जाकर बेटियों के इस मुहिम को बल देना चाहिए। BHU की लड़कियों का दर्द साधारण नहीं है। एक बार के लिए मान लेते हैं कि उनकी पीड़ा सुनने की पीएम मोदी को फुर्सत नहीं है लेकिन राज्‍य के सीएम योगी आदित्‍यनाथ भी क्‍यों खामोश हैं। पिछले दिनों मोदी जी ने जिस तरह ट्रिपल तलाक पर सक्रियता दिखाकर महिलाओं को न्‍याय दिलाया वो बेहद सराहनीय था। लेकिन इस मोर्चे पर इतना कमजोर होने की क्‍या जरूरत थी, ये समझ से परे है।

दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी किसी मोर्चे पर अबूझ पहेली बने हैं। इससे पहले भी तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिसपर उनका रिएक्‍शन थोड़ी देर या फिर नहीं भी आया है। मीडिया की नजर में शायद खामोशी या फिर रुट बदलना उनका 'मास्‍टर स्‍ट्रोक'हो लेकिन उनके इस रंग से लोगों के भरोसे को सेंध जरूर लग रहा है। मैंने पिछले 3 सालों में तमाम ऐसे लोगों के भरोसे में सेंध लगते देखा है जिन्‍हें कभी यकीं था। कुछ लोगों की नजर में आम जनता का यही भरोसा 'भक्‍त' की संज्ञा दे चुका है। मैं भी उन लोगों की नजर में भक्‍तों में से ही हूं। लेकिन सच भी यह है कि उन भक्‍तों के भरोसे में दरार पड़ रही है। अधिकतर विरोधियों के लिए मोदी सरकार की ज्‍यादा से ज्‍यादा नाकामी ही सुकून देती है, लेकिन जो लोग भरोसा करते हैं उनकी नजर में यह नाकामी सिर्फ एक सवाल है। ये भी जान लीजिए कि उनके लिए यह तब तक सवाल है जब तक कि इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिल जाता है। वर्ना वो दिन भी आ जाएंगे जब मोदी सरकार की तुलना भी कांग्रेस के 'काल' से की जाने लगेगी।

आर्थिक मोर्चे पर नाकामी, महंगाई, रोजगार के अवसर की कमी, अपने कठोर फैसलों को जस्टिफाई न कर पाना, बेवजह इवेंटबाजी या बयानबाजी और न जाने क्‍या - क्‍या। ऐसे तमाम मौके आए हैं जब मोदी सरकार ने इसके परिणाम की चिंता नहीं की है। यह ठीक वैसे ही है जैसे कांग्रेस ने 2010 के बाद किया था। कम से कम भाजपा सरकार को कांग्रेस के इस रवैये का परिणाम तो याद ही होगा । 

Monday 4 September 2017

कंगना से क्रश की वजह..

वैसे तो मेरी बॉलीवुड एक्‍ट्रेसेस से कभी भी, किसी भी तरह की एकतरफा इश्‍कबाजी नहीं रही और न ही मैंने कभी किसी एक्‍ट्रेसेस की कल्‍पना कर अपनी दुनिया को आभासी बनाने की कोशिश की। लेकिन कंगना रनौट के प्रति मेरा ये ज्ञान फेल होता नजर आ रहा है। कंगना रनोत मतलब बेबाक, बेपरवाह, बिंदास और विवादित। फिल्म जगत का ऐसा नाम, जिसे आप पसंद करें या नापसंद, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते। मात्र 10 साल में कंगना ने फिल्मों के ग्रंथ पर कभी न मिटने वाली स्याही से छाप छोड़ी है।


मेरी कंगना से क्रश की वजह उनकी हिम्‍मत है। पिछले दिनों कंगना रनौट ने जब इंडिया टीवी के प्रोग्राम आप की अदालत में बोलना शुरू किया तो अच्‍छे – अच्‍छों की बोलती बंद कर दी। हिमाचल के छोटे से शहर की इस बोल्‍ड और बिंदास लड़की की बेबाकी ने मुझे दीवाना बना दिया है। परिवार के खिलाफ कौन सी लड़की बोल पाती है, वो भी दुनिया के सामने..लेकिन कंगना ने बोला भी और परिवारों में भाई-बहन के अंतर को भी परत दर परत खोल दिया. ..दरअसल, 
कंगना बॉलीवुड की उस भीड़ से बिल्‍कुल अलग हैं, जो दोगली जिंदगी जीने में यकीं करती है। वह उन लोगों में से नहीं हैं जो बॉलीवुड के चाटूकारों की श्रेणी में आता है। वह उनमें से हैं जो हर कदम पर बॉलीवुड के उस पिंजरे को चोट पहुंचाती आ रही हैं जिन्‍हें हेमामालिनी, वैजयंतीमाला, माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी, काजोल और करीना सरीखी अभिनेत्रियों ने भी तोड़ने की कोशिश नहीं की। कंगना के बिंदास अंदाज को देखकर मुझे बॉलीवुड की जमात बेहद स्‍वार्थी नजर आती है।



करन जौहर से लेकर जावेद अख्‍तर तक   


कंगना ने बॉलीवुड के लगभग हर ताकतवर लॉबी को चुनौती दी है। वर्ना रितिक रोशन जैसे एक्‍टर से टक्‍कर कौन ले सकता है। आदित्‍य पंचोली फिर शेखर सुमन के बेटे अध्‍ध्‍यन और फिर कंगना ने जिस तरीके से बॉलीवुड के बच्‍चा पार्टी को लॉन्‍च करने का ठेका उठाने वाले करण जौहर को ललकारा उसने तो मेरे दिल के तार छेड़ दिए। खासतौर पर करण जौहर वो शख्‍स है जिसको, प्रेस कॉन्‍फ्रेंस से लेकर फिल्‍म प्रमोशन तक बड़ी – बड़ी एक्‍ट्रेसेस खुशामद करती नजर आती हैं। वह यहीं नहीं रुकीं, उन्‍होंने इशारों में बॉलीवुड के टॉप राइटर जावेद अख्तर को भी लपेटे में ले लिया। यह वही वक्‍त था जब कंगना मेरे दिलों दिमाग में घर कर रही थीं।  

हो सकता है आप इसे उनकी आने वाली फिल्‍म सिमरन का प्रमोशन कहें। हो सकता है कंगना कल को बॉलीवुड लॉबी की शिकार हो जाएं। हो सकता है उनको फिल्‍में न मिले। हो सकता है वह बॉलीवुड से बॉयकॉट हो जाएं। हो सकता है, जो हमारी सोच में न हो कुछ ऐसा बुरा हो जाए। लेकिन यह तो तय है कि कंगना की ठसक कभी कम नहीं होने वाली है।